सोमवार, 30 सितंबर 2013

बहुत मुश्किल है कुछ यादों का भुलाया जाना (भाग-3)लखनऊ 30 सितंबर रैली -- ---विजय राजबली माथुर

आनंद प्रकाश तिवारी जी की फेसबुक वाल से
आनंद प्रकाश तिवारी जी की फेसबुक वाल सेलखनऊ 30 सितंबर  2013 रैली की एक झलक
क्योंकि लखनऊ मेरा जन्मस्थान होने और प्रारम्भिक बचपन यहीं बीतने से सदा ही मेरा प्रिय -स्थान रहा है। इसलिए आगरा से जब भी भाकपा की रैलियाँ लखनऊ आती थीं मैं अवश्य ही भाग लेने आता रहा था। आज लखनऊ में निवास करते हुये भाकपा की विशाल रैली में भाग लेने का सुअवसर भी प्राप्त हुआ। मैं अपने नवीनतम ब्लाग-'साम्यवाद (COMMUNISM)' के माध्यम से इस रैली की सफलता हेतु पोस्ट्स शेयर करता रहा।  नन्ही बच्ची के उपरोक्त चित्र के माध्यम से आनंद प्रकाश तिवारी जी ने  जनता का आह्वान इस रैली में भाग लेने हेतु किया था और उन्होने 'परिवर्तन चौक' पर रैली का एक विहंगम दृश्य अपने मोबाईल के माध्यम से लेकर शेयर किया था। जब यह जत्था अग्रिम जत्थे के साथ-साथ 'परिवर्तन चौक' पर था तब प्राप्त सूचनानुसार अंतिम जत्था 'चारबाग रेलवे स्टेशन' से प्रस्थान कर रहा था। जब लगभग बीस हजार कार्यकर्ता 'ज्योतिबा फुले पार्क' रैली स्थल पहुँच चुके थे तब भी विलंब से  आने वाली ट्रेनों से प्रदर्शनकारियों का आना जारी था।

जुलूस का नेतृत्व भाकपा के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड सुधाकर रेड्डी,राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अंजान,प्रदेश सचिव डॉ गिरीश चंद्र शर्मा , डॉ अरविंद राज स्वरूप एवं पूर्व प्रदेश सचिव  कामरेड अशोक मिश्रा जी ने किया। लखनऊ ज़िला काउंसिल के जत्थे का एक विशेष भाग मोटर साईकिल सवार युवा प्रदर्शंनकारी रैली में आकर्षण का केंद्र बिन्दु था ।

जहां तक रैली की भौतिक सफलता का प्रश्न है रैली पूर्ण रूप से सफल रही है और कार्यकर्ताओं में जोश का नव संचार करते हुये जनता के मध्य आशा की किरण बिखेर सकी है। लेकिन क्या वास्तव में इस सफलता का कोई लाभ प्रदेश पार्टी को या राष्ट्रीय स्तर पर मिल सकेगा?यह संदेहास्पद है क्योंकि प्रदेश में एक जाति विशेष के लोग आपस में ही 'टांग-खिचाई' के खेल में व्यस्त रहते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में पार्टी का जो रुतबा हुआ करता था वह अब नहीं बन पा रहा है। ईमानदार और कर्मठ कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न एक पदाधिकारी विशेष द्वारा निर्लज्ज तौर पर किया जाता है और उसको सार्वजनिक रूप से वाह-वाही प्रदान की जाती है। एक तरफ ईमानदार IAS अधिकारी 'दुर्गा शक्ती नागपाल'के अवैध निलंबन के विरुद्ध पार्टी सार्वजनिक प्रदर्शन करती है और दूसरी तरफ उत्पीड़क पदाधिकारी का महिमामंडन भी। यह द्वंदात्मक स्थिति पार्टी को अनुकूल परिस्थितियों का भी लाभ मिलने से वंचित ही रखेगी। तब इस प्रदर्शन और इसकी कामयाबी का मतलब ही क्या होगा?  
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Communist aapsi dwand me hi mare za rahe hain.Vaikulpik Rajniti ke prati hatash hain.Zatiwad, swsrth aur Bhrushtachar me dube chhutbhaiyo ki vishwsniyta Parmanu karar mudde par sansad me dekh Chuke hain.
Bache DO Rajnitik Dal, Zin par druwikaran hota deekh raha hai.
Partner Politics kya kahti hai ?
Kidhar Jana chahenge ??....???

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