मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

भावुक बिलकुल नहीं हूँ मै .........

 सिलीगुड़ी से चल कर लखनऊ होते हुए शाहजहांपुर एक बार फिर गए वहां का वर्णन होने से पूर्व पुनः लखनऊ लौट कर आये एक वर्ष पूर्ण होने का लेखा -जोखा प्रस्तुत कर दिया था .उस पर दिव्या  जी, वीना जी , वंदना दुबे अवस्थी जी ,के .के . यादव जी के विचार पढे ---सबों को धन्यवाद .
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 के .के .यादव जी ने मेरे लिखने की तारीफ की है परन्तु उनके अपने खोज पूर्ण लेखन की जितनी प्रशंसा की जाये कम है .वीना जी ने लिखा है कि मै बारीकी से अध्धयन करता हूँ शतशः सही है .वंदना जी के उत्साह वर्धन के लिए उनका आभारी हूँ .दिव्या जी ने मुझे निष्पक्ष और ईमानदार लेखक बताया है -प्रयास तो मेरा यही होता है परन्तु उन्होंने साथ ही साथ मुझे भावुक भी कहा है .वह चिकित्सक हैं शायद उनका आंकलन ऐसा हो परन्तु मै समझता हूँ कि भावुकता के साथ ईमानदारी और निष्पक्षता का निर्वाह नहीं हो सकता.मै बिलकुल भी भावुक नहीं हूँ ,किसी भी दृष्टिकोण से नहीं .भावावेष में भटकना मेरा स्वाभाव नहीं है .यदि मै भावुकता में बहता तो संघर्षों में कहीं भी नहीं टिक पाता .१३ -१४ वर्ष कि उम्र में पढ़ा था कि उदारता  एक मानवीय गुण है,सभी को उदार होना चाहिए किन्तु उसके साथ -२ पात्र की अनुकूलता भी होनी चाहिए .तब से आज ४४ वर्ष बाद भी मै उसी सीख पर अमल कर रहा हूँ .पढ़ाई मैंने केवल डिग्री बटोरने के लिए नहीं की बल्कि जो पढ़ा उस पर क्षमतानुसार अमल करने का भी प्रयास करता रहता हूँ .डा .राजेंद्र प्रसाद की यह सीख कि जो पुरानी बातें हानिकारक न हों उनका विरोध नहीं करना चाहिए -भी मुझे भाती है .
  जब कोई व्यक्ति हमारी उदारता को कमजोरी समझने लगता है तो उसके प्रति उदारता का परित्याग कर देता हूँ .कोई भी भावुक व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता.भावुकता अपना कर मै कोई नुकसान नहीं उठा सकता.ईमानदारी के कारण जो नुकसान हुए उन्हें सहर्ष झेल लिया /सकता हूँ .पिछले वर्ष जब आगरा का मकान बेचने का निर्णय लिया तो पूनम ने कई भावनात्मक मुद्दों का हवाला देकर उसे न बेचने की बात कही थी .मेरा तर्क था कि घर परिवार के सदस्यों से बनता है न कि ईंट ,गारा ,सीमेंट ,लोहा या कंक्रीट से बना ढांचा होता है.यह तर्क उन्हों ने स्वीकार किया और आज हमारे परिवार के सभी सदस्य हमारे साथ यहाँ लखनऊ में हैं तो पूरा घर साथ है .रही बात लोगों के साथ संबंधों की तो आज -कल फोन आदि के माध्यम से सतत संपर्क बनाये रक्खा जा सकता है और उसी ज़रिये अपने तमाम कार्य वहां के लोगों की मदद लेकर लखनऊ बैठे -२ ही संम्पन्न हो गए .
 मै निष्पक्षता  और ईमानदारी को ही तरजीह देता हूँ और भावुकता से मेरा दूर -२ तक  लेना -देना नहीं है .किसी पढ़ कर अनावश्यक भ्रम न हो,इसलिए आगे बढ़ने से पूर्व स्पष्ट करना अपना कर्त्तव्य समझा .अब आगे शाहजहांपुर में ...........अगली पोस्ट में ......

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6 टिप्‍पणियां:

  1. .

    चलिए अपने शब्द वापस लेती हूँ विजय जी। वैसे भावुक और संवेदनशील होना कोई बुरी बात नहीं।

    .

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  2. शायद आज पहली बार इस ब्लाग पर आयी हूँ। आप किस संदर्भ की बात कर रहे हैं ये नही जानती। लेकिन भावुक होना तो इन्सान की अच्छाई है बेशक आज की दुनिया उसे अच्छा नही मानती। भावुकता से ही करुणा, दया ममता आदि का रिश्ता है। धन्यवाद और शुभकामनायें।

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  3. दिव्या जी,
    नमस्ते!
    भावुक और संवेदनशील होना कोई बुरी बात नहीं है --आप का ये कहना सही है.लेकिन उसके साथ साथ व्यक्ति निष्पक्ष और ईमानदार नहीं रह सकता अतः मैं निष्पक्षता और ईमानदारी न छोड़ कर भावुकता को महत्त्व नहीं देता हूँ.चूँकि मेरे पिछले और आने वाले पोस्ट्स को भावुकताग्रस्त करुण क्रंदन न समझ लिया जाए सिर्फ इसलिए स्पष्ट किया था.और आप को अन्यथा नहीं लेना चाहिए और न ही शब्द वापिस लेने वाली कोई बात थी.आप ध्यान से पढती हैं और समझती हैं इसके लिए आभार एवं धन्यवाद.

    सादर
    विजय माथुर

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  4. vijay mathur jee
    sadar namaste
    aapke blog par aane par kuchh nayi rochak aur sargarbhit jankaree milti hai .....lekin mai aapko bahut hee dhanyabad dena chahuga mere blog par aapke aagaman ke liye ..kyoki aap sirf aaye hee nayi balki meri un rachnao ko padhe aur apne comment se mera utsah vardhan kiye jinhe likh kar mai kkhud hee bhool chuka tha ...aage bhee aapke margnirdeshan kee aasha ke sath..vijay

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  5. आप के ब्लॉग पर आने से कुछ सिखाने को मिला| धन्यवाद|

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ढोंग-पाखंड को बढ़ावा देने वाली और अवैज्ञानिक तथा बेनामी टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम कर दिया गया है.असुविधा के लिए खेद है.

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