भाग 1 से आगे .......................................................
नौ वर्ष की उम्र मे लखनऊ छोडने से पहले अक्सर बउआ हम दोनों भाईयों को( जब कोई बाबूजी से मिलने अतिथि आते थे तभी )समोसे-मिठाई लाने भेजती थीं। हालांकि डेरी का मक्खन लेने कभी-कभी और स्कूल तो रोजाना सड़क पार करके जाते थे किन्तु ये सामान बिना सड़क पार किए लाने की हिदायत देती थीं जिस कारण ज़्यादा दूर चल कर 'हेवेट रोड' चौराहा स्थित (जिसे अब रोडवेज के टिकट पर हुसैन गंज लिखा जाता है)हलवाई से लाते थे। एक बार बउआ ने मिठाई का नाम नहीं बताया केवल 'मिठाई' कह दिया तब हलवाई ने चार समोसों के अलावा बाकी चार आनो मे खोये की बर्फी के कटे छोटे-छोटे टुकड़ों वाली मिठाई दे दी ;तब समोसा एक आने मे एक मिलता था जो अब तब से आकार मे बहुत छोटा पाँच रुपयों मे मिलता है।
हमारे स्कूल मे विभिन्न कार्यक्रमों मे अक्सर और बच्चे अपने छोटे भाई-बहनों को दिखाने ले आते थे ,हम भी बउआ से शोभा को भेज देने को कहते थे ,एक बार 'वसंत' के कार्यक्रम मे हम दोनों भाईयों के साथ शोभा को इस हिदायत के साथ भेजा था कि दोनों लोग बीच मे रखें और बहन के दोनों हाथ पकड़े रखें। स्कूल मे बूंदी वितरण के दौरान भी लाईन मे शोभा को अजय के बाद खड़ा किया और खुद सबसे पीछे रहा था। आज तक अपने छोटे भाई-बहनों से पीछे ही चल रहा हूँ। वे दोनों खुद को ज़्यादा काबिल और मुझको मूर्ख मानते हैं तथा समाज व रिशतेदारों के बीच भी उन दोनों की ही मान्यता अधिक है। छोटी बहन की छोटी पुत्री ने तो पूना मे बस कर ब्लाग जगत मे भी वहाँ प्रवास करने वाले 'भ्रष्ट-धृष्ट-निकृष्ट'ब्लागर (जो धूर्त और ठग भी है) का सहारा लेकर हम लोगों के विरुद्ध अनर्गल छींटा-कशी भी करवाई है।जबकि आगरा मे एम बी ए करने के दौरान उसका हमारे पास आना -जाना और कभी-कभी रुकना भी हुआ है और पढ़ाई से संबन्धित कुछ सलाह भी हम लोगों से प्राप्त की है।यूरेका फोर्ब्समे नौकरी करने के दौरान कुछ माह हमारे घर रही है फिर बिदक कर हास्टल चली गई थी ,कमलेश बाबू आकर शिफ्ट कर गए थे और हमे बताए बगैर लोकल गार्जियन की जगह हमारा नाम-पता लिखा गए थे।
अजय ने तो बाबूजी के तुरंत बाद बउआ का भी निधन होने के साथ ही हम से रिश्ता समाप्त कर लिया था किन्तु ऊपरी तौर पर शोभा और कमलेश बाबू ने हम से एक तरफ तो संबंध बनाए रखे तो दूसरी तरफ भीतर ही भीतर हमारे विरुद्ध साज़िशों मे भी तल्लीन रहे जैसा कि वे पूर्व मे भी करते रहे थे ;वे तो आगे भी कामयाब रहते यदि मैं आगरा छोड़ कर लखनऊ न आ गया होता तो। इसीलिए वे मेरे लखनऊ स्थानांतरण का तीव्र विरोध कर रहे थे। शोभा ने मुझसे कहा था कि मैं या तो उनके साथ भोपाल मे शिफ्ट करूँ या फिर पूनम के भाई के साथ पटना जा कर रहूँ परंतु स्वतंत्र रूप से लखनऊ मे न रहूँ। अतः ब्लागर्स को टिप्पणियों के माध्यम से टटोल कर उनकी छोटी पुत्री मुक्ता ने यशवन्त को गुमराह कराने का भरसक प्रयास किया।पूना प्रवासी ब्लागर ने अपनी पटना स्थित शिष्य ब्लागर के माध्यम से यशवन्त को पूना मे जाब करने का आफ़र दिया जिसे रद्द कर देने पर उस ब्लागर के पति के आफिस मे पटना मे जाब करने का प्रलोभन दिलाया। उद्देश्य यशवन्त को मुझसे अलग करके दबोचना था।
शालिनी के निधन के बाद शोभा ने यशवन्त को बउआ से अपने पास रखने की मांग की थी जिसे अजय की श्रीमतीजी ने बउआ से रद्द करा दिया था और बउआ ने यह बात मुझे पूनम से विवाह करने के लिए प्रेरित करते वक्त बताई थी। शोभा नहीं चाहती थीं कि मैं पूनर्विवाह पूनम जो श्रीवास्तव हैं से करूँ। इसलिए उन्होने पटना की श्रीवास्तव ब्लागर जो पूना मे प्रवास कर रही है को मोहरा बना कर ब्लागजगत मे मेरे विरुद्ध हड़कंप खड़ा करवाया जिससे अधिकांश श्रीवास्तव ब्लागर्स मेरा व यशवन्त का विरोध करें तो प्रतिरोध करने पर पूनम और हम लोगों के विरुद्ध दरार पड़े सके। ये लोग अपने उद्देश्य मे कितना सफल हुये या हो सकते हैं वे ही जाने परंतु हम अडिग व अविचलित हैं । फिलहाल तो मई 2011 मे हमारे यहाँ लखनऊ आने पर यशवन्त को 'कपूत' बता कर शोभा/कमलेश बाबू ही हम से कट गए और इस प्रकार हम भी उनके भीतरी षडयंत्रों से बच गए।
क्रमशः ..............
नौ वर्ष की उम्र मे लखनऊ छोडने से पहले अक्सर बउआ हम दोनों भाईयों को( जब कोई बाबूजी से मिलने अतिथि आते थे तभी )समोसे-मिठाई लाने भेजती थीं। हालांकि डेरी का मक्खन लेने कभी-कभी और स्कूल तो रोजाना सड़क पार करके जाते थे किन्तु ये सामान बिना सड़क पार किए लाने की हिदायत देती थीं जिस कारण ज़्यादा दूर चल कर 'हेवेट रोड' चौराहा स्थित (जिसे अब रोडवेज के टिकट पर हुसैन गंज लिखा जाता है)हलवाई से लाते थे। एक बार बउआ ने मिठाई का नाम नहीं बताया केवल 'मिठाई' कह दिया तब हलवाई ने चार समोसों के अलावा बाकी चार आनो मे खोये की बर्फी के कटे छोटे-छोटे टुकड़ों वाली मिठाई दे दी ;तब समोसा एक आने मे एक मिलता था जो अब तब से आकार मे बहुत छोटा पाँच रुपयों मे मिलता है।
हमारे स्कूल मे विभिन्न कार्यक्रमों मे अक्सर और बच्चे अपने छोटे भाई-बहनों को दिखाने ले आते थे ,हम भी बउआ से शोभा को भेज देने को कहते थे ,एक बार 'वसंत' के कार्यक्रम मे हम दोनों भाईयों के साथ शोभा को इस हिदायत के साथ भेजा था कि दोनों लोग बीच मे रखें और बहन के दोनों हाथ पकड़े रखें। स्कूल मे बूंदी वितरण के दौरान भी लाईन मे शोभा को अजय के बाद खड़ा किया और खुद सबसे पीछे रहा था। आज तक अपने छोटे भाई-बहनों से पीछे ही चल रहा हूँ। वे दोनों खुद को ज़्यादा काबिल और मुझको मूर्ख मानते हैं तथा समाज व रिशतेदारों के बीच भी उन दोनों की ही मान्यता अधिक है। छोटी बहन की छोटी पुत्री ने तो पूना मे बस कर ब्लाग जगत मे भी वहाँ प्रवास करने वाले 'भ्रष्ट-धृष्ट-निकृष्ट'ब्लागर (जो धूर्त और ठग भी है) का सहारा लेकर हम लोगों के विरुद्ध अनर्गल छींटा-कशी भी करवाई है।जबकि आगरा मे एम बी ए करने के दौरान उसका हमारे पास आना -जाना और कभी-कभी रुकना भी हुआ है और पढ़ाई से संबन्धित कुछ सलाह भी हम लोगों से प्राप्त की है।यूरेका फोर्ब्समे नौकरी करने के दौरान कुछ माह हमारे घर रही है फिर बिदक कर हास्टल चली गई थी ,कमलेश बाबू आकर शिफ्ट कर गए थे और हमे बताए बगैर लोकल गार्जियन की जगह हमारा नाम-पता लिखा गए थे।
अजय ने तो बाबूजी के तुरंत बाद बउआ का भी निधन होने के साथ ही हम से रिश्ता समाप्त कर लिया था किन्तु ऊपरी तौर पर शोभा और कमलेश बाबू ने हम से एक तरफ तो संबंध बनाए रखे तो दूसरी तरफ भीतर ही भीतर हमारे विरुद्ध साज़िशों मे भी तल्लीन रहे जैसा कि वे पूर्व मे भी करते रहे थे ;वे तो आगे भी कामयाब रहते यदि मैं आगरा छोड़ कर लखनऊ न आ गया होता तो। इसीलिए वे मेरे लखनऊ स्थानांतरण का तीव्र विरोध कर रहे थे। शोभा ने मुझसे कहा था कि मैं या तो उनके साथ भोपाल मे शिफ्ट करूँ या फिर पूनम के भाई के साथ पटना जा कर रहूँ परंतु स्वतंत्र रूप से लखनऊ मे न रहूँ। अतः ब्लागर्स को टिप्पणियों के माध्यम से टटोल कर उनकी छोटी पुत्री मुक्ता ने यशवन्त को गुमराह कराने का भरसक प्रयास किया।पूना प्रवासी ब्लागर ने अपनी पटना स्थित शिष्य ब्लागर के माध्यम से यशवन्त को पूना मे जाब करने का आफ़र दिया जिसे रद्द कर देने पर उस ब्लागर के पति के आफिस मे पटना मे जाब करने का प्रलोभन दिलाया। उद्देश्य यशवन्त को मुझसे अलग करके दबोचना था।
शालिनी के निधन के बाद शोभा ने यशवन्त को बउआ से अपने पास रखने की मांग की थी जिसे अजय की श्रीमतीजी ने बउआ से रद्द करा दिया था और बउआ ने यह बात मुझे पूनम से विवाह करने के लिए प्रेरित करते वक्त बताई थी। शोभा नहीं चाहती थीं कि मैं पूनर्विवाह पूनम जो श्रीवास्तव हैं से करूँ। इसलिए उन्होने पटना की श्रीवास्तव ब्लागर जो पूना मे प्रवास कर रही है को मोहरा बना कर ब्लागजगत मे मेरे विरुद्ध हड़कंप खड़ा करवाया जिससे अधिकांश श्रीवास्तव ब्लागर्स मेरा व यशवन्त का विरोध करें तो प्रतिरोध करने पर पूनम और हम लोगों के विरुद्ध दरार पड़े सके। ये लोग अपने उद्देश्य मे कितना सफल हुये या हो सकते हैं वे ही जाने परंतु हम अडिग व अविचलित हैं । फिलहाल तो मई 2011 मे हमारे यहाँ लखनऊ आने पर यशवन्त को 'कपूत' बता कर शोभा/कमलेश बाबू ही हम से कट गए और इस प्रकार हम भी उनके भीतरी षडयंत्रों से बच गए।
क्रमशः ..............
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फेसबुक पर प्राप्त टिप्पणी---
जवाब देंहटाएंKashi Nath Kewat ---ब्यवस्था
परिवर्तन के संघर्ष में बाहरी और आन्तरिक संघर्षो की कष्टदायी पीडा को
झेलना शायद नियति बन गई है।पहला और शेष भाग भी पढने की जिज्ञासा जगी।