शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

बहुत मुश्किल है कुछ यादों का भुलाया जाना (भाग-2 ) ---विजय राजबली माथुर


कामरेड डॉ गिरीश  जी
चार वर्ष पूर्व जब हम आगरा से लखनऊ आए थे तो कुछ उलझनों में फंस जाने के कारण क़ैसर बाग पार्टी कार्यालय में संपर्क न कर सके ,पहला उद्देश्य यहाँ सेटिल होना था। सेटिल होने के बाद 25 सितंबर 2010 को हम डॉ गिरीश जी से संपर्क कर सके उससे पूर्व जब भी हम गए वह बाहर के टूर पर रहे। डॉ गिरीश जी को हम आगरा से इसलिए जानते थे कि वह अक्सर ही वहाँ पार्टी कार्यालय और पार्टी कार्यक्रमों में आते रहते थे। कामरेड अशोक मिश्रा जी से भी पूर्व परिचय था किन्तु इत्तिफ़ाक से वह भी न मिल पाये थे। डॉ साहब ने प्रदेश पार्टी के मुखिया होते हुये भी जिस आत्मीयता से भेंट की वह स्मरणीय रहेगी। लगभग तीन घंटे हम उनके साथ रहे। आगरा पार्टी ,वहाँ के कामरेड्स और मेरी घरेलू समस्याओं पर भी उन्होने चर्चा की। उनका कहना था कि यदि मैं पहले मिला होता तो मेरी समस्याओं का निदान वह कामरेड ख़ालिक़ के माध्यम से सहजता से करा देते। 

जब भी कभी मैं कार्यालय में उनसे मिला वह पूर्ण सौहाद्र के साथ मिले। कामरेड मिश्रा जी ने भी पहचान लिया था। AISF के कार्यक्रम के दौरान मैं डॉ साहब के निर्देशानुसार उपस्थित रहा था। उस कार्यक्रम के समापन के अवसर पर जब डॉ साहब ने उनको सहयोग करने वालों के नाम घोषित किए तो उनमें मेरा भी नाम शामिल था। यह डॉ साहब की महानता ही थी कि मुझ जैसे क्षुद्र कार्यकर्ता का नाम भी उन्होने भरे सभागार में अत्यंत सक्रिय कामरेड्स के साथ लिया। उनके निर्देशानुसार यशवन्त ने भी अपनी उपस्थिती दर्ज कराई थी अतः उसे भी मेरे अतिरिक्त AISF के बैग डॉ साहब ने प्रदान किए। 

यों तो मैं ज़िले का कार्यकर्ता हूँ परंतु डॉ साहब के निर्देश पर जब भी उन्होने याद किया मैं हाजिर होता रहा। मई 2013 में उन्होने मुझसे प्रदेश कार्यालय में कंप्यूटर कार्य में सहयोग करने को कहा और मैं सुविधानुसार वहाँ पहुँच जाता था। परंतु जिनके साथ कार्य करना था वह किसी दूसरे का दखल नहीं चाहते थे। इस बात से डॉ साहब के टूर से लौटने पर मैंने अवगत करा दिया था और स्पष्ट कर दिया था कि इसी कारण बीच-बीच में अनुपस्थित रहा था। वह साहब डॉ साहब के सामने बड़े भोले बन जाते थे लेकिन उन के टूर पर जाते ही अपने असली रंग  में दिखने लगते थे जिन सब बातों का ज़िक्र पिछले पोस्ट्स में विस्तृत रूप से हो चुका है।

मैंने 11 जूलाई 2013 को डॉ साहब से संदेह व्यक्त कर दिया था कि वह जनाब अब 'टकराव'के रास्ते पर हैं। 13 जूलाई 2013 की मीटिंग में वह मेरी कुर्सी और मेरे पैरों पर ही ठोकरें नहीं मारते रहे बल्कि पेट में भी उंगली भोंकते रहे। मैं डॉ साहब के सम्मान के कारण चुप-चाप बर्दाश्त करता रहा किन्तु उनको बाद में सूचित कर दिया था। इसी कारण 07 सितंबर 2013 की मीटिंग में मैं अनुपस्थित (पहली बार) हुआ। 09 सितंबर को कामरेड अतुल अंजान से संबन्धित मेरी एक पोस्ट को डिलीट करने के साथ ही साथ उन प्रदीप तिवारी साहब ने मुझे ब्लाग एडमिन एंड आथरशिप से हटा दिया। छह वर्ष से पी टी साहब ने प्रदेश सचिव को ब्लाग से दूर रखा था मैंने प्रदेश सचिव डॉ गिरीश साहब एवं प्रदेश सह -सचिव डॉ अरविंद राज स्वरूप साहब को निवेदन दिया कि वे ब्लाग एडमिन बन जाएँ जिसे उन दोनों ने स्वीकार कर लिया। किन्तु पी टी साहब को तीखा चुभ गया और उस पर अंजान साहब के समाचार को ब्लाग पोस्ट के रूप में देना उनको बिलकुल भी बर्दाश्त न हुआ। 

प्रदीप तिवारी द्वारा मुझे धमकाना,ठोकर मारना,पेट में उंगली भोंकना आदि-आदि तो 'सोशल एप्रोच' है। लेकिन अंजान साहब या गुरुदास दासगुप्ता जी से संबन्धित पोस्ट मेरे द्वारा देना 'व्यक्तिगत एप्रोच' है। अतः एक नया ब्लाग-,शुरू कर दिया है। इस नए ब्लाग के माध्यम से अपने राष्ट्रीय नेताओं के विचारों को सुगमता से'साम्यवाद(COMMUNISM)'  प्रकाशित कर सकूँगा। यदि डॉ साहब मुझे बुला कर मुझसे कार्य न करवाते तो मैं आज यह नया ब्लाग चलाने के बारे में सोच भी न सकता था। अतः मैं हृदय  से आदरणीय डॉ गिरीश जी का आभारी हूँ कि उन्होने मुझे इस लायक बनने की प्रेरणा दी।

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