मंगलवार, 25 जून 2013

माँ की सीख मेरा संबल व पूंजी हैं ---विजय राजबली माथुर

25 जून- माँ की 19वीं पुण्य तिथि पर विशेष : 
तो फिर वे क्यों ऐसा करते हैं?(भाग-3)-

गत अंकों में खुद को 'खुदा'समझने वाले अहंकारी लोगों की इस ज़िद्द का वर्णन किया है कि वे बिना किसी लाभ की प्राप्ति के सिर्फ मुझको परेशान रखने में ही आनंदित होते रहते हैं। उसी कड़ी में आज फिर माँ की पुण्य तिथि के अवसर पर कुछ और वारदातों का ज़िक्र करना अब उचित प्रतीत हो रहा है।

14 जून 1995 को बाबूजी को अंतिम संस्कार हेतु घाट ले जाने के बाद से माँ जो अचेत हुईं तो 25 जून की रात्रि पौने आठ बजे कंपाउंडर के सामने ही मृत्यु को प्राप्त हुईं। कंपाउंडर साहब तो रोजाना की तरह ग्लूकोज,दवा आदि देखने आए थे फिर उन्होने उस दिन का अपना शुल्क भी नहीं लिया और शरीर में लगी नलियाँ आदि निकाल गए। मैं और यशवन्त ही घर पर थे। अजय तो 23 जून को मेरे बहुत मना करने के बावजूद फरीदाबाद चले गए थे । जिस प्रकार 13 जून की रात्रि दो बजे बाबूजी को धरती पर लेटाने में मुझे  पड़ौसी सतीश शर्मा जी के पुत्र शलभ  ने मदद की थी उसी प्रकार 25 जून की रात्रि  नौ बजे भी उसी शलभ ने मेरी मदद इस बार भी की। यशवन्त तो साढ़े बारह वर्ष का ही तब था लेकिन शलभ भी 21-22 वर्ष का ही रहा होगा। सतीश जी ने शायद कुछ पूर्वाभास के आधार पर अपने पुत्र को रिहर्सल हेतु हमारी मदद को भेजा होगा क्योंकि अक्तूबर 1996 में वह भी दिवंगत हो गए थे।


शलभ शर्मा और सतीश जी ने ही बाबूजी के समय की तरह ही इस बार भी बर्फ घर पर पहुंचवाई । शलभ ने ही रात्रि में डॉ शोभा व अजय को 'टेलीग्राम' मेरी तरफ से भेज दिये,अर्जुन नगर अशोक-नवीन को फोन द्वारा सूचना भी दे दी। खर्च का भुगतान भी मैंने बाद में ही किया था उस वक्त उन्होने ही कर दिया था और तुरंत लेने से इंकार कर दिया था। अगले दिन 26 जून को भयंकर गर्मी थी जबकि 25 की रात्रि बारिश भी हो गई थी। झांसी से शोभा और फरीदाबाद से अजय नहीं पहुँच पाये थे । किसी ने संभवतः सतीश शर्मा जी को नशे में लाकर भड़का दिया था( उनका पुत्र और पत्नी जो रात्रि मथुरा जाते-जाते रुक गए थे सुबह ही मथुरा चले जा चुके थे) वह दबाव बना रहे थे कि गर्मी बढ़ रही है अतः भाई -बहन का इंतज़ार किए बगैर माँ को घाट ले चलो। उनकी यह बात स्वीकार नहीं की जा सकती थी चाहे जितने भी उनके एहसान थे।इसलिए भड़क कर उन्होने पास-पड़ौस के लोगों को घाट पर  साथ जाने की मनाही कर दी। स्थिति का आंकलन करते हुये  मैंने समझा कर यशवन्त को माँ के पार्थिव शरीर के पास अकेला छोड़ा और  मोपेड से  जाकर कामरेड एस कुमार को सूचित कर दिया था अतः वह कामरेड अनंत राम  को लेकर आ गए थे। शोभा के आने के बाद फिर सतीश शर्मा जी दबाव बनाने लगे कि अब बहन आ गई ,बेटी को तो माँ की चिंता होती है  बेटे को कोई परवाह नहीं वह माँ को छोड़ कर चला गया था अब भाई का इंतज़ार न करो और जल्दी घाट ले जाओ। पुनः उनके दबाव को रद्द कर दिया था।

अजय के आने बाद जब घाट ले जाने लगे तो यशवन्त जो 17 जून 1994 को शालिनी,14 जून 1995 को बाबूजी को घाट ले जाते समय साथ रहा था इस बार भी चल रहा था। अतः अजय की 6 वर्षीय पुत्री भी अड़ गई कि वह भी भैया के साथ अम्मा को घाट पहुँचाने चलेगी। बच्ची की ज़िद्द को देखते हुये अजय ने साथ ले लिया। घाट पर जब टाल से लकड़ी ले जाने में ये छोटे बच्चे भी मदद कर रहे थे तो इसे देख कर  दूसरे लोग जो  अपने परिजन का अंतिम संस्कार करके लौट रहे थे उनके एक  बुजुर्ग ने हम लोगों की सहायता करने को कहा और इस प्रकार घाट पर माँ के अंतिम संस्कार के समय काफी भीड़ हो गई भले ही शर्मा जी ने पड़ौस के लोगों को रोक लिया था । http://vidrohiswar.blogspot.in/2012/04/1994-95-11.html

गोविंद बिहारी मौसाजी जिनको अलीगढ़ के रिश्ते में कमलेश बाबू चाचा मानते रहे ने बाबू जी के वक्त रानी मौसी को माँ के पास नहीं आने दिया था और उनको कह दिया था कि विजय के घर जाओगी तो टांग तोड़ दी जाएगी। हालांकि उनका पुत्र असित सीधे घाट पर पहुँच गया था। इस बार उन लोगों ने पूरा बहिष्कार किया था। लेकिन अज्ञात लोगों ने घाट पर जो सहायता की वह अविस्मरणीय है।

माँ के बाद यशवन्त और मैं घर पर अकेले रह गए थे अतः ड्यूटी जाने पर मैं उसे भी अपने साथ ले जाता था। सुबह 7-15 पर वह स्कूल जाता 12-30  बजे घर आता ड्रेस बदल कर खाना खा कर मेरे साथ  एक बजे बाज़ार चलता लौट कर रात्रि 7-30 पर आने के बाद जब रोटी सेंकते तो 8 बजते-बजते वह ऊँघते हुये खाना खाता। नवंबर में पूनम के आने तक यही सिलसिला चलता रहा।

आज जब डॉ शोभा/कमलेश बाबू और कमलेश बाबू के सखा व भतीज दामाद कुक्कू और उसका भाई शरद मोहन माथुर,पार्सल बाबू मिल कर यशवन्त का भविष्य तबाह करने के मिशन में लगे हुये हैं तब सोचता हूँ कि क्या यशवन्त उतना ही मूर्ख है जितना वे सोचते हैं? यशवन्त को गुमराह करने हेतु  वीणा श्रीवास्तव/रश्मि प्रभा/सोनिया बहुखंडी गौड़ सरीखे खुदगर्ज  लुटेरे ब्लागर्स की भी मदद ली गई थी। इन लोगों की मार्फत हमारी पार्टी के भी कुछ राजनेताओं तथा सहयोगी एक पार्टी के एक राजनेता को भी हमारे विरुद्ध लामबंद किया गया है। जिस प्रकार जय शंकर लाल और उनके बेटे कुक्कू  व शरद मोहन माथुर  अपने-अपने विभागों को लूटते रहे उसे व अन्य लोगों को देखते हुये लखनऊ यूनिवर्सिटी के एक गार्ड यादव जी का कथन याद आता है जो बिलकुल खरा सच ही है कि-'सीतापुर' के लोग 'ठग' व 'चोर' होते हैं उनसे हमेशा सावधान रहिएगा। अतीत में डॉ शोभा ने माँ को बताया था कि जय शंकर लाल माथुर 2 बोरा छोटी इलाईची गायब/चोरी  होने के मामले में फंसे थे तब कमलेश बाबू के पिताजी -सरदार बिहारी माथुर,क्लेंम्स इंस्पेक्टर-रेलवे ने उनको बचाया था। इसके बाद टूंडला जंक्शन पर जय शंकर लाल को 'बुकिंग' व 'पार्सल' का हेड एवं सरदारी बिहारी साहब को 'विजिलेन्स आफ़ीसर',अलीगढ़  के रूप में प्रमोशन मिल गया था। सीतापुरी आदत सभी सीतापुरियों में समान होती होगी तभी  तो कोई सीतापुरिया कुछ न मिलने पर आई डी-पासवर्ड ही चुरा लेता है जिसके सहारे उपयुर्क्त ब्लागर्स से संबन्धित पोस्ट्स व टिप्पणियों में हेरा-फेरी करके उनको निर्दोष सिद्ध किया जा सके। 

मेरी माँ अक्सर कहावतें दोहराया  करती थीं-"साँच को आंच नहीं" तथा "एक चुप सौ को हरावे" इन पर अब तक विश्वास करते हुये मैं तमाम झंझावातों पर पार पा चुका हूँ। माँ को नाना जी ने 4थे क्लास के बाद स्कूल नहीं भेजा था किन्तु उनका ज्ञान आज के एम.ए.,पी.एच डी से अधिक ही था उनके आंकलन हमेशा सही निकलते थे। हो सकता है आनुवंशिक तौर पर उनके ये गुण कुछ हद तक मुझे भी मिले हों तभी मेरे भी पूर्वानुमान अक्सर सही ही निकलते हैं। यशवन्त के बड़े भाई के जीवित न रहने का भान होने पर मैंने माँ को बता दिया था और वह सही निकला जब 24 नवंबर 1982 को प्रातः 4 बजे जन्म लेकर उसी दिन साँय 4 बजे वह दिवंगत भी हो गया था। जब अलीगढ़ के ज्योतिषी और बाल रोग विशेज्ञ डॉ शोभा की बड़ी बेटी के लिए  जन्म से आठ माह खतरनाक   बता रहे थे तब मैंने माँ को आश्वस्त कर दिया था कि वह निश्चय ही जीवित रहेगी। 30अप्रैल 2011 को यह भांजी/भांजा दामाद अपनी बिटिया के साथ यहाँ लखनऊ भी आए थे।

 " अभी कुछ दिन पहले यह भांजी ,उसकी बेटी और भांजा दामाद कुछ घंटों के लिए हमारे घर भी लखनऊ आने पर आये थे."-http://vidrohiswar.blogspot.in/2011/06/blog-post.html

माँ का आशीर्वाद मेरे साथ है इस बात को उनकी ही पुत्री डॉ शोभा  क्यों नहीं समझ पा  रही है? अन्यथा पूना निवासी  अपनी छोटी पुत्री के सहयोग से 'पूना प्रवासी' ब्लागर को हमारे विरुद्ध  खड़ा नहीं करवातीं जिसने ब्लाग जगत में हमारे विरुद्ध लामबंदी कर रखी है और यशवन्त को हर-संभव नुकसान पहुंचाने को प्रयासरत है।  सीतापुरिए कुक्कू/शरद व अन्य राजनेता को हमारे विरुद्ध नहीं लगाया जाता।जिनकी बुद्धि पैर के तलवों में बसती है मैं उनसे किसी बुद्धिमानी की अपेक्षा बिलकुल भी नहीं करता हूँ। निजी आत्म-विश्वास व माँ की सीख मेरा संबल व पूंजी  हैं।  


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