शीर्षक बनाई गई पंक्तियाँ मुझे सदा ही परम प्रिय रही हैं। निजी जीवन मे मैंने कभी किसी के समक्ष सिर नहीं झुकाया है चाहे जितनी भी विपरीत परिस्थितियाँ सामने रही हों। जब इस ब्लाग का प्रारम्भ किया था तो ध्येय यही था कि ऐसी परिस्थितियों के उल्लेख से बचा रहूँगा। इसी कारण रांची के एक ब्लागर ने 06-10-2010 को यह टिप्पणी भी की थी-"यादें-संस्मरण अक्सर खट्ट्-मीठे होते हैं पर ये रोचक रहे..."। परंतु यह टिप्पणी बड़ी खौफनाक निकली और परिस्थितिए इस प्रकार की बना दी गई कि तमाम लोगों के खुलासे करने ही पड़े।
04 अगस्त 1995 को एक डाक्टर साहब (जो अपने श्वसुर साहब के रेजिस्ट्रेशन पर अपनी पत्नी के नाम पर औश्द्धालय चलते थे)मुझ पर यह दबाव डालने आए कि मैं उनके चचिया श्वसुर डॉ साहब(जिनको हमारे बहनोई साहब ने अपने भतीज दामाद-'कुक्कू ' के माध्यम से खरीदवा कर धोखा दिलवाया था)से पुनः मेल-जोल कायम करूँ अन्यथा वह पैसे के ज़ोर से मुझे झुका लेंगे।उस समय मैं घर पर अकेला था यशवन्त स्कूल मे था और शालिनी, बाबूजी व बउआ का निधन हो चुका था । मैंने उनको जवाब दिया था-"मिस्टर उपाध्याय आप पैसे के ज़ोर से मेरा सिर कटवा तो सकते हैं पर झुकवा नहीं सकते।" इतना सुनते ही वह चुप-चाप खिसक लिए थे। बाद मे किसी झमेले मे फँसने पर उनको डाक्टरी की प्रेक्टिस बंद करनी पड़ी थी।
एक मेनेजमेंट इन्स्टीच्यूट के संचालक एक हेंकड़बाज ने जब मुझसे बिला वजह यह कहा कि मुझको वह अभी छह इंच छोटा कर देंगे( यशवन्त इस समय भी स्कूल मे था) और मैं तत्काल घर से बाहर निकल आया और कहा कि जानते हैं तुम बड़े मर्डरर हो अभी और इसी वक्त हमारा भी मर्डर करते जाओ ,मेरे साथ-साथ पूनम भी आ गई और उन्होने भी कहा कि उनका भी मर्डर हाथ के हाथ करते जाओ। उस दिन के बाद से कई वर्ष तक वह हेंकड़बाज़ सामने पड़ने पर सिर झुका कर मुंह छिपा कर बचता फिरता रहा फिर उसके एक दोस्त ने मुझसे कहा कि उसे छोटा समझ कर माफ कर दीजिये उसकी गलती के लिए वह दूसरे सज्जन खुद माफी मांगने लगे।
प्रारम्भ मे जिस टिप्पणी का ज़िक्र हुआ है उस टिप्पणी दाता ने हमारे ज़िले बाराबंकी के एक ब्लागर और पूनम के ज़िले पटना के एक ब्लागर को ब्लाग जगत मे हमारे विरुद्ध अनर्गल प्रचार हेतु उकसाया/भड़काया और लामबंद किया। ऊपर दिये गए दोनों उदाहरणों मे केवल बाहरी लोग थे उन से सख्ती करने पर वे ढीले पड़ गए। परंतु इन ब्लागर्स को पर्दे के पीछे से हमारी छोटी बहन-बहनोई,भांजी का भी शह-समर्थन मिला हुआ है और हमारे खान-दान के भाई-बहनों का भी। इसलिए इन ब्लागर्स के पीछे ब्लागर्स के अलावा भी और कई लोग समर्थन मे आ डटे हैं। चूंकि बहन-बहनोई नहीं चाहते थे कि माता-पिता के निधन के बाद उनके द्वारा पसंद की गई पूनम से मैं विवाह करता। अतः उनकी श्रीवास्तव बिरादरी के ब्लागर्स को ही चुन कर षड्यंत्र का सूत्रधार बनाया गया। एक प्रादेशिक राजनेता श्रीवास्तव साहब को भी मेरे विरुद्ध षड्यंत्र का मोहरा बनाया जा रहा है। उक्त टिप्पणी दाता ब्लागर की श्वसुराल से संबन्धित दो ब्राह्मण राजनेताओं को भी हमारे परिवार को नुकसान पहुंचाने हेतु नियुक्त किया गया है।
मनसा-वाचा-कर्मणा न तो हमने किसी को नुकसान पहुंचाया है न बुरा किया है बल्कि इनमे से कई ने पहले हमसे ज्योतिषीय लाभ प्राप्त किया और उसके बाद एहसान फरामोशी की है। परमात्मा और प्रकृति की मार से उनका बचना नितांत असंभव ही होगा परंतु अपने धन/ज्ञान के गरूर मे वे ब्लागर्स और राजनेता एक के बाद एक गलत कदम उठाते जा रहे हैं और मैं उनके खुद उनके अपने ही बुने जाल मे फँसने का इतमीनान से इंतज़ार कर रहा हूँ ;किन्तु इस 'धैर्य व संयम' को वे सभी मेरी कमजोरी के रूप मे आंक रहे हैं। उनका यह आंकलन ही हमारा संबल व पूंजी है।
04 अगस्त 1995 को एक डाक्टर साहब (जो अपने श्वसुर साहब के रेजिस्ट्रेशन पर अपनी पत्नी के नाम पर औश्द्धालय चलते थे)मुझ पर यह दबाव डालने आए कि मैं उनके चचिया श्वसुर डॉ साहब(जिनको हमारे बहनोई साहब ने अपने भतीज दामाद-'कुक्कू ' के माध्यम से खरीदवा कर धोखा दिलवाया था)से पुनः मेल-जोल कायम करूँ अन्यथा वह पैसे के ज़ोर से मुझे झुका लेंगे।उस समय मैं घर पर अकेला था यशवन्त स्कूल मे था और शालिनी, बाबूजी व बउआ का निधन हो चुका था । मैंने उनको जवाब दिया था-"मिस्टर उपाध्याय आप पैसे के ज़ोर से मेरा सिर कटवा तो सकते हैं पर झुकवा नहीं सकते।" इतना सुनते ही वह चुप-चाप खिसक लिए थे। बाद मे किसी झमेले मे फँसने पर उनको डाक्टरी की प्रेक्टिस बंद करनी पड़ी थी।
एक मेनेजमेंट इन्स्टीच्यूट के संचालक एक हेंकड़बाज ने जब मुझसे बिला वजह यह कहा कि मुझको वह अभी छह इंच छोटा कर देंगे( यशवन्त इस समय भी स्कूल मे था) और मैं तत्काल घर से बाहर निकल आया और कहा कि जानते हैं तुम बड़े मर्डरर हो अभी और इसी वक्त हमारा भी मर्डर करते जाओ ,मेरे साथ-साथ पूनम भी आ गई और उन्होने भी कहा कि उनका भी मर्डर हाथ के हाथ करते जाओ। उस दिन के बाद से कई वर्ष तक वह हेंकड़बाज़ सामने पड़ने पर सिर झुका कर मुंह छिपा कर बचता फिरता रहा फिर उसके एक दोस्त ने मुझसे कहा कि उसे छोटा समझ कर माफ कर दीजिये उसकी गलती के लिए वह दूसरे सज्जन खुद माफी मांगने लगे।
प्रारम्भ मे जिस टिप्पणी का ज़िक्र हुआ है उस टिप्पणी दाता ने हमारे ज़िले बाराबंकी के एक ब्लागर और पूनम के ज़िले पटना के एक ब्लागर को ब्लाग जगत मे हमारे विरुद्ध अनर्गल प्रचार हेतु उकसाया/भड़काया और लामबंद किया। ऊपर दिये गए दोनों उदाहरणों मे केवल बाहरी लोग थे उन से सख्ती करने पर वे ढीले पड़ गए। परंतु इन ब्लागर्स को पर्दे के पीछे से हमारी छोटी बहन-बहनोई,भांजी का भी शह-समर्थन मिला हुआ है और हमारे खान-दान के भाई-बहनों का भी। इसलिए इन ब्लागर्स के पीछे ब्लागर्स के अलावा भी और कई लोग समर्थन मे आ डटे हैं। चूंकि बहन-बहनोई नहीं चाहते थे कि माता-पिता के निधन के बाद उनके द्वारा पसंद की गई पूनम से मैं विवाह करता। अतः उनकी श्रीवास्तव बिरादरी के ब्लागर्स को ही चुन कर षड्यंत्र का सूत्रधार बनाया गया। एक प्रादेशिक राजनेता श्रीवास्तव साहब को भी मेरे विरुद्ध षड्यंत्र का मोहरा बनाया जा रहा है। उक्त टिप्पणी दाता ब्लागर की श्वसुराल से संबन्धित दो ब्राह्मण राजनेताओं को भी हमारे परिवार को नुकसान पहुंचाने हेतु नियुक्त किया गया है।
मनसा-वाचा-कर्मणा न तो हमने किसी को नुकसान पहुंचाया है न बुरा किया है बल्कि इनमे से कई ने पहले हमसे ज्योतिषीय लाभ प्राप्त किया और उसके बाद एहसान फरामोशी की है। परमात्मा और प्रकृति की मार से उनका बचना नितांत असंभव ही होगा परंतु अपने धन/ज्ञान के गरूर मे वे ब्लागर्स और राजनेता एक के बाद एक गलत कदम उठाते जा रहे हैं और मैं उनके खुद उनके अपने ही बुने जाल मे फँसने का इतमीनान से इंतज़ार कर रहा हूँ ;किन्तु इस 'धैर्य व संयम' को वे सभी मेरी कमजोरी के रूप मे आंक रहे हैं। उनका यह आंकलन ही हमारा संबल व पूंजी है।
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