.... जारी......
चूंकि डॉ शोभा के पहले चले जाने का प्रोग्राम तय हो चुका था अतः 12 नवंबर की चाय पार्टी की देख-रेख हेतु मुझे अशोक और नवीन की पत्नियों से आग्रह करना पड़ा जिसे उन लोगों ने सहर्ष स्वीकार तो कर लिया था किन्तु दूसरे का घर दूसरे का घर ही होता है के आधार पर गैर-जिम्मेदाराना तरीके से व्यवस्था उन लोगों ने की जिसमे काफी सामान बर्बाद हुआ। 12 तारीख की सुबह गंगा-जमुना एक्स्प्रेस से पूनम के ई ओ भाई और उनके परिवार को आगरा पहुंचना था किन्तु सरकारी अधिकारी महोदय टूंडला मे ही उतर गए(जबकि टूंडला से उसका एक भाग आगरा के तीन स्टेशनो से होकर गुजरता था) वहाँ से टैक्सी मे आकर कमलानगर को क्रास कर निकलते हुये उसे भगवान टाकीज़ चौराहे पर छोड़ा और दयाल लाज मे सपरिवार ठहर गए। मस्ती मे नहाते -धोते,नाश्ता करके आराम फरमाने लगे।
इधर घर पर पूनम परेशान कि उनके भाई-भाभी,बच्चे कहाँ खो गए?क्योंकि पी सी ओ से फोन करके पूछा तो पटना से उनके पिताजी ने कहा कि वे सब कल दानापुर से गाड़ी मे बैठे थे (जबकि गाड़ी पटना ही से होकर चली थी)। यशवन्त को तो नाश्ता करा दिया था किन्तु पूनम व मैंने कुछ भी न लिया कि आगंतुक लोग कहाँ भटक गए हैं इसकी चिंता थी। मै काफी समय से कह रहा था कि जाकर दयाल लाज चेक कर लेते हैं वे लोग ज़रूर वहाँ आराम फर्मा रहे होंगे और तुम नाहक परेशान व भूखी हो। पूनम का कहना था भैया दो बार यहाँ आ चुके हैं घर देखा हुआ है सीधे यहीं आने को बोल रहे थे वहाँ क्यों जाने लगे?पूनम सहज-सरल स्वभाव की है वह अपने भाइयों की तिकड़म नहीं समझती(पिताजी ने आने-जाने का खर्च दिया था क्यों न ऐश करते?भला भोली बहन कैसे समझे भाइयों की करतूत?)। अंततः दिन के 12 बजे मैंने मोपेड़ उठाई और दयाल लाज जा पहुंचा। वहाँ देखा कि पूनम के बड़े भाई-भाभी उनकी नन्ही बेटियाँ,छोटे इंजीनियर भाई और एक चचेरे भाई दो कमरों मे मस्ती मे आराम फर्मा रहे हैं। वे लोग बाज़ार से लाकर नाश्ता भी कर चुके थे और घर पर हम दोनों भूखे-प्यासे उन लोगों का इंतज़ार कर रहे थे। मैंने उन लोगों को तत्काल घर चलने को कहा ई ओ साहब बोले आपका कार्यक्रम शाम का है हम शाम को पहुंचेंगे। मैंने उनसे सीधे सवाल किया तब तक हम लोग भूखे-प्यासे ही बैठे रहें क्या?आप हमारे बुलावे पर आए हैं और घर न आ कर आपने हमारे निमंत्रण का मखौल बनाया है। बड़ी मुश्किल से उन लोगों को घर चलने को राज़ी किया क्योंकि लाज का किराया दे चुके थे अतः सामान वहीं छोड़ कर आए और रात मे सोने वहीं पहुंचे।
निर्धारित समय से पूर्व ही डॉ अस्थाना,पुरोहित तीरथ राम शास्त्री जी और मूलचंद जी (पार्ट टाईम दुकान के साथी) आ आ कर चले गए अलग-अलग उनको चाय नाश्ता कराया उन लोगों को फायदा रहा। तीरथ राम जी ने हवन करने को कहा मैंने इसकी कोई तैयारी नहीं की थी। वह खुद आर्यसमाज से हवंन कुंड,सामाग्री आदि ले आए उन्हें भुगतान कर दिया। ई ओ साहब ने उन्हे रु 100/- दिये तो उन्होने एक रुपया और मांग कर रु 101/-की आर्यसमाज की रसीद तत्काल दे दी। मैंने तो सिर्फ रु 11/- ही दिये थे ,शेख़ी बघारना मुझे नहीं आता।
नियत समय पर कम लोग ही आए आगे-पीछे लोग आए। कामरेड किशन बाबू श्रीवास्तव साहब और उनकी बीमार पत्नी कामरेड मंजू श्रीवास्तव भी आए।कामरेड मंजू श्रीवास्तव ने ई ओ साहब की पत्नी और पूनम से काफी आत्मीयता से वार्ता की। अकड़ू खां गुरुदेव्शरण माथुर साहब भी सपत्नीक पधारे थे। अशोक-नवीन और उनके परिवार तो थे ही। रेकसन से नारायण दास पहलाजानी साहब,मेक्सवेल से शंकर लाल जी के बड़े बेटे,वाकमेक्स से सुंदर लाल जी के साले भी आए थे।
पूनम को शिकायत है और वाजिब भी है कि उनके आगमन पर ढंग से रिसेप्शन ,पार्टी वगैरह कुछ नहीं हुआ। पाँच माह पूर्व ही बाबूजी और बउआ का निधन हुआ था उनकी बेटी-दामाद अकड़ कर वापिस जा चुके थे और छोटे बेटा -अजय तो उनके निधन के बाद से पलट कर आए ही नहीं। इन परिस्थितियों मे मै किस प्रकार पूनम का स्वागत-सत्कार धूम-धाम से कर सकता था?हालांकि वह खुद भी इसे महसूस करती हैं परंतु दिल मे कसक तो रह ही गई। आते ही तो उन्हे झाड़ू लगाना पड़ गई । वह इसे अपने साथ किस्मत का छल कहती हैं और मै ग्रहों का परिणाम मानता हूँ जो किसी न किसी मनुष्य के माध्यम से फलित होता है। मेरे अपने साथ भी वही बात लागू होती है कि जिसका भला करता हूँ वही टांग-खिचाई शुरू कर देता है-आज भी यही क्रम जारी है।
क्रमशः ....
चूंकि डॉ शोभा के पहले चले जाने का प्रोग्राम तय हो चुका था अतः 12 नवंबर की चाय पार्टी की देख-रेख हेतु मुझे अशोक और नवीन की पत्नियों से आग्रह करना पड़ा जिसे उन लोगों ने सहर्ष स्वीकार तो कर लिया था किन्तु दूसरे का घर दूसरे का घर ही होता है के आधार पर गैर-जिम्मेदाराना तरीके से व्यवस्था उन लोगों ने की जिसमे काफी सामान बर्बाद हुआ। 12 तारीख की सुबह गंगा-जमुना एक्स्प्रेस से पूनम के ई ओ भाई और उनके परिवार को आगरा पहुंचना था किन्तु सरकारी अधिकारी महोदय टूंडला मे ही उतर गए(जबकि टूंडला से उसका एक भाग आगरा के तीन स्टेशनो से होकर गुजरता था) वहाँ से टैक्सी मे आकर कमलानगर को क्रास कर निकलते हुये उसे भगवान टाकीज़ चौराहे पर छोड़ा और दयाल लाज मे सपरिवार ठहर गए। मस्ती मे नहाते -धोते,नाश्ता करके आराम फरमाने लगे।
इधर घर पर पूनम परेशान कि उनके भाई-भाभी,बच्चे कहाँ खो गए?क्योंकि पी सी ओ से फोन करके पूछा तो पटना से उनके पिताजी ने कहा कि वे सब कल दानापुर से गाड़ी मे बैठे थे (जबकि गाड़ी पटना ही से होकर चली थी)। यशवन्त को तो नाश्ता करा दिया था किन्तु पूनम व मैंने कुछ भी न लिया कि आगंतुक लोग कहाँ भटक गए हैं इसकी चिंता थी। मै काफी समय से कह रहा था कि जाकर दयाल लाज चेक कर लेते हैं वे लोग ज़रूर वहाँ आराम फर्मा रहे होंगे और तुम नाहक परेशान व भूखी हो। पूनम का कहना था भैया दो बार यहाँ आ चुके हैं घर देखा हुआ है सीधे यहीं आने को बोल रहे थे वहाँ क्यों जाने लगे?पूनम सहज-सरल स्वभाव की है वह अपने भाइयों की तिकड़म नहीं समझती(पिताजी ने आने-जाने का खर्च दिया था क्यों न ऐश करते?भला भोली बहन कैसे समझे भाइयों की करतूत?)। अंततः दिन के 12 बजे मैंने मोपेड़ उठाई और दयाल लाज जा पहुंचा। वहाँ देखा कि पूनम के बड़े भाई-भाभी उनकी नन्ही बेटियाँ,छोटे इंजीनियर भाई और एक चचेरे भाई दो कमरों मे मस्ती मे आराम फर्मा रहे हैं। वे लोग बाज़ार से लाकर नाश्ता भी कर चुके थे और घर पर हम दोनों भूखे-प्यासे उन लोगों का इंतज़ार कर रहे थे। मैंने उन लोगों को तत्काल घर चलने को कहा ई ओ साहब बोले आपका कार्यक्रम शाम का है हम शाम को पहुंचेंगे। मैंने उनसे सीधे सवाल किया तब तक हम लोग भूखे-प्यासे ही बैठे रहें क्या?आप हमारे बुलावे पर आए हैं और घर न आ कर आपने हमारे निमंत्रण का मखौल बनाया है। बड़ी मुश्किल से उन लोगों को घर चलने को राज़ी किया क्योंकि लाज का किराया दे चुके थे अतः सामान वहीं छोड़ कर आए और रात मे सोने वहीं पहुंचे।
निर्धारित समय से पूर्व ही डॉ अस्थाना,पुरोहित तीरथ राम शास्त्री जी और मूलचंद जी (पार्ट टाईम दुकान के साथी) आ आ कर चले गए अलग-अलग उनको चाय नाश्ता कराया उन लोगों को फायदा रहा। तीरथ राम जी ने हवन करने को कहा मैंने इसकी कोई तैयारी नहीं की थी। वह खुद आर्यसमाज से हवंन कुंड,सामाग्री आदि ले आए उन्हें भुगतान कर दिया। ई ओ साहब ने उन्हे रु 100/- दिये तो उन्होने एक रुपया और मांग कर रु 101/-की आर्यसमाज की रसीद तत्काल दे दी। मैंने तो सिर्फ रु 11/- ही दिये थे ,शेख़ी बघारना मुझे नहीं आता।
नियत समय पर कम लोग ही आए आगे-पीछे लोग आए। कामरेड किशन बाबू श्रीवास्तव साहब और उनकी बीमार पत्नी कामरेड मंजू श्रीवास्तव भी आए।कामरेड मंजू श्रीवास्तव ने ई ओ साहब की पत्नी और पूनम से काफी आत्मीयता से वार्ता की। अकड़ू खां गुरुदेव्शरण माथुर साहब भी सपत्नीक पधारे थे। अशोक-नवीन और उनके परिवार तो थे ही। रेकसन से नारायण दास पहलाजानी साहब,मेक्सवेल से शंकर लाल जी के बड़े बेटे,वाकमेक्स से सुंदर लाल जी के साले भी आए थे।
पूनम को शिकायत है और वाजिब भी है कि उनके आगमन पर ढंग से रिसेप्शन ,पार्टी वगैरह कुछ नहीं हुआ। पाँच माह पूर्व ही बाबूजी और बउआ का निधन हुआ था उनकी बेटी-दामाद अकड़ कर वापिस जा चुके थे और छोटे बेटा -अजय तो उनके निधन के बाद से पलट कर आए ही नहीं। इन परिस्थितियों मे मै किस प्रकार पूनम का स्वागत-सत्कार धूम-धाम से कर सकता था?हालांकि वह खुद भी इसे महसूस करती हैं परंतु दिल मे कसक तो रह ही गई। आते ही तो उन्हे झाड़ू लगाना पड़ गई । वह इसे अपने साथ किस्मत का छल कहती हैं और मै ग्रहों का परिणाम मानता हूँ जो किसी न किसी मनुष्य के माध्यम से फलित होता है। मेरे अपने साथ भी वही बात लागू होती है कि जिसका भला करता हूँ वही टांग-खिचाई शुरू कर देता है-आज भी यही क्रम जारी है।
क्रमशः ....
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गुरूजी प्रणाम यह कड़ी भी शिक्षाप्रद रही !
जवाब देंहटाएंसुन्दर संस्मरण...बहुत बहुत बधाई...
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