सोमवार, 28 मई 2012

आगरा/1994 -95 /भाग-19

..... जारी.....

07 नवंबर को टूंडला उतर कर वहाँ से टैक्सियाँ करके कमला नगर घर पर पहुंचे। सभी लोग अंदर प्रवेश कर गए और पूनम दरवाजे पर खड़ी रह गई ,मुझे सारा घर -ताले वगैरह खोलना था,यशवन्त उस समय साढ़े ग्यारह वर्ष का था उसकी उतनी बुद्धि काम न की और पूनम के साथ मात्र डॉ साहिबा की दोनों पुत्रियाँ ही खड़ी रहीं। पूरे घर के ताले खोलने के बाद मै ही पूनम को अंदर लेकर आया। क्या गुरुशरण या कमलेश बाबू /डॉ शोभा जो पटना के होटल मे बाबूजी की भूमिका अदा करना चाहते थे घर पर पूनम को अंदर आने को नहीं कह सकते थे?वहाँ तो गुरुशरण कह रहे थे छोटी बहन माँ के समान होती है (यह तो सुना था कि,बड़ी भाभी को माँ का दर्जा दे देते हैं परंतु छोटी बहन का माँ के समान होना नई चालाकी की बात थी),पूछने पर डॉ साहिबा का जवाब था घर तो उनका है हम तो अतिथि हैं वह वहाँ क्यों खड़ी रहीं?

पूनम ने झाड़ू मुझे न लगाने दी और खुद सारे घर की झाड़ू लगाई। मैंने कुछ समय के लिए पड़ौस के लोगों के यहाँ काम कर रही महिलाओं को काम पर रखने की कोशिश की थी किन्तु उन लोगों ने किसी को आने नहीं दिया था। जाने से पहले डॉ साहिबा ने अपनी पुत्रियों से झाड़ू लगवा दी थी परंतु अब जिसका घर था वह आ गई तो अब वही लगाए। बड़ी विषम परिस्थिति थी घर आने पर स्वागत-सत्कार के स्थान पर पूनम को खुद झाड-बुहार करनी पड़ी। सामने वाले जैन साहब के घर मै बर्तन दे गया था और उनकी पत्नी ने दूध लेकर गरम करके रखा हुआ था हमारे आते ही सौंप दिया था। गुरुशरण,अशोक वगैरह के दिखावे के लिए डॉ साहिबा ने अपनी पुत्रियों से चाय बनवा दी थी। उन लोगों के जाने के बाद मैने चावल बीन कर तहारी सबके लिए बना दी थी। शाम से पूनम ने मुझसे सब चीज़ें  पूछ-पूछ  कर खाना बनाया। उनका घर जो था ,ज़िम्मेदारी उनकी जो थी सो उन्होने बखूबी निबाही।

12 नवंबर को परिचित लोगों को चाय पार्टी पर बुलाने का कार्यक्रम पहले से तय था किन्तु दयाल लाज मे बालाघाटी इंजीनियर साहब की प्रेरणा पर  बाबू जी साहब द्वारा ट्रेन बदलवाने से प्रकुपित डॉ शोभा को चार दिन मे लौटना था अतः आस-पास की महिलाओं को 08 तारीख को उनके सामने चाय पार्टी पर  बुलवा दिया सबको कहने यशवन्त गया ।

09 नवंबर की सुबह जब डॉ शोभा का परिवार झांसी लौटने लगा तो पूनम ने उनकी बेटियों को मुझसे रु 250/-  - 250/- दिलवा दिये। इसी बात पर बिफर कर डॉ शोभा और कमलेश बाबू झगड  पड़े और बेटियों के रुपए समेत पटना मे खुशी-खुशी माँ जी के हाथों ग्रहण वस्त्र  व चांदी का सिक्का आदि पटक कर चले गए।

डॉ शोभा की बड़ी बेटी (जो अब जयपुर मे है)को वस्त्र भेंट करती माँ जी 

डॉ शोभा की छोटी बेटी (जो अब पूना मे है और ब्लागर्स के प्रोफाईल चेक कर करके मेरे विरुद्ध भड़काती रहती है ) को वस्त्र भेंट करती माँ जी 

डॉ शोभा और अशोक की पत्नी को माँ जी ने वस्त्र भेंट किए तुरंत बाद का फोटो 

बाए से दायें-अकड़ू खाँ गुरुदेवशरण माथुर, हँसते हुये कामरेड किशन बाबू श्रीवास्तव,अशोक  और उनका पुत्र अंकित  माँ जी से वस्त्र प्राप्त करने बाद  उनके साथ बैठे हैं हेल्थ विभाग वाले चाचा जी साहब 

सभी फोटो कमलेश बाबू के खींचे हुये हैं ,मैंने केमरा उनको सौंपा हुआ था अतः उनका अपना फोटो वस्त्र भेंट लेते  समय का खिच नहीं सका। एक लंबे समय तक डॉ शोभा ने पत्राचार भी बंद रखा। बाद मे ज्ञात हुआ की अकड़ कर स्टेशन पहुँचते ही डॉ साहिबा के पैर की एडी मे मोच आ गई थी। सफर मे  हंसी खुशी आना-जाना चाहिए। इसके विपरीत डॉ साहिबा और असिस्टेंट फोरमेन साहब ने बेवजह का तांडव खड़ा किया ,बदशुगनी की और खुद भी सजा भुगती।

क्रमशः..... 

Link to this post-



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ढोंग-पाखंड को बढ़ावा देने वाली और अवैज्ञानिक तथा बेनामी टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम कर दिया गया है.असुविधा के लिए खेद है.

+Get Now!