बासु चटर्जी निर्देशित फिल्म 'ब्रह्मचारी' अपने हास्य प्रसंगों के कारण भले ही मनोरंजक समझी जाये किन्तु उसके द्वारा एक साथ अनेक शिक्षाएं ग्रहण की जा सकती हैं।
जब ब्रह्मचारी को यह पता चला कि वह एक अनाथ बालक था तब उसने अनाथ बच्चों के भविष्य को सँवारने का निश्चय किया। 'ब्रह्मचारी आश्रम' खोल कर उसने अनाथ बच्चों को प्रश्रय देना प्रारम्भ किया उनके लालन-पालन और पढ़ाई-लिखाई की जिम्मेदारियाँ पूरी करने के कारण उसे अपना घर भी गिरवी रखना पड़ा और 20 हज़ार रु .का कर्ज उस पर चढ़ गया। जिस अखबार में वह बच्चों के फोटो छ्पवाकर कुछ आय प्राप्त कर लेता था उसके संपादक-मालिक ने आगे से ऐसा करने से मना कर दिया और किसी लड़की के फोटो लाने को कहा जो कुछ विशेष हो। इस तलाश में ब्रह्मचारी समुद्र तट पर विचरण कर रहा था जहां उसे शीतल चौधरी नामक एक लड़की डूबने के प्रयास में मिली जो ब्रह्मचारी की आवाज़ सुन कर ठिठक गई। ब्रह्मचारी उसे अपने आश्रम पर ले आया और वह भी बच्चों की सेवा में लग गई।
चूंकि शीतल के आत्म-हत्या के प्रयास का कारण उसके बचपन के मंगेतर रवि खन्ना द्वारा विवाह से इंनकार करना था। अतः ब्रह्मचारी ने रवि की पसंदगी के मुताबिक शीतल को ट्रेंड किया और उसके समक्ष हाजिर किया।क्योंकि वह होटल में गाना गा कर अर्थोपार्जन करता था जिस कारण रवि से परिचित था। इस प्रकार शीतल के समक्ष रवि का असली चरित्र सामने आ गया किन्तु अब बदली हुई शीतल को रवि अपनी गिरफ्त में लेना चाहता था अतः उसके माँ और मामा को रुपया देकर अपनी ओर मिला कर ब्रह्मचारी से दूर करवा दिया। उसने शीतल से जबरन विवाह करने हेतु ब्रह्मचारी के प्रति नफरत लाने में ब्रह्मचारी पर दबाव बनाया । ब्रह्मचारी और आश्रम के बच्चे शीतल को बचाना चाहते थे क्योंकि रवि की नवजात संतान उस आश्रम में पहुंचाई गई थी और वे रूपा को उसका वास्तविक हक दिलाना चाहते थे।
रवि ने बच्चों का अपहरण करवा कर उनको मारने का षड्यंत्र रचा किन्तु ब्रह्मचारी के प्रयास से बच्चे भी सुरक्षित बच गए और रवि की माँ की कृपा से रूपा और उसकी संतान को भी रवि को अपनाना पड़ा। अंततः शीतल चौधरी का विवाह ब्रह्मचारी के साथ , रवि द्वारा उन सबसे माफी मांगने के बाद सम्पन्न हो गया।
जहां एक ओर शीतल की माँ व मामा का चरित्र निकृष्ट रहा जो अपनी बेटी व भांजी का ही अहित करने पर तुले थे। वहीं ब्रह्मचारी व रवि की माँ का चरित्र एक आदर्श दृष्टांत उपस्थित करता है।
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