जैसा कि पहले ही बता चुके हैं कि सिग्नल कोर क़े K . P .Q .निर्माण हेतु हम लोगों से भी रूडकी रोड का क्वार्टर खाली करा लिया गया और हम लोग करन लाईन्स क़े मिलेटरी क्वार्टर सं-एम.टी./२ /३ में शिफ्ट हो गये थे.इसके सामने ही रेलवे फाटक और उस पार 'सरू स्मेल्टिंग प्रा.लि.' कं.थी. लिहाजा महेश नानाजी ने जब मुझे बुलाया था तो कहा कि कहाँ दूर भटकोगे तुम्हें घर क़े पास ही लगवा देते हैं.सबह ८ बजे वह मुझे अपने एक पडौसी जिनके घर टेलीफोन था ले गये.तब उनके घर निजी या सरकारी कोई फोन नहीं था.आज तो सबके पास जेब में मोबाईल रहता है ,१३ मई १९७२ शनिवार की यह बात है.उन्होंने कं.क़े चेयरमैन श्री सुल्तान सिंह जैन को कहा -आपसे एक लड़के को नौकरी देने की रेकुएस्ट है.जैन सा :ने उधर से कहा आप हुक्म दीजिये हम मानेंगे.महेश नानाजी ने पुनः रेकुएस्ट दोहरा दी. उन्होंने मुझे ११ बजे आफिस मिलने को बुलाया.जब मैं रिसेप्शन पर पहुंचा तो मुझे एक स्लिप दी गई जिसमें मैंने एस.एस.जैन सा :का नाम तथा उद्देश्य में लिखा-एज मि.एम.सी.माथुर फोन्ड.मुझे तत्काल बुला लिया गया.जैन सा :मुझसे बोले आपने माथुर सा :को क्यों परेशान किया खुद चले आते,आज कल आदमी मिलते कहाँ हैं.मेरे पास कोई अनुभव नहीं था.उन्होंने पर्सोनेल मैनेजर डा.मिश्री लाल झा को बुलवाया और उनके साथ मुझे भेज दिया.डा.झा जैन सा :क़े सहपाठी भी रहे थे.डा.झा मुझे मेनेजिंग डायेरेक्टर इं.धर्म पाल जैन क़े पास ले गये और कहा कि -'ही इज सिलेक्टेड बाई द चेयरमैन'.उनकी हिदायत क़े अनुसार डा. झा ने फार्म भरवाया और सोमवार को ज्वाईन करने को कहा.इस प्रकार १५ .०५ .१९७२ सोमवार से मुझे नौकरी मिल गई.न तो महेश नानाजी ने कुछ कहा न मैंने ही वेतन की बात की थी.लिहाजा मुझे उस समय का न्यूनतम वेतन रु.१७२ .६७ पै.प्रतिमाह दिया गया.बाबूजी ने कहा हमारे लिये तुम अब भी पढ़ रहे हो,अतः अपना वेतन बैंक में जमा रखो हम घर-खर्च में नहीं लगायेंगें.उन्होंने एक १० रु.का आर.डी.और एक सेविंग एकाउंट खुलवा दिया.थोड़े हलके-फुल्के फल ,मिठाई वगैरह ले आने की मुझे छूट मिली थी.छैह माह का वेतन जमा करके माताजी की सलाह पर मेरे लिये ऊनी कोट,बाकी माता-पिता और भाई-बहन क़े लिये सूती एक-एक वस्त्र बनवाने की मुझे इजाजत मिली.मेरे लिये एक रिस्ट वाच रु.११० की,१५० रु.का एक ट्रांजिस्टर रु.३०० का एक टेबुल फैन एक वर्ष क़े भीतर मेरे वेतन से आ सका बाकी फिर खर्च करने पर पाबंदी लग गई.सवा तीन वर्ष की उस नौकरी में रु.३००० उसी कं.में ऍफ़.डी .क़े रूप में जमा हो गये थे.बाबूजी क़े आगरा ट्रांसफर क़े बाद खाने -रहने और उनके पास आने-जाने में खर्च हुआ. यही तीन हजार रु. बाद में आगरा क़े मकान की सिक्युरिटी जमा करने क़े काम आया. आगरा का मकान बेच कर लखनऊ वापिस आने पर यह छोटा लेकिन बहुत मंहगा मकान ले सके और यशवन्त को साईबर खुलवा सके.मूल में मेरठ की नौकरी और नौकरी दिलाने में महेश नानाजी का पूर्ण योगदान था,इसलिए श्रीमतीजी (पूनम) क़े परामर्श पर महेश नानाजी का आभार व्यक्त करना मेरा नैतिक फर्ज था.नौकरी में झगडे-टनटे,यूनियन में भागीदारी आदि काफी दिलचस्प अनुभव रहे ,फिर....
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संस्मरण बहुत रोचक है। आगे का इन्तजार। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत इमानदारी से और दिलचस्प अंदाज में आपने अपनी ऑटोबायोग्राफी प्रस्तुत की माथुर साहब !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी तरह सारी घटनाओं और यादों की माला बना रहे हैं आप...
जवाब देंहटाएंसंदेशपरक ...सुन्दर .सार्थक ब्लॉग .बधाई
जवाब देंहटाएंसंस्मरण बहुत रोचक है। बहुत धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंमाथुर साह्ब!
जवाब देंहटाएंआपकी कलम जानदार है। आपसे भाषा और साहित्य को काफी आशाएं हैं। सीख लेने वाले संस्मरणो के लिए बधाई।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी