शनिवार, 4 मई 2019

कल - आज और कल ------ विजय राजबली माथुर

कल - आज और कल 
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कभी - कभी कुछ विशेष परिस्थितियों में अतीत के कुछ पल यों मस्तिष्क में घूम जाते हैं जैसे यह पिछले कल के दिन की ही बात है। 
* ठीक 50 वर्ष पूर्व 1969 में जब मेरठ कालेज , मेरठ में बी ए में प्रवेश लिया तब राजशास्त्र ( pol sc), अर्थशास्त्र ( Economics ), के साथ समाजशास्त्र ( Sociology ) भी मुख्य विषयों में था। 
** प्रथम वर्ष में समाजशास्त्र के एक अध्यापक एक विषय के अध्ययन में कुछ व्यावहारिक अनुभवों से यह बता रहे थे कि, कैसे उत्तर - प्रदेश का वणिक वर्ग व्यापार में पिछड़ता गया और सिन्धी समुदाय यहाँ के व्यापार जगत में फैलता व फूलता गया। 
*** उनका कहना था कि, मेरठ कालेज , मेरठ आने से पूर्व उनको प्रथम नियुक्ति गोरखपुर के एक ग्रामीण क्षेत्र के कालेज में मिली थी। वह नए - नए गए थे और एक कमरा किराये पर लेकर रहते व अपना भोजन स्वम्य ही बनाते थे। घर से लाये रुपए खर्च हो गए थे और अभी प्रथम वेतन मिलने में कुछ दिन का विलंब था। 
**** वह जिस दुकान से सामान खरीदते थे उस वैश्य दुकानदार ने उनको उधार देने से इंकार कर दिया। मजबूरन उनको सिन्धी समुदाय के बड़े दुकानदार से संपर्क करना पड़ा । वह समझते थे दुकान बड़ी है तो दाम भी ज्यादा होते होंगे। 
***** उन प्रोफेसर साहब ने अपना व कालेज का परिचय देकर अपनी समस्या बताते हुये कुछ सामान उधार लेने व वेतन मिलने पर भुगतान करने की बात कही। 
****** उन सिन्धी दुकानदार ने प्रोफेसर साहब को जो जवाब दिया उससे वह आश्चर्यचकित हुये थे । उनसे उन सिन्धी दुकानदार का कहना था आप बाहर से आए हैं हमारे अतिथि हुये और आपका ख्याल रखना हमारी ज़िम्मेदारी है आप निश्चिंत रहें और पैसों की चिंता न करें । उस दिन के बाद से जब तक प्रोफेसर साहब उस कालेज में रहे उसी सिन्धी दुकानदार से ही सब सामान लेते रहे। 
******* वैश्य दुकानदार ने तात्कालिक लाभ देखा जबकि सिन्धी दुकानदार ने दूरदर्शिता पूर्वक निजी संबंध स्थापित कर लिए । 
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1985 से 2000 तक शू चैंबर, हींग की मंडी, आगरा में पार्ट टाईम बेसिस पर एकाउंट्स जाब करता था और सभी दुकानदार सिन्धी थे। सभी का व्यवहार मालिक - कर्मचारी के हिसाब से न होकर व्यक्तिगत था और किसी ने भी गैर हाजिरी या निर्धारित समय से कम ड्यूटी करने पर भी कभी भी वेतन कटौती नहीं की। जबकि उससे पूर्व बेलनगंज, आगरा की एक इलेक्ट्रिक फर्म की नौकरी मात्र दो माह में ही छोडनी पड़ी क्योंकि उन वैश्य दुकानदार ने दो दिन गैरहाजिरी की वेतन कटौती कर ली थी। 
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मेरठ में 1969 में समाजशास्त्र के प्रोफेसर साहब के बताए सिन्धी - वैश्य सामाजिक व्यवहार संदर्भों की पुष्टि 1985 से 2000 के मध्य आगरा में हो चुकी है।आने वाले समय में इसकी और परीक्षा हो जाएगी।

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