यूं तो मैं जून 1978 तक तक मेरठ में था और सस्पेंशन पीरियड में दिल्ली में अपने एक चाचा से कहीं और सर्विस दिलवाने के सम्बन्ध में मिलता रहा ;उस सिलसिले का जिक्र बाद में.अभी जो व्यक्तिगत -राजनीतिक बातें मेरठ में रहते हुए वर्णन करने से रह गईं थीं उनका विवरण देना चाहूँगा.११ -१२ वर्ष की उम्र में शाहजहांपुर में नानाजी के साथ सभी राजनीतिक दलों की सभाओं में गया और सभी नेताओं को सुना फिर १९६७ में सिलीगुड़ी में प्रधानमंत्री इंदिराजी को सुनने छोटे भाई को लेकर गया.मुख्यमंत्री अजोए मुखर्जी को सुनने अकेले ही सिलीगुड़ी कालेज गया;आदत पड़ गयी थी हर दल और नेता को सुनने की.मेरठ में तो इंटर और बी. ए.का छात्र था ;बाद में सर्विस में था अतः राजनीतिक दलों और नेताओं को न सुनने का प्रश्न ही न था.
उ. प्र.में हुए १९६९ के मध्यावधी चुनावों के सम्बन्ध में पूर्व में वर्णन हो चूका है.१९७१ में बांगला देश निर्माण से उत्साहित होकर इंदिराजी ने संसद भंग करके मध्यावधी चुनाव करा दिये.स्वंत्र पार्टी-जनसंघ -भा.क्र.द.-कांग्रेस (ओ )-संसोपा आदि मिल कर चुनाव लड़ना चाहते थे.लेकिन चौ.सा :किन्हीं बातों पर अड़ गए और अलग हो गये.बाकी चार दलों के गठबंधन को 'चौगटा मोर्चा ' कहा गया.इस मोर्चा ने ताशकंद के शहीद लाल बहादुर शास्त्री जी के ज्येष्ठ पुत्र श्री हरिकिशन शास्त्री को मेरठ से अपना उम्मीदवार बनाया था.बउआ ने तो कभी वोट डाला ही नहीं उनको सभी बेकार लगते थे.हमारे नानाजी और बाबूजी सिर्फ जनसंघ को वोट देते थे.लिहाजा इस बार बाबूजी ने भी वोट न देने का फैसला किया था.मैंने उन्हें समझाया कि आपकी पसंद के जनसंघ ने समर्थन दिया ही है और हरिकिशन जी तो शास्त्री जी के पुत्र हैं तो आप उन्हें ही वोट दे दीजिये. इस प्रकार बाबूजी ने मेरे आग्रह पर पहली बार गैर जनसंघी को वोट दिया.बाद में तो मैं धीरे-धीरे बाबूजी को जनता पार्टी और जनता दल को वोट दिलवाने में आसानी से राजी कर सका और फिर मेरे कम्यूनिस्ट पार्टी में शामिल होने एवं उनके हास्टल के साथी और सहपाठी का.भीखा लाल जी से संपर्क करने पर तो वह अंततः भाजपा -विरोधी भी हो गये थे.
भैन्साली ग्राउंड में राजनीतिक दलों की मीटिंग होती थीं मैंने हर मीटिंग अटेंड की.इंदिराजी मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा जी के साथ आयीं थीं.'समाजवाद कोई जादू की छडी नहीं है जो घुमाते ही सब समान हो जायेंगे' उनका महत्वपूर्ण डायलाग था.उनके दो-तीन दिन बाद जनसंघ अध्यक्ष पं.अटल बिहारी बाजपाई की भी सभा उसी जगह हुई जो कांग्रेस (ओ) के ह.कि.शास्त्री के समर्थन में आये थे.अटल जी का प्रमुख डायलाग था-'लोग आज मेरा ओजस्वी भाषण सुनने आये हैं परसों यहाँ लोग इंदिरा जी का मुखड़ा निहारने आये थे.' मुझे उनका यह वाक्य बेहद बुरा लगा था हालांकि मैं खुद इंदिरा विरोधी था.मैंने बाबू जी से भी कहा था आप जनसंघ का समर्थन करते रहे है उनके अध्यक्ष कितना अशालीन हैं.बाबूजी को भी इंदिरा-विरोधी होने के बावजूद यह कथन सुहाया नहीं था.मैंने याद किया कि पढ़ाई के दौरान हमारे प्रिय प्रो.कैलाश चन्द्र गुप्त भी जनसंघ के सक्रिय कार्यकर्ता होने के बावजूद अटल जी से अच्छा प्रो.बलराज मधोक को मानते थे.
उ. प्र.विधान सभा के मध्यावधी चुनावों में प्रो.बलराज मधोक ने एल.के.आडवानी जी के जनसंघ अध्यक्ष बनने पर उससे अलग होकर जो 'राष्ट्रवादी लोकतांत्रिक समूह' नामक पार्टी बनाई थी उसके उम्मीदवार के रूप में पं.जय स्वरूप तिवारी को मेरठ सिटी से खड़ा किया था.तिवारी जी की सियाही बनाने की फैक्टरी थी. उनकी फैक्ट्री में घुस कर जनसंघियों ने मशीने तोड़ दीं और उन्हें भारी आर्थिक क्षति पहुंचाई थी.प्रो. मधोक ने जब यह सूचना खैर नगर चौराहे पर हो रही सभा में दी तो उनके कार्यकर्त्ता जनसंघ-विरोधी प्रचंड नारे लगाने लगे.उस पर प्रो. मधोक ने उन्हें ऐसा करने से रोका और अपनी बातें जारी रखीं.वह चाहते थे नारे लगाने की बजाये जनसंघ की हार सुनिश्चित की जाए.
अटल जी ने अपनी सभा में प्रो.मधोक (जिन्होंने पं.दीनदयाल उपाध्याय की हत्या के बाद अटल जी को हाथ पकड़ कर अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाया था) को काफी कोसा.आदतन इंदिराजी की भी खूब खिल्ली उडाई जबकि खुद ही पहले इंदिराजी को 'दुर्गा' संबोधन के साथ माला पहना चुके थे -बांग्ला विजय पर .
इंदिरा जी भी आईं तो उन्होंने जनता से सवाल किया कि वह शख्स जो विधान सभा का चुनाव तक लड़ने से डर रहा है आपको 'हर खेत को पानी -हर हाथ को काम'कैसे दे पायेगा.(जनसंघ के पोस्टरों में यही नारा था और कहा गया था-'उ. प्र.की बागडोर अटल जी के मजबूत हाथों में सुरक्षित है')?
मुजफ्फर नगर -शामली संसदीय सीट से चौ. सा :उम्मेदवार थे.जाट बाहुल्य क्षेत्र में चौगटा मोर्चा ने अपना उम्मेदवार सांकेतिक खड़ा किया और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार ठा.विजय पाल सिंह को अन्दर खाने सपोर्ट कर दिया परिणामतः चौ.चरण सिंह की शर्मनाक पराजय हो गयी. अखबारों ने इस हार पर अटल जी का बयान सुर्ख़ियों में छापा था-'हमने मनीराम की हार का बदला ले लिया'.कितने मजे की बात थी बदला लेने के लिए १८० डिग्री पर चलने वाली कम्यूनिस्ट पार्टी को जनसंघ कार्यकर्ताओं ने जी -जान लगा कर जिता दिया था.यहाँ आप जरूर जानना चाहेंगे कि यह 'मनीराम की हार' क्या थी?
मनीराम विधान सभा क्षेत्र गोरखपुर में था .चौ.सा :की संविद सरकार में अंतर्विरोधों के चलते उन्हें हटा कर पूर्व प्रधानमंत्री स्व.लाल बहादुर शास्त्री के सखा और उन्हीं की भाँती बेहद ईमानदार राज्य सभा सदस्य श्री त्रिभुवन नारायण सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया था.संविधान के मुताबिक़ उन्हें छः माह के भीतर विधायक निर्वाचित होना था तभी वह आगे पद पर बने रह सकते थे.मनीराम के विधायक ने उनके लिए सीट खाली की थे और वह उप-चुनाव लड़ रहे थे.चौ.सा:नहीं चाहते थे कि टी .एन.सिंह सा:जीत कर मुख्यमंत्री बने रहें अतः उन्होंने भा.क्र.द.से कमजोर उम्मीदवार खड़ा कर दिया था.कांग्रेस(आर) से अलीगढ़ में अमर उजाला के पत्रकार श्री रामकृष्ण दिवेदी चुनाव लड़े थे.चौ.सा:का भीतरी समर्थन उन्हें प्राप्त था सो उन्होंने उप-चुनाव में मुख्यमंत्री को हरा दिया .टी.एन.सिंह सा: राज्य सभा में बने रहे और उ.प्र.विधान सभा इस विवाद के कारण भंग कर दी गयी यहाँ राष्ट्रपति शासन लागू हो गया.'जैसे को तैसा'के आधार परचौ.सा :को हराने के बाद अटल जी ने 'मनीराम की हार का बदला' कहा था.इसी कारण विधान सभा का चुनाव भी लोक सभा के साथ हुआ था.
१९७१ में इंदिरा जी बांग्ला देश की लहर पर सवार होकर भारी बहुमत से जीतीं थीं.उन्होंने समाज में अन्धकार फैला रहे संगठनों पर करारा प्रहार किया और उस समय उनकी कमर तोड़ दी थी.(आज फिर वे फुफकार रहे हैं).माउंट आबू में पूर्व हीरा व्यापारी लेखराज जी ने 'ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय' में अनैतिक अनर्थ चला रखा था जो उस समय के 'नव भारत टाईम्स' दिल्ली में प्रमुखता से छपा था.ख़ुफ़िया जांच में पुष्टि होने पर वहां छापा डलवा कर 'मटका' खेल रंगे हाथों पकड़वाया था.काफी समय कोर्ट केस भी चला.अब शायद वह 'मटका' खेल खुले में नहीं हो रहा है.यह मटका सट्टे का नहीं सेक्स का था.
'बाल योगेश्वर' उर्फ़ 'बाल योगी' नामक १३ वर्षीय बालक को कलयुगी अवतार घोषित करके 'डिवाइन लाईट मिशन' भी अनैतिक कार्यों में संलग्न था वहां प्रार्थनाएं होती थीं-'तन मन धन सब गुरु जी के अर्पण' और वैसा ही होता भी था.यह अवतार घोषणा करता था कि वह 'राम'और 'कृष्ण'को नहीं मानता.गृह मंत्रालय में श्री कृष्णचन्द्र पन्त एवं श्री नाथू राम मिर्धा 'राज्य मंत्री' थे.इंदिराजी को लगा वे उनकी सत्ता को भी चुनौती दे रहे हैं.ख़ुफ़िया जांच करा कर उनके यहाँ भी छापा डलवा दिया.१३ वर्षीय अवतार और उनकी माता जी देश छोड़ कर अमेरिका भाग गए.'बाल योगी' जी अब वहीं सेटिल हैं और भारत आ कर सभाएं करके 'दान'बटोर कर चले जाते हैं.
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का भान्जा बताने वाले रेलवे के पूर्व क्लर्क श्री प्रभात रंजन सरकार उर्फ़ 'आनंद मूर्ती' अपने 'आनंद मार्ग ' और 'प्राउ टिस्ट ब्लाक आफ इण्डिया' के माध्यम से देश में गड़बड़ियाँ फैला रहे थे.मतभेद की और सही बात कहने की उनके यहाँ इजाजत नहीं थी.विरोध करने वाले की खोपड़ी धड से अलग कर दी जाती थी. पुरुलिया आदि में इंदिराजी ने आश्रमों पर छापे डलवा कर ऐसी अनेकों खोपड़ियाँ बरामद करवाईं थीं.मुक्क्दमे भी पर आज फिर आनंद मार्ग सक्रिय है.
ये तीनों संगठन केन्द्रीय तथा राज्यों के सरकारी कर्मचारियों में घुसपैठ बना कर अपने को मजबूत बनाये हुए थे.ये ही नहीं बल्कि 'राधा स्वामी'-'साईं बाबा'-'इस्कान' आदि-आदि संगठन धार्मिक लबादा ओढ़ कर शासन -प्रशासन में अपनी लाबी बना कर देश को खोखला करने में लगे रहते हैं.पूर्व राष्ट्रपति अवकाश ग्रहण से पूर्व दयालबाग आगरा 'राधास्वामी सत्संग 'में भाग लेने आये थे तो पूर्व प्रधानमंत्री श्री नरसिंघा राव आगरा के आंवल खेडा में आचार्य श्रीराम शर्मा के दामाद श्री प्रणव पांड्या के बुलावे पर उनके कार्यक्रम में भाग लेने आये थे.इस राजनीतिक प्रश्रय से इन संगठनों की लूट-शक्ति बढ़ जाती है और उसी अनुपात में आम जनता का शोषण भी बे-इंतिहा बढ़ जाता है.
इंदिराजी में एक बात तमाम खामियों के बावजूद थी कि वह चाहें दिखावे ही के लिए सही आम जनता के हक़ की बातें कहती और कुछ करती भी रहती थीं.भले ही वह धार्मिक स्थलों की यात्रा कर लेती थीं परन्तु अन्याय नहीं सहती थीं.शायद उडीसा के किसी मंदिर में उनके साथ बाबू जगजीवन राम जी को प्रवेश नहीं करने दिया गया था तो उन्होंने खुद भी उस मंदिर में प्रवेश नहीं किया और बिना दर्शन किये लौट गईं.यही वजह थी कि वह सुगमतापूर्वक धार्मिकता का जामा ओढ़े संगठनों के विरुद्ध ठोस कार्यवाही कर सकीं जिससे तब जनता को राहत ही मिली.
जब इमरजेंसी लगी थी तब हमारे कार्यस्थल पर साथी रहे श्री ओमेश कुमार कालिया के पडौसी और मित्र रहे एक सज्जन के साथ कई बार दिल्ली गए .वह सज्जन कुछ राजनीतिक दस्तावेज लेकर जाते थे और श्री कालिया को देते थे.श्री कालिया अपने पिताजी( जो एन.डी.एम्.सी.में ओवरसीयर थे और शायद आर.एस.एस. में भी सक्रिय थे ) को दे देते थे.यह बात बहुत बाद में मालूम चल पाई थी जिसके बाद से मैंने उन सज्जन के साथ जाना छोड़ दिया था.ओमेश कालिया सा :सरू स्मेल्टिंग में स्टेनो टाईपिस्ट थे और बहुत फास्ट थे.युनियन में भी सक्रिय एक दुसरे स्टेनो टाईपिस्ट जिनके छोटे भाई कांग्रेस (आर)के युवा नेता थे ने श्री कालिया को गुमराह करके दिल्ली के भागीरथ पैलेस में दुगने वेतन(१६०० रु)पर जाब दिला दिया था और फिर तीन माह में टर्मिनेट करा दिया था.मेरे भी आगरा जाने के बाद वह शख्स युनियन का प्रेसीडेंट बन गया था और सारा फंड खा गया था. युनियन दो फाड़ हो गयी थी और वह शख्स मेनेजमेंट का चहेता होते हुए भी बर्खास्त कर दिया गया था.मुझे हटवाने में भी उसकी अहम् भूमिका रही थी.गलत करने वाले चाहे चौ. सा:रहे हों या यह छुट भैय्ये नेता अपनी करनी का फल पा ही गए थे.
अगली बार दिल्ली आवागमन की बातें........
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गुरूजी .. आप ने काफी पुराणी यादो को तरोताजा कर दिया
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