सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

क्रांति नगर मेरठ में सात वर्ष (१३ )

डॉ. मिश्री  लाल झा - मेरे ज्वाईनिंग के वक्त सरू स्मेल्टिंग के पर्सोनेल मेनेजर थे और कंकर-खेडा में रहते थे.तब वहां गैस- सर्विस नहीं थी.हम लोगों के मिलेटरी क्वार्टर तक केंट  में आई.ओ.सी.की सर्विस थी. डॉ. झा ने हमारे घर का पता दे कर गैस सुविधा का लाभ उठा लिया. वह और उनकी श्रीमती जी हमारे माता-पिता का पूर्ण सम्मान करते थे.बहन से मिसेज झा पढ़ाई में भी सहायता ले लेती थीं.शोभा रेगुलर थी वह प्राईवेट थीं.पहली बड़ी बेटी के बाद जब उनकी दो जुड़वां बेटियां हुईं तो उन्होंने शानदार दावत दी थी.मालिकों और मैनेजरों को आमंत्रित किया था मुझे माता-पिता-बहन समेत व्यक्तिगत रूप से बुलाया था.अजय तो आगरा में मेकेनिकल इन्जीनीरियिंग की पढ़ाई कर रहा था वहां नहीं था.बउआ -बाबूजी न खुद गए न शोभा को भेजा.मैं तो पहले से मदद करने हेतु उनकी इच्छा के अनुरूप गया था.जब दावत ख़त्म होने तक ये लोग नहीं पहुंचे तो झा सा :ने खीर-पुरी आदि समस्त भोजन टिफिन करियर में पैक कर उनके लिए मेरे हाथ भेजा था बिलकुल जबरदस्ती.
अगले दिन बहन को लेकर बउआ धन्यवाद देने उनके घर गईं.श्रीमती झा रांची की थीं और डॉ. सा :की ही तरह उनका व्यवहार भी अच्छा था.
सरू स्मेल्टिंग छोड़ कर झा सा :गुडगाँव चले गए थे ,परिवार मेरठ में ही था.अतः मेरठ यूनिवर्सिटी खुलते ही उन्होंने ए.आर.के रूप में वहां ज्वाईन कर लिया.उन्होंने मुझे भी अपने साथ ले जाने का प्रयास किया लेकिन गलती से उन्होंने हमारे यूनियन प्रेसिडेंट को बता दिया जिसने पलीता लगा दिया और उनके प्रयास विफल हो गये.उनके साथ व्यक्तिगत सम्बन्ध अपरिवर्तित रहे. वह यूनिवर्सिटी केम्पस में रहने लगे तब भी संपर्क बना रहा और जब आगरा के अजय के सहपाठी की बहन की मार्क-शीट में कुछ प्राब्लम आई तो झा सा :के कारण चुटकियों में कार्य संपन्न हो गया.
इधर यूनियन के इन्टरनल मामलों में प्रेसीडेंट की गतिविधियों के चलते मैंने उसके विपक्षी नेताओं को समर्थन दे दिया.लेकिन वे लोग समझदार नहीं थे.यूनियन के आधार स्तम्भ वकील एस.पी.सहगल सा:थे.वह प्रेसिडेंट को सपोर्ट करते थे.प्रेसिडेंट ने मेनेजमेंट से मिल कर मुझे सस्पेंड करा दिया और खाना-पूर्ती की इंक्वायरी के बाद मेरी सेवाएं समाप्त कर दी गईं.
मेरे सस्पेंशन काल में सीनियर लेखाधिकारी गौड़ सा : ने अपना पुत्र होने के उपलक्ष्य में दावत दी.उन्होंने मेनेजमेंट के साथ स्टाफ को भी बुलाया था. मुझे व्यक्तिगत रूप से बुलाया था.तब तक हमारे माता-पिता,बहन आगरा जा चुके थे क्योंकि अजय की दिक्कत की वजह से बाबूजी ने अपने खर्च पर आगरा ट्रांसफर करा लिया था.वैसे श्रीमती गौड़ भी मेरी बहन से पढ़ाई में मदद लेती थीं ,वह भी प्राईवेट थीं.इत्तिफाक की बात है ,गौड़ सा :भी उसी माकन में रह रहे थे जिसमें कभी झा  सा :रहते थे.जैसे झा सा :की पार्टी के बाद उनकी सर्विस गई उसी प्रकार की स्थिति गौड़ सा :के साथ भी बन गई एवं मेरे आगरा पहुँच जाने के बाद गौड़ सा :को भी हटा दिया गया.
गौड़ सा :के मित्र कंकर-खेडा टाउन एरिया कमेटी के सदस्य थे उनसे हमारे बाबूजी का पता वेरीफाई करा दिया था जिस   कारण राशन कार्ड सुगमता से बन गया था.उनके घर भी हम-लोगों का आना-जाना था.वे लोग भी अच्छे व्यवहार वाले थे.मुझे कं.में प्रोमोशन दिलाने में गौड़ सा :की मुख्य भूमिका थी और श्री भल्ला ने स्ट्रोगली रिकमेंड किया था.
१९७२ में मेरे सर्विस करने के बाद जब 'एशिया ७२' चल रहा था दिल्ली जाना हुआ.हुआ यह था कि मौसी बीमार तो चल ही रही थीं उनके एक बेटे महेश ने (बाद में उसकी भी मृत्यु हो गयी ) बउआ को पोस्ट कार्ड पर लिख कर भेजा था कि, माँ बहुत बीमार हैं मौसी आकर देख जाओ .बउआ और मैं गए थे.महेश के पत्र भेजने की बात मौसाजी एवं मौसी को मालूम नहीं थी.दो-तीन रोज वहां रहे थे.गोपाल (अब इनकी भी मृत्यु हो चुकी है),रमेश और महेश को मैं 'एशिया ७२ 'दिखने ले गया था.पहली बार अपने से छोटों पर खर्च करने का मौका मिला था.
मौसी को देखने नानाजी भी आये थे ,वहां से मेरठ भी हम लोगों के इस क्वार्टर में भी आये ,कुछ दिन रुक कर फिर दिल्ली होकर दोबारा मौसी से मिल कर शाहजहांपुर वापिस गए.
भुआ-फूफा जी भी इस क्वार्टर में आये थे तथा और भी थोडा विवरण मेरठ का अगली बार ......




























 

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2 टिप्‍पणियां:

  1. माथुर जी..बहुत कम लोग होते है ..,जो अपने जीवन की घटनाओ को रूबरू करे.पढ़ने से ऐसा लगता है की आप का जीवन हमेशा ही संघर्समय रहा है --इस तरह के अनुभवों से हमें भी कुछ सिखाने को मिल जाता है.बहुत-बहुत बधाई.

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  2. संघर्ष मय जीवन में आदमी को कुछ न कुछ सिखाने को मिलता है|
    आप को महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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