पहले कारपोरेट जगत के खिलाड़ी ब्लागर साहब की कुछ सुर्खियां देखें---
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Saturday, 13 October 2012
ज्योतिष यानि मीठा जहर ...
दरअसल कुछ तथाकथित अनाड़ियों ने इस ज्योतिष विज्ञान की ऐसी तैसी कर दी और इसे एक व्यवसाय बना डाला है।
मेरी व्यक्तिगत राय में तो ज्योतिष और त्योतिषी दोनों मीठे जहर के समान हैं, जिसके भी जीवन में ये घुल जाते हैं, उसे कहीं का नहीं छोड़ते। ज्योतिष भय प्रधान है जो मुख्य कर्म में हमेशा बाधक बनता है।
यहां आपको ये भी बता दूं कि नोबेल पुरस्कार विजेता डा. वेंकटरमन रामा कृष्णन ने पूरे ज्योतिष शास्त्र को ही फर्जी बता दिया है।
अब देखिये मूल रूप से 04-12-2010 को प्रकाशित और 21 - 09 -2012 को पुनर्प्रकिशित लेख की ये पंक्तियाँ---
"अब सवाल उस संदेह का है जो विद्व जन व्यक्त करते हैं ,उसके लिए वे स्वंय ज़िम्मेदार हैं कि वे अज्ञानी और ठग व लुटेरों क़े पास जाते ही क्यों हैं ? क्यों नहीं वे शुद्ध -वैज्ञानिक आधार पर चलने वाले ज्योत्षी से सम्पर्क करते? याद रखें ज्योतिष -कर्मकांड नहीं है,अतः कर्मकांडी से ज्योतिष संबंधी सलाह लेते ही क्यों है ? जो स्वंय भटकते हैं ,उन्हें ज्योतिष -विज्ञान की आलोचना करने का किसी भी प्रकार हक नहीं है. ज्योतिष भाग्य पर नहीं कर्म और केवल कर्म पर ही आधारित शास्त्र है.
http://krantiswar.blogspot.in/2012/09/blog-post_21.html
उक्त13-10-2012 वाले पोस्ट लेखक और टिप्पणी दाता दोनों ही ढोंगियों,पाखंडियों,व्यापारियों,उद्योगपतियों एवं कारपोरेट घरानों के दलाल प्रतीत होते हैं उनका उद्देश्य 'वास्तविक तथ्यों' को लुप्त करके अनर्गल एवं तथ्यहीन बातों द्वारा ग्रेशम के अर्थशास्त्र के सिद्धान्त कि,"खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है"के आधार पर वैज्ञानिक आधार पर ज्योतिष-विश्लेषण करने वालों को नाहक-झूठा बदनाम करके पृष्ठ-भूमि मे धकेलना है जिससे आम लोग फ़रेबियों के चंगुल मे ही फंस कर लुटते रहें। अतः वे दोनों जन-विरोधी ब्लागर्स - स्वतः ही मीठा जहर उगलने वाले ब्लागर्स हैं।अब ये छली ब्लागर्स सुश्री ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए कार्पोरेटी कपट का सहारा लेंगे ताकि मेरे विश्लेषण को गलत सिद्ध कर सकें।
ममता बनर्जी के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं ?
http://krantiswar.blogspot.in/2012/10/blog-post_19.html
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आलेख बहुत ही बढ़िया है
मुझे लगता है कि ईश्वर की सत्ता को चुनौती देने वाला अभी धरती पर कोई नहीं होगा। विधि का विधान बदलना संभव नहीं है।
ab khush? Ehsan Faramoshi hamaare blood me nahi hai sir
OK,please wait for 3 days
ji will be waiting
10 अक्तूबर 2012 को प्रकाशित मेरे लेख
संसार का मूलाधार है---त्रैतवाद
का प्रतिवाद है 13 अक्तूबर का कारपोरेट दलाल का उपरोक्त वर्णित लेख ठीक उसी प्रकार जैसे कि19 अप्रैल 2012 के लेख मे मैंने 'रेखा के राजनीति मे आने की संभावना' लिखा और वह 26 अप्रैल को राज्यसभा मे मनोनीत हो गई तब 27 अप्रैल 2012 को इन महान विद्वान साहब ने अपने लेख मे उसकी खिल्ली उड़ाई। साँच को आंच कहाँ -प्रत्यक्ष देखिये---बावजूद इस चेतावनी के उक्त ब्लागर ने अपनी हेंकड़ी जारी रखते हुये दूसरे ब्लागो पर टिप्पणियों मे भी मेरे 'रेखा' वाले ज्योतिषीय विश्लेषण पर हमला जारी रखा जैसा कि नीचे स्पष्ट है और यशवन्त को भी ई-मेल मे 'गनीमत' शब्द लिख कर ठेस पहुंचाई जबकि वह उक्त ब्लागर का दिया टास्क अपनी भूख-प्यास छोड़ कर करता रहा है। अतः इसी 'गनीमत'पर उसने भी उक्त ब्लागर की हकीकत उजागर कर दी है।
(रश्मि प्रभा...Apr 27, 2012 07:21 AM
मेरी भी शुभकामना है)
उक्त ब्लागर की इच्छा पर गलत सलाह न देने के कारण उक्त ब्लागर ने मेरे पुत्र के साथ भी झूठ-छल का प्रयोग किया ,जिस कारण-शबाना आज़मी,रेखा और प्रस्तुत विश्लेषण सार्वजनिक रूप से देने पड़े हैं।
उक्त ब्लागर ने मेरे अतिरिक्त बोकारो की एक ज्योतिषी से भी निशुल्क परामर्श लिया था और उसे भी नहीं माना था।चूंकि वह सब ब्यौरा मेरे पास भी उपलब्ध है अतः अब 'जन्मकुंडलिया गलत होती हैं' सरीखे वाक्यांश अपने पिटठू से लिखवाये हैं। क्योंकि शबाना जी ,रेखा जी एवं X-Y के दिये विश्लेषणों से स्पष्ट है कि जन्मपत्र द्वारा एक सटीक आंकलन प्रस्तुत किया जा सकता है और उन ब्लागर को भय है कि यदि उनकी पोल-पट्टी सबके सामने आ गई तो उनके छल-व्यापार -ठगी का धंधा चौपट हो जाएगा। अपनी धनाढ्यता के रौब मे मुझे दबाव डाल कर गलत विश्लेषण न प्राप्त कर पाने के कारण अपने चाटुकार से ज्योतिष-विरोधी लेख लिखवाने शुरू करवाए हैं।
http://krantiswar.blogspot.in/2012/10/blog-post_10.html
यह लेख आर्यसमाज -कमलनगर,आगरा मे डॉ सोमदेव शास्त्री जी द्वारा दिये प्रवचनों के एक अंश का सार मात्र है । इस लेख की खास-खास बातें ये हैं---
1- इस संसार ,इस सृष्टि का नियंता और संचालक परम पिता परमात्मा है। परमात्मा के संबंध मे हमारे देश मे अनेकों मत और धारणाये प्रचलित हैं। इनमे से प्रमुख इस प्रकार हैं---
अद्वैतवादी- सिर्फ परमात्मा को मानते हैं और प्रकृति तथा आत्मा को उसका अंश मानते हैं जो कि गलत तथ्य है क्योंकि यदि आत्मा,परमात्मा का ही अंश होता तो बुरे कर्म नहीं करता और प्रकृति भी चेतन होती जड़ नही।
द्वैतवादी -परमात्मा (चेतन)और प्रकृति (जड़)तो मानते हैं परंतु ये भी आत्मा को परमात्मा का ही अंश मानने की भूल करते हैं;इसलिए ये भी मनुष्य को भटका देते हैं।
त्रैतवादी-परमात्मा,आत्मा और प्रकृति तीनों का स्वतंत्र अस्तित्व मानना यही 'त्रैतवाद 'है और 'वेदों' मे इसी का वर्णन है। अन्य किसी तथ्य का नहीं।
2-वेद आदि ग्रंथ हैं---प्रारम्भ मे ये श्रुति व स्मृति पर आधारित थे अब ग्रंथाकार उपलब्ध हैं। अब से लगभग दो अरब वर्ष पूर्व जब हमारी यह पृथ्वी 'सूर्य' से अलग हुई तो यह भी आग का एक गोला ही थी। धीरे-धीरे करोड़ों वर्षों मे यह पृथ्वी ठंडी हुई और गैसों के मिलने के प्रभाव से यहाँ वर्षा हुई तब जाकर 'जल'(H-2 O)की उत्पत्ति हुई। पृथ्वी के उस भाग मे जो आज 'अफ्रीका' कहलाता है ,उस भाग मे भी जो 'मध्य एशिया' और 'यूरोप'के समीप है तथा तीसरे उस स्थान पर जो 'त्रिवृष्टि'(तिब्बत)कहलाता है परमात्मा ने 'युवा-पुरुष' व 'युवा-स्त्री' रूपी मनुष्यों की उत्पत्ति की और आज की यह सम्पूर्ण मानवता उन्ही तीनों पर उत्पन्न मनुष्यों की संतति हैं।
3- वेदों के अनुसार ---(1 )परमात्मा,(2 )आत्मा और (3 )प्रकृति इन तीन तत्वों पर आधारित इस संसार मे प्रकृति 'जड़' है और स्वयं कुछ नहीं कर सकती जो तीन तत्वों के मेल से बनी है---(1 )सत्व,(2 )रज और (3 )तम। ये तीनों जब 'सम' अवस्था मे होते हैं तो कुछ नहीं होता है और वह 'प्रलय' के बाद की अवस्था होती है। आत्मा -सत्य है और अमर है यह अनादि और अनंत है। 'परमात्मा' ='सत्य' और 'चित्त'के अतिरिक्त 'आनंदमय' भी है---सर्व शक्तिमान है,सर्वज्ञ है और अपने गुण तथा स्वभाव के कारण आत्माओं के लिए प्रकृति से 'सृष्टि' करता है ,उसका पालन करता है तथा उसका संहार कर प्रलय की स्थिति ला देता है,पुनः फिर सृष्टि करता है और आत्माओं को पुनः प्रकृति के 'संयोजन'से 'संसार' मे भेज देता है=G(जेनरेट)+O(आपरेट)+D(डेसट्राय)। ये सब कार्य वह खुद ही करता (खुदा ) है।
4- 'सृष्टि' के नित्य ही 'संसर्ग' करने अर्थात 'गतिमान' रहने के कारण ही इसे 'संसार' कहा गया है। 'आत्मा' ,'परमात्मा' का अंश नहीं है उसका स्वतंत्र अस्तित्व है और वह भी 'प्रकृति' तथा 'परमात्मा' की भांति ही कभी भी 'नष्ट नहीं होता है'। विभिन्न कालों मे विभिन्न रूपों मे (योनियों मे )'आत्मा' आता-जाता रहता है और ऐसा उसके 'कर्मफल' के परिणामस्वरूप होता है। 'मनुष्य'=जो मनन कर सकता है उसे मनुष्य कहते हैं। 'परमात्मा' ने 'मानव जीवात्मा' को इस संसार मे 'कार्य-क्षेत्र' मे स्वतन्त्रता दी है अर्थात वह जैसे चाहे कार्य करे परंतु परिणाम परमात्मा उसके कार्यों के अनुसार ही देता है अन्य योनियों मे आत्मा 'कर्मों के फल भोगने' हेतु ही जाता है। यह उसी प्रकार है जैसे 'परीक्षार्थी' परीक्षा भवन मे कुछ भी लिखने को स्वतंत्र है परंतु परिणाम उसके लिखे अनुसार ही मिलता है जिस पर परीक्षार्थी का नियंत्रण नहीं होता। इस भौतिक शरीर के साथ आत्मा को सूक्ष्म शरीर घेरे रहता है और भौतिक शरीर की मृत्यु के बाद भी वह 'सूक्ष्म शरीर' आत्मा के साथ ही चला जाता है। मनुष्य ने अछे या बुरे जो भी 'कर्म' किए होते हैं वे सभी 'गुप्त' रूप से 'सूक्ष्म शरीर' के 'चित्त' मे अंकित रहते हैं और उन्ही के अनुरूप 'परमात्मा' आगामी फल प्रदान करता है---इसी को 'चित्रगुप्त' कहा जाता है।
5- परमात्मा अच्छी के अच्छे व बुरे के बुरे फल प्रदान करता है। इस जन्म के बुरे कर्म देख कर परमात्मा पूर्व जन्म के अच्छे फल नहीं रोकता;परंतु इस जन्म के बुरे कर्म उस मनुष्य के आगामी जीवन का 'प्रारब्ध' निर्धारित कर देते हैं। परंतु अज्ञानी मनुष्य समझता है कि परमात्मा बुरे का साथी है ,या तो वह भी बुरे कार्यों मे लीन होकर अपना आगामी प्रारब्ध बिगाड़ लेता है या व्यर्थ ही परमात्मा को कोसता रहता है। परंतु बुद्धिमान मनुष्य अब्दुर्रहीम खानखाना की इस उक्ति पर चलता है---
"रहिमन चुप हुवे बैठिए,देख दिनन के फेर।
जब नीके दिन आईहैं,बनात न लागि है-बेर। । "
6- जो बुद्धिहीन मनुष्य यह समझते हैं कि अच्छा या बुरा सब परमात्मा की मर्ज़ी से होता है ,वे अपनी गलती को छिपाने हेतु ही ऐसा कहते हैं। आत्मा के साथ परमात्मा का भी वास रहता है क्योंकि वह सर्वव्यापक है। परंतु आत्मा -परमात्मा का अंश नहीं है जैसा कु भ्रम लोग फैला देते हैं। जल का परमाणु अलग करेंगे तो उसमे जल के ,अग्नि का अलग करेंगे तो उसमे अग्नि के गुण मिलेंगे। जल की एक बूंद भी शीतल होगी तथा अग्नि की एक चिंगारी भी दग्ध करने मे सक्षम होगी। यदि आत्मा,परमात्मा का ही अंश होता तो वह भी सचिदानंद अर्थात सत +चित्त +आनंद होता। जबकि आत्मा सत और चित्त तो है पर आनंद युक्त नहीं है और इस आनंद की प्राप्ति के लिए ही उसे मानव शरीर से परमात्मा का ध्यान करना होता है। जो मनुष्य संसार के इस त्रैतवादी रहस्य को समझ कर कर्म करते हैं वे इस संसार मे भी आनंद उठाते हैं और आगामी जन्मों का भी प्रारब्ध 'आनंदमय' बना लेते हैं। आनंद परमात्मा के सान्निध्य मे है ---सांसारिक सुखों मे नहीं। संसार का मूलाधार है त्रैतवाद अर्थात परमात्मा,प्रकृति और आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व स्वीकार करना तथा तदनुरूप कर्म-व्यवहार करना।