(नाना जी और नानी जी ) |
इन से छोटे वाले राजन मामाजी (श्री राजेन्द्र शंकर माथुर )मुझे जासूसी उपन्यास पढने को देते थे जिससे मुझमे खोजी प्रवृती घर कर गई .वह तथा उनकी छोटी बहन -रंजना मौसी अपने साथ खेल में भी शामिल करते थे .यह सब ४२ वर्ष पूर्व की बातें हैं ;अब सब बदल चुके हैं .अब सब रिश्ते चाहे जितने नजदीकी हों पैसे की गरीबी -अमीरी से तुलते हैं .
इन सब के बावजूद निर्मला माईजी (स्व .क्र .मु .लाल माथुर की पत्नी )जनवरी २००६ में बबूए मामाजी के बेटे की शादी में जब मथुरा में मिलीं थीं तो चिर -परिचित अंदाज़ में ही मिलीं और हमें शाहजहांपुर आने को भी कहा .उन्होंने कहा की पूनम और यशवंत को भी तो दिखा दो बचपन में जिस ननसाल में रहे थे .पत्नी और મેરી भी इच्छा तो वहां जाने -देखने की है .अब लखनऊ से ट्रेन से जाना -आना भी सुगम है .परन्तु समस्या यह है की हमारी माँईजी यहीं लखनऊ में होते हुए भी हमारे संपर्क में नहीं हैं .फिर बउआ के दो चचेरे भाइयों को छोड़ कर (जो सब एक ही कालोनी में रहते हैं ),उनके दिवंगत फुफेरे भाई के घर जाएँ तभी शाहजहांपुर रुक सकते हैं (हमारे फुफेरे भाई भी हमारी ही कालोनी में यहाँ रहते हैं पर वे अंमीर लोग हैं अत्याधुनिक हैं हमसे संपर्क नहीं रखते ;दूसरी तरफ न मा ही न उनके फुफेरे भाई ही जीवित हैं -तब भी मा की फुफेरी भाभी पुराने रिश्ते मान रही हैं ---यही है पहले के और अब के विकसित भारत का सच ) .मा के चचेरे भाई इ .और डा .हैं बड़े रुतबे वाले लोग हैं ;जब लोग न माने तब जगहों से क्या होता है ?जगहें तो कहीं रुके बगैर भी दूर से भी दिखाई जा सकती हैं .२००६ में ही जूलाई में छोटी भांजी की शादी में कानपूर में रंजना मौसी मिली थीं ,घर उनका वहीँ है एक बार भी अपने यहाँ आने को नहीं कहा -बचपन में लूडो ,कैरम साथ खेलती थीं .
(रंजना मौसी और उनके भाई सपरिवार ) |
एक नहीं दो -दो बार नानाजी ने हम लोगों के लिए जितना किया न वह उनका फ़र्ज़ था न मजबूरी .नानीजी का निधन तो बउआ की शादी से पूर्व ही हो चुका था .माँ से ज्यादा ममत्व हम लोगों को अपने नानाजी से मिला .बचपन में मामाजी भी बहुत मानते थे (उनका निधन नानाजी से पूर्व ही हो गया था १९७७ में );मेरे सारे बचपन के फोटो मामाजी के ही खींचे हुए हैं .ब्लाग के कवर फोटो में मै उन्ही की गोद में हूँ .
हमारे मामाजी को हमारे बाबाजी बहुत मानते थे और उनसे मेरे लिए नाम बताने को कहा था .मामाजी ने बउआ से सलाह कर बाबाजी को "विजय "नाम बताया था जिसे बाबाजी ने सहर्ष स्वीकृती दी थी
(मामा जी-माँइंजी की शादी का कार्ड )
अपने विवाह से पूर्व माँइंजी भी लखनऊ (न्यू हैदराबाद )में बउआ के पास से अपने छोटे भाई -बहनों द्वारा मुझे मँगा लेती थीं और दिन -दिन भर अपने पास रखतीं थीं .उस समय तक रिश्तों में धन आड़े नहीं आया था . .
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