शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

शाहजहांपुर द्वितीय चरण (द्वितीय भाग )

(स्व .हर मुरारी लाल ,स्व.के .एम् .लाल और स्व .सावित्री देवी माथुर )

इस बार चूँकि सिलीगुड़ी से हाई स्कूल पास करके आया था और एक डिग्री कालेज से इंटर कर रहा था तो बउआ के सभी रिश्तेदारों ने अखबारों में छपी राजनीतिक ख़बरों पर चर्चा में मुझे भी शामिल करना शुरू कर दिया था .वैसे नेशनल हेराल्ड तो पहले भी जब ६ठी,७वीं  में पढता था देख लेता था और अंग्रेजी में कमजोर तो था ही इसलिए वह सिर्फ बच्चे का खेल समझ लिया जाता था .नानाजी के बाद वाले उनके भाई (बड़े नानाजी उन्हें कहते थे क्योकि मा के बड़े चचा थे ) डिस्ट्रिक्ट बोर्ड में सर्विस करते थे और कांग्रेसी झुकाव के थे इसलिए नेशनल हेराल्ड लेते थे ,नानाजी समेत उनके बाकी भाई जनसंघी झुकाव के थे .मामा जी तो बरेली और फिर लखनऊ में भी आर .एस .एस .में सक्रिय रहे थे .लखनऊ में संघ की  बैठक में मामाजी के घर पं .दीन दयाल उपाध्याय भी ठाकुर गंज में आये होंगे ,इसलिए मुगलसराय यार्ड में जब वह मृत पाए गए तो नानाजी को काफी धक्का लगा महसूस किया था .बउआ  के फूफा जी (स्व .हरमुरारी लाल माथुर ) भी कट्टर संघी विचार धरा के थे और वह तमाम पुराने सीक्रेट्स मुझे बताया करते थे .बउआ या नानाजी कोई भी उनसे मना  नहीं करते थे .नानाजी को ताज्जुब भी था कि उनके छोटे बहनोई ने ये तमाम राज उन लोगों को पहले क्यों नहीं बताये .एक बार पूछने पर उन्होंने  नानाजी को उत्तर दिया था कि पहले आप और हम सभी सरकारी कर्मचारी थे इसलिए कभी चर्चा नहीं उठी --- इस लड़के में कुछ झलक राजनीति की दिखी तो इसे सब बातें अब बता देते हैं .बउआ के फुफेरे भाई स्व .कृष्ण मुरारी लाल माथुर जिन्होंने चौ .चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल के नेता सरदार दर्शन सिंह के साथ वकालत शुरू की थी ,बाद में शाहजहांपुर हिन्दू महासभा के अध्यक्ष भी रहे थे .वह भी मुझसे राजनीतिक चर्चाएँ किया करते थे .

(श्री नारायण शंकर माथुर ,बेटों के साथ )
नानाजी के एक भतीजे श्री नारायण शंकर माथुर तब आर्डिनेंस फैक्टरी ,शाहजहांपुर में ओवरसियर थे .वह फैक्टरी मंदिर की गतिविधियों में बढ़ -चढ़ कर भाग लेते थे .नानाजी को वहां बुलाते थे .नानाजी मुझे चलने को कहते थे तो मै भी साथ जाता था ,परन्तु अजय साथ नहीं जाते थे .संत श्यामजी पराशर के प्रवचन राज्नीतियुक्त होते थे ,उनमे मेरी गहरी दिलचस्पी थी .नानाजी ने उनकी लिखी पुस्तकें -"रामायण का ऐतिहासिक महत्त्व ","योगिराज श्री कृष्ण ","अपराधी कौन "आदि खरीद ली थीं .मैंने सभी पुस्तकें ध्यान से पढी थीं .अपने ब्लाग पर आज -कल लिखे विचार उन पुस्तकों से प्राप्त ज्ञान के आधार पर हैं .अफ़सोस  यह है की वे पुस्तकें नानाजी के देहावसान के बाद (दीमक द्वारा खराब करने के कारण )माईंजी  द्वारा फेंक दी गयीं.मांगने की आदत न होने के कारण मैंने नानाजी से पहले और तब बउआ ने माईं जी से मांगी नहीं थीं वर्ना मेरे जैसे बुक -वार्म के मतलब की खराब दशा की किताबें भी थीं .नानाजी के ही पास महाभारत ,गीता और सत्यार्थ -प्रकाश भी पढ़े थे .तब का ही जो ध्यान में बचा है उसका उपयोग समय -२ पर लेखन में करता रहा हूँ अब भी कर रहा हूँ .संत श्यामजी पराशर केवल राम मंदिरों के प्रांगड़ में ही प्रवचन देते थे जिसकी समाप्ति इन शब्दों के साथ होती थी :-
love without marriage has no sens
Marriage without love has no fragrence .
 और कहते थे यह अंगरेजी पढ़े लिखे लोगों के लिए है और इसका तर्जुमा नहीं करूँगा .लेकिन मैंने इसका हिंदी अनुवाद इस प्रकार किया है :-
                 विवाह रहित प्रेम बुद्धिहीन है -
                प्रेम रहित विवाह गंधहीन है .
संत पराशर के अनुसार राम -सीता विवाह आदर्श प्रेम -विवाह था 


राजनीतिक  सभाओं में 
टाउन हाल में होने वाली किसी भी राजनीतिक दल की सभा को सुनने नानाजी जाते थे और हर बार मै उनके साथ रहता था जबकि भाई को दिलचस्पी नहीं थी ,बहन छोटी भी थी और नानाजी लड़का -लड़की का भेद भी मानते थे ,इसलिए बउआ और मौसी को प्राईमरी  से अधिक नहीं पढाया था जबकि मामाजी ने एम् .ए .भी किया और लखनऊ यूनिवर्सिटी में एन्थ्रापालोजी के एच .ओ .ड़ी . मृत्यु पर्यंत रहे .

जनसंघी मंत्री परमेश्वर पांडे ,संसोपाई मंत्री प्रभु दयाल सिंह मजदूर नेता एस .एम् .बनर्जी 
काश्मीर के पूर्व प्रधान मंत्री और फिर मुख्य मंत्री रहे शेख अब्द्दुल्ला की अलग -२ सभाएं अलग -२ समय पर हुईं और नानाजी के साथ सभी को सुनने का मौका मिला जो सुना कुछ न कुछ दिमाग में अटका जरूर रहा .
 हालाँकि इस बार आठ या नौ माह ही शाहजहांपुर में रहे परन्तु अभी कुछ बातें और याद -दाश्त में हैं जो अगले अंक में होंगी ................

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1 टिप्पणी:

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