जब हम लोग रूडकी-रोड वाले क्वार्टर में ही थे तो २१ सितम्बर १९७० को एक दुर्घटना ने मेरी सोच में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया और मैं जिस ज्योतिष को स्वंय ढोंग-पाखण्ड कहता था ,उस पर विश्वास करने पर ही मजबूर नहीं हुआ बल्कि उसी को आज आजीविका क़े रूप में अपनाए हुये भी हूँ.हमारे घर में भी तब प्रचलित पूजा-पद्धति को ही माना जाता था.उस पर मुझे विश्वास इसलिए नहीं था क्योंकि सुने हुये प्रवचनों तथा पढ़े हुये सत्यार्थ-प्रकाश,धर्म और विज्ञान,रामायण का ऐतिहासिक महत्त्व,योगीराज श्री कृष्ण,अपराधी कौन?आदि ग्रन्थ मुझे प्रभावित करते थे.परन्तु माता-पिता की इच्छा का अनुपालन तो करना ही था,सो मन न होते हुये भी पालन करता ही था.बसंत-पंचमी पर बउआ हम तीनों भाई-बहनों से सरस्वती क़े चित्र पर फूल-बेर चढ़ा कर सूजी क़े हलवे का प्रशाद लगवाती थीं.एक बार शोभा से उन्होंने हलवा बनाने को कहा था और बहन ने सूजी समझ कर इससब गोल की भूँसी का हलवा बना दिया.इस हलवे को अजय और शोभा ने तो चखा मात्र मैंने ही समेटा.इसी प्रकार एक बार बउआ को बुखार आने पर मैंने जीरे से छुंके चावलों में अत्यधिक नमक डाल दिया था उस कारण बाबूजी समेत भाई-बहन सभी को भूंखे -पेट ही जाना पड़ा.मैंने वह भात कुछ खा लिया था,नतीजतन कालेज में पल-पल पर पानी पीने भागना पड़ता रहा.बउआ की तबियत ठीक न रहने क़े कारण और शोभा का स्कूल दोपहर ११ से शाम ५ तक होने की वजह से हम लोग घरेलू काम में उन्हें मदद करते थे.राशन का गेंहूँ गन्दा और घुना होता था उसे साफ़ करने में काफी वक्त लगता था.१२ कि.गेंहूँ साफ़ करके उसे पिसवाने लाल कुर्ती से लौट रहा था और जिस कालोनी में क्वार्टर था उसके पहले गेट से अन्दर आने हेतु साईकिल दायें मोड़ी किन्तु हाथ का सिग्नल नहीं दिया था.सामने से तेज मोटर साईकिल जोर -जोर से हार्न बजाती आ रही थी उसकी भी परवाह नहीं की ,सीधे-सीधे गलती मेरी ही थी.जोर-दार टक्कर हुई .मेरी साईकिल गिरी मामूली टूटी लेकिन आटा आधा या ज्यादा ही बिखर गया.मोटर साईकिल सवार समेत सूखे नाले में गिर गई और ज्यादा नुक्सान हुआ.सवार व्यक्ति क़े काफी चोटें लगीं,खून भी बहने लगा.सामने ही बाबूजी क़े आफिस क़े एक एस.डी.ओ.सा :का क्वार्टर था उनके पास उनके मित्र ए.एम.सी.क़े डा.सा :आये हुये थे.तुरन्त अपनी जीप लेकर सड़क पर आ गये उस व्यक्ति को इंजेक्शन आदि लगाये,दवाएं दीं और मरहम-पट्टी कर दी.मुझे किसी चीज की कोई जरूरत ही नहीं थी.बस इसी घटना ने मुझे सोचने पर मजबूर किया कि,मेरी गलती और मुझे मामूली झटका ही लेकिन उस व्यक्ति जिसकी कोई गलती ही न थी इतना तगड़ा झटका और शारीरिक क्षति साथ में वाहन की टूट-फूट अलग से ऐसा क्यों हुआ.आटा बिखरने और साईकिल की मरम्मत से आर्थिक क्षति बाबूजी को हुई उनकी भी गलती न थी.बाबूजी ने दो-तीन दिन मुझे कालेज नहीं जाने दिया.मेरे लिये क्लब से पुराने अखबार लाते थे मैं उन्हें ही पढ़ते -पढ़ते नवभारत-टाईम्स में रतन लाल शास्त्री 'रत्नाम्बर'क़े दैनिक भविष्य फल (जो कभी नहीं देखता था)पर पहुंचा और देख कर बेहद आश्चर्य हुआ कि उस दिन यानि कि २१ सितम्बर १९७० को बाबूजी क़े राशिफल में आर्थिक हानि लिखा था तथा
मेरा दिन ठीक था.तब मेरा माथा ठनका कि हो सकता है उस व्यक्ति का दिन बेहद ख़राब रहा हो जिससे गलती न होते हुये भी उसे भुगतना पड़ा.उस दिन क़े बाद से मैं नियमित राशि फल पढने लगा और जांचने लगा.ज्यादातर बातें ठीक पाते जाने पर ज्योतिष पर कुछ-कुछ विश्वास होने लगा.
१९७१ में जब अजय ने डेंटल हाईजीन का कोर्स करने की बात की तब अपने अटकल-पच्चू ज्ञान क़े आधार पर मैंने बाबूजी से शंका जताई कि पहले यह निश्चित कर लें क्या वह लोगों क़े दांत साफ़ करने का धंधा करेंगे.अन्यथा समय एवं धन बर्बाद ही होगा. मेरे आंकलन पर कौन विश्वास करता,अजय की ख्वाहिश पूरी की गई.कोर्स किंग जार्ज मेडिकल कालेज द्वारा संचालित था और तब वह यूनिवर्सिटी क़े आधीन था ,लिहाजा मामाजी क़े चलते अजय को दाखिला भी मिल गया.फीस न थी. किताबें ,आने जाने का खर्च हुआ.अजय को मामाजी ने अपने ही घर ७८,बादशाह बाग़,यूनिवर्सिटी कैम्पस पर रखा.पढ़ाई अजय ने ठीक की.माईं जी को भी आराम हो गया उनका पुत्र सड़ी सब्जी उठा लाता था,या वह खुद जातीं या नौकर पर निर्भर करतीं थीं.अजय ने इस समस्या को हल कर दिया.वह सस्ती तथा अच्छी सब्जी ला देता था.एक बार फिर गोमती में बाढ़ आ गई. कालेज बन्द हो गये तो माईं जी ने अजय को तब तक क़े लिये मेरठ भेज दिया.मामाजी चूंकी संघ में रहे थे और शायद गोपनीय सदस्य तब भी थे लिहाजा संघ कार्य-कर्ताओं को अपनी कोठी पर फोन करने की सुविधा दे रखी थी,जैसा कि अजय ने देखा और बताया था.बाढ़ उतरने क़े बाद आ कर अजय ने पढ़ाई पूरी की,लेकिन शायद माईं जी ने उटका दिया था कि लोगों क़े दांत साफ़ करना कोई इज्जत का काम नहीं है.अतः अजय ने पास करने क़े बावजूद वैसा जाब करने से इनकार कर दिया और इस प्रकार मेरे द्वारा व्यक्त आशंका सही निकली तथा मेरा विश्वास ज्योतिष पर और बढ़ गया.
सरू स्मेल्टिंग क़े टाईम कीपर चन्द्रिका प्रसाद सिंह ने एक बार जबरिया मेरा हाथ देख कर तब जो कुछ बताया था आगे जा कर ठीक निकला .मैंने गोस्वामी गिरधारी लाल की 'ज्योतिष टाईम्स' पत्रिका मंगाना शुरू किया ,परन्तु गणित तथा संस्कृत दोनों में कमजोर होने क़े कारण समझ पाने में असमर्थ रहा.बाद में आगरा में कुछ साथियों ने जबरदस्ती ज्योतिष की किताबें पढने को दीं क्योंकि न समझ पाने क़े कारण मैं ज्योतिष की कड़ी आलोचना करता था.लेकिन चूंकि मैं किताबी कीड़ा (बुक-वार्म)भी हूँ उन किताबों को न केवल चाट गया बल्कि उनकी नक़ल भी उतार-उतार कर रखता गया और ज्योतिष की आलोचना को भी बदस्तूर जारी रखा.परिणामतः एक क़े बाद एक अच्छी-अच्छी किताबें साथी गण पढने को देते गये और मेरे पास ज्योतिष का कलेक्शन बढ़ता गया.आगरा में एक साथी क़े सहपाठी डाक्टरी क़े साथ ही ज्योतिष कार्य भी करते थे .वह मुझे उनके पास अपनी समस्याओं का समाधान जानने हेतु अपने साथ ले जाते थे. मैं उनके विश्लेषण पर संदेह व्यक्त करता था और वह अपनी बात की पुष्टी में समझाते रहते थे. इस प्रकार मेरा ज्योतीशीय प्रशिक्षण होता गया. जानकारों को मैंने अपने विश्लेषण बताने शुरू कर दिये लेकिन पाखण्ड से रहित सुझाव ही दिये.सन २००० में पूर्णतयः जाबलेस हो जाने पर इसी ज्योतिष को आजीविका क़े रूप में अपनाना पड़ा,हालाँकि बाबूजी सा :(पूनम क़े पिताजी)ने ऐसा करने को पहले ही कहा था परन्तु उनके निधन क़े बाद परिस्थितियों वश करना ही पड़ा.आज पोंगा पंथ का विरोध करते हुये ज्योतिष कार्य में संलग्न तो हूँ,परन्तु ढोंगियों-पोंगापंथियों क़े जबरदस्त प्रहारों को झेलते हुये ही.
अभी तो जिक्र मेरठ में प्राप्त सर्विस का करना था और बात ज्योतिष की होते-होते वाया आगरा फिर लखनऊ तक पहुँच गई.अतः अगली बार उसकी चर्चा......
मेरा दिन ठीक था.तब मेरा माथा ठनका कि हो सकता है उस व्यक्ति का दिन बेहद ख़राब रहा हो जिससे गलती न होते हुये भी उसे भुगतना पड़ा.उस दिन क़े बाद से मैं नियमित राशि फल पढने लगा और जांचने लगा.ज्यादातर बातें ठीक पाते जाने पर ज्योतिष पर कुछ-कुछ विश्वास होने लगा.
१९७१ में जब अजय ने डेंटल हाईजीन का कोर्स करने की बात की तब अपने अटकल-पच्चू ज्ञान क़े आधार पर मैंने बाबूजी से शंका जताई कि पहले यह निश्चित कर लें क्या वह लोगों क़े दांत साफ़ करने का धंधा करेंगे.अन्यथा समय एवं धन बर्बाद ही होगा. मेरे आंकलन पर कौन विश्वास करता,अजय की ख्वाहिश पूरी की गई.कोर्स किंग जार्ज मेडिकल कालेज द्वारा संचालित था और तब वह यूनिवर्सिटी क़े आधीन था ,लिहाजा मामाजी क़े चलते अजय को दाखिला भी मिल गया.फीस न थी. किताबें ,आने जाने का खर्च हुआ.अजय को मामाजी ने अपने ही घर ७८,बादशाह बाग़,यूनिवर्सिटी कैम्पस पर रखा.पढ़ाई अजय ने ठीक की.माईं जी को भी आराम हो गया उनका पुत्र सड़ी सब्जी उठा लाता था,या वह खुद जातीं या नौकर पर निर्भर करतीं थीं.अजय ने इस समस्या को हल कर दिया.वह सस्ती तथा अच्छी सब्जी ला देता था.एक बार फिर गोमती में बाढ़ आ गई. कालेज बन्द हो गये तो माईं जी ने अजय को तब तक क़े लिये मेरठ भेज दिया.मामाजी चूंकी संघ में रहे थे और शायद गोपनीय सदस्य तब भी थे लिहाजा संघ कार्य-कर्ताओं को अपनी कोठी पर फोन करने की सुविधा दे रखी थी,जैसा कि अजय ने देखा और बताया था.बाढ़ उतरने क़े बाद आ कर अजय ने पढ़ाई पूरी की,लेकिन शायद माईं जी ने उटका दिया था कि लोगों क़े दांत साफ़ करना कोई इज्जत का काम नहीं है.अतः अजय ने पास करने क़े बावजूद वैसा जाब करने से इनकार कर दिया और इस प्रकार मेरे द्वारा व्यक्त आशंका सही निकली तथा मेरा विश्वास ज्योतिष पर और बढ़ गया.
सरू स्मेल्टिंग क़े टाईम कीपर चन्द्रिका प्रसाद सिंह ने एक बार जबरिया मेरा हाथ देख कर तब जो कुछ बताया था आगे जा कर ठीक निकला .मैंने गोस्वामी गिरधारी लाल की 'ज्योतिष टाईम्स' पत्रिका मंगाना शुरू किया ,परन्तु गणित तथा संस्कृत दोनों में कमजोर होने क़े कारण समझ पाने में असमर्थ रहा.बाद में आगरा में कुछ साथियों ने जबरदस्ती ज्योतिष की किताबें पढने को दीं क्योंकि न समझ पाने क़े कारण मैं ज्योतिष की कड़ी आलोचना करता था.लेकिन चूंकि मैं किताबी कीड़ा (बुक-वार्म)भी हूँ उन किताबों को न केवल चाट गया बल्कि उनकी नक़ल भी उतार-उतार कर रखता गया और ज्योतिष की आलोचना को भी बदस्तूर जारी रखा.परिणामतः एक क़े बाद एक अच्छी-अच्छी किताबें साथी गण पढने को देते गये और मेरे पास ज्योतिष का कलेक्शन बढ़ता गया.आगरा में एक साथी क़े सहपाठी डाक्टरी क़े साथ ही ज्योतिष कार्य भी करते थे .वह मुझे उनके पास अपनी समस्याओं का समाधान जानने हेतु अपने साथ ले जाते थे. मैं उनके विश्लेषण पर संदेह व्यक्त करता था और वह अपनी बात की पुष्टी में समझाते रहते थे. इस प्रकार मेरा ज्योतीशीय प्रशिक्षण होता गया. जानकारों को मैंने अपने विश्लेषण बताने शुरू कर दिये लेकिन पाखण्ड से रहित सुझाव ही दिये.सन २००० में पूर्णतयः जाबलेस हो जाने पर इसी ज्योतिष को आजीविका क़े रूप में अपनाना पड़ा,हालाँकि बाबूजी सा :(पूनम क़े पिताजी)ने ऐसा करने को पहले ही कहा था परन्तु उनके निधन क़े बाद परिस्थितियों वश करना ही पड़ा.आज पोंगा पंथ का विरोध करते हुये ज्योतिष कार्य में संलग्न तो हूँ,परन्तु ढोंगियों-पोंगापंथियों क़े जबरदस्त प्रहारों को झेलते हुये ही.
अभी तो जिक्र मेरठ में प्राप्त सर्विस का करना था और बात ज्योतिष की होते-होते वाया आगरा फिर लखनऊ तक पहुँच गई.अतः अगली बार उसकी चर्चा......
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बढ़िया रहा यह अवलोचन भी माथुर साहब ! कभी कभी होता है कि इंसान इन बातों पर विश्वाश करने लगता है! वैसे जिस दिन हानि लिखी हो राशिफल में वो तो सही निकल जाती है मगर जब लाभ लिखा हो वो सही नहीं निकलता :)
जवाब देंहटाएंआद.विजय जी,
जवाब देंहटाएंआप जैसे सच्चे लोगों के रहने से ही ज्योतिष की गरिमा बनी हुई है !
kuchh bhi koyi kahe ,lekin mai is bidha par biswas karata hun. daily daccan chronical ka rashi phal padhata hun, jo mujhe 100 % sahi nikalati hai daily.
जवाब देंहटाएंmai bhi bhavishya me aisi hi kuchh aap -bitti linkhuga ...jo mere apane anubhaw honge..kripaya padhane ki koshis jari rakhe.mere sabhi post saty par aadharit hai.mere post par pahali bar , aane ke liye aap jaise bujurg ko mera pranam swikar ho. dhanyabad.