अगले दिन जब ड्यूटी पहुंचे तो ए.यूं.ऍफ़.सी.श्री विनोद चंदर ने मुझे मेरी चाबियें सौंप दीं,मेरी अटेंडेंस रजिस्टर में मुझ से लगवा ली और वाउचर्स मुझे वेरीफिकेशन के लिए सौंप दिए.यूं.ऍफ़.सी.रामादास साहब इसी बीच ट्रांसफर हो कर बंगलौर जा चुके थे ,उनके स्थान पर रत्नम पंचाक्ष्रम साहब आ गए थे जिन्हें हिन्दी नहीं आती थी या वह तमिल होने के नाते बोलना नहीं चाहते थे और मैं अंगरेजी बोलने में हिचकता था.हालांकि चंदर साहब भी तमिल थे और उनके द्वारा मेरा समर्थन करने से पंच्छू साहब नार्मल रहे.
ऍफ़.एंड बी .मेनेजर श्री जगमोहन माथुर ने एस.पी.सिंह को पर्सोनल मेनेजर हेमंत कुमार के इशारे पर ड्यूटी पर नहीं लिया.मैंने व्यक्तिगत रूप से माथुर साहब से भेंट कर एस.पी.को ड्यूटी पर लेने का आग्रह किया ,उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि वह एस.पी. का कोई नुक्सान नहीं होने देंगें परन्तु मेनेजमेंट की इन्टरनल पालिटिक्स में उन्हें जी.एम्.के विरुद्ध हेमंत कुमार की सपोर्ट चाहिए इसलिए थोडा खेल खेलने दो और मैंने एस.पी.को यह सीक्रेट देकर आश्वस्त कर दिया.हफ्ते भर बाद उसे ड्यूटी पर ले लिया गया और दोनों को टी.ए .भी रीइम्बर्स हो गया.
अगस्त १९८० में ही हम कारगिल से वापिस आ गए जबकि आना अक्टूबर में था और शादी ०८ नवम्बर को होना तय था.अब तक वाटर वर्क्स की सुप्लाई गड़बड़ा गयी थी अतः अगस्त में घर के आँगन में पश्चिम में हैण्ड पम्प लगवा लिया.तब ४५ फीट पर पानी मिल गया था और खुदाई ५० फीट करा ली थी.बाद में २००९ में छोड़ते वक्त तीसरी बार बोरिंग हो चुकी थी और वाटर लेवल ७५ फीट जा चूका था हमने १०० फीट खुदाई करा रखी थी.
शादी दिन की रखी थी पंडित के रूप में मेरे परिचित आयुर्वेदिक डा.थे जिनके समर्थन पर मैं आयुर्वेद रत्न कर रहा था उन्हीं के साथ का अनुभव दिखाया था.बारात टूंडला गयी थी ५० लोग ले जाना तय था परन्तु सेन्ट्रल वेयर हाउस में सेक्शन आफीसर के रूप में कार्य रत जय शंकर साहब के बड़े बेटे (जो हमारे बहनोई के मित्र और भतीज दामाद भी थे जिसका खुलासा अब लखनऊ आने पर हुआ) बाबूजी से बीच में आ कर बोले थे ३०-३५ लोग मिनी बस में आ जायेंगे.हम पहले ही बड़ी बस बुक कर चुके थे.मेरे आफिस के दो लोग ही लिए ,बाबूजी ने अपने आफिस (वह रिटायरमेंट के बाद एक फर्म में काम कर रहे थे)से किसी को नहीं लिया,मोहल्ले से किसी को नहीं लिया कुल २० लोग ले गए.उस एस.ओ.ने अपने अब्बा जान को नहीं बताया कि वह हमारे बाबूजी से क्या कह गया था.उन लोगों ने ५० बारातियों का ही बंदोबस्त किया था.खाना वहां बेहद बच रहा था रात को लौटते में बस में रखवा दिया.सब्जियां सड़ गयीं और फेंकनी पडीं.पूरियां सुखा कर दही में भिगो-भिगो कर निबटाई गईंजैसा कि अलीगढ़ में बहन की सुसराल में होता था.
उन लोगों ने बैंड और घोडी भी थोप दिया था ,हमारे बाबूजी ने कोई एतराज नहीं किया जबकि तय प्रोग्राम उलटने का एकतरफा उनका कृत अपराध था.बाबूजी इन चीजों का भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं थे लेकिन कर दिया अतः यह हम लोगों की कमजोरी समझी गई .
यह शादी बहनोई साहब के पिताश्री ने तय कराई थी.जे.एस.एल.साहब उनके रेलवे के विभागीय साथी थे.इसके अलावा एस.ओ.कुक्कू की पत्नी उनकी रिश्ते की पोती है अर्थात हमारे बहनोई साहब की भतीजी.जब जे.एस.एल.साहब दो बोरा छोटी इलाईची के गबन में फंसे तो श्री सरदार बिहारी जी (बहन के श्वसुर साहब)ने ही अपने क्लेम इन्स्पेक्टर के ओहदे से उनकी नौकरी बचाई थी.
२५ -३१ दिसंबर हमारी आयुर्वेद रत्न की परीक्षाएं थीं अतः १६ त़ा.से मैं प्रिपरेशन लीव पर रहा.२८ नवम्बर को कुक्कू की शादी की सालगिरह थी वह अपनी बहन के साथ मुझे भी बुला ले गए थे.२९ त़ा.की दोपहर मैं वापिस लौट आया.उनके एन.आर.कालेज के प्रवक्ता (जो रिश्ते में मेरे भतीज दामाद भी लगते थे) साहब ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि उन लोगों ने दामाद को पूंछे बगैर आगंतुकों को भोजन कराना शुरू कर दिया था ,उन्होंने खुद मेरे साथ ही भोजन किया.
क्रमशः........
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अच्छा लगा पढ़कर....
जवाब देंहटाएंरोचक संस्मरण।
जवाब देंहटाएंबहुत ही दिलचस्प और रोचक था ....
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