उन्हीं दिनो फीरोजाबाद मे ट्रेन एक्सीडेंट हो चुका था जिसके बाद पुलिस,पी ए सी और अराजक तत्वों ने मृत तथा घायल लोगों को लूटा था और सेना के गोली चलाने की धमकी पर ही यह लूट थमी थी। सोनिया गांधी के आशीर्वाद से गठित तिवारी कांग्रेस के अध्यक्ष पंडित नारायण दत्त तिवारी दुर्घटना स्थल का मुयाना कर गए थे । अतः प्रधानमंत्री नरसिंघा राओ साहब को भी23 जूलाई 1995 को आना पड़ा। सड़कों पर आवागमन कुछ समय के लिए प्रतिबंधित था। अतः हींग-की-मंडी न जाकर, मथुरा गया और रंग बिहारी माथुर साहब से शर्मा जी द्वारा बताई दास्तान की जानकारी लेने हेतु संपर्क किया। वह तो बुला रहे ही थे। उनकी उस बेटी की बेटी से यशवन्त को मिल कर खुशी हुई कि बहन है परंतु माँ तो पटना वाली ही को मानना था अपने बाबा जी से वहाँ पत्र जो भिजवाया था। शर्मा जी की बातें बेदम और झूठ हैं उन्हें समझा दिया और आग्रह किया कि वह इस बाबत बिमला जीजी से ही सही जानकारी हासिल कर लें। उनकी पुत्री की बाबत कह दिया कि पटना मे सहाय साहब से चल रही बात तोड़ कर तो कोई विचार नहीं हो सकता क्योंकि वह वार्ता पिताजी शुरू करके गए हैं। लेकिन अगर सहाय साहब खुद ही पीछे हट जाते हैं तब उनके प्रस्ताव पर विचार कर सकते हैं।
मथुरा से लौटते-लौटते अंधेरा हो चुका था और सहाय साहब के ज्येष्ठ पुत्र कमला नगर/हींग-की-मंडी /कमलानगर के चक्कर काटते -काटते थक कर परेशान होकर घर के बाहर के हिस्से मे नींबू के पेड़ के नीचे खड़े हुये थे। उन्होने कोई सूचना हमे नहीं दी थी। हम बेखबर थे तो परेशानी भी उन्हीं को हुई। उन्होने मुझसे पूछा कि शादी कब करना है तारीख दे दूँ। मैंने उन्हें पहले जन्मपत्री दिखाने को कहा उसके बाद गुण मिलने पर ही मुहूर्त का सवाल उठने की बात कही।वह अपनी बहन की जन्मपत्री लाये तो थे किन्तु दिखा नहीं रहे थे । उनके जन्मपत्री दिखाने के बाद भी मैंने कहा कि आप खुद अकेले नहीं बल्कि अपनी बहन और माता-पिता की उपस्थिती मे मुहूर्त की बात रखें। चाय यशवन्त ने बना दी थी और उसने मीठा बहुत तेज डाला था। बिस्कुट उन्होने मीठा होने के कारण नहीं लिया था अतः मैंने फीकी चाय अलग से बना दी। सुबह के आलू के पराँठे बचे रखे थे और कुछ ताजे सेंक कर मैंने उनसे भोजन करने को कहा। उनके पास यशवन्त को छोड़ कर पीछे बाजार से दही ले आया था। उन्होने वही हम लोगों के साथ खा लिया था। उनकी थकान को देखते हुये मैंने उनसे रात को घर पर रुक जाने को कहा तो बोले कि सामान दयाल लाज मे है वहाँ से लेकर टूंडला से ट्रेन पकड़ कर निकलेंगे। लेकिन बाद मे पता चला कि वह तबियत गड़बड़ाने के कारण रात को लाज मे ही रुक कर अगले दिन सुबह की ट्रेन से गए।
वस्तुतः जिन दिनों हमारे बाबूजी नहीं रहे थे उधर उसी समय सहाय साहब की वयोवृद्ध माताजी को गिरने से कूल्हे मे फ्रेक्चर हो गया था। उनके कुछ ठीक होने तक उन्हें पत्राचार के लिए रुकना था और हम भी फिर बउआ के न रहने तथा उसके बाद लोगों द्वारा उठाए ऊताचाल से त्रस्त थे। उनके घर मे फोन था लेकिन हमे दूसरों के घर से अटेण्ड और खुद PCO से करना होता था अतः जल्दी-जल्दी संपर्क न हो पाता था। इसी वजह से उस दिन 'पूनम'के भाई साहब को हमारे न मिलने से परेशानी उठानी पड़ी। उनके पटना पहुँच कर सब बातें बताने के बाद सहाय साहब ने रेजिस्टर्ड पत्र भेज कर उन लोगों के आगरा हमसे मिलने आने का समय पूछा। उनकी हिदायत थी कि उन्हें पत्र मै भी रेजिस्टर्ड डाक से ही भेजूँ। मैंने उन्हें नवरात्र की दोज 26 सितंबर को पटना से चल कर 27 सितंबर को मुझसे संपर्क करने को लिख भेजा था। उन्होने पत्र द्वारा मुझे स्वीकृति भी भेज दी थी।
उनके देहरादून निवासी एक छोटे भाई ने बीच मे हस्तक्षेप करके इस स्टेज पर हमारे बाबत अपने एक जासूस से एंक्वायरी कराने की बात उठा दी। उन्होने अपने पुत्र के आकर मिल जाने और खुद अपने आने की सूचना देने के बाद अपने छोटे भाई को एंक्वायरी की इजाजत दे दी। कमलनगर मे ही हमारे बी- ब्लाक के बगल वाले ई -ब्लाक निवासी डॉ एस सी अस्थाना साहब एक दिन देहरादून से अङ्ग्रेज़ी मे उनके नाम भेजा गया गया एक पत्र लेकर आए और मुझे दिखा कर पूंछा कि इसका क्या जवाब दे दें?मैंने उन्हें उत्तर दिया कि वह मेरे बारे मे जो कुछ जानते हों सब सूचित कर दें। डॉ अस्थाना बोले वह मुझे बिलकुल नहीं जानते इसलिए मै जो बता दूँगा वही वह लिख देंगे। तब मैंने कहा कि जब वह मुझे नहीं जानते तो यही लिख कर भेज दें कि वह मेरे बारे मे कुछ नहीं जानते। बाद मे ज्ञात हुआ कि उन्होने यही लिख भेजा था कि वह विजय माथुर के बारे मे कुछ नहीं जानते। उनका संदेश देहरादून की मार्फत पटना सहाय साहब को मिल गया।
मथुरा से लौटते-लौटते अंधेरा हो चुका था और सहाय साहब के ज्येष्ठ पुत्र कमला नगर/हींग-की-मंडी /कमलानगर के चक्कर काटते -काटते थक कर परेशान होकर घर के बाहर के हिस्से मे नींबू के पेड़ के नीचे खड़े हुये थे। उन्होने कोई सूचना हमे नहीं दी थी। हम बेखबर थे तो परेशानी भी उन्हीं को हुई। उन्होने मुझसे पूछा कि शादी कब करना है तारीख दे दूँ। मैंने उन्हें पहले जन्मपत्री दिखाने को कहा उसके बाद गुण मिलने पर ही मुहूर्त का सवाल उठने की बात कही।वह अपनी बहन की जन्मपत्री लाये तो थे किन्तु दिखा नहीं रहे थे । उनके जन्मपत्री दिखाने के बाद भी मैंने कहा कि आप खुद अकेले नहीं बल्कि अपनी बहन और माता-पिता की उपस्थिती मे मुहूर्त की बात रखें। चाय यशवन्त ने बना दी थी और उसने मीठा बहुत तेज डाला था। बिस्कुट उन्होने मीठा होने के कारण नहीं लिया था अतः मैंने फीकी चाय अलग से बना दी। सुबह के आलू के पराँठे बचे रखे थे और कुछ ताजे सेंक कर मैंने उनसे भोजन करने को कहा। उनके पास यशवन्त को छोड़ कर पीछे बाजार से दही ले आया था। उन्होने वही हम लोगों के साथ खा लिया था। उनकी थकान को देखते हुये मैंने उनसे रात को घर पर रुक जाने को कहा तो बोले कि सामान दयाल लाज मे है वहाँ से लेकर टूंडला से ट्रेन पकड़ कर निकलेंगे। लेकिन बाद मे पता चला कि वह तबियत गड़बड़ाने के कारण रात को लाज मे ही रुक कर अगले दिन सुबह की ट्रेन से गए।
वस्तुतः जिन दिनों हमारे बाबूजी नहीं रहे थे उधर उसी समय सहाय साहब की वयोवृद्ध माताजी को गिरने से कूल्हे मे फ्रेक्चर हो गया था। उनके कुछ ठीक होने तक उन्हें पत्राचार के लिए रुकना था और हम भी फिर बउआ के न रहने तथा उसके बाद लोगों द्वारा उठाए ऊताचाल से त्रस्त थे। उनके घर मे फोन था लेकिन हमे दूसरों के घर से अटेण्ड और खुद PCO से करना होता था अतः जल्दी-जल्दी संपर्क न हो पाता था। इसी वजह से उस दिन 'पूनम'के भाई साहब को हमारे न मिलने से परेशानी उठानी पड़ी। उनके पटना पहुँच कर सब बातें बताने के बाद सहाय साहब ने रेजिस्टर्ड पत्र भेज कर उन लोगों के आगरा हमसे मिलने आने का समय पूछा। उनकी हिदायत थी कि उन्हें पत्र मै भी रेजिस्टर्ड डाक से ही भेजूँ। मैंने उन्हें नवरात्र की दोज 26 सितंबर को पटना से चल कर 27 सितंबर को मुझसे संपर्क करने को लिख भेजा था। उन्होने पत्र द्वारा मुझे स्वीकृति भी भेज दी थी।
उनके देहरादून निवासी एक छोटे भाई ने बीच मे हस्तक्षेप करके इस स्टेज पर हमारे बाबत अपने एक जासूस से एंक्वायरी कराने की बात उठा दी। उन्होने अपने पुत्र के आकर मिल जाने और खुद अपने आने की सूचना देने के बाद अपने छोटे भाई को एंक्वायरी की इजाजत दे दी। कमलनगर मे ही हमारे बी- ब्लाक के बगल वाले ई -ब्लाक निवासी डॉ एस सी अस्थाना साहब एक दिन देहरादून से अङ्ग्रेज़ी मे उनके नाम भेजा गया गया एक पत्र लेकर आए और मुझे दिखा कर पूंछा कि इसका क्या जवाब दे दें?मैंने उन्हें उत्तर दिया कि वह मेरे बारे मे जो कुछ जानते हों सब सूचित कर दें। डॉ अस्थाना बोले वह मुझे बिलकुल नहीं जानते इसलिए मै जो बता दूँगा वही वह लिख देंगे। तब मैंने कहा कि जब वह मुझे नहीं जानते तो यही लिख कर भेज दें कि वह मेरे बारे मे कुछ नहीं जानते। बाद मे ज्ञात हुआ कि उन्होने यही लिख भेजा था कि वह विजय माथुर के बारे मे कुछ नहीं जानते। उनका संदेश देहरादून की मार्फत पटना सहाय साहब को मिल गया।
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