जैसा कि पहले जिक्र कर चुका हूँ कि,मैंने जनता पार्टी की सरकार बनने एवं मोरारजी देसाई के प्रधान मंत्री चुने जाने की भविष्य वाणी कर रखी थी और हमारे तत्कालीन यूं.ऍफ़ .सी.विनीत सक्सेना सा :उससे असहमत थे.मैंने बचपन में नानाजी के साथ शाहजहांपुर में सभी राजनेताओं को सुनने तथा फिर मेरठ में भी इसी परंपरा को जारी रखने का उल्लेख भी पूर्व में किया है.इमरजेंसी में हो रहे चुनावों में जब कि मेरी भविष्यवाणी दांव पर लगी हुयी थी मेरे द्वारा किसी भी राजनेता की सभा जो ड्यूटी के आड़े न हो छोड़ने का प्रश्न ही न था.हाँ किसी कांग्रेसी की सभा अलबत्ता इस बार नहीं सूनी जान -बूझ कर.सूना था रक्षा मंत्री बंसी लाल की कार को लोगों ने थूक -थूक कर खराब कर दिया था यह अफवाह थी या सच ?
१३ मार्च १९७७ को श्री हेमवती नंदन बहुगुणा की सभा हुयी थी.भारी भीड़ थी दिन भी रविवार था जिस दिन जूता कारीगरों की छुट्टी रहती है अतः वे बाबू जगजीवन राम के कारण बहुतायत में पहुंचे थे. बहुगुणा जी उस समय मुस्लिमों में बेहद लोकप्रिय थे अतः मुस्लिम भी थे और जनता पार्टी को जनसंघ का भी समर्थन होने से संघी भी खूब थे.मेरठ के भैन्साली ग्राउंड में लोकनायक जय प्रकाश नारायण की सभा में १९७५ में जितनी भीड़ थी शायद उससे भी ज्यादा आगरा के राम लीला ग्राउंड में लोग बहुगुणा जी को सुनने आये थे.भारी समर्थन से बहुगुणा जी गदगद थे.जूता कारीगरों में बौद्ध मत का प्रभाव देखते हुए उन्होंने आपात काल के किस्से सुनाते हुए कहा कि उस समय 'संजय शरणम् गच्छामि' चल रहा था.तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी की खिल्ली उड़ाते हए बहुगुणा जी ने उनके द्वारा संजय गांधी की चप्पलें उठा कर लाने की बात अपने जायकेदार ढंग से रखी.
इंदिरा जी द्वारा कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बुलाई गयी बैठक का जिक्र करते हुए बताया कि जब वह और बाबू जगजीवन राम नहीं पहुंचे तो इंदिरा जी ने बाबू जगजीवन राम को फोन करवाया तब इधर से बहुगुणा जी ने उनके पी.ए. से कहला दिया कि 'आ रहा है' इस बात का जिक्र उन्होंने जोरदार ठहाकों के बीच कहा कि इंदिरा जी समेत सभी चक्कर में पण गए कि एक अधिकारी एक मंत्री को ऐसे कैसे बोल सकता है लेकिन असलियत न समझ सके.कई बार फोन आया और हर बार एक ही जवाब दिलाया जाता रहा. बाबू जगजीवन राम का इस्तीफा जब वर्किंग कमेटी में पहुंचा तब असलियत का खुलासा हुआ और इंदिरा जी के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी.चुनावों की घोषणा हो चुकी थी इंदिरा जी की आँखों के सामने पराजय चमक रही थी.
एक रात मोरार जी देसाई भी आगरा संसदीय क्षेत्र के प्रत्याशी प.शम्भूनाथ चतुर्वेदी का प्रचार करने आये.संघी नेता राज कुमार सामा ने उस सभा में प. चतुर्वेदी और प.देसाई की तुलना करते हुए बताया कि श्री देसाई ने सिटी मजिस्ट्रेट का पद छोड़ कर तो श्री चतुर्वेदी ने डी.एस.पी.पद छोड़ कर स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया था.दोनों अच्छे प्रशासक भी हैं और अच्छे जन नेता भी.आगरा की सभा से बहुगुणा जी की ही तरह मोरारजी भी गदगद होकर लौटे थे.
यह भी पहले ही लिख चुका हूँ कि मेरी भविष्यवाणी का समर्थन इंटेलीजेंस इन्स्पेक्टर राम दास यादव जी ने भी चौ.सा :से किया था जो उस समय होटल मुग़ल में सिक्यूरिटी अधिकारी थे .चुनाव परिणामों ने साथियों और अधिकारियों के बीच मेरी धाक जमाँयी थी और मुझे ही मुबारकवाद दिए जा रहे थे. लोगबाग अपना-अपना भविष्य मुझ से जानने के लिए बेताब थे और मुझे अपना ज्ञान विस्तार करने का सुनेहरा अवसर मिल गया था.
इन्हीं दिनों उ.आ. वि.प.ने कुछ मकानों के लिए पुनाराबंटन की सूचना निकाली थी. परचेज के साथी श्री हरीश छाबड़ा ने बताया और एक नेवी से रिटायर्ड और तब ठेकेदार श्री गुरु बक्श सिंह ने मुझ से फार्म जमा करने को कहा.बउआ का तो कहना था ही कि अपना मकान ले लो.रु.२/- कीमत का प्रोस्पेक्टस बाबू जी ने ला दिया परन्तु समस्या तो सिक्यूरिटी डिपाजिट के रु.३००० /-जमा करने की थी.छाबडा जी न कर पाए बंदोबस्त और न फ़ार्म जमा किया. सिंह सा :को आर्मी कोटे के कारण सिर्फ रु.५००/-जमा करने थे और वह तो ठेकेदार थे उन्होंने जमा कर दिए.
सवा तीन साल की नौकरी में सरू स्मेल्टिंग मेरठ में रु.३०००/- बचाए और उसी कं.में फिक्स्ड डिपाजिट कर दिए थे जो अब नौकरी से बर्खास्तगी के बाद वह लौटा नहीं रहे थे. बाबू जी के आगरा में आने पर उनके दफ्तर के साथी एक चौ.सा :जो 'कंचन डेरी' चलाते थे और दफ्तर कम आते थे ने शुरू-शुरू में ही उनसे कहा था कभी किसी वकील की जरूरत पड़े तो बेझिझक कहियेगा. बाबूजी ने अब उन्हें समस्या बतायी तो उन्होंने फटाफट कांग्रेसी नेता और वकील कन्हैया लाल पाठक से हस्ताक्षर कराकर ब्लैंक लेटरहेड ला दिया .उस पर मैंने अपनी भाषा लिख कर साथी सुदीप्तो मित्रा से टाईप करा ली और मेरठ रजिस्ट्री कर दी.
चुनावी हलचल से कं.के संचालक घबराए हुए थे नोटिस पहुँचते ही पेमेंट रिलीज कर दिया जो ग्रिन्द्लेज बैंक ,दिल्ली पर पेबल था. १५ दिन में चेक कैश हो कर आ गया और मैंने सेन्ट्रल बैंक,आगरा कैंट से जहाँ अकाउंट था से रु.३०००/- का ड्राफ्ट बनवाया ठीक उसी वक्त दिल्ली के रामलीला मैदान में नए प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जनता को संबोधित कर रहे थे जहाँ तक मुझे याद है वह २५ मार्च का दिन था.बैंक के बाहर थोड़ी देर रेडियो पर भाषण सुनने रुक गया वैसे दो घंटे का अवकाश लेकर होटल से चला था.समय ज्यादा लगने पर भी टोकने वाला कोई नहीं था,सभी अधिकारी तो मेरी भविष्यवाणी की ही चर्चा कर रहे थे.विदेश मंत्री अटल बिहारी बाजपाई पहले बोल गए सेनायें जागती रहें फिर कुछ ख्याल करके बोले इस विषय पर तो प्रधान मंत्री ही बोलेंगें.
दफ्तर पहुँचने पर सभी ने कहा जरूर रेडियो पर भाषण सुन कर आये होगे और वे सब ठीक ही अनुमान लगा रहे थे.हमारा ड्राफ्ट रजिस्टर्ड डाक से ठीक समय से लखनऊ पहुँच गया था.जनता सरकार के गठन ने हमारे पर्सोनल मैनेजर झा सा : की निगाह में भी मेरी कीमत बढ़ा दी थी.लिहाजा स्टाफ को मैं अधिकाधिक रियायतें दिलाने में कामयाब रहा और इस प्रकार स्टाफ के मध्य पहले ही जो लोकप्रियता थी वह फौलादी होती गयी.........
१३ मार्च १९७७ को श्री हेमवती नंदन बहुगुणा की सभा हुयी थी.भारी भीड़ थी दिन भी रविवार था जिस दिन जूता कारीगरों की छुट्टी रहती है अतः वे बाबू जगजीवन राम के कारण बहुतायत में पहुंचे थे. बहुगुणा जी उस समय मुस्लिमों में बेहद लोकप्रिय थे अतः मुस्लिम भी थे और जनता पार्टी को जनसंघ का भी समर्थन होने से संघी भी खूब थे.मेरठ के भैन्साली ग्राउंड में लोकनायक जय प्रकाश नारायण की सभा में १९७५ में जितनी भीड़ थी शायद उससे भी ज्यादा आगरा के राम लीला ग्राउंड में लोग बहुगुणा जी को सुनने आये थे.भारी समर्थन से बहुगुणा जी गदगद थे.जूता कारीगरों में बौद्ध मत का प्रभाव देखते हुए उन्होंने आपात काल के किस्से सुनाते हुए कहा कि उस समय 'संजय शरणम् गच्छामि' चल रहा था.तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी की खिल्ली उड़ाते हए बहुगुणा जी ने उनके द्वारा संजय गांधी की चप्पलें उठा कर लाने की बात अपने जायकेदार ढंग से रखी.
इंदिरा जी द्वारा कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बुलाई गयी बैठक का जिक्र करते हुए बताया कि जब वह और बाबू जगजीवन राम नहीं पहुंचे तो इंदिरा जी ने बाबू जगजीवन राम को फोन करवाया तब इधर से बहुगुणा जी ने उनके पी.ए. से कहला दिया कि 'आ रहा है' इस बात का जिक्र उन्होंने जोरदार ठहाकों के बीच कहा कि इंदिरा जी समेत सभी चक्कर में पण गए कि एक अधिकारी एक मंत्री को ऐसे कैसे बोल सकता है लेकिन असलियत न समझ सके.कई बार फोन आया और हर बार एक ही जवाब दिलाया जाता रहा. बाबू जगजीवन राम का इस्तीफा जब वर्किंग कमेटी में पहुंचा तब असलियत का खुलासा हुआ और इंदिरा जी के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी.चुनावों की घोषणा हो चुकी थी इंदिरा जी की आँखों के सामने पराजय चमक रही थी.
एक रात मोरार जी देसाई भी आगरा संसदीय क्षेत्र के प्रत्याशी प.शम्भूनाथ चतुर्वेदी का प्रचार करने आये.संघी नेता राज कुमार सामा ने उस सभा में प. चतुर्वेदी और प.देसाई की तुलना करते हुए बताया कि श्री देसाई ने सिटी मजिस्ट्रेट का पद छोड़ कर तो श्री चतुर्वेदी ने डी.एस.पी.पद छोड़ कर स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया था.दोनों अच्छे प्रशासक भी हैं और अच्छे जन नेता भी.आगरा की सभा से बहुगुणा जी की ही तरह मोरारजी भी गदगद होकर लौटे थे.
यह भी पहले ही लिख चुका हूँ कि मेरी भविष्यवाणी का समर्थन इंटेलीजेंस इन्स्पेक्टर राम दास यादव जी ने भी चौ.सा :से किया था जो उस समय होटल मुग़ल में सिक्यूरिटी अधिकारी थे .चुनाव परिणामों ने साथियों और अधिकारियों के बीच मेरी धाक जमाँयी थी और मुझे ही मुबारकवाद दिए जा रहे थे. लोगबाग अपना-अपना भविष्य मुझ से जानने के लिए बेताब थे और मुझे अपना ज्ञान विस्तार करने का सुनेहरा अवसर मिल गया था.
इन्हीं दिनों उ.आ. वि.प.ने कुछ मकानों के लिए पुनाराबंटन की सूचना निकाली थी. परचेज के साथी श्री हरीश छाबड़ा ने बताया और एक नेवी से रिटायर्ड और तब ठेकेदार श्री गुरु बक्श सिंह ने मुझ से फार्म जमा करने को कहा.बउआ का तो कहना था ही कि अपना मकान ले लो.रु.२/- कीमत का प्रोस्पेक्टस बाबू जी ने ला दिया परन्तु समस्या तो सिक्यूरिटी डिपाजिट के रु.३००० /-जमा करने की थी.छाबडा जी न कर पाए बंदोबस्त और न फ़ार्म जमा किया. सिंह सा :को आर्मी कोटे के कारण सिर्फ रु.५००/-जमा करने थे और वह तो ठेकेदार थे उन्होंने जमा कर दिए.
सवा तीन साल की नौकरी में सरू स्मेल्टिंग मेरठ में रु.३०००/- बचाए और उसी कं.में फिक्स्ड डिपाजिट कर दिए थे जो अब नौकरी से बर्खास्तगी के बाद वह लौटा नहीं रहे थे. बाबू जी के आगरा में आने पर उनके दफ्तर के साथी एक चौ.सा :जो 'कंचन डेरी' चलाते थे और दफ्तर कम आते थे ने शुरू-शुरू में ही उनसे कहा था कभी किसी वकील की जरूरत पड़े तो बेझिझक कहियेगा. बाबूजी ने अब उन्हें समस्या बतायी तो उन्होंने फटाफट कांग्रेसी नेता और वकील कन्हैया लाल पाठक से हस्ताक्षर कराकर ब्लैंक लेटरहेड ला दिया .उस पर मैंने अपनी भाषा लिख कर साथी सुदीप्तो मित्रा से टाईप करा ली और मेरठ रजिस्ट्री कर दी.
चुनावी हलचल से कं.के संचालक घबराए हुए थे नोटिस पहुँचते ही पेमेंट रिलीज कर दिया जो ग्रिन्द्लेज बैंक ,दिल्ली पर पेबल था. १५ दिन में चेक कैश हो कर आ गया और मैंने सेन्ट्रल बैंक,आगरा कैंट से जहाँ अकाउंट था से रु.३०००/- का ड्राफ्ट बनवाया ठीक उसी वक्त दिल्ली के रामलीला मैदान में नए प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जनता को संबोधित कर रहे थे जहाँ तक मुझे याद है वह २५ मार्च का दिन था.बैंक के बाहर थोड़ी देर रेडियो पर भाषण सुनने रुक गया वैसे दो घंटे का अवकाश लेकर होटल से चला था.समय ज्यादा लगने पर भी टोकने वाला कोई नहीं था,सभी अधिकारी तो मेरी भविष्यवाणी की ही चर्चा कर रहे थे.विदेश मंत्री अटल बिहारी बाजपाई पहले बोल गए सेनायें जागती रहें फिर कुछ ख्याल करके बोले इस विषय पर तो प्रधान मंत्री ही बोलेंगें.
दफ्तर पहुँचने पर सभी ने कहा जरूर रेडियो पर भाषण सुन कर आये होगे और वे सब ठीक ही अनुमान लगा रहे थे.हमारा ड्राफ्ट रजिस्टर्ड डाक से ठीक समय से लखनऊ पहुँच गया था.जनता सरकार के गठन ने हमारे पर्सोनल मैनेजर झा सा : की निगाह में भी मेरी कीमत बढ़ा दी थी.लिहाजा स्टाफ को मैं अधिकाधिक रियायतें दिलाने में कामयाब रहा और इस प्रकार स्टाफ के मध्य पहले ही जो लोकप्रियता थी वह फौलादी होती गयी.........
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रोचक संस्मरण।
जवाब देंहटाएंमाथुर जी! शासन-सत्ता का इतिहास तो सुलभ हो जाता है। जन- इतिहास की गवाही जन-संस्मरणों में मिलेती है। आपका कार्य सराहनीय है। शानदार प्रस्तुति के लिए साधुवाद!
जवाब देंहटाएंसद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
रोचक संस्मरण। धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंआप की ये किश्ते तो अनजानी बाते भी साथ लाई है
जवाब देंहटाएंगुरूजी नारायणदत्त तिवारी की खिल्ली आज - कल सही नजर आ रही है ! उस चरित्र का पोल खुल रहा है !
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