शुक्रवार, 25 मई 2012

आगरा/1994 -95 /भाग-18

.... जारी .....

हालांकि मै सी पी आई मे न होकर सपा मे था किन्तु सी पी आई नेता कामरेड किशन बाबू श्रीवास्तव से घरेलू आधार पर आना-जाना था। डॉ शोभा /कमलेश बाबू के उपद्रवकारी रुख-रुझान को देखते हुये मैंने पूनम के पिताजी से निवेदन किया था कि यदि पटना मे कोई दूसरा आपसे प्रोग्राम मे कोई तबदीली कराना चाहे तो आप का .किशन बाबू के अलावा किसी की बात न स्वीकार करें। सेंट्रल बैंक से रिटायर्ड बाबूजी के एक भांजे गुरुदेव शरण माथुर भी अक्सर घर आते रहते थे ले जाने की टीम मे वह भी शामिल थे। एन वक्त पर वह अपनी श्रीमतीजी को भी शामिल करना चाहते थे जिनकी मौसेरी बहन( के जी मेडिकल हाल वाले की बेटी ) ज्योति हैं। मैंने उनको भी शामिल नहीं किया और यह भी ठीक ही किया क्योंकि बाद मे पता चला कि गुरुशरण के बहनोई राकेश तो शरद मोहन के मौसेरे भाई थे। यह साहब भी शरद मोहन के भेदिया के तौर पर ही आते थे।

04 नवंबर को टूंडला से मगध एक्स्प्रेस पकड़ने हेतु प्रस्थान करना था ,08 बजे रात्रि तक घर छोड़ देना था उसी के अनुरूप डॉ शोभा और अशोक (बउआ के फूफा जी की बेटी सीता मौसी का बड़ा बेटा )को सूचित किया था ;कामरेड किशन बाबू समेत सभी यथोचित समय से पहुँच गए थे। रात का खाना और ट्रेन हेतु नाश्ता मैंने हलवाई से बनवा लिया था और डॉ शोभा के सुपुर्द कर दिया था । खाना तो डॉ साहिबा ने सब को खिला दिया था किन्तु नाश्ता जैसा का तैसा रखा रहा गाड़ी पटना काफी लेट पहुँचने के बावजूद किसी को नहीं दिया।

05 नवंबर को पटना जंक्शन  पर पूनम के भाई,चचेरे भाई और चाचा गण उपस्थित थे। सबसे परिचय ई ओ साहब (पूनम के ज्येष्ठ भ्राता) ने कराया। हेल्थ विभाग वाले उनके चाचा के पुत्र कारें ड्राईव कर रहे थे उनसे परिचय तब कराया जब ठहराने के होटल पहुँच गए। वहाँ स्नान करने के बाद चाय बिस्कुट हुआ। बालाघाट वाले सीनियर मेनेजर साहब ने नाश्ते हेतु आलू के पराठों का आर्डर दिया था लेकिन विलंब के कारण फिर केनसिल कर दिया। कुछ लोग गोल घर घूमने गए किन्तु कमलेश बाबू ने यशवन्त को वहाँ नहीं चढ़ने दिया। मै घूमना-फिरना पसंद न होने के कारण गया नहीं था।


आर्यसमाज पटना मे ही दिन का खाना भी खिलवाया गया जो वहाँ के घर वालों के लिए बना था और अच्छा था। मुहूर्त का वक्त हेल्थ विभाग वाले चाचा के इंतज़ार मे गुजार दिया गया और इल्जाम गाड़ी लेट होने पर लगाया गया। गाड़ी भी उन्हीं के कहने पर बदली गई थी फिर भी इल्जाम हम पर थोप दिया यह भी नहीं सोचा कि  सिर्फ मेरा नहीं खुद उनकी बेटी के भविष्य का भी प्रश्न है। पुरोहित ने जब हमारी ओर के किसी बड़े से हवन मे आहुती दिलवाने को कहा तब कमलेश बाबू ने गुरुशरण माथुर साहब को आगे कर दिया जबकि मै कामरेड किशन बाबू को आगे रखना चाहता था।

दिन की शादी के बावजूद लाईटिंग मे धन तबाह किया गया था रात को अपनी तरफ के लोगों को भोजन पर आमंत्रित किया था उनके दिखावे हेतु। सुना है भोजन रात का भी अच्छा था। दिन का खाना देर से खाने के कारण मुझे भूख नहीं थी उस पर पूनम की देहरादून वाली चाची ने (जिन्होने डॉ अस्थाना को जासूस बना कर भिजवाया था)एक-एक  डिनर प्लेट मे सब कुछ अगड़म-बगड़म कचरे की भांति भर कर मुझे व पूनम को थमा दिया था। जब खुद पूनम ने ही न खा कर प्लेट नीचे रख दी तब बिन भूख के मै कहाँ ठूँसता?इस प्रकार अन्न की बरबादी होते देख मन खिन्न हो गया। दिन मे फेरों के बाद भी पूनम की माता जी अपने लोगों के पैर छूने का आदेश दे रही थीं जबकि हम लोगों के रिवाज मे ऐसा नहीं है तब डॉ शोभा की चुप्पी पर भी मन खिन्न हो गया था। रीति-रिवाज पर चर्चा करने की बजाए वे लोग आगरा आने पर आलतू-फालतू बातें ही करते रहे थे। ऐन मौके पर फजीहत खड़ी कर रहे थे। मेरे ज्योतिषीय परामर्श को ठुकरा कर वे लोग 25 सितंबर प्रतिपदा के दिन पटना से चले थे नतीजतन लौट कर जब 29 सितंबर को पटना पहुंचे तो उन लोगों का स्कूटर रिक्शा आर ब्लाक के पास पलट गया था जिसमे सभी को चोटें आई थीं और इस घटना को अब बताया था पत्र मे सूचित नहीं किया था। इस घटना को आधार बना कर भी बालाघाट वाले मेनेजर साहब ने अपने चाचा-चाची के सहयोग से केनसिल कराने का भरसक प्रयास किया था किन्तु पूनम की दादी जी केनसिल नहीं करवाना चाहती थीं अतः किसी की न चल सकी।

रात को होटल चले गए । अगले दिन, दिन का खाना  घर पर  था । घर काफी बड़ा है वहीं एक दिन पूर्व का कार्यक्रम भी रखते तो काफी धन बर्बाद होने से बचा सकते थे। रात को गुरुदेवशरण ,कमलेश बाबू और डॉ शोभा के बीच क्या खिचरी पकी कि,गुरुदेवशरण ने पूनम के पिताजी से पूनम को होटल भेज कर कोई रस्म करवाने को कहा। अजीब बात थी जब आर्यसमाज विधि -वेदिक पद्धती अपनाई थी तो दक़ियानूसी रस्म का सवाल कहाँ था?और फिर 1981 मे मेरे वक्त और 1988 मे अजय की शादी के वक्त खुद बाबूजी ने वह रसमे नहीं की थीं तो अब उनके न रहने पर उनके स्थान पर गुरुशरण या कमलेश बाबू कैसे उन रस्मों को कर सकते थे?परंतु पूनम के पिताजी पर तो कमलेश बाबू का ऐसा जादू चढ़ा था कि वह बोले कि वह ठीक कह रहे हैं। बड़ी मुश्किल से मैंने कामरेड किशन बाबू की मदद से उन्हें बेमतलब की कुराफ़ात न करने पर राज़ी किया। मै पहले रेजिस्टर्ड पत्र मे लिखित मे कह चुका था कि कोई भी परिवर्तन मेरे या कामरेड किशन बाबू की जानकारी बगैर नहीं होगा परंतु उनकी बुद्धि शायद कमलेश बाबू ने उन्हें टोटके की सिगरेट पिला कर जाम कर दी थी। बात न चल पाने से रुष्ट होकर गुरुदेवशरण अपने मौसिया श्वसुर साहब के घर पटना सिटी खाने चले गए और इनके खाने का बहिष्कार कर दिया। घर पर खाना चलताऊ था जो पूनम के चाचाओं की पसंद का था और सुधा डेरी का खट्टा-मीठा दही भी एक चाचा का करिश्मा था जो उनके अपने घर वालों को नसीब भी न हुआ।

पहले उन लोगों ने तय किया था कि सब को होटल भेज देंगे और वहाँ से लौटने की ट्रेन पर बैठा देंगे। फिर प्रोग्राम चेंज करके होटल से सबका सामान घर मँगवा लिया और घर से विदा करने का निर्णय हुआ। गुरुशरण अड़े थे कि वह होटल से ही जाएँगे जबकि ये लोग होटल खाली करना चाहते थे। एक बार फिर कामरेड किशन बाबू को संकटमोचक बना कर उनके पास भेजा जो उन्हें सामान समेत घर पर लाये। पूनम के पिताजी गुरुशरण की खुशामद दर खुशामद करें कि खाना खा लें या कम से कम एक रसगुल्ला खा लें और वह आड़े -तिरछे मटकते नो-नो करते रहे।  अंततः मुझे  ई ओ साहब से कहना पड़ा कि अपने पिताजी को समझाएँ  कि अड़ियल टट्टू की खुशामद न करे। तब जा कर वह ड्रामा बंद हुआ।

इन लोगों ने रात के खाने के पेकेट हर व्यक्ति के लिए बना कर डॉ शोभा को सौंप दिये थे और मिठाई एकमुश्त दे  दी थी। ट्रेन मे डॉ शोभा ने सबको खाने के पेकेट पकड़ा दिये और मिठाई किसी को न दी। हर पेकेट मे आठ- आठ पूरियाँ और दो-दो साबुत बेंगन भी थे। अधिकांश ने खाना फेंका। खाना पूनम की सबसे छोटी चाची ने पेक किया था । छोटा-खोटा का सूत्र यहाँ भी लागू हुआ। कामरेड किशन बाबू मुगल सराय पर उतर गए उन्हें वाराणासी कुछ काम था। बाद मे उनकी बीमार पत्नी कामरेड मंजू श्रीवास्तव ने बताया था कि स्टेशन पर खाना किसी गरीब को देकर किशन बाबू ने स्टेशन के बाहर मिठाई खरीद कर खाई तब जाकर उनकी तबीयत ठीक हुई। जो मिठाई रास्ते के लिए दी गई थी यदि डॉ शोभा सबको दे देती तो यह शिकायत न  सुननी पड़ती।

स्टेशन रवाना होने से पूर्व पूनम की माँ जी ने मुझसे कहा कि आइये आपको अपनी सासू माँ से भी मिलवा दें। वह पूनम व मुझे लेकर दादी जी जो बीमार थीं और बिस्तर पर थी के पास ले गई। सम्पूर्ण परिवार मे वयोवृद्ध दादी जी के व्यवहार को ही अच्छा कहा जा सकता है। वही आत्मीयता से बोलीं। पूनम को भी अच्छी सीख दी।वस्तुतः बचपन मे पूनम अपनी दादी  जी के पास माँ-पिता को छोड़ अकेले रही भी हैं  इसलिए भी वह विशेष मानती रही होंगी।

क्रमशः ..... 

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