बुधवार, 11 जनवरी 2012

आगरा/1992-93/भाग-5-(बाबरी मस्जिद काण्ड/कर्फ़्यू)

यू पी मे अपनी सरकार बनवा लेने के कारण भाजपाइयों के हौसले बुलंद थे और वे केंद्र की सत्ता पर काबिज होने हेतु कुछ भी करने को तैयार थे। 06 दिसंबर डॉ बी आर अंबेडकर का निर्वाण दिवस होता है और उन्हें भारतीय संविधान का निर्माता कहा जाता है (क्योंकि वह संविधान निर्मात्री समिति के चेयरमेन थे)और हमारा संविधान धर्म -निरपेक्ष है अतः उस दिन को खास तौर पर चुन कर बाबरी मस्जिद/राम मंदिर को ढहा दिया गया। यह एक ढांचे का ही विध्वंस न था यह संविधान के धर्म निरपेक्ष ताने-बाने का विध्वंस था। सारे देश मे सांप्रदायिक दंगे छिड़ गए और जगह-जगह कर्फ़्यू घोषित हो गए। 'पनवारी काण्ड'के बाद कमलानगर मे दूसरी बार यह कर्फ़्यू लगा था।

हींग की मंडी बाजार मे भी कर्फ़्यू था। शंकर लाल जी के घर (कमला नगर मे ही)पार्ट टाईम जैसे के तैसे करने जाते रहे। कालोनी के अंदरूनी हिस्सों मे पुलिस का पहरा न था। न्यू आगरा स्थित अपने घर पर रेकसन वाले सेठ जी अपनी बुक्स आफ अकाउंट्स ले आए थे और संदेश देकर मुझ से घर पर बुलवा कर कार्य करवा रहे थे। फुल टाईम (06 घंटे) वाले सेठ जी की किताबें दुकान मे होने के कारण उनका कार्य नहीं हो रहा था। जब कर्फ़्यू मे कुछ ढील हुई और घंटे-दो घंटे के लिए खुला तो उन्होने अपने पुत्र को भेज कर मुझ से घर पर मिलने को कहा।
उनके घर भरतपुर हाउस पर जब मै मिला तो  उनके यह कहने पर कि पार्ट टाईम वालों का काम कर रहे हो मेरा ही छोड़ रखा है मैंने कहा मेरे पास तो कर्फ़्यू पास है आप दुकान खोलें मै आने को तैयार हूँ। वह बोले काम हो न हो आप मेरे घर पर उसी तरह आयें जैसे दूसरे सेठ लोग के घर जा रहे हैं। उनके घर अगले दिन जाने पर वह नहीं मिले उनकी माता जी,पत्नी और दोनों बेटों ने अपने-अपने हाथ दिखा कर अपना भविष्य पूछा उनके जवाब बता कर मै लौट लिया। उसके अगले दिन वह मिले और बोले आप चले क्यों गए ?मैंने कहा आपके पास बुक्स नहीं हैं मै करता क्या?उन्होने गेट के पास इशारा करके कहा सिर्फ यहाँ धूप मे बैठे रहते। मै तत्काल उनके घर से उठा और अपनी साइकिल उठा कर चल दिया यह कह कर -मै आपका चौकीदार नहीं हूँ जो गेट पर बैठ कर रखवाली करूँ ,मुझे आपकी नौकरी नहीं करनी है। फिर वह गिड़गिड़ाते रहे और मैंने उनकी परवाह नहीं की।

सेठ जी भागे-भागे शंकर लाल जी के घर आए कि माथुर ने मेरे यहाँ काम छोड़ दिया है आप भी हटाओ किन्तु उन्होने कहा मेरा काम ठीक चल रहा है क्यों हटाएँ?फिर वह न्यू आगरा मुरलीधर जी के घर भी यही प्रस्ताव लेकर गए। उन्होने भी वही जवाब दिया। तीनों सेठ सिन्धी थे लेकिन दो ने अपना हित देखा उनका क्यों देखते?


कर्फ़्यू पास की कहानी

चूंकि मै भकपा,आगरा मे कोशाध्यक्ष के पद पर था और जिलामंत्री नेमीचन्द जी को सफल बनाने की ज़िम्मेदारी भी ओढ़े हुये था अतः हम कुछ लोग किसी प्रकार कर्फ़्यू के दौरान ही राजा-की-मंडी स्थित पार्टी कार्यालय पर एकत्र हुये और पार्टी के लेटर हेड पर 15 लोगों के हस्ताक्षर वेरीफ़ाई करके ए डी एम सिटी के यहाँ कर्फ़्यू पास के लिए आवेदन दिया। हमारे साथ किशन बाबू श्रीवास्तव साहब ,उनकी पत्नी तथा एक-दो और लोग थे। मिसेज श्रीवास्तव दफ्तर मे पास लेने गई तो ए डी एम साहब ने कह दिया अपने जिला अध्यक्ष को भेजिये उन्हें ही ये पास सौंपेंगे। उन्होने बाहर आकर मुझ से कहा आप कोशाध्यक्ष लिख कर पास ले लें। लेकिन मैंने ए डी एम साहब को समझाया कि साहब हमारी पार्टी मे 'जिला मंत्री' ही होता है अध्यक्ष का कोई प्रोविज़न हमारे संविधान मे नहीं है। जिला मंत्री कर्फ़्यू मे फंसे हैं आप पास दें तब वह आ सकते हैं। खैर उन्होने मुझे 10 लोगों हेतु पास दे दिये और कहा कि हमे सभी पार्टियों के प्रतिनिधियों को देने है आप इतने ही से काम चलाओ।

जो पास जारी हुये थे उनमे मिसेज श्रीवस्ताव का तो था लेकिन किशन बाबू श्रीवास्तव का पास जारी नहीं हुआ था। अतः उन्होने एस कुमार का पास खुद रख लिया और एस कुमार को पूरन खाँ का थमा दिया। एस कुमार गोरा-चिट्टा कामरेड तो है ही उर्दू का भी माहिर था । लेकिन एक दिन पार्टी कार्यालय के बिलकुल नजदीक कुछ सिपाहियों ने जो उनके नाम से वाकिफ थे उन्हें पकड़ लिया कि अपने मुस्लिम होने का सुबूत दो वरना बंद कर देंगे। जैसे ही यह खबर पार्टी कार्यालय पहुंची हम लोग मौके पर गए और सिपाहियों को समझा कर एस कुमार को कार्यालय ले आए। आगे से उन्हें आने को मना किया और वह पास कामरेड पूरन खाँ को पहुंचा दिया। 

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