सोमवार, 5 सितंबर 2011

आगरा/1986-87(भाग-1)मुगल के विरुद्ध संराधन केस

सेठ जी ने अपने पार्ट टाईम अकाउंटेंट जो उनके सहपाठी भी रहे थे उनके स्वास्थ्य की आड़ लेकर उन्हें अपने यहाँ से हटा दिया और सम्पूर्ण कार्य मेरे ही पास आ गया परंतु वेतन बढ़ोतरी नहीं हुयी ,प्रतिवर्ष मात्र रु 100/-ही बढ़ाने की बात कही। किन्तु दो माह बाद ही मेरी  बात मान कर उन्होने अतिरिक्त रु 200/- बढ़ा दिये। फिर भी समस्या तो थी ही क्योंकि रु 290/- की किश्त तो हाउसिंग बोर्ड की ही जमा करनी होती थी। जिन लोगों का हाथ मुगल से नौकरी खत्म कराने का था उनकी सोच थी कि ,जाबलेस होकर यह मकान बेचने पर मजबूर हो जाएगा। परंतु कम ही सही कुछ तो अरनिंग हो ही रही थी झेल लिया और इसलिए भी कि पिताजी मेरे ही पास थे वह अंत तक आटा अपने खर्च पर मुहैया कराते रहे। मना करने पर उनका जवाब होता हम तुम्हें किराया नहीं दे रहे हैं -खाना खुद खाएँगे और तुम लोग भी उसी मे खा सकते हो।

हरीश छाबड़ा के चिकित्सक मित्र के एक दूसरे मित्र ने मुझे मुगल के विरुद्ध केस हेतु का अब्दुल हफीज से संपर्क करने को कहा। आगरा मे उस समय भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी की पहचान हफीज साहब की पार्टी या चचे की पार्टी के रूप मे थी। का हफीज ईमानदार ट्रेड यूनियन नेता थे और काफी वृद्ध हो  चुके थे वह सज्जन उनके पूर्व परिचित थे ,वही मुझे लेकर गए थे अतः उन्होने यह कह कर कि अब खुद नए केस नहीं ले रहे है का हरीश चंद्र आहूजा के घर भेज दिया। पहले तो वकील आहूजा साहब मुगल का नाम सुन कर भड़क गए क्योंकि झा साहब के परसोनल मेनेजर रहते उनके विरुद्ध इजेक्शन  नोटिस पारित कराया गया था। लेकिन बाद मे इस शर्त पर केस लड़ने पर राजी हो गए कि किसी भी सूरत मे कभी भी मुगल मेनेजमेंट से कोई सम्झौता नहीं करोगे।

आहूजा साहब ने संराधान अधिकारी,आगरा के समक्ष केस दायर कर दिया। इसके जवाब मे मुगल मेनेजमेंट ने एक माह की नोटिस पे का ड्राफ्ट बना कर भेज दिया और कहा सरप्लस होने के कारण छटनी की है। सरकारी श्रम विभाग मे जिस कछुआ गति से केस चलते हैं उसी प्रकार मेरा भी केस शुरू हो गया। आहूजा साहब ने प्रत्येक गुरुवार को श्रमिक प्रशिक्षण कार्यक्रम मे भाग लेने हेतु राम बाग स्थित 'मजदूर भवन' पर मुझे बुलाना शुरू किया जिसमे भाग लेने हेतु हींग की मंडी से सीधे पहले रामबाग जाता था फिर वहाँ से लौट कर घर पहुंचता था। इस स्कूल मे ट्रेनिंग देने हेतु प्रो डा जवाहर सिंह धाकरे,प्रो डा महेश चंद्र शर्मा,और का रमेश मिश्रा,जिला मंत्री भाकपा टर्न -बाई -टर्न आते रहते थे। जैसा मेरा मिजाज है मे मूक श्रोता न था। मैंने शंका होने पर सवाल उठाए जिंनका उत्तर प्रशिक्षक लोग बड़ी सौम्यता से समझा कर देते थे।

कुछ माह बाद आहूजा साहब ने कहा केस अपनी रफ्तार से चलता रहेगा लेकिन हम चाहते हैं कि जिस आंदोलन से हम जुड़े हैं आप भी जुड़ें। उन्होने 'माँ' उपन्यास पढ़ने को दिया। अक्तूबर 1986 मे उन्होने मुझे भाकपा का सदस्य बना लिया। का रमेश चंद्र मिश्रा जी ने मुझे अपने घर बुला कर कुछ और किताबें पढ़ने को दी। हमारी लँगड़े  की चौकी शाखा की पार्टी मीटिंगें मिश्रा जी के निवास पर ही होती थीं। 8-10 माह बाद आहूजा साहब ने मुझे 'मजदूर भवन' बुलाना बंद कर दिया और कहा कि आप राजा की मंडी आफिस मे चौहान साहब और शर्मा जी के साथ काम करो वे आप को वहाँ चाहते हैं। इनमे से चौहान साहब से मे मिला तक नहीं था अतः आश्चर्य भी हुआ । डा राम गोपाल सिंह चौहान ,आगरा कालेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष से सेवा निवृत थे और भाकपा के जिला कोषाध्यक्ष थे । डा शर्मा जी आर बी एस कालेज ,आगरा मे बी एड के विभागाध्यक्ष थे और सहायक जिला मंत्री थे । वैसे दोनों ही पूर्व मे जिला मंत्री भी रह चुके थे। ये दोनों मुझे पार्टी आफिस मे अपनी सहायता के लिए चाहते थे क्योंकि जिला मंत्री मिश्रा जी भाग-दौड़ ,मजदूर व किसान  समस्याओं आदि मे व्यस्त रहते थे।

शुरू-शुरू मे चौहान साहब मुझे इमला बोल कर पत्रोत्तर लिखाते थे। बाद मे उन्हें कुछ लगा कि मे तो खुद लिख सकता हूँ तो कहने लगे रफ लिख कर रखना मुझे दिखाना। मे उनके आने से पहले प्रदेश और केंद्र से आए पत्रों के उत्तर लिख कर रखने लगा तो कुछ दिन बाद बोले बेकार दो बार लिखते हो सीधे पार्टी लेटर हेड पर लिख लो। अब उन्हें केवल हस्ताक्षर ही करने रहते थे। मुझे पार्टी की जिला काउंसिल मे भी सदस्यता प्रदान कर दी गई।.......... 

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