21 दिसंबर 2012 को माया केलेनडर के अनुयायी 'जियो टी वी' आदि ने 'प्रलय दिवस' के रूप मे प्रचारित कर रखा था।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ,लखनऊ के ज़िला मंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ साहब ने इसी दिन अपनी एक पुत्री की शादी की सायत रखी थी। उससे एक दिन पूर्व रात्रि से ही मौसम मे अचानक ठंड काफी बढ़ गई थी सुबह काफी घना कोहरा था किन्तु बाद मे दिन मे धूप अच्छी हो गई थी। शाम को उनके यहाँ कार्यक्रम मे आए कई कामरेड्स से मुलाक़ात हुई। प्रदेश के एक पदाधिकारी साहब मुझ से ज्योतिष के प्रश्न पर वार्ता करने लगे। ज्योतिष विरोधी यह कामरेड कुछ ही दिन पूर्व अपनी पुत्री के विवाह हेतु मुझसे ज्योतिषीय परामर्श ले चुके थे और उसका लाभ भी उठाया था। उनकी सफाई थी कि,एक कम्युनिस्ट होने के नाते उनका ज्योतिष पर विश्वास नहीं है परंतु लड़के वालों की इच्छानुरूप जन्मपत्री देनी होती है।
मैंने उनको उपरोक्त संदर्भित लिंक पोस्ट का हवाला देकर बताया कि हम भी अंध-विश्वास-पाखंड और ढोंग का प्रबल विरोध करते हैं किन्तु ग्रह-नक्षत्रों के वैज्ञानिक प्रभाव को नकारना मानव अहित मे मानते हैं। तब उन्होने एक अलग कहानी बता कर उनके द्वारा ज्योतिष का विरोध करने की प्रवृत्ति को जायज ठहराया। उनका कथन था कि जब उनके बाबाजी (grand father)का देहावसान हुआ तब वह दो-ढाई वर्ष के थे और उनके पिताजी अवैतनिक छुट्टी पर रह कर लखनऊ मे उनका इलाज करा रहे थे और उस वक्त उनकी जेब मे मात्र एक रुपया ही शेष था। चूंकि उनके बाबाजी तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्र भानु गुप्त जी तथा IAS/IPS अधिकारियों के गुरु रहे थे अतः वे सब प्रतिदिन बलरामपुर अस्पताल मे उनको देखने आते रहते थे और व्यवस्था कराते रहते थे। उनकी अंतिम क्रिया की व्यवस्था भी प्रशासनिक तौर पर हुई। इस घटना के बाद उन पदाधिकारी साहब के पिताजी ने ब्राह्मण वंश मे होते हुये भी तेरहन्वी आदि कुसंस्कारों का परित्याग करके सदा के लिए 'धर्म-कर्म' को त्याग दिया था वह खुद भी उसी परंपरा का अनुसरण करते हुये ही कम्युनिस्ट बने हैं।
चाहें कम्युनिस्ट हों या और कोई प्रगतिशील या वैज्ञानिक धर्म को अफीम कहते हैं। नतीजा यह होता है कि,'धर्म' जिसका आशय शरीर और ज्ञान को धारण करना है यथा- 'सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य' को वे ठुकरा देते हैं और असफलता का सामना करते हैं जैसा कि 1991 मे रूस मे साम्यवादी शासन के पतन से सिद्ध हो जाता है। भारत मे भी 'स्टालिन' की सलाह की उपेक्षा करके वे रूसी लकीर के फकीर बने चले आ रहे हैं। इस सब का दुष्परिणाम यह होता है कि शोशंणकारी/उत्पीडंनकारी शक्तियाँ जनता के समक्ष 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' को धर्म के रूप मे पेश करके उसे उल्टे उस्तरे से मूढ़ने मे सफल हो जाती हैं।
यदि जनता को वास्तविक धर्म और वास्तविक 'भगवान'=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न(नीर-जल) जो खुद ही बने होने के कारण ' खुदा' कहलाते हैं और उत्पत्ति,स्थिति,संहार = G(जेनरेट)+O(आपरेट)+D(डेसट्राय) की प्रवृत्ति के कारण GOD भी कहे जाते हैं के बारे मे समझाया जाये तो वह व्यापारियों/उद्योगपतियों के ढोंगवाद को धर्म के धोखे मे न पूजे। किन्तु साईंसदा/प्रगतिशील कहलाने वाले लोग ही पाखंड और ढोंग के लिए खुला मैदान छोड़े रख कर उसे पोसते हैं।
23 जनवरी 2013 को मुझे सोशलिस्ट फाउंडेशन के अध्यक्ष और फारवर्ड ब्लाक के प्रदेशाध्यक्ष महोदय ने तीन विद्यालयों मे 'नेताजी सुभाष चंद्र बोस'के विषय मे अपने लेख से परिचित कराने को कहा था।
जिस दिन मैंने उनको कार्यक्रम मे भाग लेने की सहमति दी उसी दिन रात्रि 08-30 बजे एक पुराने क्लाईंट 23 जनवरी 2013 को ही अपने मकान का गृह-प्रवेश हवन मुझसे करवाने का आग्रह लेकर आए। यह मुहूर्त उन्होने एक कांग्रेसी सांसद के पुरोहित से निकलवाया था जो उनके लिए उचित भी नहीं था किन्तु वह सबको निमंत्रण पत्र भेज चुके थे। अतः उस दिन उनके लिए शुभ समय चुन कर उनको हामी भर दी जिसके लिए 'नेताजी सुभाष' के कार्यक्रमों को छोड़ने का खूब मलाल रहा। हमेशा ढंग से नियमानुसार हवन करने वाले उन साहब ने बहुत महत्वपूर्ण हवन भी अनमनेपन से किया ,मेरे बताने के बावजूद मेरी राय की उपेक्षा करके उन्होने अपने निवास मे 'मंदिर' भी बनवा कर खुद ही वास्तु-विकार भी उत्पन्न कर रखा है। अपने कर्मों का मर्म वे ही जानें मैंने अपनी ओर से पूर्ण विधि-नियमों के अनुसार उनका हवन सम्पन्न करा दिया है।
उनके पिताजी ने अपने जीवन की कारुणिक गाथा का ज़िक्र मुझसे निजी वार्ता मे किया कि उनकी 06 वर्ष की आयु मे उनके पिताजी (अर्थात क्लाईंट के पितामह) का निधन हो गया था वह श्रम-मजदूरी करते थे और उनके निधन के बाद उनकी माताजी ने बड़े कष्टों से उन लोगों को पाला-पोसा और पढ़ाया। बड़े होने पर उनको खुद भी रात्रि मे मजदूरी करके दिन मे अपनी पढ़ाई जारी रखनी पड़ी। LLb करके वह न्यायिक सेवा मे आ गए तथा हाई कोर्ट ,अलाहाबाद से सेवा निवृत होने के बाद भी 72 वर्ष की आयु तक विभिन्न आयोगों के सदस्य के रूप मे अपनी सेवाएँ प्रदान करते रहे। उनके तीनो पुत्र क्रमशः डाक्टर,एस पी,इंजीनियर हैं। पुत्रियाँ भी अच्छे खानदानों मे हैं । वह इस सब को अपने लिए परमात्मा की कृपा-प्रसाद मानते हैं। अपने बचपन मे जो कठोर श्रम और अध्यन उन्होने किया उसका प्रतिफल उनकी संतानों को भी मिल रहा है उनके अनुसार यह सब उनकी ईमानदारी का प्रतिफल है। उनके जीवन से प्रेरणा ग्रहण की जा सकती है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ,लखनऊ के ज़िला मंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ साहब ने इसी दिन अपनी एक पुत्री की शादी की सायत रखी थी। उससे एक दिन पूर्व रात्रि से ही मौसम मे अचानक ठंड काफी बढ़ गई थी सुबह काफी घना कोहरा था किन्तु बाद मे दिन मे धूप अच्छी हो गई थी। शाम को उनके यहाँ कार्यक्रम मे आए कई कामरेड्स से मुलाक़ात हुई। प्रदेश के एक पदाधिकारी साहब मुझ से ज्योतिष के प्रश्न पर वार्ता करने लगे। ज्योतिष विरोधी यह कामरेड कुछ ही दिन पूर्व अपनी पुत्री के विवाह हेतु मुझसे ज्योतिषीय परामर्श ले चुके थे और उसका लाभ भी उठाया था। उनकी सफाई थी कि,एक कम्युनिस्ट होने के नाते उनका ज्योतिष पर विश्वास नहीं है परंतु लड़के वालों की इच्छानुरूप जन्मपत्री देनी होती है।
मैंने उनको उपरोक्त संदर्भित लिंक पोस्ट का हवाला देकर बताया कि हम भी अंध-विश्वास-पाखंड और ढोंग का प्रबल विरोध करते हैं किन्तु ग्रह-नक्षत्रों के वैज्ञानिक प्रभाव को नकारना मानव अहित मे मानते हैं। तब उन्होने एक अलग कहानी बता कर उनके द्वारा ज्योतिष का विरोध करने की प्रवृत्ति को जायज ठहराया। उनका कथन था कि जब उनके बाबाजी (grand father)का देहावसान हुआ तब वह दो-ढाई वर्ष के थे और उनके पिताजी अवैतनिक छुट्टी पर रह कर लखनऊ मे उनका इलाज करा रहे थे और उस वक्त उनकी जेब मे मात्र एक रुपया ही शेष था। चूंकि उनके बाबाजी तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्र भानु गुप्त जी तथा IAS/IPS अधिकारियों के गुरु रहे थे अतः वे सब प्रतिदिन बलरामपुर अस्पताल मे उनको देखने आते रहते थे और व्यवस्था कराते रहते थे। उनकी अंतिम क्रिया की व्यवस्था भी प्रशासनिक तौर पर हुई। इस घटना के बाद उन पदाधिकारी साहब के पिताजी ने ब्राह्मण वंश मे होते हुये भी तेरहन्वी आदि कुसंस्कारों का परित्याग करके सदा के लिए 'धर्म-कर्म' को त्याग दिया था वह खुद भी उसी परंपरा का अनुसरण करते हुये ही कम्युनिस्ट बने हैं।
चाहें कम्युनिस्ट हों या और कोई प्रगतिशील या वैज्ञानिक धर्म को अफीम कहते हैं। नतीजा यह होता है कि,'धर्म' जिसका आशय शरीर और ज्ञान को धारण करना है यथा- 'सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य' को वे ठुकरा देते हैं और असफलता का सामना करते हैं जैसा कि 1991 मे रूस मे साम्यवादी शासन के पतन से सिद्ध हो जाता है। भारत मे भी 'स्टालिन' की सलाह की उपेक्षा करके वे रूसी लकीर के फकीर बने चले आ रहे हैं। इस सब का दुष्परिणाम यह होता है कि शोशंणकारी/उत्पीडंनकारी शक्तियाँ जनता के समक्ष 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' को धर्म के रूप मे पेश करके उसे उल्टे उस्तरे से मूढ़ने मे सफल हो जाती हैं।
यदि जनता को वास्तविक धर्म और वास्तविक 'भगवान'=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न(नीर-जल) जो खुद ही बने होने के कारण ' खुदा' कहलाते हैं और उत्पत्ति,स्थिति,संहार = G(जेनरेट)+O(आपरेट)+D(डेसट्राय) की प्रवृत्ति के कारण GOD भी कहे जाते हैं के बारे मे समझाया जाये तो वह व्यापारियों/उद्योगपतियों के ढोंगवाद को धर्म के धोखे मे न पूजे। किन्तु साईंसदा/प्रगतिशील कहलाने वाले लोग ही पाखंड और ढोंग के लिए खुला मैदान छोड़े रख कर उसे पोसते हैं।
23 जनवरी 2013 को मुझे सोशलिस्ट फाउंडेशन के अध्यक्ष और फारवर्ड ब्लाक के प्रदेशाध्यक्ष महोदय ने तीन विद्यालयों मे 'नेताजी सुभाष चंद्र बोस'के विषय मे अपने लेख से परिचित कराने को कहा था।
जिस दिन मैंने उनको कार्यक्रम मे भाग लेने की सहमति दी उसी दिन रात्रि 08-30 बजे एक पुराने क्लाईंट 23 जनवरी 2013 को ही अपने मकान का गृह-प्रवेश हवन मुझसे करवाने का आग्रह लेकर आए। यह मुहूर्त उन्होने एक कांग्रेसी सांसद के पुरोहित से निकलवाया था जो उनके लिए उचित भी नहीं था किन्तु वह सबको निमंत्रण पत्र भेज चुके थे। अतः उस दिन उनके लिए शुभ समय चुन कर उनको हामी भर दी जिसके लिए 'नेताजी सुभाष' के कार्यक्रमों को छोड़ने का खूब मलाल रहा। हमेशा ढंग से नियमानुसार हवन करने वाले उन साहब ने बहुत महत्वपूर्ण हवन भी अनमनेपन से किया ,मेरे बताने के बावजूद मेरी राय की उपेक्षा करके उन्होने अपने निवास मे 'मंदिर' भी बनवा कर खुद ही वास्तु-विकार भी उत्पन्न कर रखा है। अपने कर्मों का मर्म वे ही जानें मैंने अपनी ओर से पूर्ण विधि-नियमों के अनुसार उनका हवन सम्पन्न करा दिया है।
उनके पिताजी ने अपने जीवन की कारुणिक गाथा का ज़िक्र मुझसे निजी वार्ता मे किया कि उनकी 06 वर्ष की आयु मे उनके पिताजी (अर्थात क्लाईंट के पितामह) का निधन हो गया था वह श्रम-मजदूरी करते थे और उनके निधन के बाद उनकी माताजी ने बड़े कष्टों से उन लोगों को पाला-पोसा और पढ़ाया। बड़े होने पर उनको खुद भी रात्रि मे मजदूरी करके दिन मे अपनी पढ़ाई जारी रखनी पड़ी। LLb करके वह न्यायिक सेवा मे आ गए तथा हाई कोर्ट ,अलाहाबाद से सेवा निवृत होने के बाद भी 72 वर्ष की आयु तक विभिन्न आयोगों के सदस्य के रूप मे अपनी सेवाएँ प्रदान करते रहे। उनके तीनो पुत्र क्रमशः डाक्टर,एस पी,इंजीनियर हैं। पुत्रियाँ भी अच्छे खानदानों मे हैं । वह इस सब को अपने लिए परमात्मा की कृपा-प्रसाद मानते हैं। अपने बचपन मे जो कठोर श्रम और अध्यन उन्होने किया उसका प्रतिफल उनकी संतानों को भी मिल रहा है उनके अनुसार यह सब उनकी ईमानदारी का प्रतिफल है। उनके जीवन से प्रेरणा ग्रहण की जा सकती है।
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