..... जारी......
लेकिन सहाय साहब को उनके एक और भाई जो वहाँ हेल्थ विभाग मे अधिकारी थे ने उनसे कह दिया कि,माथुर तो भंगी होते हैं जबकि उन्हीं की पत्नी ने अपने जेठ साहब को समझाया कि वह गोरखपुर की होने के नाते जानती हैं कि यू पी मे माथुर कायस्थों का दर्जा तो उनके श्रीवास्तव लोगों से ऊपर होता है अतः वहम न करें।अपने भाइयों के विरोध के बीच सहाय साहब ने कनागत के बाद की पड़वा 25 सितंबर को पटना से प्रस्थान किया और 26 को आगरा पहुँच कर 'दयाल लाज' मे विश्राम किया। शाम को कमला नगर मे डॉ अस्थाना से मिलने आए किन्तु पास ही हमारा घर होते हुये भी आने की ज़रूरत नहीं समझी।
जब अपनी माता जी के कारण उन्होने पत्राचार स्थगित रखा था तब डॉ अस्थाना कई -कई बार मेरे घर आए और उन्होने कायस्थ होने के आधार पर परस्पर मेल करने की इच्छा व्यक्त की,अतः हम भी उनके घर गए। चूंकि सहाय साहब की ढील की कोई सूचना उस वक्त मेरे पास भी न थी तो डॉ अस्थाना ने उन पर आरोप लगाया कि,"सहाय साहब डबल माईंडेड हैं"और अपनी ओर से तीन अलग-अलग अधिक उम्र की माथुर लड़कियों का रेफरेंस दिया। इनमे अपने प्रिंसिपल की बेटी से वह मुझे रिश्ता करने हेतु ज़ोर डालते रहे। उनसे भी मैंने यही कहा कि मै खुद तो पुनर्विवाह का इच्छुक नहीं था किन्तु बाबूजी ने सहाय साहब से बात चलाई थी अतः जारी रखे हूँ और उनके प्रस्तावों पर विचार करने मे असमर्थ हूँ।
सहाय साहब और उनके ज्येष्ठ पुत्र का डॉ अस्थाना ने स्वागत नहीं किया और चाय भी काफी देर मे पिलाई। बल्कि उलाहना और दे दिया कि उनसे एंक्वायरी कराने के बावजूद उनको गतिविधियों की कोई सूचना तक न दी। सहाय साहब ने उन्हें यह भी न बताया कि अगले दिन वह अपनी बेटी की एंगेजमेंट करने जा रहे हैं। मैंने बहन शोभा और उनके परिवार को झांसी से बुलवा लिया था वे लोग 26 तारीख को आ चुके थे। (तब उस वक्त तक उन लोगों के हमारे विरुद्ध साजिश मे शामिल होने की हमे भनक तक न थी ,अतः उनकी किसी गतिविधि पर किसी प्रकार का शक नहीं किया था)।
27 तारीख को लगभग 10 बजे सहाय साहब और उनके ज्येष्ठ पुत्र घर पर आए और एक बजे दयाल लाज मे आने का निमंत्रण दे गए और वहीं रस्म करने की बात कही। उन्होने हाथ को मुंह की ओर ले जाकर कहा था कि जब आएंगे तो कुछ होगा । इसका मतलब कमलेश बाबू ने निकाला कि जब एक बजे बुला रहे हैं तो खाना भी खिलाएँगे। चूंकि उन्होने खाना खिलाने की बात नहीं कही थी अतः मै चाहता था कि घर से खाना खाकर चलें। किन्तु कमलेश बाबू ने मेरी बात नहीं चलने दी जिसका नतीजा यह हुआ कि उनकी छोटी लड़कियों समेत यशवन्त और हम तीन बड़े लोग भी दिन भर बेवजह भूखे रह गए। वहाँ लाज मे मिठाई,बिस्कुट,दालमोंठ और फल का ही नाश्ता था। हम लोग जो फल और मिठाई ले गए थे वे शोभा की मार्फत पूनम को भेंट किए गए। पूनम की माता जी ने मुझे रु 250/- और कमलेश बाबू को भी रु 250/- भेंट किए। शोभा उनकी दोनों लड़कियों और यशवन्त को भी रुपए दिये। लाज मे खाने का बंदोबस्त उनकी ओर से नहीं था ,खुद वे लोग ढाबे से लाकर लाज मे खाते थे।
मैंने रात के खाने पर उन्हें घर पर आमंत्रित किया जिसे थोड़ा नखरे दिखा कर उन्होने स्वीकार कर लिया। मेरा दृष्टिकोण था कि बावजूद इसके कि एंगेजमेंट की रस्म हो गई है ,पूनम घर पर आकर मकान आदि की दशा अपनी आँखों से देख लें और यदि कोई हिचक हो तो अभी ही इंकार कर दें बजाए इसके कि बाद मे परेशानी अनुभव हो। सुबह जब सहाय साहब घर आए थे तो उन्होने शालिनी के घर से ताल्लुकात की बाबत पूछा था और मैंने साफ-साफ कह दिया था कि हमारे उन लोगों से कोई ताल्लुक नहीं हैं। शाम को घर पर पूनम की माता जी ने भी वही बात दोहराई थी तो उनको भी यही बता दिया था कि उन लोगों से हमारा कोई संबंध नहीं है।
उस समय पता नहीं चला किन्तु बाद मे ज्ञात हुआ कि कमलेश बाबू ने पूनम से उनके छोटे भाई जो बालाघाट मे इंजीनियर हैं की उपस्थिती मे कहा था कि वे लोग तो चले जाएँगे वह कुल तीन लोग रहेंगे ,खूब सोच लें,समझ लें। यह तो पहले ही स्पष्ट था कि अतिथि तो चले ही जाते है ;मेरे और यशवन्त के अतिरिक्त पूनम को ही रहना था। किन्तु उनके निहितार्थ को समझते हुये पूनम के छोटे भाई ने अपने बड़े भाई के पटना लौट जाने के बाद अपने पिता पर एंगेजमेंट तोड़ देने का ज़बरदस्त दबाव बनाया था। और इसी चक्कर मे वे लोग खाने पर बहुत देर से पहुंचे थे। दरअसल एंगेजमेंट के बाद पूनम के बड़े भाई मेरे साथ हींग-की मंडी मेरी मोपेड़ से अपने लिए जूते की जोड़ी खरीदने गए थे,मैंने कमलेश बाबू को रु 100/-अतिरिक्त ज़रूरी चीजें खरीदने हेतु दे दिये थे (सारा सामान घर मे था ही )। जूते लेकर लौटने पर न्यू आगरा चौराहे से वह लाज की ओर पैदल चले गए और मै घर लौट आया था।
खाना कमलेश बाबू के सुपरवीजन मे शोभा और उनकी बेटियों ने सहयोग देकर बनाया था। मटर पनीर की सब्जी जो मुझे पसंद नहीं है कमलेश बाबू ने चखने को दी जिसमे भयंकर नमक झुंखा हुआ था। तेज नमक वैसे भी मुझे नहीं अच्छा लगता है मैंने वह सब्जी खाने मे न परोसने का सुझाव दिया। कमलेश बाबू ने खुद चखा और बोले लगता है चारों जनों ने अलग-अलग नमक डाल दिया है। वह बाज़ार मे हलवाई से दही लेकर आए और सब्जी मे डाल कर पका दिया BHEL,झांसी के असिस्टेंट फोरमेन साहब का यह फार्मूला कारगर हो गया। खाना पसंद किया गया और कमलेश बाबू ने काफी तारीफ़ें बटोरीं। उनका जादू पूनम के पिताजी के सिर चढ़ कर बोल रहा था और उसी रौ मे उन्होने मुझसे कहा कि मै छोटे बहनोई को अपना गार्जियन मानूँ।
चूंकि मै शादी आर्यसमाज की साधारण वेदिक विधि से करने बाबत बता चुका था और पटना आर्यसमाज ने एक शपथ -पत्र मांगा था अतः पूनम के पिताजी ने मुझसे कहा कि 28 तारीख की शाम को मै उन्हें लाज मे बनवाकर दे जाऊ क्योंकि वे लोग 28 की रात की गाड़ी टूंडला से पकड़ेंगे। 28 को दिन मे दीवानी कचहरी से शपथ-पत्र बनवा लिया वहाँ से लाज पास मे थी लेकिन उन्होने शाम को बुलाया था अतः मै शाम को ही लेकर गया और उन्हें सौंप दिया। पूनम के बालाघाटी इंजीनियर भाई ने प्रोग्राम मे तबदीली करने को अपने पिता श्री को राजी कर लिया था। हम आगरा से 04 नवंबर की दोपहर 'तूफान एक्स्प्रेस' से चल कर 05 की सुबह 06 बजे पहुंचना चाहते थे क्योंकि मुहूर्त दिन मे दो बजे का था। इंजीनियर बेटे के बहकावे मे पूनम के पिताजी ने मुझे टूंडला से रात 11 बजे 'मगध एक्स्प्रेस' से चलने को कहा जो वहाँ 05 को दिन के 11 बजे पहुंचाती ।
मुझसे गलती यह हुई कि जब सारा प्रोग्राम कमलेश बाबू की उपस्थिती मे तय हुआ और वह उन्हें गार्जियन बता रहे थे तो उनकी गैरहाजिरी मे प्रोग्राम बदलना स्वीकार क्यों किया?घर आने पर शोभा और कमलेश बाबू बिफर पड़े और ताना देने लगे अब गरज निकल गई तो वे लोग सगे हो गए हम शादी के वक्त अब एक सप्ताह नहीं सिर्फ चार दिन को आएंगे।
क्रमशः....
लेकिन सहाय साहब को उनके एक और भाई जो वहाँ हेल्थ विभाग मे अधिकारी थे ने उनसे कह दिया कि,माथुर तो भंगी होते हैं जबकि उन्हीं की पत्नी ने अपने जेठ साहब को समझाया कि वह गोरखपुर की होने के नाते जानती हैं कि यू पी मे माथुर कायस्थों का दर्जा तो उनके श्रीवास्तव लोगों से ऊपर होता है अतः वहम न करें।अपने भाइयों के विरोध के बीच सहाय साहब ने कनागत के बाद की पड़वा 25 सितंबर को पटना से प्रस्थान किया और 26 को आगरा पहुँच कर 'दयाल लाज' मे विश्राम किया। शाम को कमला नगर मे डॉ अस्थाना से मिलने आए किन्तु पास ही हमारा घर होते हुये भी आने की ज़रूरत नहीं समझी।
जब अपनी माता जी के कारण उन्होने पत्राचार स्थगित रखा था तब डॉ अस्थाना कई -कई बार मेरे घर आए और उन्होने कायस्थ होने के आधार पर परस्पर मेल करने की इच्छा व्यक्त की,अतः हम भी उनके घर गए। चूंकि सहाय साहब की ढील की कोई सूचना उस वक्त मेरे पास भी न थी तो डॉ अस्थाना ने उन पर आरोप लगाया कि,"सहाय साहब डबल माईंडेड हैं"और अपनी ओर से तीन अलग-अलग अधिक उम्र की माथुर लड़कियों का रेफरेंस दिया। इनमे अपने प्रिंसिपल की बेटी से वह मुझे रिश्ता करने हेतु ज़ोर डालते रहे। उनसे भी मैंने यही कहा कि मै खुद तो पुनर्विवाह का इच्छुक नहीं था किन्तु बाबूजी ने सहाय साहब से बात चलाई थी अतः जारी रखे हूँ और उनके प्रस्तावों पर विचार करने मे असमर्थ हूँ।
सहाय साहब और उनके ज्येष्ठ पुत्र का डॉ अस्थाना ने स्वागत नहीं किया और चाय भी काफी देर मे पिलाई। बल्कि उलाहना और दे दिया कि उनसे एंक्वायरी कराने के बावजूद उनको गतिविधियों की कोई सूचना तक न दी। सहाय साहब ने उन्हें यह भी न बताया कि अगले दिन वह अपनी बेटी की एंगेजमेंट करने जा रहे हैं। मैंने बहन शोभा और उनके परिवार को झांसी से बुलवा लिया था वे लोग 26 तारीख को आ चुके थे। (तब उस वक्त तक उन लोगों के हमारे विरुद्ध साजिश मे शामिल होने की हमे भनक तक न थी ,अतः उनकी किसी गतिविधि पर किसी प्रकार का शक नहीं किया था)।
27 तारीख को लगभग 10 बजे सहाय साहब और उनके ज्येष्ठ पुत्र घर पर आए और एक बजे दयाल लाज मे आने का निमंत्रण दे गए और वहीं रस्म करने की बात कही। उन्होने हाथ को मुंह की ओर ले जाकर कहा था कि जब आएंगे तो कुछ होगा । इसका मतलब कमलेश बाबू ने निकाला कि जब एक बजे बुला रहे हैं तो खाना भी खिलाएँगे। चूंकि उन्होने खाना खिलाने की बात नहीं कही थी अतः मै चाहता था कि घर से खाना खाकर चलें। किन्तु कमलेश बाबू ने मेरी बात नहीं चलने दी जिसका नतीजा यह हुआ कि उनकी छोटी लड़कियों समेत यशवन्त और हम तीन बड़े लोग भी दिन भर बेवजह भूखे रह गए। वहाँ लाज मे मिठाई,बिस्कुट,दालमोंठ और फल का ही नाश्ता था। हम लोग जो फल और मिठाई ले गए थे वे शोभा की मार्फत पूनम को भेंट किए गए। पूनम की माता जी ने मुझे रु 250/- और कमलेश बाबू को भी रु 250/- भेंट किए। शोभा उनकी दोनों लड़कियों और यशवन्त को भी रुपए दिये। लाज मे खाने का बंदोबस्त उनकी ओर से नहीं था ,खुद वे लोग ढाबे से लाकर लाज मे खाते थे।
मैंने रात के खाने पर उन्हें घर पर आमंत्रित किया जिसे थोड़ा नखरे दिखा कर उन्होने स्वीकार कर लिया। मेरा दृष्टिकोण था कि बावजूद इसके कि एंगेजमेंट की रस्म हो गई है ,पूनम घर पर आकर मकान आदि की दशा अपनी आँखों से देख लें और यदि कोई हिचक हो तो अभी ही इंकार कर दें बजाए इसके कि बाद मे परेशानी अनुभव हो। सुबह जब सहाय साहब घर आए थे तो उन्होने शालिनी के घर से ताल्लुकात की बाबत पूछा था और मैंने साफ-साफ कह दिया था कि हमारे उन लोगों से कोई ताल्लुक नहीं हैं। शाम को घर पर पूनम की माता जी ने भी वही बात दोहराई थी तो उनको भी यही बता दिया था कि उन लोगों से हमारा कोई संबंध नहीं है।
उस समय पता नहीं चला किन्तु बाद मे ज्ञात हुआ कि कमलेश बाबू ने पूनम से उनके छोटे भाई जो बालाघाट मे इंजीनियर हैं की उपस्थिती मे कहा था कि वे लोग तो चले जाएँगे वह कुल तीन लोग रहेंगे ,खूब सोच लें,समझ लें। यह तो पहले ही स्पष्ट था कि अतिथि तो चले ही जाते है ;मेरे और यशवन्त के अतिरिक्त पूनम को ही रहना था। किन्तु उनके निहितार्थ को समझते हुये पूनम के छोटे भाई ने अपने बड़े भाई के पटना लौट जाने के बाद अपने पिता पर एंगेजमेंट तोड़ देने का ज़बरदस्त दबाव बनाया था। और इसी चक्कर मे वे लोग खाने पर बहुत देर से पहुंचे थे। दरअसल एंगेजमेंट के बाद पूनम के बड़े भाई मेरे साथ हींग-की मंडी मेरी मोपेड़ से अपने लिए जूते की जोड़ी खरीदने गए थे,मैंने कमलेश बाबू को रु 100/-अतिरिक्त ज़रूरी चीजें खरीदने हेतु दे दिये थे (सारा सामान घर मे था ही )। जूते लेकर लौटने पर न्यू आगरा चौराहे से वह लाज की ओर पैदल चले गए और मै घर लौट आया था।
खाना कमलेश बाबू के सुपरवीजन मे शोभा और उनकी बेटियों ने सहयोग देकर बनाया था। मटर पनीर की सब्जी जो मुझे पसंद नहीं है कमलेश बाबू ने चखने को दी जिसमे भयंकर नमक झुंखा हुआ था। तेज नमक वैसे भी मुझे नहीं अच्छा लगता है मैंने वह सब्जी खाने मे न परोसने का सुझाव दिया। कमलेश बाबू ने खुद चखा और बोले लगता है चारों जनों ने अलग-अलग नमक डाल दिया है। वह बाज़ार मे हलवाई से दही लेकर आए और सब्जी मे डाल कर पका दिया BHEL,झांसी के असिस्टेंट फोरमेन साहब का यह फार्मूला कारगर हो गया। खाना पसंद किया गया और कमलेश बाबू ने काफी तारीफ़ें बटोरीं। उनका जादू पूनम के पिताजी के सिर चढ़ कर बोल रहा था और उसी रौ मे उन्होने मुझसे कहा कि मै छोटे बहनोई को अपना गार्जियन मानूँ।
चूंकि मै शादी आर्यसमाज की साधारण वेदिक विधि से करने बाबत बता चुका था और पटना आर्यसमाज ने एक शपथ -पत्र मांगा था अतः पूनम के पिताजी ने मुझसे कहा कि 28 तारीख की शाम को मै उन्हें लाज मे बनवाकर दे जाऊ क्योंकि वे लोग 28 की रात की गाड़ी टूंडला से पकड़ेंगे। 28 को दिन मे दीवानी कचहरी से शपथ-पत्र बनवा लिया वहाँ से लाज पास मे थी लेकिन उन्होने शाम को बुलाया था अतः मै शाम को ही लेकर गया और उन्हें सौंप दिया। पूनम के बालाघाटी इंजीनियर भाई ने प्रोग्राम मे तबदीली करने को अपने पिता श्री को राजी कर लिया था। हम आगरा से 04 नवंबर की दोपहर 'तूफान एक्स्प्रेस' से चल कर 05 की सुबह 06 बजे पहुंचना चाहते थे क्योंकि मुहूर्त दिन मे दो बजे का था। इंजीनियर बेटे के बहकावे मे पूनम के पिताजी ने मुझे टूंडला से रात 11 बजे 'मगध एक्स्प्रेस' से चलने को कहा जो वहाँ 05 को दिन के 11 बजे पहुंचाती ।
मुझसे गलती यह हुई कि जब सारा प्रोग्राम कमलेश बाबू की उपस्थिती मे तय हुआ और वह उन्हें गार्जियन बता रहे थे तो उनकी गैरहाजिरी मे प्रोग्राम बदलना स्वीकार क्यों किया?घर आने पर शोभा और कमलेश बाबू बिफर पड़े और ताना देने लगे अब गरज निकल गई तो वे लोग सगे हो गए हम शादी के वक्त अब एक सप्ताह नहीं सिर्फ चार दिन को आएंगे।
क्रमशः....
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