आम चुनाव और विनीत सक्सेना सा :तक पहुँचने के दौरान होटल मुग़ल प्रोजेक्ट में क्या गतिविधियें चलीं उनका वर्णन अभी बाकी रह गया था परन्तु उल्लेख करना आवश्यक है,अतः कुछ की चर्चा प्रस्तुत है.जनवरी १९७६ में लेखा विभाग में कुछ और लोगों की भर्ती हुयी .छोटे भाई अजय के सहपाठी का फुफेरा भाई प्रशांतो कुमार करमाकर उसके साथ रहता था ,उसने अजय से निवेदन किया कि उन्हें मैं होटल मुग़ल में जाब दिला दूँ.मैंने डी.एस.दत्त सा :से रिकोमेंड किया और उन्होंने उसके बंगाली होने के नाते फटाफट रख लिया -इस रिमार्क के साथ प्रोजेक्ट मैनेजर पी.एल.माहुर सा :को फॉरवर्ड किया था-कैंडिडेट रिकोमेंडेड बाई विजय माथुर ;अतः उन्होंने भी अप्रूव कर लिया.करमाकर ने ०९ जनवरी को ज्वाईन किया था-मित्रा के अन्डर और १० जनवरी को ज्वाईन करने वाले हरीश छाबरा थे पर्चेस सेक्शन में.कं. में बंगाली ग्रुप और पंजाबी ग्रुप बाजी थी. दत्त सा :कं.के वाईस चेयरमेन श्री शांतानु रे (पूर्व मुख्य मंत्री श्री सिद्धार्थ शंकर रे के भाई ) एवं डायरेक्टर इंचार्ज होटल डिवीजन श्री एस.घोष के भतीज दामाद थे .
प्रोजेक्ट मैनेजर श्री पुरोशोत्तम लाल माथुर और वाईस प्रेसिडेंट प्रोजेक्ट वाई.एस.रामास्वामी जी प्रेसीडेंट होटल डिवीजन कपूर सा :के साथ थे.डिवीजनल फायीनान्शियल कंट्रोलर मेहरा सा :भी इनके साथ थे.लेकिन दत्त सा :किसी की परवाह नहीं करते थे.एक बार उन्होंने मेन कंट्राक्टर का पेमेंट रोक दिया और उसने काम .ऊपर तक दत्त सा :की शिकायत हुयी लेकिन डायरेक्टरों के वरद हस्त से उनका बाल भी बांका न हुआ. दत्त सा :ने स्टोर कीपर जगत भूषन सहाय सा :को रिजायीन करने पर मजबूर कर दिया और उन्हें रांची लौटना पड़ा जबकि उस समय उनको कुत्ते के काटने पर इलाज भी चल रहा था. श्री दवे जो सी.बी.आई.छोड़ कर वाईस प्रेसिडेंट आपरेशंस बने थे इन्क्वायरी करने आये थे और सहाय सा :के सम्बन्ध में मुझ से भी जानकारी ली थी.वह उनका इस्तीफा मांगे जाने से असंतुष्ट थे परन्तु दत्त सा :को डायरेक्टरों का समर्थन होने से कुछ न हो सका.
सोर्स और फ़ोर्स में मजबूत चार्टर्ड अकोंटेंट दत्त सा :वर्क में परफेक्ट नहीं थे.अतः श्री राजा राम खन्ना सा :को उनकी मदद के लिए भेजा गया जिन्होंने इस बार अपनी सहायता के लिए श्री प्रकाश चन्द्र जैन को बुलवा लिया और जैन सा :ने अपनी मदद के लिए श्री ब्रिज राज किशोर श्रीवास्तव सा :को बुलवा लिया.ये सभी सहारनपुर सिगरेट फैक्टरी से रिटायर्ड और मात्र अनुभवी थे.इन बुजुर्ग लोगों में से पहले दो मेरे अलावा किसी और स्टाफ का समर्थन नहीं प्राप्त कर पाते थे तथा दत्त सा :की मार्फ़त ही काम करा पाते थे. जब मैंने मुझ पर अधिक कार्य-भार डालने की बाबत उनसे कहा तो दोनों का जवाब था -तुम खुशी से कर देते हो इसलिए तुम्हीं से कहते है ,हम रिटायर्ड लोग बदले में तुम्हें कुछ दिला तो नहीं सकते सिर्फ तुम्हारी बेहतरी के लिए आशीर्वाद ही दे सकते हैं.सच में खन्ना सा :और जैन सा :की मेहरबानी से प्रोजेक्ट अकाउंट्स में मैं परफेक्ट भी हो गया था,जिसका लाभ दूसरी जगहों पर सफल कार्य निष्पादन करने में हुआ.श्रीवास्तव सा :युवा पीढी के चहेते थे -मसखरे थे उनमें घुट जाते थे और मैं बुजुर्गों में ही अपने को फिट पाता था.
एक बार प्रोजेक्ट तेजी से चल रहा था और उदघाटन का समय नजदीक आ रहा था.रामास्वामी जी इंस्पेक्शन के लिए आ रहे थे ;समस्त इंजीनियर और गैर इंजीनियर -दत्त सा :समेत अधिकाँश लेखा कर्मचारी भी व्यस्त थे एरोड्रम पर रिसीव करने मुझे भेज दिया गया -शायद अभीष्ट यह दिखाना था की सभी अफसर घोर व्यस्त हैं इसलिए स्टाफ में सीनियर मोस्ट को भेजा गया है.लौटते में कार में रामास्वामी जी ने मुझ से व्यक्तिगत और आफिशियल दोनों प्रकार की जानकारियाँ मांगीं .उनका व्यवहार उच्च पदाधिकारी होने के बावजूद मधुर था ,वह एम्.ई.एस.से रिटायर्ड थे और मेरे बाबूजी एम्.ई.एस में कार्य रत.शायद उन्हीं के किसी प्रयास से दत्त सा :ने बाद में मुझे सीनियर ग्रेड भी दे दिया था.आगे फिर......
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आपका यह संस्मरणात्मक आलेख काफ़ी रोचक है, सदा की तरह।
जवाब देंहटाएंगुरूजी आपकी यादे कमल की है ! अलग - अलग लोगो के मनोभाव को पढ़ने को मिलता है !बैशाखी की शुभ कामनाये प्रणाम !
जवाब देंहटाएंbahut badhiya.
जवाब देंहटाएंसदा की तरह यह संस्मरणात्मक आलेख काफ़ी रोचक है| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंभाई माथुर जी!
जवाब देंहटाएं"डंडा" संत स्वभाव की, यही मुख्य पहचान।
जो भी मिलता है उन्हें, उसको करते दान॥
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आपके अनुभव दूसरों के लिए मार्ग-दर्शक
सिद्ध होंगे। ज्ञानवर्धक रचना के लिए साधुवाद!
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी