आज 09 अक्तूबर को लखनऊ पुनर्वापिसी के तीन वर्ष पूर्ण हो गए हैं। आज ही के दिन 2009 मे हम जून 1975 से आगरा मे बसने के 34 वर्ष और 1961 मे लखनऊ छोडने के 48 वर्ष बाद पुनः यहाँ आबाद होने आ गए थे। लखनऊ छोडना तो बाबूजी के सरकारी नौकरी मे तबादले के कारण हुआ था किन्तु वापिस अपने जन्मस्थान आने का निर्णय यशवन्त की इच्छा और आग्रह के कारण हुआ था। जन्मस्थान होने के कारण लखनऊ फिर आना मेरे लिए दिक्कत की बात न थी किन्तु यशवन्त द्वारा अपने जन्मस्थान आगरा को छोडने की पहल भी अनायास न थी। उसके जन्म के बाद से एक के बाद एक घटना क्रम इस प्रकार चला कि वह इच्छानुसार अपनी शिक्षा प्राप्त न कर सका एवं आगरा वासियों से उसे अनुकूलता भी न मिल सकी। जाब के सिलसिले मे लखनऊ ट्रेनिंग मे 2006 मे आने के बाद से वह मुझसे लखनऊ शिफ्ट होने को कहता रहा और इसी उप क्रम मे वह पहले मेरठ (जहां मैं 1968 से 1975 तक रहा पढ़ा और प्रथम जाब प्रारम्भ किया )फिर कानपुर ट्रांसफर करा कर आ गया। अतः हमे आगरा का मकान बेच कर लखनऊ मे लेना और बसना पड़ा।
मेरे आगरा छोडने का प्रबल विरोध हमारे छोटे बहन -बहनोई की ओर से हुआ । पूनम और उनके बड़े भाई भी मेरे आगरा से हटने के पक्ष मे नहीं थे। बहन का कहना था कि आगरा से हटना है तो भोपाल मे उनके साथ शिफ्ट हो जाऊ अथवा पटना मे शिफ्ट करूँ। आगरा जाना राजनीतिक कारणों से था और वहाँ से राजनीतिक गतिविधियों मे सम्मिलित भी खूब हुआ था किन्तु ईमानदारी के आड़े आ जाने के कारण आर्थिक स्थिति कमजोर भी खूब हुई थी। इसलिए यशवन्त का प्रस्ताव मान लेना ही उचित प्रतीत हुआ। हालांकि उसे कानपुर से लखनऊ ट्रांसफर न हो पाने के कारण जाब छोडना पड़ा और अपना निजी साईबर चलाना पड़ा जिससे आर्थिक लाभ तो न हुआ किन्तु 'ब्लाग-लेखन' से परिचय का विस्तार हुआ। उसके साथ-साथ मैंने भी कंप्यूटर का काम चलाऊ ज्ञान प्राप्त कर 'ब्लाग-लेखन' प्रारम्भ किया। इस वक्त 4-5 ब्लाग्स सार्वजनिक हैं। फेसबुक के माध्यम से भी परिचय और पहचान का दायरा बढ़ा है। कुछ ब्लागर्स से व्यक्तिगत परिचय भी हुआ है। राजनीतिक कार्यक्रमों मे भी ब्लाग्स और फेसबुक से सहायता मिली है।
किन्तु हमारे लखनऊ आने के बाद हमारी बहन ने भी संबंध तोड़ लिए और हमारे सभी विरोधियों का नेतृत्व ले लिया। जिन लोगों से यशवन्त आगरा मे त्रस्त रहा उनके रिशतेदारों मे बहन ने अपनी दोनों बेटियों की शादी की तथा उन लोगों से घनिष्ठ संबंध स्थापित कर लिए। छोटी भांजी( जिसके पति साफ्टवेयर इंजीनियर हैं )ने पूना मे बैठ कर ब्लागर्स को भी हमारे विरुद्ध करने की मुहिम चलाई। पटना का मूल निवासी एक ब्लागर जो उसके पूर्व निवास वाली कालोनी मे वहाँ रहता है उन लोगों के बहकावे मे आ कर हम लोगों के विरुद्ध ब्लाग जगत मे दुष्प्रचार मे संलग्न हो गया एवं पटना प्रवासी एक और ब्लागर को अपना जासूस बना कर अपनी मुहिम मे शामिल कर लिया बावजूद इसके कि इन दोनों ब्लागर्स ने 4-4 कुंडलियों का विश्लेषण मुझसे निशुल्क प्राप्त किया था अब दोनों मिल कर मेरे ज्योतिषीय ज्ञान पर ही प्रहार करने लगे जिसमे IBN7 से संबन्धित एक और ब्लागर ज़ोर-शोर से जुड़ गया। चेनल्स का कार्य ही ढोंग-पाखंड -अंधविश्वास को बढ़ावा देना होता है जबकि मैं इन दुर्गुणों का विरोधी हूँ।
यदि आर्थिक क्षेत्र को नज़रअंदाज़ रखें तो लखनऊ आना हमारे लिए नुकसान का सौदा नहीं है। यहाँ आने पर मकान छोटा मिला उसमे भी आर्थिक हानि हुई और आय का कोई स्थाई साधन न हो पाने से भी आर्थिक दिक्कत रही। परंतु स्वाभिमान रक्षा के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है। कुल मिला कर लखनऊ मे पुनर्वापिसी से मैं और यशवन्त तो संतुष्ट ही हैं लेकिन यही बात हमारे विरोधियों को कचोटती है और वे सम्मिलित रूप से हमारे परिवार को त्रस्त करने के अभियान मे जुटे रहते हैं। यही लेखा-जोखा है हमारे पुनः लखनऊ आने के नफा-नुकसान का।
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मेरे आगरा छोडने का प्रबल विरोध हमारे छोटे बहन -बहनोई की ओर से हुआ । पूनम और उनके बड़े भाई भी मेरे आगरा से हटने के पक्ष मे नहीं थे। बहन का कहना था कि आगरा से हटना है तो भोपाल मे उनके साथ शिफ्ट हो जाऊ अथवा पटना मे शिफ्ट करूँ। आगरा जाना राजनीतिक कारणों से था और वहाँ से राजनीतिक गतिविधियों मे सम्मिलित भी खूब हुआ था किन्तु ईमानदारी के आड़े आ जाने के कारण आर्थिक स्थिति कमजोर भी खूब हुई थी। इसलिए यशवन्त का प्रस्ताव मान लेना ही उचित प्रतीत हुआ। हालांकि उसे कानपुर से लखनऊ ट्रांसफर न हो पाने के कारण जाब छोडना पड़ा और अपना निजी साईबर चलाना पड़ा जिससे आर्थिक लाभ तो न हुआ किन्तु 'ब्लाग-लेखन' से परिचय का विस्तार हुआ। उसके साथ-साथ मैंने भी कंप्यूटर का काम चलाऊ ज्ञान प्राप्त कर 'ब्लाग-लेखन' प्रारम्भ किया। इस वक्त 4-5 ब्लाग्स सार्वजनिक हैं। फेसबुक के माध्यम से भी परिचय और पहचान का दायरा बढ़ा है। कुछ ब्लागर्स से व्यक्तिगत परिचय भी हुआ है। राजनीतिक कार्यक्रमों मे भी ब्लाग्स और फेसबुक से सहायता मिली है।
किन्तु हमारे लखनऊ आने के बाद हमारी बहन ने भी संबंध तोड़ लिए और हमारे सभी विरोधियों का नेतृत्व ले लिया। जिन लोगों से यशवन्त आगरा मे त्रस्त रहा उनके रिशतेदारों मे बहन ने अपनी दोनों बेटियों की शादी की तथा उन लोगों से घनिष्ठ संबंध स्थापित कर लिए। छोटी भांजी( जिसके पति साफ्टवेयर इंजीनियर हैं )ने पूना मे बैठ कर ब्लागर्स को भी हमारे विरुद्ध करने की मुहिम चलाई। पटना का मूल निवासी एक ब्लागर जो उसके पूर्व निवास वाली कालोनी मे वहाँ रहता है उन लोगों के बहकावे मे आ कर हम लोगों के विरुद्ध ब्लाग जगत मे दुष्प्रचार मे संलग्न हो गया एवं पटना प्रवासी एक और ब्लागर को अपना जासूस बना कर अपनी मुहिम मे शामिल कर लिया बावजूद इसके कि इन दोनों ब्लागर्स ने 4-4 कुंडलियों का विश्लेषण मुझसे निशुल्क प्राप्त किया था अब दोनों मिल कर मेरे ज्योतिषीय ज्ञान पर ही प्रहार करने लगे जिसमे IBN7 से संबन्धित एक और ब्लागर ज़ोर-शोर से जुड़ गया। चेनल्स का कार्य ही ढोंग-पाखंड -अंधविश्वास को बढ़ावा देना होता है जबकि मैं इन दुर्गुणों का विरोधी हूँ।
यदि आर्थिक क्षेत्र को नज़रअंदाज़ रखें तो लखनऊ आना हमारे लिए नुकसान का सौदा नहीं है। यहाँ आने पर मकान छोटा मिला उसमे भी आर्थिक हानि हुई और आय का कोई स्थाई साधन न हो पाने से भी आर्थिक दिक्कत रही। परंतु स्वाभिमान रक्षा के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है। कुल मिला कर लखनऊ मे पुनर्वापिसी से मैं और यशवन्त तो संतुष्ट ही हैं लेकिन यही बात हमारे विरोधियों को कचोटती है और वे सम्मिलित रूप से हमारे परिवार को त्रस्त करने के अभियान मे जुटे रहते हैं। यही लेखा-जोखा है हमारे पुनः लखनऊ आने के नफा-नुकसान का।
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