सोमवार, 17 जून 2013

तो फिर वे क्यों ऐसा करते हैं?(भाग-2) ---विजय राजबली माथुर

आज ही के दिन उन्नीस वर्ष पूर्व जब मैं शालिनी के देहावसान की सूचना देने अर्जुन नगर रानी मौसी के घर गया था तब यशवन्त साथ नहीं गया था क्योंकि उस वक्त बाबूजी व माँ घर पर थे। रानी मौसी ने नवीन को भी बताने को कहा था और उसी के साथ वह आईं थीं। शोभा व अजय को टेलीग्राम करने जाते वक्त भी यशवन्त घर पर ही रहा था,एक दिन पूर्व जब 16 जून की साँय राजा-की-मंडी स्टेशन पर पार्सल बाबू शरद मोहन के घर सूचना देने जाते समय ज़रूर वह साथ गया था।(http://vidrohiswar.blogspot.in/2012/03/1994-95-5.html) रात्रि में पार्सल बाबू की माँ व पत्नी आए थे और उनके जाने के बाद पार्सल बाबू भी आए थे। 17 ता.की सुबह भी उनकी माँ व पत्नी एक साथ आए थे और उनके भिलाई वाले ताऊजी अलग से जबकि खुद पार्सल बाबू (कमलेश बाबू के सखा व भतीज दामाद  कुक्कू के छोटे भाई) अपने रेलवे के सहकर्मी आठ-नौ लोगों के साथ। टेलीफोन विभाग के आर सी माथुर (जिनके एक भाई झांसी में कार्यरत थे और एक बहन अलीगढ़ में कमलेश बाबू के घर के निकट रह रहीं थीं और उनकी माता जी से घनिष्ठ मेल था जिन्होने बाद में आर सी माथुर की बेटी की शादी अपने एक भांजे से करवाई थी-http://vidrohiswar.blogspot.in/2012/04/1994-95-8.html) घाट पर डॉ रामनाथ के साथ उनके स्कूटर से गए थे। घाट पर आर सी माथुर ने डॉ रामनाथ को कुछ पाठ पढ़ाया होगा जिस कारण उन्होने मुझसे कहा था कि यदि कोई समस्या हो तो हमसे मदद ज़रूर लेना। तत्काल मैं समझ गया था कि घाट पर कोई षड्यंत्र रचा गया है। अतः उसी क्षण से डॉ रामनाथ से दूरी बना ली और खुद ही 'ज्योतिष' का ज्ञान बढ़ाना शुरू कर दिया (http://krantiswar.blogspot.in/2012/06/blog-post_16.html)

जब डॉ रामनाथ ने पार्सल बाबू की पत्नी से मंत्रणा  के बाद 1993 में  कहा था उन्होने शालिनी को TB होने का शक ज़ाहिर किया है और पार्सल बाबू की पत्नी ने कहा था कि डॉ रामनाथ ने TB का शक ज़ाहिर किया है तभी से उन लोगों के बीच खिचड़ी पकने का एहसास मुझे पहले से था। इसी लिए मैंने TB स्पेशलिस्ट कामरेड डॉ विनय आहूजा को दिखाया था जिन्होने सम्पूर्ण टेस्ट व जांच के बाद TB का कोई भी लक्षण न होना बताया था। (http://vidrohiswar.blogspot.in/2012/03/1992-93-10.html)

बाद की घटनाओं से सिद्ध हुआ था कि कमलेश बाबू के इशारे पर कुक्कू ने डॉ रामनाथ को 1981 में ही खरीद लिया था और डॉ रामनाथ मेरे लिए आस्तीन का साँप बन गए थे जिन्होने 14 गुण पर शालिनी से शादी की राय 28 गुण मिलना बता कर दे दी थी। (http://vidrohiswar.blogspot.in/2012/04/1994-95-6.html)

इस षड्यंत्र के तहत यह प्रचारित किया गया कि शालिनी की मृत्यु अस्वाभाविक थी और मुझे जेल पहुंचाने का भी बंदोबस्त किया जाने लगा (बाद में  रेकसन शूज के पार्टनर सेठ नारायण दास जी ने बताया था कि उनके बड़े भाई से दूसरा अकाउंटेंट खोजने को कहा गया था क्योंकि सूचनादाता पूर्ण आश्वस्त था कि मुझे जेल में पहुंचा ही दिया जाएगा)उधर डॉ शोभा ने माँ से यशवन्त को हस्तगत करने का भी असफल प्रयास किया था । इन घटनाओं से अब विश्लेषण करने पर भान होता है कि डॉ शोभा/कमलेश बाबू ऊपर-ऊपर मिलकर चलते हुये मेरे व यशवन्त के लिए भीतर-भीतर खाई खोद रहे थे। सन 2000 ई.में जयपुर में अपनी बड़ी पुत्री की श्वसराल जयपुर से लौटते में आगरा ठहरने पर डॉ शोभा ने पूनम से कहा था कि दादा को पार्सल बाबू के घर वालों से मिल कर चलना चाहिए था। कभी मेरे राजनीति में भाग लेने पर कभी किस से मेल रखें या किस से न रखें को मुद्दा बना कर डॉ शोभा पूनम को गुमराह करने का प्रयास करती रही हैं। गलती हमारी ही रही जो हम उनको बहन-बहनोई मान कर चलते रहे। 

बहरहाल जब जून 1995 में माता-पिता की भी मृत्यु हो गई और मैं व यशवन्त अकेले रह गए तब इस घृणित प्रचार अभियान को तेज़ धार दी गई। अतः मुझे पत्रों (जिनकी प्रतियाँ उनके रिशतेदारों को भी भेजी थीं)के माध्यम से  पार्सल  बाबू की माँ से स्पष्ट पूछना पड़ा कि जैसा कि वह अफवाह उड़ा रही हैं कि किसी प्रेम के चलते रास्ता साफ किया गया है तो वह उस प्रेमिका का भी नाम बताएं कि वह किसकी बेटी अथवा किसकी पत्नी है । प्रेम काठ,लोहा,सीमेंट,रेत आदि निर्जीव पदार्थों से तो उनके आरोपों में नहीं है अतः बिना किसी का नाम बताए झूठा आरोप लगाने पर उनके विरुद्ध कानूनी कारवाई की जाएगी। तब जा कर दुष्प्रचार थम गया था। लेकिन मुझे यह भी तय करना पड़ा कि माँ-पिता द्वारा चयनित पूनम से विवाह कर लेना ही उचित रहेगा अन्यथा बाबाजी व नानाजी की भांति पुनर्विवाह न करने की स्थिति में ये दुष्ट लोग फिर कभी दोबारा सिर उठा सकते हैं। 

लेकिन आज भी कमलेश बाबू/कुक्कू गठबंधन ब्लाग जगत व राजनीतिक क्षेत्र में अपनी पिनें ( धन -लोलुप  प्यादों)को चुभो कर परेशान कर ही रहा है। वैसे हम भी अब 19 वर्षों से झेलते-झेलते पीड़ाओं के अभ्यस्त हो गए हैं।  परंतु अनुत्तरित प्रश्न यह है कि जो लोग हमें परेशान तो करते हैं लेकिन खुद लाभान्वित भी नहीं हो पाते हैं "तो फिर वे क्यों ऐसा करते हैं?"

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1 टिप्पणी:

  1. kuchh to log kahenge ya kuchh to karnege apni aadat se baj nahi aa sakte hai na .bas dukh itna rahta hai ki is aadat ke karan achchhe logon ko bahut kuchh jhelna pad jata hai jaise aapko pada .

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