गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

पैसे वालों को जूते की ठोकर और पटना का गोलघर

 29 सितंबर 2012 का फेसबुक स्टेटस-

 "चार सितंबर 1995 को एक डॉ साहब (जो पहले डीजल इंजिनों का धंधा करते थे और अपने श्वसुर साहब के रेजिस्ट्रेशन पर उस समय प्रेक्टिस कर रहे थे )मेरे तत्कालीन निवास-कमलानगर,आगरा पर पधारे एवं मुझ पर किसी खास व्यक्ति से जिससे मैंने संपर्क तोड़ दिये थे पुनः संपर्क कायम करने का दबाव बनाने लगे जिसे मैंने ठुकरा दिया था। चलते -चलते वह डॉ साहब मुझे धमकी देते गए कि,"माथुर साहब पैसे मे बहुत ताकत होती है हम आपको झुका ल
ेंगे। " अपने एक PCS मित्र के कथन को मैंने उनसे दोहरा दिया-"पैसे वालों को हम जूते की ठोकर पर रखते हैं। "मैंने उनसे यह भी जोड़ कर कहा कि,मिस्टर .... आप पैसे के ज़ोर से मेरी गर्दन तो कटवा सकते हैं लेकिन झुकवा नहीं सकते। अहंकारी वह डॉ साहब किसी फंदे मे फंसे और गैर कानूनी मेडिकल प्रेक्टिस उनको छोडनी पड़ी फिर तो वह अपनी गर्दन झुका कर चलने लगे।
17 वर्षों बाद भी आज देखता हूँ कि कुछ लोग पैसे के अहंकार मे डूब कर तरह-तरह की धमकियाँ देते रहते हैं चाहे वे IBN7 के कर्मचारी हों अथवा दूसरे कोई तथाकथित ख्याति प्राप्त हस्ती।"

फेसबुक पर यह स्टेटस इस लिए दिया था क्योंकि मूल रूप से पटना निवासी और पूना -प्रवास कर रहे ब्लागर ने चार जन्म कुंडलियों का विश्लेषण निशुल्क  करवाने के बाद अपनी धनाढ्यता के दम पर मेरे विरुद्ध अनर्गल अभियान फेसबुक व ब्लाग्स मे चला रखा है। उसी के शिष्य ब्लागर ने जो अभी पटना मे बेली रोड पर प्रवास कर रहा है भी चार कुंडलयों का विश्लेषण करवाने के बाद अपने गुरु-'द्रोणाचार्य' पूना-प्रवासी की तर्ज पर ही मेरे विरुद्ध घृणित अभियान चला रखा है। 

26 सितंबर 2012 का पटना भ्रमण -

गोलघर,पटना मे बरगद की छांव के नीचे विश्राम (26-09-2012 )


गोलघर,पटना

ए एन सिन्हा लिखा है अङ्ग्रेज़ी मे और हिन्दी मे लिखा है अनुग्रह नारायण सिंह। क्या सिन्हा की हिन्दी सिंह है?


फेसबुक पर पटना के गोलघर के संबंध मे निम्नलिखित जानकारी प्राप्त करने के बाद इस बार वहाँ का भ्रमण करने का निश्चय किया था और वहाँ कई घंटे व्यतीत किए। -

 "1770 में पड़े सूखे के बाद ब्रिटिश कैप्टन जान हास्टिंन ने गोलघर अनाज रखने (ब्रिटिश आर्मी के लिए) के लिए बनवाया था। इसमें 14 लाख टन अनाज रखा जा सकता है। यह 20 जुलाई 1786 में बना था। इसकी मरम्मत 2002 में करवाई गई । इसकी ऊचांई 29 मीटर और दिवाल की मोटाई 3.6 मीटर है। इसमें 145 सिढ़ियां है। इससे गंगा के दृश्यों को देखा जा सकता है।"

उस समय की 'स्थापत्य कला'के लिहाज से जबकि आधुनिक यंत्रों का प्रचलन नहीं था 'गोलघर' का निर्माण एक अद्भुत धरोहर के रूप मे आज संरक्षित है। इस समय वहाँ आभिजात्य वर्ग की सुविधा के लिए कुछ निर्माण कार्य प्रगति पर था। जितनी देर हम वहाँ रहे देखा कि तमाम विद्यालयों के छात्र समूह वहाँ भ्रमण हेतु आते
रहे।'मुख्यमंत्री शैक्षणिक भ्रमण'के अंतर्गत सरकार की ओर से विद्यार्थियों को 'गोलघर' की सैर कराई जा रही थी। पिकनिक मनाने के तौर पर छात्र और शिक्षक वहाँ आ-जा रहे थे। छात्रों को इसकी स्थापत्य कला व महत्व के संबंध मे भी जानकारी दी जानी चाहिए थी किन्तु सरकार ने ऐसी कोई व्यवस्था न की हुई थी।   जैसे लोग  बाग दिल्ली के 'कुतुब मीनार' को देख कर वहाँ खाते-पीते मौज करते हैं  वैसे ही पटना के गोलघर मे भी चल रहा था। शायद शिक्षक वर्ग खुद भी इस स्मारक के महत्व से अनभिज्ञ रहा होगा। 

सरकारी स्कूल के एक शिक्षक महोदय की सहृदयता देख कर विस्मय भी हुआ और प्रसन्नता भी । एक विद्यालय की कुछ छात्राएं और छात्र अपने घर से भोजन आदि न ला पाये थे। उक्त शिक्षक महोदय अपने घर से काफी मात्रा मे पराँठे और भिंडी की सब्जी ले कर आए थे । जहां उन्होने अपने साथी शिक्षकों को भोजन कराया वहीं उन छात्राओं और छात्रों को भी भोजन दिया चूंकी अमूमन शिक्षक विद्यार्थियों से आव-भगत कराते हैं अतः वे विद्यार्थी भोजन लेने मे हिचक रहे थे तो उनको झिड़की देकर उन्होने भोजन लेने और खाने पर मजबूर किया। वास्तव मे वह अज्ञात शिक्षक महान हैं।

पटना जंक्शन से गांधी मैदान के निकट स्थित 'गोलघर' तक मैंने व यशवन्त ने पैदल ही कूच किया और वापिस भी वहाँ से स्टेशन पैदल ही लौटे। उद्देश्य मार्ग स्थित तमाम परिस्थित्यों का सूक्ष्म अवलोकन करना था। जगह-जगह बोर्ड व होर्डिंग्स पर जो 'हिन्दी' लिखी देखी हमे आश्चर्यजनक लगी। उदाहरणार्थ गोलघर के सामने एक आयुर्वेदिक औषधालय पर लिखा देखा-'प्रहेज' जो कि 'परहेज' के स्थान पर प्रयुक्त हुआ था। वहीं पास मे एक 'संग्रहालय' पर तो अनोखी बात लिखी देखी-

अङ्ग्रेज़ी मे लिखा था-A N SINHA और हिन्दी मे लिखा था-अनुग्रह नारायण सिंह। 'सिन्हा' और 'सिंह' पर्यायवाची नहीं हैं परंतु 'पटनवी -हिन्दी' मे पर्यायवाची बना दिये गए हैं।

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