रविवार, 14 अप्रैल 2013

उदारता और पात्र की अनुकूलता ---विजय राजबली माथुर


हाई स्कूल के कोर्स मे हिन्दी मे एक लेख के अंश पढे थे जो आज भी याद हैं और सही लगते हैं। "उदारता एक मानवीय गुण है और सभी को उदार होना चाहिए। किन्तु उसके साथ-साथ पात्र की अनुकूलता भी होनी चाहिए। "जब कभी अनुकूल पात्र की पहचान किए बगैर किसी  के साथ उदारता बरती है तब-तब भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है। पूना प्रवासी 'भ्रष्ट,निकृष्ट और धृष्ट ब्लागर 'का मामला भी ऐसा ही है। पहले चार जन्मपत्रियों का विश्लेषण निशुल्क प्राप्त कर के फिर ज्योतिष विरोधी लेख कई दूसरे ब्लागर्स से लिखवाये गए। इनमे से एक लखनऊ वासी ब्लागर ने तो टिप्पणी मे अभद्र भाषा का भी प्रयोग मेरे लिए किया था। अब वही ब्लागर महोदय मुझे तथा यशवन्त को फोन करके अपने लिए किसी अंतर्राष्ट्रीय कंपटीशन मे 'वोट' मांग रहे हैं। इस हेतु 36 किलोमीटर दूर मेरे घर भी आने को तैयार हैं। जब पूना प्रवासी 'ठग ब्लागर' के उकसावे पर मेरे विरुद्ध टिप्पणी कर रहे थे तब तो हेंकड़ी और घमंड मे थे अब हमे समर्थन देने को किस मुंह से कह रहे हैं?यही है आज की प्रगतिशीलता?

दिनांक 11 अप्रैल,2013 को यह फेसबुक पर दिया गया स्टेटस था जिसे संबन्धित सहयोगी  ब्लाग पर भी टिप्पणी के रूप मे चस्पा कर दिया था। ब्लाग संचालक ने इस टिप्पणी को हटा दिया किन्तु फेसबुक पर आई प्रतिक्रिया और समर्थन तो हमारे पास सुरक्षित हैं ही-


  • Girish Pankaj chinta n kare. aap vijayi honge.

  • भूपट शूट उसे अब गरज हैं वोट और बड़े आदमी के रूप में आपके समर्थन से भी सहयोग लेकर उभरने की.
    12 hours ago · Unlike · 2

    कितने आश्चर्य की बात है टिप्पणी हटाने वाले ब्लाग संचालक साहब ने 12 अप्रैल 2013 को किसी इंटरवियू मे किसी खास ब्लाग की निंदा कर दी और उसके संचालक ने संपादक से उन ब्लागर साहब द्वारा रुपयों के एवज मे नाम छापने का इल्जाम लगा दिया जिस पर अब इल्जामकरता ब्लागर को 'मान हानि' का मुकदमा झेलने को कहा गया है। एक वकील साहब ने रुपए देने वालों को यह धमकी देकर कि 'लेना व देना'दोनों अपराध हैं चुप रहने का इशारा किया है। 'चोर की दाढ़ी मे तिनका'कहावत को चरतार्थ करते हुये 'भृष्ट-धृष्ट-ठग'ब्लागर ने टिप्पणी दी है-
    ..... ' ने कहा…
    "लोग अपने कार्य से अलग किस उधेड़बुन में हैं !!! बहुत दुखद है = किताब के पैसे देना या साहित्य में अपना योगदान देना पैसे माँगना है तो ऐसी सोच के साथ कुछ नहीं कर सकते ...... मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ है ".
    ये तो ऐरे-गैरे-नत्थू -खैरे लोग थे जो ब्लाग के माध्यम से हमसे ज्योतीषीय लाभ लेकर आंखे तरेर गए। लेकिन जिनसे कभी रिश्ता रहा और उस रिश्ते के  आधार पर उन लोगों ने हमसे लाभ उठाया और हमारे वक्त पर उन लोगों ने आंखे तरेरते हुये कहा था कि मैंने उनको इसलिए मदद की थी कि मैं बेवकूफ था। लिहाजा उन लोगों से संपर्क समाप्त कर दिया था। पहले पूनम ने उन लोगों से संपर्क पुनः जोड़ना चाहा था फिर एक रिश्तेदार के माध्यम से उनसे आना-जाना चालू करने पर उन्होने यशवन्त को मोहरा बना कर किस प्रकार उत्पीड़न करने का कुत्सित प्रयास किया वह निम्नाकिंकित स्कैन कापियों से ज्ञात हो जाएगा---  



    यह भी दृष्टव्य : है कि,उन लोगों के यहाँ रिश्ता जुड़वाने वाले कमलेश बाबू ऊपर-ऊपर हम लोगों के सगे बने रहे और अंदरूनी तौर पर हम लोगों के विरुद्ध उन लोगों को मदद करते रहे क्योंकि उनको कुक्कू जो उनका भतीज दामाद है को प्लीज़ करना था। हमारे यशवन्त की इच्छानुसार  आगरा छोड़ कर लखनऊ आने की बात भी उन्हें न सुहाई। अपने भाई के माध्यम से हमे परेशान करने मे विफल रहने पर अपनी पूनावासी छोटी पुत्री के माध्यम से उन्होने पूना प्रवासी 'भृष्ट-धृष्ट-ठग'ब्लागर का चयन किया जिसने बाराबंकी और रांची स्थित ब्लागरों की मदद से ब्लाग जगत व हमारी पार्टी मे भी हमे परेशान करने का उपक्रम किया। 

    आम तौर पर धनाढ्य लोग समझते हैं कि वे अपने 'धन' और 'छल' से सबको अपने पीछे लामबंद करके जिसे चाहे उसे नेस्तनाबूद कर सकते हैं। वे यह नहीं समझ पाते कि 'सत्य,नीति और न्याय' के मार्ग पर चलने वाला चाहे कितना ही अभाव-ग्रस्त  क्यो न हो कभी भी धनवानों के समक्ष घुटने नहीं टेक सकता है। परमात्मा और प्रकृति ही ऐसे धूर्त लोगों को समय पर सीख दे देते हैं। अतः मैंने कभी भी किसी भी आक्रमण का उसी तरह का जवाब देने का प्रयास नहीं किया है। उस ग्रुप मे आपस मे मुक़दमेबाज़ी की धमकियाँ और सफाई उनके गुनाहों को भले ही ढकने मे कामयाब हो जाएँ परंतु अंततः अपने कुकर्मों का फल तो उन्हें ही भोगना होगा। किसी की उदारता को उसकी कमजोरी समझना,समझने वाले की अपनी भूल है। 

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