26 दिसंबर 2010 को प्रदेश भाकपा कार्यालय में पार्टी के 86 वें स्थापना दिवस पर मुख्य वक्ता थे पार्टी के राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अंजान साहब लेकिन उनके सम्बोधन के मध्य IAC के अरविंद केजरीवाल साहब वहाँ पधारे थे और सर्व-मान्य परम्पराओं को तोड़ते हुये संचालक प्रदीप तिवारी जी ने जो कि अंजान साहब से व्यक्तिगत रूप से नफरत करते हैं केजरीवाल साहब को मुख्य वक्ता के बाद सभा में भाषण देने को सहर्ष आमंत्रित किया था। अतः उनके ही बंधु आनंद तिवारी जी द्वारा अंजान साहब के प्रति व्यक्त दुर्भावनापूर्ण दृष्टिकोण अनायास ही नहीं है।
"मैंने 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' ब्लाग में पाँच सितंबर 2013 को कामरेड अतुल अंजान साहब की मऊ में सम्पन्न रैली के समाचार की कटिंग देते हुये एक पोस्ट निकाली थी। इस पोस्ट को प्रदीप तिवारी साहब ने इसलिए हटा दिया क्योंकि वह अपने राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अंजान साहब को व्यक्तिगत रूप से नापसंद करते हैं। इतना ही नहीं इस पोस्ट के प्रकाशन का दायित्व मेरा था इसलिए मुझको भी ब्लाग एडमिन एंड आथरशिप से हटा दिया। "
http://communistvijai.blogspot.in/2013/09/blog-post_11.html
जबकि हकीकत यह है कि लखनऊ और लखनऊ के बाहर भी अतुल अंजान साहब भाकपा के पर्याय माने जाते हैं और पार्टी के भीतर जो लोग उनके बारे में अनर्गल प्रचार करते हैं वे वस्तुतः निजी स्वार्थों के कारण पार्टी को बढ़ते नहीं देखना चाहते ।
http://krantiswar.blogspot.in/2011/09/blog-post_22.html
वे सभी लोग काफी समझदार थे उन्हें आसानी से सारी बातें समझ आ गईं और उन्होने मुझ से मेरे ब्लाग्स के रेफरेंस भी लेकर नोट कर लिए। फिर मेरा परिचय मांगने पर जब उन्हें बताया कि पेशे से ज्योतिषी और राजनीतिक रूप से कम्यूनिस्ट हूँ तो उन्हें आश्चर्य भी हुआ और स्पष्टीकरण मांगा कि कम्यूनिस्ट पार्टी माने अतुल अनजान की पार्टी । जब जवाब हाँ मे दिया तो बोले अनजान साहब की पार्टी तो अच्छी पार्टी है । जैसे आगरा मे भाकपा की पहचान चचे की पार्टी या हफीज साहब की पार्टी के रूप मे थी उसी प्रकार लखनऊ मे भाकपा से तात्पर्य अनजान साहब की पार्टी से लिया जाता है। उनमे से दो-तीन लोग तो यूनीवर्सिटी मे अनजान साहब के साथ के पढे हुये भी थे ,इसलिए भी अनजान साहब की पार्टी मे मेरा होना उन्हें अच्छा लगा।
उनमे से एक जो बैंक अधिकारी थे ने बताया कि अब यू पी मे AIBEA को उसके नेताओं ने कमजोर कर दिया है जो खुद तो लाभ व्यक्तिगत रूप से उठाते हैं लेकिन कर्मचारियों की परवाह नहीं करते। इसी कारण छोटे स्तर के नेता प्रमोशन लेकर आफ़ीसर बन गए और दूसरे संगठनों की आफ़ीसर यूनियन से सम्बद्ध हो गए। वह यह चाहते थे कि अनजान साहब कुछ हस्तक्षेप करके AIBEA को फिर से पुरानी बुलंदियों पर पहुंचाने मे मदद करे जिसका लाभ पार्टी को भी मिलेगा।
30 सितंबर की लखनऊ रैली को अंजान साहब ने 'राजनीतिक सन्नाटा तोड़ने वाली' कहा था।
मैंने तब भी आशंका व्यक्त की थी :
जहां तक रैली की भौतिक सफलता का प्रश्न है रैली पूर्ण रूप से सफल रही है और कार्यकर्ताओं में जोश का नव संचार करते हुये जनता के मध्य आशा की किरण बिखेर सकी है। लेकिन क्या वास्तव में इस सफलता का कोई लाभ प्रदेश पार्टी को या राष्ट्रीय स्तर पर मिल सकेगा?यह संदेहास्पद है क्योंकि प्रदेश में एक जाति विशेष के लोग आपस में ही 'टांग-खिचाई' के खेल में व्यस्त रहते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में पार्टी का जो रुतबा हुआ करता था वह अब नहीं बन पा रहा है। ईमानदार और कर्मठ कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न एक पदाधिकारी विशेष द्वारा निर्लज्ज तौर पर किया जाता है और उसको सार्वजनिक रूप से वाह-वाही प्रदान की जाती है। एक तरफ ईमानदार IAS अधिकारी 'दुर्गा शक्ती नागपाल'के अवैध निलंबन के विरुद्ध पार्टी सार्वजनिक प्रदर्शन करती है और दूसरी तरफ उत्पीड़क पदाधिकारी का महिमामंडन भी। यह द्वंदात्मक स्थिति पार्टी को अनुकूल परिस्थितियों का भी लाभ मिलने से वंचित ही रखेगी। तब इस प्रदर्शन और इसकी कामयाबी का मतलब ही क्या होगा?
और अब तिवारी बंधुओं के कारनामे इस आशंका को सही ही ठहरा रहे हैं। प्रदीप तिवारी जी ने रैली की सफलता और प्रदेश सचिव कामरेड डॉ गिरीश जी की प्रशंसा से खिन्न होकर उनको रैली के ग्लैमर से भ्रमित होना लोगों के बीच फुसफुसाया था।
इन परिस्थितियों में सुधा सिंह जी भाकपा से क्या आशा कर सकेंगी?
*जब दादरी में अनिल अंबानी के बिजली घर के वास्ते किसानों की ज़मीनें मुलायम शासन में जबरन छीनी जा रही थीं तब वी पी सिंह साहब द्वारा राज बब्बर के साथ मिल कर एक जबर्दस्त आंदोलन खड़ा किया गया था। किसान सभा के राष्ट्रीय महामंत्री और भाकपा के राष्ट्रीय सचिव की हैसियत से कामरेड अतुल अंजान साहब ने भी उसमें सहयोग किया था। इसी सिलसिले में पी एंड टी ग्राउंड ,आगरा में एक जनसभा में कामरेड अतुल अंजान ,वी पी सिंह और राज बब्बर के साथ मंच पर बैठे थे जैसे ही उनकी निगाह आगरा,भाकपा के जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी पर पड़ी जो ज़िला-स्तर के अन्य पार्टी नेताओं के साथ बैठे हुये थे। अंजान साहब ने अपने ठीक बगल में एक कुर्सी रखवा कर कामरेड मिश्रा जी को अपने साथ बैठा लिया था जो कि उनकी संवेदनाओं को ठीक से समझने का अनुपम दृष्टांत पेश करता है।
*कामरेड अतुल अंजान के किसान हितों में किए गए कार्यों हेतु ही बांगला देश की प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा उनको ढाका बुला कर सम्मानित किया गया था जो तिवारी बंधुओं की आँखों से ओझल हैं।
*कामरेड रमेश मिश्रा जी ने ही कामरेड अंजान की एक और विशेषता का उल्लेख किया था कि जबकि वह किसी कार्यवश अजय भवन ,दिल्ली गए थे और वापीसी की ट्रेन पकड़ने हेतु स्टेशन जा रहे थे। कामरेड अंजान को अपनी कार से कहीं अन्यत्र जाना था किन्तु आगरा के जिलामंत्री रमेश मिश्रा जी पर निगाह पड़ते ही उनको कार से स्टेशन छोडने का प्रस्ताव कर दिया और उनके इस आग्रह पर भी कि वह खुद चले जाएँगे क्योंकि कामरेड अंजान को दूसरी दिशा में जाना है। कामरेड अंजान ने पहले मिश्रा जी को स्टेशन छोड़ा फिर अपने गंतव्य को गए।
*2007 में विधानसभा चुनावों के दौरान आगरा में राज बाबर के 'जन मोर्चा ' उम्मीदवार डॉ डी सी गोयल को भाकपा का समर्थन होने के कारण मुझे भी उनके प्रचार में भाग लेना पड़ा था । तब लखनऊ में PWD में इंजीनियर रहे डॉ साहब के बड़े भाई साहब से मुलाक़ात हुई थी उनका भी यही कहना था कि उत्तर-प्रदेश कम्युनिस्ट पार्टी के एक जुझारू नेता के रूप में वह भी कामरेड अतुल अंजान को ठीक समझते हैं तब उनके अनुसार अंजान साहब के दिल्ली चले जाने के बाद से यहाँ कोई दूसरा जुझारू नेता नहीं बचा है। 30 सितंबर 2013 की सफल रैली जिसे अंजान साहब ने संबोधित करते हुये राजनीतिक सन्नाटा तोड़ने
वाली बताया था डॉ गिरीश उस रिक्तता की पूर्ती करते नज़र आए थे। किन्तु उनके सहयोगी तिवारी बंधु यहाँ किसी के भी सफल होने पर अपने स्वार्थों की गाड़ी अटकने के अंदेशे से अफरा-तफरी और टोटकेबाजी करके उनके मार्ग को अवरुद्ध कर रहे हैं।
डॉ गिरीश का मार्ग अवरुद्ध करके एवं एक सहृदय लोकप्रिय कामरेड अतुल अंजान पर प्रहार करके तिवारी बंधु उत्तर प्रदेश में भाकपा को मजबूत नहीं होने देना चाहते हैं । क्योंकि यदि यहाँ कामरेड अतुल अंजान की अगुवाई में वामपंथी वैकल्पिक मोर्चा बंनता है तो जनता उसके प्रति निश्चय ही आकृष्ट होगी और उससे भाकपा को मजबूती एवं सफलता ही मिलेगी। 'चिराग तले अंधेरा' का इससे बड़ा और क्या उदाहरण हो सकता है?
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Ameeque Jamei
जवाब देंहटाएं2 hours ago
Comrade Atul Anjaan Aur Dr. Girish ki qayadat me CPI Aur badaa tufaan UP me la sakti hai yahi waqt ki pukar hai.
गौतम कुमार:
जवाब देंहटाएंsachai hai... range siyar hamesa rang badata hai..