रविवार, 9 सितंबर 2012

उदारता कितनी ?

1965 -67 मे नवी-दसवी कक्षा मे एक विद्वान के विचार जो पढे थे आज भी कंठस्थ हैं कि,"सभी को उदार होना चाहिए,किन्तु उसके साथ-साथ 'पात्र'की अनुकूलता भी होनी चाहिते। "

तब से ही उस पर व्यावहारिक अमल भी करता रहा हूँ। आचार्य हजारी प्रसाद द्विदी जी के लेख मे इस उद्धरण  "अर्जुनस्य द्वै प्रतिज्ञे-न दैन्यम न पलायनम " के साथ 'न अधैर्यम' अपने लिए जोड़ लिया ।  मैंने इसे जब भी कहा 'अधैर्यम' अपनी तरफ से लगा कर कहा। नाक बंद करके कुछ समय तक पानी मे डूबे रहा जा सकता है परंतु मैं पानी को आँखेँ नहीं डुबाने दे सकता। बस इतना तक ही 'धैर्य' मैं रख सकता हूँ।

'Quick and fast decision,but slow and steady action' मेरा अपने लिए बनाया गया सूत्र है मैंने सदैव इसका पालन किया है और सफल रहा हूँ। जब-जब शत्रु ने ललकारा है मैंने भारी नुकसान सह कर भी 'चुप्पी' रखी है। उपरोक्त सूत्रों पर अमल करते हुये ही मैं शत्रु का जवाब देता या उसका मुक़ाबला करता हूँ। चाहे कोई कितना ही 'मूर्ख' कहे या समझे।

'Decided at once,decided for ever and ever' यह मेरा अपने लिए बनाया गया 'स्थाई सूत्र' है। इसका परित्याग मैं नहीं कर सकता भले ही प्राणों का त्याग करना पड़े तो सदैव उसके लिए तत्पर हूँ। 

विश्व साक्षर्ता दिवस पर 08 सितंबर को  कामरेड चतुर्वेदी जी ने जो  यह कहा वही मेरा प्रिय सिद्धान्त है-

Jagadishwar Chaturvedi
जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो - उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो।(स्वामी विवेकानन्द)

 
 लता मंगेशकर जी का यह गीत आगे की बातों को समझने मे सहायक रहेगा । 
विषधर का सवाल -03-09-2012-
 मै देखता हूं कि यहां बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो वैसे तो क्रांति वांति की बात करते हैं, पर शिष्ट भाषा में दी गई टिप्पणी को भी इसलिए प्रकाशित नहीं करते क्योंकि उन्हें डर होता है कि वो कहीं इस परिवार में कमजोर ना पड़ जाएं। खैर उनकी बात वो जानें.."

जिसका जवाब यह है-

आप हवाई जहाज मे चलने वाले धनाढ्य व्यक्ति हैं सो शक्तिशाली तो हुये ही मैं तो साईकिल पर चलने वाला गरीब मजदूर हूँ 'क्रांति' की बात करता हूँ 'वानती' आप करते हैं। और गरीब तो हमेशा ही कमजोर होता है उसमे मुझे कब संदेह था?
 फेसबुक पर इस पर यह टिप्पणी मिली-
Shyam Kali Comrade garib jis din apni takat pahchan jayega to usase jyada dhani koi nahi hoga.
 03-09-2012 को विषधर का सवाल-
आप बडे हैं और वरिष्ठ हैं। अक्सर आप मेरे ब्लाग को पढ़ते भी है। शायद इससे आपको पता चल जाना चाहिए कि मैं सीधी और सपाट बातें करता हूं और अपेक्षा भी यही करता हूं कि आप भी करेंगे। आप कह रहे हैं कि टिप्पणी डिलीट करने का मौका नहीं मिलेगा और मैं समझ गया कि क्यो ? आपके मन मे क्या है ये मैं कैसे समझ सकता हूं। पता नहीं आप मुझे कितना जानते हैं, लेकिन लखनऊ में भी मुझे बहुत सारे लोग बहुत अच्छी तरह जानते हैं। ये तीन पांच ना मैं करता हूं ना ऐसी बातें.... मैने पलायनवादी वैसे तो आपको नहीं कहा था, लेकिन इतनी ही ईमानदारी थी तो कमेंट क्यों नहीं प्रकाशित किया आपने ..आपने तो यहां सिर्फ मेरे अनुरोध को प्रकाशित किया और उसका जो जवाब आपने दिया है, वो उसी तरह का है जैसा पोस्ट है। मैं जानता हूं कि आप इसे प्रकाशित नहीं करेंगे, लेकिन आप तक मेरी बात पहुंच गई। यही बहुत है.. बाकी तो अपनी बात कहने के लिए सभी के पास एक ब्लाग तो है ना...

विषधर को जवाब-
अच्छा हुआ आपने बता दिया कि यहाँ भी आपके जानने वाले हैं नहीं तो कल की धमकी वाले फोन पर भी 'ठग' जी पर ही शक जाता तो यह आपकी कारगुजारी थी। ठीक है आप कराइए मेरे परिवार की हत्या खाली धम्की क्यों देते हैं।
शायद उदारता हेतु 'पात्रता' का चयन करने मे कहीं न कहीं चूक हो गई होगी तभी तो 'ठग' और उसके 'जासूस' ने मुझसे चार-चार कुंडलियों के विश्लेषण हासिल करने के बाद मेरे प्रोफेशन और योग्यता का बेरहम मखौल उड़ाया तथा पर्ले दर्जे की 'एहसान फरामोशी' पेश की। 05 सितंबर को 'ठग' ने जो दावा किया उस पर फेसबुक मे 07 को मैंने यह कहा-
आखिर मे ठग ने कुबूल ही लिया कि,उसकी पोटली मे विषधर थे। लेकिन अब बाहर निकाल दिया का दावा दिग्भ्रमित करने वाला है क्योंकि 05 सितंबर को उस पोटली मे चेनल वाले और गैर चेनल वाले सभी विषधर नतमस्तक थे।
एवं-
 गांवों की आबो-हवा से वाकिफ लोग जानते हैं कि 'गौ' भी अपनी संतान की रक्षा के लिए 'शेर' तक से भिड़ जाती है और वह संतान रक्षा के उपक्रम मे शेर को मार भी देती है। यदि कोई ईमानदार अपनी संतान रक्षा हेतु 'ढाल'बन कर वार अपने ऊपर झेल लेता है तो हाय-तौबा क्यों?'ठग' ने तो अपने बचाव मे अपनी संतान को ढाल बना लिया है।

मुझे नहीं लगता कि 'ठग पार्टी' समझदारी का परिचय देगी इसी लिए 06 तारीख को ही मैंने fb पर लिख दिया था कि,-
 'रोटी खाई घी -शक्कर से ,दुनिया लूटी मक्कर से। 'का अनुगामी ठग जब चौराहे पर खड़ा होकर शोर मचाये -'हाय लुट गया,पिट गया' और लोग उसके आगे-पीछे उसके रुदन मे रुदन मिलाने लगें तब यही समझना पड़ेगा कि इन सब की बुद्धि मस्तिष्क मे नहीं पैर के तलवे मे निवास करती है।

लेकिन इससे पूर्व यह भी घोषणा कर चुका था - ( 04 तारीख को fb मे लिखना पड़ा)-
 बेंगलोर के एक इंजीनियर साहब की मांग पर 'जनहित मे' नामक ब्लाग प्रारम्भ किया गया था और उसमे जन-कल्याण हेतु प्राचीन स्तुतियाँ दी जा रही थी। एक बार अन्ना/रामदेव आंदोलन के पीछे ब्लागर्स/फेसबुकियों के भागने के कारण उसे स्थगित किया था जिसे पुनः ब्लागर्स की मांग पर ही चालू कर दिया था। किन्तु विदेश प्रवासी एहसान फरामोश फेसबुकिए और पूना प्रवासी और उसके जासूस ब्लागर्स द्वारा कुत्सित एवं वीभत्स कृत्यों तथा दुष्प्रचार किए जाने के कारण इन्टरनेट पर उस ब्लाग को प्रतिबंधित कर दिया है। अभी तो प्रवासी फेसबुकिए की निंदा करने के उपरांत तीन ब्लागर्स को जन्म्पत्रियों के विश्लेषण भेज दिये थे। लेकिन अब एहसान फरामोश निकृष्ट ब्लागर्स की धृष्ट हरकतों के कारण किसी भी ब्लागर/फेसबुकिए को कोई ज्योतिषीय परामर्श नहीं दिया जाएगा ।

इस पर टिप्पणी देखें-

 Arvind Vidrohi Muft me kuch mat dijiye ,, jankari lekar swarthi log mazak udaate hai

जासूस ने मुझसे 'ठग' की बुराई और ठग से मेरी बुराई बड़ी बहदुरी से की और इसी लपेटे मे खुद अपने पति पर भी इल्ज़ाम जड़ दिया। जबकि मैं उनसे मिला हूँ और उनको फेयर पाया ।
3 · ·


'ठग' और उसके 'जासूस' ने एहसान फरामोशी के उपरांत यह स्टैंड लिया कि उन लोगों की बातों को सार्वजनिक न किया जाये और इसी बात की धमकी IBN7 मे कार्यरत 'विषधर' ने दी थी। 'अरविंद' जी ने शुद्ध सौ प्रतिशत सही बात कही है उससे इंकार करना घोर बेईमानी होगा।

मेरे लेख ' पिताजी की पुण्य तिथि पर एक स्मरण ' पर गत वर्ष यह टिप्पणी विराजमान है-
बहुत सुंदर.. क्या बात है

और अब यही साहब पूछते हैं-
"पता नहीं आप मुझे कितना जानते हैं, लेकिन लखनऊ में भी मुझे बहुत सारे लोग बहुत अच्छी तरह जानते हैं।"
पुण्य तिथि पर दी गई टिप्पणी मे दिये गए विचार इनके सम्पूर्ण चरित्र,स्वभाव,कार्यशैली,मनोदशा,पारिवारिक संस्कार,सामाजिक सोहबत,दूसरों को बेवकूफ समझने की पृवृति आदि का खुलासा करने के लिए पर्याप्त हैं। टिप्पणियाँ डिलीट करने मे माहिर यह साहब अब यदि डिलीट भी करते हैं तो वह यहाँ भी सुरक्षित कर ली है। 

 
"समझो , मानो -
वह दुश्मन होकर भी दुश्मन नहीं
क्योंकि तुम्हारी पोटली को फाड़ने के उपक्रम में
उसने तुम्हारी पोटली से
कई विषैलों को बेनकाब कर
बाहर कर दिया"

पता नहीं ब्लाग का निजीकरण करने की परिपाटी डालने वाले चेनल अधिकारी या जासूस अभी बेनकाब होकर बाहर हुए या नहीं। परंतु यदि यह 'दुश्मन' का खिताब मुझे दिया गया है तो इसी एहसान को मानते हुये कम से कम अब तो मेरे व मेरे पुत्र के विरुद्ध अभियान नहीं चलना चाहिए था परंतु जब 'एहसान फरामोशी'आदत है तब?

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3 टिप्‍पणियां:

  1. गुरूजी प्रणाम - पढ़ने के बाद अजब सा लगा | पर अपनी बुद्धिमता , कुशलता और दूरदर्शिता से परख करनी पड़ेगी |

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  2. यहाँ से बहुत कुछ चुरा(नेग में) कर ले जा रही हूँ ... भाई :)

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    उत्तर
    1. विभा जी चुराने की कोई बात ही नहीं है,ब्लाग पर प्रकाशित होते ही सार्वजनिक है बहुत शौक से लीजिये। वैसे भी हमारे यहाँ छिपाव-दुराव का कोई लेखन नहीं है जो आपके या और भी किसी के लेने से कोई घबराहट हो। हम आपके प्रयास की सराहना व स्वागत करते हैं।

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