शनिवार, 9 मार्च 2013

हमे पहले ही आभास हो गया था---विजय राजबली माथुर

28 फरवरी और 01 मार्च, 2013 के हिंदुस्तान,लखनऊ के अंक मे उपरोक्त समाचार व चित्र देख कर सहसा याद हो आया कि,मैंने 2005 ई मे सपा छोड़ कर बहुत ही अच्छा निर्णय ले लिया था। फिर बाद मे आगरा संसदीय क्षेत्र से सांसद राज बब्बर जी ने भी सपा को अलविदा कर दिया था और उनके बाद मुलायम सिंह जी के सहयोगी-सलाहकार हमारे दरियाबाद के मूल निवासी बेनी प्रसाद वर्मा जी ने भी सपा छोड़ कर 'समाजवादी क्रांति दल'का गठन कर लिया था। परंतु मैं न तो उनके दल मे गया न ही बब्बर जी के 'जन - मोर्चा' जिसके संरक्षक वी पी सिंह जी थे मे ही शामिल हुआ;मैं राजनीतिक रूप से निष्क्रिय हो गया था। अतः भाकपा के तत्कालीन ज़िला मंत्री द्वारा बार-बार मेरे घर पर आकर पुनः भाकपा मे लौटने का आग्रह किया जाने लगा -मैं उनके साथ भी पहले ज़िला कोषाध्यक्ष रह चुका  था। अंततः वह मुझे सदस्य न होते हुये भी पार्टी कार्यक्रमों मे बुलाने लगे और मुझे उनको सम्मान देने हेतु शामिल होना पड़ा। 

 2006 मे आगरा कमिश्नरी पर एक प्रदर्शन  मे जिसमे राज बब्बर जी के साथ रथ पर उत्तर प्रदेश के वर्तमान भाकपा सचिव डॉ गिरीश जी भी  भाग लेने आए थे भी मैंने भाग लिया था।  मदिया कटरा स्थित  पार्टी कार्यालय जाते समय डॉ गिरीश जी के साथ ही मैं भी ट्रैक्टर ट्राली मे बैठ कर आया था और उनकी मौजूदगी मे ही कामरेड जिलामंत्री जी ने मुझसे पुनः पार्टी प्रवेश का आवेदन तभी  ले लिया था। तबसे अब  फिर भाकपा मे सक्रिय हूँ और और अब लखनऊ मे रहते हुये  डॉ गिरीश जी द्वारा भेजी सूचनाओं को फेसबुक के माध्यम से भी प्रचारित करता रहता हूँ। 

लेकिन आज यहाँ मैं सपा मे बिताए लगभग 10 वर्षों की कुछ खास-खास बातों का ही  ज़िक्र करना चाहता हूँ। 

अप्रैल 1994 मे आगरा से लखनऊ आकर कामरेड रामचन्द्र बक्श सिंह और कामरेड मित्र सेन यादव के साथ मैं सपा मे शामिल तो हो गया था किन्तु तत्काल सक्रिय न हो सका क्योंकि पहले से बीमार चल रही शालिनी का जून'94 मे और जून'95 मे बाबूजी व बउआ का भी निधन हो गया था। इस प्रकार मेरी निष्क्रियता का लाभ उठा कर होटल मुगल के प्रबन्धकों ने श्रम न्यायालय के पीठासीन अधिकारी को खरीद कर मेरे विरुद्ध एक्स पार्टी केस जीत लिया था। 
फिर भी आगरा पूर्वी विधानसभा क्षेत्र,सपा के अध्यक्ष पूर्व कामरेड शिव नारायण कुशवाहा जी से व्यक्तिगत परिचय के कारण कुछ ज़रूरी बैठकों मे शामिल हो लेता था,यशवन्त को साथ ले जाता था-घर मे तब अकेला नहीं छोड़ा जा सकता था। बाद मे पूनम(जिनके पिताजी से मेरे पिताजी का पत्राचार हो चुका था)के आने के बाद पुनः सक्रिय होना शुरू किया। पूर्वी विधासभा क्षेत्र के नए अध्यक्ष अशोक सिंह चंदेल साहब ने मुझे अपने साथ महामंत्री के रूप मे  कार्यकारिणी मे शामिल कर लिया। उनके साथ 1999 के संसदीय  चुनावों  मे राज बब्बर जी के लिए प्रचार मे भाग लिया । मैं जब सक्रिय नहीं था तब भी पत्राचार करता रहता था। मैंने ही राम गोपाल यादव जी से अनुरोध किया था कि,आगरा से राज बब्बर जी को खड़ा करें। आगरा को विशेष महत्व दें और अखिलेश यादव जी को युवाओं के बीच लाएँ। और इस प्रकार सपा का आगरा से लोकसभा मे प्रतिनिधित्व हो सका। लेकिन आगरा क्षेत्र के प्रभारी राम आसरे विश्वकर्मा जी ने इन सब का श्रेय खुद ले लिया। 

चुनावों के बाद नए नगर - सपाध्यक्ष डॉ डी सी गोयल साहब ने मुझे नगर कार्यकारिणी मे शामिल कर लिया था। डॉ गोयल सभी कार्यकर्ताओं के साथ समान व्यवहार करते थे । अक्सर वह कार्यकर्ताओं को शुभकामनायें प्रेषित करते रहे जिसका एक नमूना यह कार्ड है-


चूंकि पूनम समाजवादी महिला सभा मे वार्ड अध्यक्ष थीं और मैं नगर कार्यकारिणी मे था अतः डॉ साहब ने यह शुभकामना कार्ड संयुक्त रूप से भेजा था। 
2002 के चुनावों मे उनको ही सपा ने पूर्वी विधानसभा क्षेत्र से खड़ा किया था। उनके लिए मैंने व पूनम ने सक्रिय रूप से भाग लिया ,हालांकि उसी बीच मुझको पाल्स का  एक आपरेशन भी कराना पड़ा था।  ठीक चुनावों के बीच विश्वकर्मा जी ने प्रत्याशी डॉ गोयल को सपाध्यक्ष पद से हटवा दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि वह चुनाव हार गए।जनता मे यह संदेश गया कि पार्टी को ही प्रत्याशी पर विश्वास नहीं है।  पत्र लिख कर  मैंने इस निर्णय को गलत बताया था जिस पर विश्व कर्मा जी  मुझ पर क्रुद्ध भी हो गए थे कि मैं उनके प्रभारी रहते हुये सीधे अध्यक्ष को पत्र क्यों भेजता हूँ। तभी मैंने सपा छोडने का निर्णय मन मे कर लिया था किन्तु चंदेल साहब एवं डॉ साहब की आत्मीयता के कारण उनको दो वर्ष बाद तक  सहयोग करता रहा था। जब अखिलेश यादव जी को युवा मामलों का राष्ट्रीय प्रभारी बना दिया गया और वह सांसद भी हो गए तब उनके आगरा आगमन पर उनको भी वे बातें दोहराई थीं जिनके लिए विश्व कर्मा जी क्रुद्ध हुये थे। अखिलेश जी के कहने पर विस्तृत वर्णन उनको डाक से भेजा था जिसकी प्राप्ति की सूचना  उन्होने अपने सहायक गजेन्द्र सिंह जी द्वारा पत्र भिजवाकर भी दी थी। उस पत्र की स्कैन कापी सार्वजनिक की जा रही है-
 

2007 के विधानसभा चुनावों मे डॉ डी सी गोयल साहब ने राज बब्बर जी के 'जन-मोर्चा'प्रत्याशी के रूप मे सपा/भाजपा के विरुद्ध मुक़ाबला किया था। स्थानीय तौर पर भाकपा ने डॉ गोयल का समर्थन किया था अतः एक बार फिर भाकपा की तरफ से हमने डॉ गोयल साहब के लिए चुनाव प्रचार मे भाग लिया। 
आगरा मे विशेष सपा - अधिवेशन के बाद घटनाक्रम 'ताज कारीडोर' के नाम पर बदला तो प्रधानमंत्री ए बी बाजपेयी जी के सहयोग से मुलायम सिंह जी मुख्यमंत्री बन गए तब वह निवर्तमान राज्यपाल विष्णूकांत शास्त्री जी को रेल से मुगलसराय तक विदा करने गए थे। उसी समय मुझे उनकी भाजपा से निकटता का आभास हो गया था।  

पहले निष्क्रिय रह कर फिर सदस्यता का नवीनीकरण न कराकर मैंने सपा से अलगाव कर लिया था। मेरा निर्णय गलत नहीं था क्योंकि राज बब्बर जी और बेनी प्रसाद वर्मा जी को भी बाद मे सपा को छोडना ही पड़ा। भाजपा के  अप्रत्यक्ष समर्थन  से बनी मुलायम सपा सरकार मे भाजपा व्यापारियों की पौ बारह रही। हालांकि जब जार्ज फरनाडीज़ साहब बाजपेयी जी के रक्षा मंत्री और संकटमोचक थे तब मुलायम सिंह जी उनकी तुलना संसद मे गियोलित्ती से करते थे जिनके समर्थन से हिटलर सत्ता मे आया था। लेकिन आज फरनाडीज़ साहब के उस दायित्व का निर्वहन खुद मुलायम सिंह जी बखूबी कर रहे हैं। सुषमा स्वराज जी भी कभी सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से हरियाणा मे शिक्षा मंत्री रही थीं,आज भाजपा की तरफ से विपक्ष की नेता हैं। उनके साथ मुलायम सिंह जी की घनिष्ठता अकारण नहीं है बल्कि यह भविष्य का एक भयावह संकेत है। 

 

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