शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

आगरा/1984-85 (भाग-4) //ईमानदार इन्कम टैक्स अधिकारी के दर्शन

चूंकि सारू स्मेल्टिंग,मेरठ मे फेसिट केलकुलेटर था और मे उसे चला नहीं पाता था अतः जबानी गणना करता था परंतु मुगल आगरा मे इलेक्ट्रानिक केलकुलेटर थे जिन्हें चलाना सीख लिया था। सब लोग दो-दो बार गणना करते थे,लेकिन मैंने एक बार जोड़ते रहकर दूसरी बार नीचे से घटाते जाने की प्रक्रिया अपनाई। शून्य आने पर टोटल सही है-निश्चित होता था। यहाँ इस दुकान पर सेल वाले छोटे केलकुलेटर थे उनमे भी वही प्रक्रिया अपना कर मैंने बेलेन्स शीट हेतु ट्रायल बेलेन्स तैयार कर दिया तब पार्ट-टाइम अकाउंटेंट साहब ने 8 प्रतिशत ग्रास प्राफ़िट रखते हुये फाइनल करने को कहा।बेलेन्स शीट को वकील साहब ने भी सही पाया।

सेठ जी का इन्कम टैक्स मे एक पूर्व वर्ष का केस अपील मे चल रहा था जिसमे उनकी बुक्स आफ अकाउंट्स ,अपीलेट इन्कम टैक्स कमिश्नर श्रीमती आरती साहनी द्वारा जब्त की हुयी थीं। उस पुराने केस को समझने हेतु वह मुझे वकील साहब के पास ले गए। वकील साहब उन पर बिफर पड़े कि इन दाढ़ी वाले को क्यों साथ ले आए? उन्होने कहा यह हमारे फुल टाइम अकाउंटेंट हैं इन्हें केस समझा दीजिये। चूंकि वकील साहब अपने किसी आदमी से केस तैयार कराना चाहते थे अतः मेरे व सेठ जी के बीच फ्रिकशन कराकर मुझे हटवा देना चाहते थे। परन्तु सेठ जी भी चाल समझ रहे थे अतः बोले हम इन्हीं से केस तैयार कराना चाहते हैं इस पर वकील साहब ने सवाल मुझे संबोधित कर कहा कि कर लोगे?मैंने भी जवाब यह दिया अगर नौकरी करनी है तो कर लेंगे। इस प्रकार एक ऐसा कार्य जो अब तक पूर्व मे नहीं किया था और नहीं जाना था करने का भार मुझ पर था,और था अपनी इज्जत (क्षमता सिद्ध करने की) एवं अपनी रोजी बचाने का भी उतना ही।

श्रीमती आरती साहनी 

श्रीमती आरती साहनी ,I R S एक निष्पक्ष और ईमानदार अधिकारी थीं। वह और उनके पति दोनों ही इन्कम टैक्स अपीलेट कमिश्नर थे। साहनी साहब तो वैसे ही कार्य करते थे जैसे उनके विभाग का रसूख था। किन्तु श्रीमती साहनी शुद्ध ईमानदारी और नियमानुकूल चलती थीं। सेल्स टैक्स और इन्कम टैक्स मे केस करने हेतु एक निर्धारित रकम एसेस्मेंट आफ़ीसर को भेंट दी जाती है जिसे अक्सर लोग वकील साहबान के माध्यम से देते हैं जिसका 25 प्रतिशत वकील साहब का होता है। यह सेठ जी चतुर सुजान बनने चले थे। इनके  एक भाई दुबई मे नौकरी करते थे जिनके पास ये घूमने गए और वहाँ की बनी साड़ी आदि गिफ्ट लेकर सीधे श्रीमती साहनी के आवास पर पहुँच गए। श्रीमती साहनी ने उन्हें कड़ी फटकार लगाई और आफिस आते ही उनकी बुक्स आफ अकाउंट्स सीज करने का आर्डर जारी कर दिया।

यह मामला मेरे ज्वाइनिंग से बहौत पहले का था। वकील साहब भी नाराज थे कि सेठ जी सीधे क्यों पहुंचे उनसे जिक्र करते तो वह बता देते कि यह महिला ईमानदार अधिकारी हैं। वकील साहब और सेठ जी का मतभेद भी केस का निपटान जल्दी नहीं होने दे रहा था। सेल्स टैक्स मे केस काफी पेंडिंग रहते हैं परन्तु मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह जी ने तेजी लाने के आदेश जारी किए थे इसलिए उनके दूर के रिश्तेदार S T O  डा वीरेंद्र बहादुर सिंह जी ने भी उस वर्ष का केस जिसकी किताबें श्रीमती आरती साहनी ने जब्त की हुयी थीं ता पर लगा दिया। पहले व्यापारीगण सेल्स टैक्स और इन्कम टैक्स मे अलग-अलग बेलेन्स शीट दाखिल करके हेरा-फेरी करते थे परन्तु प्रदेश सरकार ने अनिवार्य रूप से इन्कम टैक्स की एसेस्मेंट कापी जमा कराना शुरू कर दिया।

श्रीमती साहनी इस मजबूरी को समझती थी अतः ता पर ता देकर समय खींच रही थीं। उधर डा वीरेंद्र बहादुर सिंह जी ने भी सेल्स टैक्स मे और ता देने से इंकार करते हुये एक्स पार्टी केस करने का आल्टीमेटम दे दिया था।  सेठ जी वकील साहब पर दबाव बना रहे थे कि श्रीमती साहनी से केस जल्दी खत्म करवाएँ ,वकील साहब समझा रहे थे दबाव मत बनाओ। सेठ जी नहीं माने तो वकील साहब ने अपनी तरफ से केस तैयार करके श्रीमती साहनी के समक्ष पेश कर दिया। श्रीमती साहनी ने अपने विभाग मे पहले ही किताबे चेक करा ली थी। उन्होने लंबी ता दी लेकिन वकील साहब ने जल्दी का निवेदन किया तो उन्होने दंड का भुगतान करने को तैयार होने का प्रश्न पूंछा। वकील साहब ने जवाब अगले दिन देने का निवेदन किया जिसे श्रीमती साहनी ने स्वीकार कर लिया। अगले दिन वकील साहब के घर पर सेठ जी मुझे लेकर पहुंचे। वकील साहब ने उन्हें धैर्य रखने को कहा परन्तु वह  बोले कि वह दो-ढाई लाख तक दंड का भुगतान कर देंगे। वकील साहब नाराज होकर बोले तुम्हारी मर्जी और अपीलेट कमिश्नर के यहाँ पहुँचने को कह दिया। दुकान आने पर मैंने सेठ जी को स्पष्ट किया कि यदि श्रीमती साहनी अर्थ दंड न दें तो? तो वह बोले फिर क्या दंड देंगी?मैंने कहा यदि वह इंपरिजनमेंट दें तो क्या उन्हे कबूल है?सेठ जी को काटो तो खून नहीं,जैसे उन्हें साँप सूंघ गया हो। बोले तुरंत वकील साहब के पास चलो उन्होने तो यह नहीं बताया है फिर तुम कैसे कह सकते हो?

मैंने मेरठ की सारू स्मेल्टिंग मे I T O गांधी साहब से सेठो  के टकराव और छापों की कहानी सुन रखी थी। अतः मैंने आगरा के सेठ जी को दो टूक कह दिया ,वकील साहब कहना नहीं चाहते थे,क्योंकि वकील साहब की मान्यता थी कि इन 'सेठो के पेशाब से चिराग रोशन होते है'। वकील साहब घर के आफिस मे मिल तो गए उनके इन्कम टैक्स जाने का वक्त हो गया था,सेठ जी को देख कर झल्ला पड़े तुम फिर क्यों आ गए ? सेठ जी बोले आखिर श्रीमती साहनी कितना तक दंड लगा सकती हैं? वकील साहब ने किताब निकाल कर सेठ जी को देते हुये कहा -पढे-लिखे हो लो पढ़ लो। किताब मे स्पष्ट लिखा था- monetary or imprisonment or both । पढ़ कर सेठ जी सन्न रह गए वकील साहब ने उनका चेहरा देख कर कहा क्यों क्या हुआ?सेठ जी बोले तो ता ले लीजिये फैसला मत कराये।

तुम्हारी मर्जी कह कर वकील साहब ने सेठ जी को बाहर भेज दिया और मुझे रुकने को कहा,सेठ जी बोले उन्हें ही बता दें तो वकील साहब बोले इन्हे डांटना है तुम चलो । उनके बाहर होते ही बोले इस मूर्ख को जमीन पर ला दिया बहौत उड़ रहा था,खैर तुमने वफादारी की अच्छी बात है।

डा वीरेंद्र बहादुर सिंह से वकील साहब ने बता दिया की किताबें इन्कम टैक्स मे सीज है पेश नहीं की जा सकती हैं अगर वह चाहें तो आफ़िशियल लेटर देकर मांगा सकते हैं। डा सिंह बोले हम प्रांतीय सेवा के हैं वह केंद्रीय अधिकारी है उनसे कैसे मांग सकते हैं। वकील साहब ने सेल्स टैक्स आफ़ीसर से किताब मांग कर उन्हें दिखा दिया की एसेस्मेंट आफ़ीसर के रूप मे एस टी ओ को पूरे अधिकार हैं की वह इन्कम टैक्स के अपीलेट कमिश्नर को सेल्स टैक्स मे किताबें भेजने का सम्मन जारी कर सकता है। एस टी ओ साहब ने उस क्लाज का हवाला देकर श्रीमती आरती साहनी के समक्ष अपना सम्मन भेज दिया। जिस दिन श्रीमती साहनी ने किताबें सेल्स टैक्स मे भेजने हेतु बुलवाया था उस दिन विभाग मे कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी थी क्योंकि रिफ़ंड वाउचर के घपले मे कुछ कर्मचारी जेल भेज दिये गए थे।

श्रीमती साहनी ने इन्कम टैक्स इंस्पेक्टर पांडे को उस फर्म की किताबें अपनी आलमारी से निकाल कर सौंप दी जो सेल्स टैक्स आफ़ीसर को दिखा कर वापिस उनके पास ही जमा करनी थी। पांडे जी ने एक कर्मचारी श्री सिंह को साथ ले लिया। एस टी ओ डा सिंह ने जब परिचय के दौरान सिंह साहब का नाम सुना तो चौंक पड़े क्योंकि अखबारों के मुताबिक वह भी जेल मे थे। उनसे पूछने पर सिंह साहब ने अपने इंस्पेक्टर पांडे जी की ओर इशारा करके कहा यह सब पंडित जी की मेहरबानी है। डा सिंह ने मुस्करा कर कहा पंडित जी बहौत अच्छे हैं इनके साथ ही लगे रहना बिलकुल बरी हो जाओगे।

उस समय सेल्स टैक्स आफ़ीसर का एसेस्मेंट करने का रेट रु 6000/- होता था ,इस केस मे कुछ अधिक लगा होगा। सेठ जी ने सीधे ही एस टी ओ को भेंट किया। वकील साहब के पुत्र विनय मुझसे घुल-मिल गए थे और ज्योतिष पर चर्चा करके पूछते रहते थे। विनय जी ने मुझे बताया कि,तुम्हारा सेठ मूर्ख है। सीधे अफसरों को भेंट देता है इसी चक्कर मे श्रीमती साहनी के पास साड़ी लेकर पहुंचा और फंस गया। उन्हीं के माध्यम से मुझे केस की असलियत पता लगी थी। विनय जी ने बताया कि वे लोग आफ़ीसर से अपना कमीशन ले लेते हैं जबकि सेठ समझता है वह सस्ते मे छूटा।वह अपने पिता के असिस्टेंट वकील थे,उनके अनुसार आफ़ीसर के रेट मे वकील का कमीशन शामिल रहता है। आफ़ीसर क्यों वकील को कमीशन देता है इसका कारण उन्होने बताया कि वरना वकील उसे फंसा सकता है। 

और सच मे एक दृष्टांत ऐसा हुआ भी । सेठ जी बाद मे मुझे अकेले ही वकील साहब के पास भेजने लगे थे क्योंकि वकील साहब ने कहा जब सब करना और समझना दाढ़ी वालों को है तो तुम अपनी दूकानदारी देखो इन्हें ही आने दो। जो वकील साहब कभी सेठ जी को मुझे लाने पर ऐतराज करते थे वह अब सेठ जी को ही ज्यादा नहीं आने देते थे ,ऐसा केवल मेरे कार्य के कारण था। उस रोज मे अकेले ही गया था और वहाँ किसी दूसरे सेठ जी के कोयला व्यवसाय मे उनके एसेस्मेंट आफ़ीसर से टकराव चल रहा था। बचने का कोई रास्ता न था। सेठ मुंह मांगी रकम देने को तैयार न था। वकील साहब उससे कह रहे थे तब केवल झगड़ा ही एकमात्र रास्ता बचता है जिसके लिए उन्होने अतिरिक्त रकम मांगी। उस सेठ ने वकील साहब को पेशगी रकम अदा कर दी। वकील साहब मुझसे बोले जो सुना अपने तक रखना अपने सेठ को न कहना।

दोपहर  मे जब हम लोग डा सिंह के कार्यालय पहुंचे तो पूरे सेल्स टैक्स डिपार्टमेन्ट मे कर्मचारियों की हड़ताल वकीलों के खिलाफ थी और वकीलों की हड़ताल उस सेठ के एसेस्मेंट आफ़ीसर को ट्रांसफर कराने हेतु। काफी गरम चर्चा थी कि शांत रहने वाले इन वकील साहब ने उस सेल्स टैक्स आफ़ीसर पर टेबुल उलट दी थी जिस कारण स्टाफ और आफ़ीसर वकीलों के विरुद्ध लामबन्द थे। इसी प्रकार वह वकील साहब जो बार के भी पदाधिकारी थे के अपमान को मुद्दा बना कर वकीलों ने उस सेल्स टैक्स आफ़ीसर के ट्रांसफर होने तक हड़ताल का ऐलान किया था। शू फेक्टर्स फ़ेडेरेशन के प्रेसीडेंट राज कुमार सामा साहब जो भाजपा और व्यापारियों के बड़े नेता थे ने भी प्रशासन पर आफ़ीसर के ट्रांसफर का दबाव बनाया क्योंकि झगड़ा करने वाला व्यापारी भी भाजपा से संबन्धित था। वैसे ज़्यादातर व्यापारी और वकील भाजपा से ही जुड़े थे।

 इन परिस्थितियों मे श्रीमती आरती साहनी का मुस्तैदी के साथ ईमानदारी पर डट कर पूरी बुलन्दगी के साथ केस करना काबिले तारीफ और स्तुत्य है। उस समय तक आज के हीरो अरविंद केजरीवाल ने इन्कम टैक्स विभाग ज्वाइन ही नहीं किया था और टाटा स्टील्स मे कारपोरेट घरानों की सेवा मे थे। इन्हीं कारपोरेट घरानों के हित मे बाद मे उन्होने इन्कम टैक्स विभाग से रीजाइन करके 'इंडिया अगेन्स्ट करप्शन' नामक N G O बनाया। आज यही एन जी ओ देश मे संविधान और संसद को चुनौती देकर 'लोकतन्त्र' को नष्ट-भ्रष्ट करके आर एस एस की अर्ध सैनिक तानाशाही कायम करने के अभियान मे जुटा हुआ है। यदि केजरीवाल ईमानदार होते तो स्तीफ़ा देकर भागते नहीं और श्रीमती साहनी की भांति डट कर विभाग मे भ्रष्टाचार से मुक़ाबला करते। जब एक महिला ईमादारी पूर्वक काम करके सफल हो सकती है तो पुरुष होकर केजरीवाल क्यों नहीं सफल हो सकते थे?क्योंकि वह भ्रष्टाचार के विरुद्ध नहीं थे (उनकी पत्नी आज भी उसी इन्कम टैक्स विभाग मे विभागीय रसूखो का पालन करती हुयी डटी हैं) उन्हें तो कारपोरेट घरानों तथा साम्राज्यवादी अमेरिका के हितो को सम्पन्न करना था जो वह बखूबी जनता को मूर्ख बना करकर रहे हैं। 

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