शुक्रवार, 3 जून 2011

आगरा/१९७८-७९ (भाग-२)

नवम्बर १९७८ में जब भांजी को लेकर बाबूजी आये थे तो उसका स्वास्थ्य ज्यादा बेहतर नहीं था क्योंकि वह वहां सूखा रोग के कारण जन्मतः ऐसी थी.हमारे घर रह कर जब अलीगढ़ लौटी तो वहीं के स्टूडियो में खींचे फोटो के अनुसार इतना सुधार  हुआ था.
(बीमारी के दौरान अलीगढ में  रत्ना )
(आगरा में स्वास्थ्य लाभ के दौरान रत्ना )
(आगरा से लौटने के बाद अलीगढ के स्टूडियो में खींचा गया रत्ना का फोटो )

  मेरे छुट्टियों के दौरान लगभग पूरा लेखा विभाग (बैक आफिस के सभी लोग)भांजी को देखने और मिलने आये थे.आखिर उन लोगों ने भी तो जडी -बूटियाँ लाकर दी थीं.सभी ने उसे गोद में लिया था. जाड़ों में एक बार खुले बारामदे में गर्म पानी से बहन जी भांजी को नहलाने लगीं ,बउआ ने गुसलखाने में बंद दरवाजे में नहलाने को कहा ताकि सर्दी-गर्मी से नुक्सान न हो तो बहन जी माँ पर बिफर गईं और उनसे बोल-चाल बंद कर दी.जाड़ों भर फिर बउआ ने ही उसे  नहलाया.एक बार बहन जी दिन में गहरी नींद सो गईं और बच्ची के भूखे होने पर भी उसके जगाने से नहीं जागीं तो मैंने छोटी कटोरी में उसे कुछ परमल के दाने दे कर कसार (घी में आटा भून कर चीनी मिला )उसे दिया ,हालांकि इस हेतु बउआ से डांट भी सुनी कि जब उसकी माँ को चिंता नहीं है तो तुम क्यों खैरख्वाह बने.अभी कुछ दिन पहले यह भांजी ,उसकी बेटी और भांजा दामाद कुछ घंटों के लिए हमारे घर भी लखनऊ आने पर आये थे.

पहली जनवरी १९७९ को छुट्टियों  से लौट कर मैंने अपनी ड्यूटी ज्वाइन कर ली थी.इसी त़ा. से प्रभावित 'सुपरवाइजर अकाउंट्स' के रूप में प्रमोशन भी बाद में मुझे मिला,परन्तु यों ही नहीं -उसके लिए पहले मुझे काफी त्याग करना पड़ा.उसके जिक्र से पहले युनियन के रजिस्ट्रेशन के बाद के घटनाक्रम को बताना जरूरी है.

हमारी युनियन के अध्यक्ष सी.पी.भल्ला साहब ने रजिस्ट्रेशन होते ही मेनेजमेंट के समक्ष मान्यता प्रदान करने की मांग रख दी.पर्सोनल मेनेजर झा साहब ने जेनेरल मेनेजर पेंटल साहब से पक्ष में सिफारिश कर दी.हमारी युनियन-'होटल मुग़ल कर्मचारी संघ'को मेनेजमेंट ने मान्यता शीघ्र ही दे दी ,जिस दिन यह घोषणा हुई उस दिन फ़ूड एंड बेवरेज मेनेजर कार्यवाहक जी.एम्.थे .उन्होंने मेनेजमेंट की तरफ से सम्पूर्ण स्टाफ को 'गाला लंच' देने का भी एलान कर दिया.मैं वैसे वहां लंच नहीं लेता था,परन्तु अध्यक्ष,कार्यकारिणी सदस्यों तथा झा साहब का आग्रह टाल न सका और उस दिन वह लंच करना ही पडा.

यूनियन रजिस्टर्ड होने तथा मान्यता भी मिल जाने से स्टाफ का भारी दबाव था कि वेतन बढ़वाया जाए ,हालांकि उस वक्त होटल मुग़ल आगरा का हायेस्ट पे मास्टर था. हम लोगों ने एक चार्टर आफ डिमांड बना कर पर्सोनल मेनेजर को सौंप दिया. हमारे साथियों ने जितना चाहते थे उसका दुगुना वेतन बढाने की मांग रख दी जिसे देखते ही झा साहब व्यंग्य से मुस्करा दिए और बोले इसे तो हेड क्वार्टर भी मंजूर नहीं करने वाला.कई बैठकों के बाद भी जब कार्यकारिणी ने बार-बार इसी की पुष्टि कर दी तो झा साहब नया तर्क ले कर आये कि यह चार्टर आफ डिमांड उन पदाधिकारियों द्वारा बनाया गया है जिन्हें स्टाफ ने नहीं चुना था,लिहाजा फ्रेश मेंनडेट लेकर आओ .भल्ला साहब जो कभी ओबेराय होटल में भी पेंटल साहब के साथ काम कर चुके थे स्टाफ का भरोसा नहीं जीत सकते थे लिहाजा मैंने खुद एक दुसरे व्यक्ति को अध्यक्ष पद के लिए यह कह कर तैयार किया कि प्रत्यक्ष तौर पर तो मुझे भल्ला साहब का ही समर्थन करना होगा लेकिन जिताएंगे तुम्हे ही .वह शख्स अनजान थे और मुफ्त में युनियन की अध्यक्षता मिलती नजर आ रही थी. खुशी -खुशी राजी हो गए.

अध्यक्ष पद के दो उम्मेदवार हो गए किन्तु मेरे सेक्रेटरी जेनरल तथा कोषाध्यक्ष पद के लिए कोई दावेदार नहीं था.एक सज्जन को पकड़ कर कोषाध्यक्ष पद हेतु नामांकन कराया क्योंकि उस समय के कोषाध्यक्ष को संभावित प्रमोशन के कारण पद छोड़ना था.दो पद निर्विरोध निर्वाचित घोषित हुए.केवल अध्यक्ष पद का ही चुनाव हुआ.कार्यकारिणी सदस्य भी विभागों से निर्विरोध निर्वाचित हो गए थे.अध्यक्ष भल्ला साहब हर जगह मुझे साथ-साथ अपने प्रचार में ले जाते थे. मैं यही कहता था -आप लोगों ने भल्ला साहब का कार्य देखा है ,संतुष्ट हैं तो इन्हें ही पुनः मौक़ा दें.

लोगों को पता था मैं किसे चाहता हूँ और उन्हें वोट किसे देना है.झा साहब ने कूटनीति फेंकते हुए लोगों द्वारा मेरी पसन्द के उम्मेदवार को ही जिताने का अपनी और से प्रयास किया ताकि भल्ला साहब को बाद में समझाया जा सके और मेरे विरोधी के तौर  पर खड़ा किया जा सके.जैसा कि स्वभाविक था ठाकुर पुष्पेन्द्र बहादुर सिंह लगभग एकतरफा वोट पाकर जीत गए.भल्ला साहब चाहते थे मैं उनकी हार के बाद पद त्याग कर दूँ.परन्तु पेंटल साहब खूब होशियार थे उन्होंने यह समझते और बूझते हुए कि भल्ला साहब हारे ही इसलिए कि उन्हें मेरा समर्थन था ही नहीं,एक अन्य कार्यकारिणी सदस्य  श्री दीपक भाटिया के माध्यम से उन्होंने मुझे सन्देश भिजवाया कि यदि  मैं श्री भाटिया को पदाधिकारी बना लूं तो पेंटल साहब हर विवाद में मेरा ब्लाइंड समर्थन करेंगें.चूंकि झा साहब खुद को रिंग मास्टर समझते थे और युनियन को पाकेट युनियन बनाना चाहते थे इसलिए मुझे भी अपनी बातें मनवाने के लिए पेंटल साहब का समर्थन मिलने का आश्वासन घाटे  का सौदा नहीं लगा. 

श्री दीपक भाटिया पहले फिल्म ऐक्ट्रेस जया भादुरी के पी.ए.थे और उनकी शादी अमिताभ बच्चन से हो जाने पर कुछ दिन जया  के कहने पर भाटिया को अपना अतिरिक्त पी.ए.बनाये रखा परन्तु वह सरप्लस ही थे.आगरा के होने के कारण भाटिया को श्री बच्चन ने पेंटल साहब से कह कर ही मुग़ल में जाब दिलवाया था और वह पेंटल साहब के प्रति एहसानमंद भी थे.अतः श्री पेंटल ने भल्ला के बदले भाटिया को तरजीह दे दी. हमने श्री भाटिया को सेकिंड ज्वाइंट सेक्रेटरी पद दे दिया.

 पुनः चुनावों में जीत कर आई नई कार्यकारिणी ने भी पुराने चार्टर  आफ डिमांड को ही पास कर दिया अतः झा साहब के पास निगोशिएशन के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा.कई दौर की धुंआ धार मीटिंगों के बाद एक निश्चित वेतन मान को लेकर मेनेजमेंट के साथ सहमति बनाने के फार्मूले को ढूँढा गया.इसमें न्यूनतम वेतन-वृद्धि रु.४५/-और अधिकतम रु.९०/-किया जाना था सबसे निचले ग्रेड को अधिकतम और ऊपर उठते ग्रेड्स में कम वृद्धि होनी थी.आफिस के लोगों विशेषकर  लेखा विभाग वालों की कम वृद्धि का प्रस्ताव था.बस यहीं झा साहब को खेल करने का मौका भी था.उन्होंने अध्यक्ष को और पुराने अध्यक्ष को लेखा विभाग के मेरे साथियों के मध्य मेरी छवि ख़राब करने की मुहीम पर लगा कर कार्यकारिणी में एक अलग स्वर उठवा दिया जिसे मेनेजमेंट-युनियन मीटिंग में उन्होंने खुला समर्थन भी दिया ,उद्देश्य था लोअर स्टाफ जिसकी तादाद ज्यादा थी के मध्य मेरी इमेज बिगड़ जाए.श्री दीपक भाटिया के माध्यम से पेंटल साहब का सन्देश मुझे मिल गया वही होगा जो मैं चाहता हूँ.११ सितम्बर १९७८ की मीटिंग में पेंटल साहब ने निर्णायक तौर पर कह दिया आज के बाद और कोई मीटिंग नहीं होगी और सेक्रेटरी जेनेरल द्वारा समर्थित वेतन वृद्धि को वह मंजूर करते हैं अब कोई बदलाव उन्हें मंजूर नहीं है.

प्रोमोशन के लिए जो लिस्ट मैंने दी थी उसमें से अपना नाम मुझे हटाना पड़ा,इसी विवाद  के कारण अतः मेरे अतिरिक्त सभी लोगों को अपग्रेड भी करने की बात मान ली गई.पेंटल साहब ने उठते-उठते कहा आप लोगों की डिमांड नहीं थी फिर भी साल में एक बार फ्री जूता यूनिफार्म के साथ देंगें.उनके इतना कहते ही मैंने तपाक से कह दिया और आप अपनी तरफ से दे ही क्या सकते हैं.मेरे जवाब पर सभी लोग ठट्टे लगाते हुए उठ गए और इस प्रकार 'एग्रीमेंट सेटलमेंट'सम्पन्न हो गया.

एग्रीमेंट के दौरान के झंझटों तथा मकान की प्रक्रिया के व्यवधानों का समाधान कैसे हुआ इसका जिक्र अगली बार.............

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बुधवार, 25 मई 2011

आगरा/१९७८-७९

आगरा आये थे राजनीतिक लक्ष्य के तहत,युनियन से दूर रहना चाहते थे और थुप गई गंभीर जिम्मेदारी.काम ओढ़ लिया तो करना था पूरी क्षमता से.अतः जब यूनियन के रजिस्ट्रेशन के लिए एक इन्स्पेक्टर जैन साहब उप-श्रमायुक्त कार्यालय,आगरा में पधारे तो मैंने उनके समक्ष महेश नानाजी का जिक्र कर दिया जो मेरठ से डिप्टी चीफ   इन्स्पेक्टर आफ फैक्टरीज होकर कानपुर गए थे. हालांकि उस वक्त वह रिटायर हो चुके थे.परन्तु जैन साहब ने कहा वह हमारे बॉस रहे हैं और तुम उनके रिश्तेदार हो और युनियन के सेक्रेटरी हो तो समझो इंस्पेक्शन हो गया और यूनियन रजिस्टर्ड हो गई इस आशय का लेटर डाक से भेज देंगे.सच में जैन साहब ने अपना वायदा पूरा किया और ०३.०४ .१९७८ की ता.में यूनियन रजिस्टर्ड होने का लेटर हमें जल्दी ही मिल गया. 

उधर लखनऊ से भी ०३ .०४ .१९७८ को ही मुझे कमला नगर ,आगरा में बी -५६० न. का मकान एलाट होने का लेटर तत्काल मिल गया.प्रथम किश्त जमा करने की आख़िरी ता. से पहले १० अप्रैल को रु.२९०/-सेन्ट्रल बैंक कमला नगर आगरा में जमा कर दिए.

इत्तिफाक से ०३ अप्रैल को ही अलीगढ़ में बहन को भी पुत्री रत्न की प्राप्ति हुयी.यह भान्जी शुरू से ही कमजोर और बीमार रही जिसकी फ़िक्र हमारे बउआ -बाबूजी को परेशान किये रही. यूनियन की कारवाई,मकान की प्रक्रिया और भांजी के शीघ्र स्वास्थ्य के लिए उपाए तलाशना  सभी काम महत्वपूर्ण थे.हमारे स्टाफ के साथियों ने पूरी मदद की. बहन के जेठ के मित्र बाल रोग विशेग्य थे और बिरादरी के ही थे उन्होंने तथा वहां के पंडित ने भान्जी के जीवन के लिए ख़तरा बताया था.मैं तब तक ज्योतिष में पारंगत नहीं था.लेकिन पंडित वाद का प्रबल विरोधी था.मैंने काफी पहले जब मकान एलाट होने की कोई सूचना भी नहीं थी और प्रताप नगर के मकान में किराए पर थे तभी एक स्वप्न देखा था कि हम अपने मकान में हैं और बाहर के खुले कच्चे हिस्से में यह भान्जी ईंटों के कंकडों के  ढेर पर खड़े होकर सड़क पर फेंकती जा रही है.अर्थात मैं पूर्ण आश्वस्त था कि भान्जी सकुशल रहेगी.जब बहुत बाद में ऐसा ही हुआ तो मैंने बउआ को प्रत्यक्ष दिखा कर उस स्वप्न का जिक्र याद दिलाया था.

बाबूजी अलीगढ़ जाकर बहन और भान्जी से मिल आये थे और भान्जी की फिजिकल पोजीशन देख कर निराश थे.मैंने उस समय के अपने ज्ञान के आधार पर खराब ग्रहों के समाधान हेतु कुछ जडी-बूटियाँ एकत्र कीं और उनके विशिष्ट रेशमी कपड़ों में ताबीज बना कर अलीगढ़ ले गया.बहन जी की सास साहिबा ने कहा कि वे लोग इस पर विशवास नहीं करते हैं फिर भी मामा के नाते लाये हो तो अपने हाथ से ही पहना जाओ और मैंने उनके निर्देश का पालन किया.खिन्नी की जड़ एक सहकर्मी ने अपने घर के पेड़ से खोद कर ला दी तो दुसरे ने केले की जड़ ला दी ,अनंत मूल की जड़ हमने रावत-पाड़ा से खरीद ली.सफ़ेद चन्दन का ताबीज उन लोगों ने मेरे परामर्श पर वहीं तैयार कर लिया और बाद में पहना दिया. 

चूंकि अलीगढ़ी पंडित ने आठ माह भारी बताये थे अतः बहन के श्वसुर साहब ने वातावरण बदलने के नाम पर बाबूजी से बहन और भान्जी को आगरा ले आने को कहा.इस दौरान १२ नवम्बर १९७८ को हम लोग अपने मकान में कमला नगर आ चुके थे अतः उस मकान में ही भान्जी आयी.(मकान लेने की औपचारिकताएं,अड़ंगे एवं समाधान अगली बार)

होली के बाद बहन के श्वसुर साहब और सास साहिबा अपनी पोती को देखने हमारे घर आये जब उन्हें पूर्ण तस्सल्ली हो गई कि वह पूर्ण स्वस्थ है और उनके पंडित ने झूठा बहका दिया था (या वह समाधान नहीं जानते होंगे या ठगना चाहते होंगे) तब लौट कर बहन और भान्जी को बुलवा लिया.

जब मेरा ज्योतिषीय प्रयोग भान्जी पर सफ़ल रहा तो मैंने तन्मयता से  इस ज्ञान को बढ़ाया किन्तु पोंगा-पंथ से हट कर शुद्ध वैज्ञानिक आधार पर.

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बुधवार, 18 मई 2011

पैसा ,पोस्ट,रिश्ता,रीति-रस्म /आगरा-१९७६-७७(भाग ५)

बचपन में जब लखनऊ से शाहजहांपुर नानाजी के पास जाते थे या जब दिल्ली मौसी के पास गए थे या यहीं लखनऊ में ही मामाजी या भुआ के घर जाते थे तो खुशी ही होती थी और ऐसा भी एहसास कभी नहीं हुआ कि जहाँ कहीं गए उन लोगों को अच्छा नहीं लगा ;परन्तु ये बातें लगभग ५० वर्ष या और अधिक  पूर्व की हैं.अब यहाँ लखनऊ पुनः आने पर हमारे लखनऊ आने के प्रबल विरोधी रिश्तेदार जब यहाँ हमारे घर होकर गए तो लगा कि यदि वे अब तक न आये थे तो ही ठीक था. अब रिश्तों का कोई  महत्त्व नहीं है ,अब तो बस केवल पैसा और पोस्ट का महत्त्व है.जो पैसे या पोस्ट में बड़ा है वह खुद को रिश्ते में बड़े से भी अधिक बड़ा मानता है.पुराने संस्कार ,रीति-रिवाज जाने कैसे उड़न-छू हो गए हैं.
हमारे एक रिश्तेदार जो पोस्ट में सेमी-इंजीनियर कहे जा सकते हैं और स्वभाविक रूप से पैसे में बलशाली हैं अपने से बड़े रिश्ते को न मान कर खुद अपनी तान उस पर चलाना चाहते हैं.३०  -३५ वर्ष से उनकी यही तान चल रही थी तब तक तो ठीक था.अब जब रिश्ते में छोटे उन सेई सा :की सारी की सारी पोल-पट्टी खुल कर उजागर हो गयी तो वह जैसा अक्सर कहते रहे उसी अनुसार  रिश्ता ख़त्म मानने की कारवाई पर उतर आये.दरअसल आये तो वह अपनी भतीजी की शादी में थे,परन्तु शिष्टाचारवश उनसे अपने झोंपड़े पर आने को कह दिया था सो वह शादी से निवृत होकर पधारे थे.उनकी बड़ी बेटी ,दामाद और धेवती भी कुछ घंटों हेतु आये थे जब तक वे लोग रहे सेई सा :और उनकी श्रीमतीजी ठीक रहे उनके विदा होते ही अपनी फ़ार्म में आ गए.

नीचे यशवंत के साईबर में बैठ कर उसके तथा मेरे पोस्ट पढते रहे उतना तो ठीक था.,परन्तु उसकी मेन टेबिल के नीचे सिगरेट के जले टुकड़े डाल देना बिलकुल  अनुचित था जो उन्होंने किया.या तो वह आग लगा देना चाहते रहे या कुछ टोटका वगैरह किये होंगे ,अन्यथा ऐसा नहीं करना चाहिए था.उनकी श्रीमती जी को भी आर.एस.एस.के ब्लागर्स द्वारा की टिप्पणियाँ पसंद आयीं.यह भी रहस्य उजागर हुआ कि संभवतः उनकी छोटी बेटी ने खुद या किसी द्वारा फेक आई.डी.के जरिये कुछ ब्लागर्स संभवतः आर.एस.एस.से सम्बंधित को मेरे विरुद्ध बरगलाया अतः ऐसे ब्लागर्स ने समय-समय पर अनर्गल टिप्पणियाँ कीं उनमें कुछ एहसान फरामोश भी निकले क्योंकि उनके कल्याणार्थ मैं उन्हें कुछ स्तुतियाँ ई.मेल कर चुका था.ब्लागर्स तो बाहरी लोग थे लेकिन हमारे रिश्तेदार दम्पति को ऐसे लोग अच्छे लगे यह बात रहस्यपूर्ण लगी.इतना ही नहीं चलते समय औपचारिकता एवं परम्परानुसार जो टीका करके गोला-बताशे सेई सा :को दिए वे सब उन्होंने यहीं छोड़ दिए -बहाना फ्लाईट से जाने का किया.किन्तु जो शुगन हेतु रु.उन्हें दिए थे उन्हें ले जाने में कोई दिक्कत न होती फिर भी उसके दुगने करके दोनों लोग यशवंत को दे गए.मतलब यह हुआ की वे छोटे होकर भी हम से लेंगे नहीं क्योंकि छोटे तो रिश्तों में है;वस्तुतः पोस्ट और पैसा में वे हमसे वरिष्ठ हैं और इसी लिए दुगुना करके लौटा गए इतना ही नहीं एक और परंपरा है कि कहीं से आने के बाद तुरंत नहाते नहीं हैं.वैसे इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि गति के नियम के अनुसार आने-जाने से शरीर में गर्मी या ऊर्जा आ जाती है और पानी से नहाने पर ठंडा -गर्म होकर शरीर को क्षति पहुंचाता है इस तथ्य को पूर्वजों ने शगुन -बद -शगुन के साथ जोड़ दिया.जब ये लोग अपनी भतीजी की शादी के बाद दिन के दो बजे टेम्पो से हमारे घर आये तो नहीं नहाए  क्योंकि भतीजी का शगुन खराब नहीं करना था.जब हमारे घर से अपने घर पहुंचे तो रात के दस बजे दोनों-जन नहाए तब शगुन की बात नहीं थी.सेई सा :के जन्म-दिन पर मैंने उनके लिए ई.कार्ड ग्रीटिंग हेतु भिजवाया था,यशवंत ने उसे गलती से अपनी ई.मेल आईडी से भेज दिया था.अतः यहाँ आने पर उन्होंने यशवंत को फटकारा कि फालतू ई.मेल मत किया करो.ग्रीटिंग भेजना फालतू बात है !तो मुझे कहते मेरी तरफ से और मेरे नाम से था.ठीक है भविष्य में अब उन्हें कोई ग्रीटिंग उनकी इच्छानुसार नहीं भेजेंगें इससे पूर्व उनके छोटे दामाद भी यशवंत को ई.मेल भेजने पर फटकार चुके थे.और उनकी छोटी बेटी ने उसके बाद फेस बुक से यशवंत का नाम अपनी लिस्ट से हटा दिया था...

एक पी.सी.एस.आफीसर किसी प्रकार मेरे मित्र बन गए थे (किसी डिपार्टमेंटल मजबूरी में) उनका एक कथन मुझे बेहद प्रिय है-"पैसे वालों को जूते की ठोकर पर रखते हैं"उनके इस कथन को मैंने भी आत्मसात कर लिया है और ज्यादातर पूरा-पूरा अमल भी किया है.अब इन रिश्ते में छोटे लोगों को ठोकर तो नहीं मार सकते परन्तु जब वे रिश्ता नहीं मानते तो हम भी रिश्ता मानने के लिए बाध्य  नहीं है और उनके आगे झुकें क्यों?


१९७ ६ -७७  (भाग-५) 
हमारे इस किराए के मकान में एक एयर-फ़ोर्स के सा :अपने क्वार्टर में चले गए तो बाबू जी ने उनका कमरा भी किराए पर ले लिया क्योंकि कमलेश-बाबू पहली बार अपनी शादी के बाद आ रहे थे.उनसे बउआ ने जिक्र किया कि यह (मेरी तरफ इशारा करके) मेरी बात मान कर अब मकान लेने की प्रक्रिया चला रहा है.उन्होंने त्वरित उत्तर दिया कि हाँ अब तो यही ले सकते है ,अब बाबू जी कैसे ले सकते हैं?वह लेंगे तो उन्हें तीन लेने पड़ेंगें.वह तो एक-दो दिन में चले गए एक माह बाद बाबूजी ने पोपली सा :से कहा यह अतिरिक्त कमरा अब नहीं रखेंगें.वह राजी तो हो गए पर उन्हें अच्छा नहीं लगा ,पहले वाली सौम्यता नहीं रही.अब हमारे सामने फिर नया मकान खोजने की समस्या थी. मैंने बाबूजी से कहा इस बार मुझे अपने तरीके से देखने दीजिये क्योंकि अपना मकान एलाट होने पर फिर छोड़ना ही होगा. मैंने अपने होटल के एक ठेकेदार सुराना सा :से जिक्र किया जो बहुत मदद करने का प्रस्ताव करते थे. उन्होंने अपने घर के सामने प्रताप नगर में एक मकान दिला दिया जिसका एक कमरा मकान मालिक ने अपने लिए बन्द कर रखा था.

उल्टी गंगा 
दत्त सा :के कार्यकाल की इस घटना का उल्लेख न किया तो अकाउन्ट्स के जानकारों को जायकेदार मेथड से वन्चिंत रखना होगा.एक वर्ष लेजर आदि सब अधूरे थे और हेड क्वार्टर से समय निर्धारित हो गया जब तक अपनी यूनिट की बेलेंस शीट भेजनी थी. दत्त सा :ने अपने कागजों पर प्राफिट तय करके बेलेंस शीट बना कर भेज दी और हमें ट्रायल बेलेंस देकर कहा इस हिसाब से लेजर तैयार कर दो.अब हमें हर अकाऊंट का बेलेंस उस हिसाब से बैठाने  हेतु एंट्रीज अपने हिसाब से बनानी थीं जबकि होता यह है कि जो नेट बेलेंस होता है उसे ट्रायल बेलेंस में ले जाते हैं.यहाँ सब उलटा चल रहा था. इस प्रक्रिया में बँगला उपन्यासकार ताराशंकर बंदोपाध्याय के'पात्र-पात्री'में उल्लिखित गुड की भेली पर कहानी की याद आ गयी.पता नहीं दत्त सा :ने वह पढ़ा था या नहीं पर अमल कर दिया.

एक बार जब होटल के स्टाफ केफेटेरिया में पानी की सप्लाई बंद थी हमारे विभाग के लोगों को गर्मी में प्यास बर्दाश्त नहीं हो रही थी.उनकी व्याकुलता को देख कर मैंने उन सब को इकट्ठा किया और लेकर कारपोरेशन के पम्पिंग स्टेशन पर पानी पिलवा लाया .उन लोगों ने मुझ से भी पानी पीने को कहा परन्तु मैंने इस कारण नहीं पीया क्योंकि बिना किसी की इजाजत के सब को बाहर ले गए थे.बाद में यह बात चीफ अकाऊंटेंट और पर्सोनल मेनेजर तक गई और उन लोगों को ताज्जुब हुआ कि सब की प्यास बुझवा कर भी मैं सिर्फ सिद्धांतों के कारण प्यासा रहा.मेरे लिए सिद्धांत और सम्मान प्यारे हैं न कि धन-दौलत.यदि मैंने धन कमाने पर ध्यान दिया होता तो प्रोजेक्ट में महत्वपूर्ण पद पर काम करके तब ही लखपति हो जाता और आज ऊंचे पद से अवकाशप्राप्त होता.
ज्यादातर लोगों की निगाह में मैं इसीलिये मूर्ख हूँ और मुझे अपनी इस मूर्खता पर गर्व है.

यूनियन का रजिस्ट्रेशन,मान्यता और अपने मकान की बातें अगली बार ........






  

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बुधवार, 27 अप्रैल 2011

आगरा/१९७६ -७७ (भाग ४ )

जैसा कि पहले जिक्र कर चुका हूँ कि,मैंने जनता पार्टी की सरकार बनने एवं मोरारजी देसाई के प्रधान मंत्री चुने जाने की भविष्य वाणी कर रखी  थी और हमारे तत्कालीन यूं.ऍफ़ .सी.विनीत सक्सेना सा :उससे असहमत थे.मैंने बचपन में नानाजी के साथ  शाहजहांपुर में सभी राजनेताओं को सुनने तथा  फिर मेरठ में भी इसी परंपरा को जारी रखने का उल्लेख भी पूर्व में किया है.इमरजेंसी में हो रहे चुनावों में जब कि मेरी भविष्यवाणी दांव पर लगी हुयी थी मेरे द्वारा किसी भी राजनेता की सभा जो ड्यूटी के आड़े न हो छोड़ने का प्रश्न ही न था.हाँ किसी कांग्रेसी की सभा अलबत्ता इस बार नहीं सूनी जान -बूझ कर.सूना था रक्षा मंत्री बंसी लाल की कार को लोगों ने थूक -थूक कर खराब कर दिया था यह अफवाह थी या सच ?

१३ मार्च १९७७ को श्री हेमवती नंदन बहुगुणा की सभा हुयी थी.भारी भीड़ थी दिन भी रविवार था जिस दिन जूता कारीगरों की छुट्टी रहती है अतः वे बाबू जगजीवन राम के कारण बहुतायत में पहुंचे थे. बहुगुणा जी उस समय मुस्लिमों में बेहद लोकप्रिय थे अतः मुस्लिम भी थे और जनता पार्टी को जनसंघ का भी समर्थन होने से संघी भी खूब थे.मेरठ के भैन्साली ग्राउंड में लोकनायक जय प्रकाश नारायण की सभा में १९७५ में जितनी भीड़ थी शायद उससे भी ज्यादा आगरा के राम लीला ग्राउंड में लोग बहुगुणा जी को सुनने आये थे.भारी समर्थन से बहुगुणा जी गदगद थे.जूता कारीगरों में बौद्ध मत का प्रभाव देखते हुए उन्होंने आपात काल के किस्से सुनाते हुए कहा कि उस समय 'संजय शरणम् गच्छामि' चल रहा था.तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी की खिल्ली उड़ाते हए बहुगुणा जी ने उनके द्वारा संजय गांधी की चप्पलें उठा कर लाने की बात अपने जायकेदार ढंग से रखी.

इंदिरा जी द्वारा कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बुलाई गयी बैठक का जिक्र करते हुए बताया कि जब वह और बाबू जगजीवन राम नहीं पहुंचे तो इंदिरा जी ने बाबू जगजीवन राम को फोन करवाया तब इधर से बहुगुणा जी ने उनके पी.ए. से कहला दिया कि 'आ रहा है' इस बात का जिक्र उन्होंने जोरदार ठहाकों के बीच कहा कि इंदिरा जी समेत सभी चक्कर में पण गए कि एक अधिकारी एक मंत्री को ऐसे कैसे बोल सकता है लेकिन असलियत न समझ सके.कई बार फोन आया और हर बार एक ही जवाब दिलाया जाता रहा. बाबू जगजीवन राम का इस्तीफा जब वर्किंग कमेटी में पहुंचा तब असलियत का खुलासा हुआ और इंदिरा जी के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी.चुनावों की घोषणा हो चुकी थी इंदिरा जी की आँखों के सामने पराजय चमक रही थी.

एक रात मोरार जी देसाई भी आगरा संसदीय क्षेत्र के प्रत्याशी प.शम्भूनाथ चतुर्वेदी का प्रचार करने आये.संघी नेता राज कुमार सामा ने उस सभा में प. चतुर्वेदी और प.देसाई की तुलना करते हुए बताया कि श्री देसाई ने सिटी मजिस्ट्रेट का पद छोड़ कर तो श्री चतुर्वेदी ने डी.एस.पी.पद छोड़ कर स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया था.दोनों अच्छे प्रशासक भी हैं और अच्छे जन नेता भी.आगरा की सभा से बहुगुणा जी की ही तरह मोरारजी भी गदगद होकर लौटे थे.

यह भी पहले ही लिख चुका हूँ कि मेरी भविष्यवाणी का समर्थन इंटेलीजेंस इन्स्पेक्टर राम दास यादव जी ने भी चौ.सा :से किया था जो उस समय होटल मुग़ल में सिक्यूरिटी अधिकारी थे .चुनाव परिणामों ने साथियों और अधिकारियों के बीच मेरी धाक जमाँयी थी और मुझे ही मुबारकवाद दिए जा रहे थे. लोगबाग अपना-अपना भविष्य मुझ से जानने के लिए बेताब थे और मुझे अपना ज्ञान विस्तार करने का सुनेहरा अवसर मिल गया था.

इन्हीं दिनों उ.आ. वि.प.ने कुछ मकानों के लिए पुनाराबंटन की सूचना निकाली थी. परचेज के साथी श्री हरीश छाबड़ा ने बताया और एक नेवी से रिटायर्ड और तब  ठेकेदार श्री गुरु बक्श सिंह ने मुझ से फार्म जमा करने को कहा.बउआ का तो कहना था ही कि अपना मकान ले लो.रु.२/- कीमत का प्रोस्पेक्टस बाबू जी ने ला दिया परन्तु समस्या तो सिक्यूरिटी डिपाजिट के रु.३००० /-जमा करने की थी.छाबडा जी न कर पाए बंदोबस्त और न फ़ार्म जमा किया. सिंह सा :को आर्मी कोटे के कारण सिर्फ रु.५००/-जमा करने थे और वह तो ठेकेदार थे उन्होंने जमा कर दिए.

सवा तीन साल की नौकरी में सरू स्मेल्टिंग मेरठ में रु.३०००/- बचाए और उसी कं.में फिक्स्ड डिपाजिट कर दिए थे जो अब नौकरी से बर्खास्तगी के बाद वह लौटा नहीं रहे थे. बाबू जी के आगरा में आने पर उनके दफ्तर के साथी एक चौ.सा :जो 'कंचन डेरी' चलाते थे और दफ्तर कम आते थे ने शुरू-शुरू में ही उनसे कहा था कभी किसी वकील की जरूरत पड़े तो बेझिझक कहियेगा. बाबूजी ने अब उन्हें समस्या बतायी तो उन्होंने फटाफट कांग्रेसी नेता और वकील कन्हैया लाल पाठक से हस्ताक्षर कराकर ब्लैंक लेटरहेड ला दिया .उस पर मैंने अपनी भाषा लिख कर साथी सुदीप्तो मित्रा से टाईप करा ली  और मेरठ रजिस्ट्री कर दी.

चुनावी हलचल से कं.के संचालक घबराए हुए थे नोटिस पहुँचते ही पेमेंट रिलीज कर दिया जो ग्रिन्द्लेज बैंक ,दिल्ली पर पेबल था. १५ दिन में चेक कैश हो कर आ गया और मैंने सेन्ट्रल बैंक,आगरा कैंट से जहाँ अकाउंट था से रु.३०००/- का ड्राफ्ट बनवाया ठीक उसी वक्त दिल्ली के रामलीला मैदान में नए प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जनता को संबोधित कर रहे थे जहाँ तक मुझे याद है वह २५ मार्च का दिन था.बैंक के बाहर थोड़ी देर रेडियो पर भाषण सुनने रुक गया वैसे दो घंटे का अवकाश लेकर होटल से चला था.समय ज्यादा लगने पर भी टोकने वाला कोई नहीं था,सभी अधिकारी तो मेरी भविष्यवाणी की ही चर्चा कर रहे थे.विदेश मंत्री अटल बिहारी बाजपाई पहले बोल गए सेनायें जागती रहें फिर कुछ ख्याल करके बोले इस विषय पर तो प्रधान मंत्री ही बोलेंगें.


दफ्तर पहुँचने पर सभी ने कहा जरूर रेडियो पर भाषण सुन कर आये होगे और वे सब ठीक ही अनुमान लगा रहे थे.हमारा ड्राफ्ट रजिस्टर्ड डाक से ठीक समय से लखनऊ पहुँच गया था.जनता सरकार के गठन ने हमारे पर्सोनल मैनेजर झा सा : की निगाह में भी मेरी कीमत बढ़ा दी थी.लिहाजा स्टाफ को मैं अधिकाधिक रियायतें दिलाने में कामयाब रहा और इस प्रकार स्टाफ के मध्य पहले ही जो लोकप्रियता थी वह फौलादी होती गयी.........

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शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

आगरा/१९७६-७७ ( भाग ३ )

लेखा  विभाग में कार्य करना और ईमानदार होना परस्पर  विरोधाभासी है और ऐसे ही आग और बर्फ के खेल में मैं उलझा रहा .स्वभाविक था मैं उन तमाम लोगों की नजरों में खटकता था जो बेईमानी के बादशाह थे.जो अकडू खाँ थे उनको मैं कुछ नहीं समझता था,जो संतुलित थे अपना कार्य धैर्यपूर्वक कराने में सफल हो जाते थे.इनमें एक थे -पी.वी.मेनन सा :जिन्हें वाई.एस.रामास्वामी सा :एम्.ई.एस. से रिजायीन कराकर ठेकेदार के रूप में लाये थे.मेनन सा :का कहना था-जो चाय पर खुश उसे चाय पिला देते हैं ,जो दालमोंठ मांगें उसे ला देते हैं,विजय माथुर कुछ लेते नहीं ,इन्तजार कराते हैं तो इन्तजार कर लेते हैं हम हर तरह खुश रहते हैं.दरअसल मेनन सा :खुशमिजाज ही थे.पैसे वाले होकर भी घमंड उन्हें छू तक नहीं गया था इसीलिये हमेशा सफल रहे.इसके विपरीत कुछ लल्लू -पंजू ठेकदार खुद को खुदा समझते थे उनका कार्य हमेशा लटकता था क्योंकि दत्त सा :मेरे कार्य के आगे मुझे झुकाने की कोई कोशिश नहीं करते थे जबकि प्रोजेक्ट मैनेजर पी.एल.माथुर सा :के पीछे परेशान करने का कोई मौक़ा नहीं चूकते थे.P .M .सा :कभी -कभी किसी विशेष व्यक्ति का पेमेंट जल्दी करने हेतु दत्त सा :को न कह कर सीधे मुझे ही कहते थे और इस प्रकार उनका कार्य सुगम हो जाता था.दत्त सा :के नीचे श्री अमर नाथ अरोड़ा सुपरिंटेंनडेंट अकाउंट्स बन कर आये थे.वह मेहरा सा :के निकटतम रिश्तेदार थे और उन्हें मैनेजर माथुर सा :का समर्थन हासिल था.स्टाफ में मेरे अलावा सभी उन्हें उखाड़ने के चक्कर में रहते थे.अरोड़ा सा :मुझ पर आँख मूँद कर विश्वास करते थे.अरोड़ा सा :बाम्बे पावर गैस कं.से आये थे और आई.टी.सी.के रंग-ढंग में रम नहीं पा रहे थे. मेरे ठोस समर्थन के कारण दत्त सा :के उन्हें नाकारा साबित करने  के   हर हथकण्डे नाकाम हो रहे थे. एक बार तो दत्त सा: ने मेहरा सा :को फैक्स कर दिया -'Mr arora is not acting according to my instructions '.मेहरा सा ने अरोरा सा :को धैयपूर्वक डटे रहने को कहा और दत्त सा :के विकल्प के रूप में श्री विनीत सक्सेना जो उस समय डिविजन में मेहरा सा :के असिस्टेंट थे और जिनके श्वसुर सा :कलकत्ता में रेलवे के बड़े अधिकारी थे को हनीमून से लौटते ही भेजने का आश्वासन दिया. परन्तु 'प्रभु जाको दारुण दुःख देहीं ताकि बुद्धि पहले ही हर लेहीं'.दत्त सा :ने जो आख़िरी दांव चला वह निशाने पर लग गया और अरोरा सा :मुझ से ही टकरा गए वह भी नाहक में.मैंने उनके समर्थन से अपना हाँथ खींच लिया और मौके का भर-पूर लाभ उठाते हुए दत्त सा :ने अपने आफिस का कमरा बन्द करके अरोरा सा :से स्तीफा लिखवा लिया और मेहरा सा :को फैक्स कर दिया.उनका स्तीफा स्वीकार कर लिया गया.सक्सेना सा :अभी हनीमून से आ नहीं पाए थे अतः मेहरा सा :ने दत्त सा :को वापिस सिगरेट डिवीजन में कलकत्ता भिजवा कर होटल मुग़ल में' सिस्टम्स एंड आडिट मैनेजर 'मि.रघुनाथन को भेज दिया.ऐसा इसलिए सम्भव हो सका क्योंकि शांतनु रे सा :कं.छोड़ गए थे और घोष सा :को कलकत्ता बुला कर होटल डिवीजन का डायरेक्टर इंचार्ज श्री  लक्ष्मण   को बना दिया गया था. 
रघुनाथन सा :बहुत जोर से चिल्ला कर बोलते थे और हर किसी को झाड़ने में अपना बड़प्पन समझते थे. किसी के भड़कावे से मुझ से भी गरम हो कर बोले तब मैंने उन्हे उनके द्वारा सिस्टम तोड़ कर आदेश देने के दृष्टांत उन्ही की तरह गरम होकर गिना दिए.उनका पारा फटा -फट डाउन हो गया और बात तेजी से फ़ैल गई.उन्होंने स्टाफ की मीटिंग बुला कर सबके सामने मेरी प्रशंसा करते हुए कहा कि विजय माथुर सही है मैंने सिर्फ उसे चेक करने के लिए गलत कहा था और वह गलत न होने के कारण मुझ से भिड़ गया सब को इतनी हिम्मत रखनी चाहिए कि अफसर के गलत आदेश को ठुकरा दें.
बहरहाल विनीत सक्सेना सा :के लौटने पर उन्हें रघुनाथन सा :के अन्डर A .  U . F .C .की रैंक मिली और जल्दी ही रघुनाथन सा :को होटल डिवीजन के लिए अनफिट किये जाने के बाद वह यूनिट फायनेंशियल कंट्रोलर बन गये.उनके राजनीतिक विचारों से भिन्न अपने विचारों का उल्लेख पूर्व में कर चुका हूँ.कार्य के सम्बन्ध में उनका और मेरा गहरा ताल-मेल था.इसी लिये मैंने विभाग में नयी भर्तियों के वक्त ठेकेदार के यहाँ कार्यरत श्री विनोद श्रीवास्तव को रखने की सिफारिश की ;सबके सामने तो उन्होंने यह कह कर मेरा मखौल उड़ा दिया कि लगता है तुम यूं.पी .के कायस्थ हो तभी कायस्थ का समर्थन कर रहे हो ,परन्तु इशारे से कहा उसे तुरंत बुला लो .फटाफट इन्टरवियू लेकर पर्सोनल विभाग रेफर कर दिया और शर्त लगा दी आज ही ज्वाईन करोगे तो अप्वाइनमेंट वैलिड होगा वरना कैंसिल.विनोद को ठेकेदार ने भी फटाफट रिलीव कर दिया क्योंकि उनका कार्य सिमट रहा था तब तक के लिये विनोद को ही रिलीवर लाने को उन्होंने कह दिया.
सक्सेना सा : के अधीन श्री सुब्रमनियम चन्द्रसेखर अईय्यर आ गये जो उस वक्त के होटल डिवीजन के इंचार्ज डायेरेक्टर लक्ष्मण सा :के कुछ रिश्तेदार थे.वह पहले फोटोग्राफर भी दिल्ली में रहे थे और चार्टर्ड अकाउनटेंट थे.चंडीगढ़ में जन्म होने के कारण तमिल होते हुए भी फर्राटे की हिन्दी शेखर सा :बोलते थे.सक्सेना सा :के कं. छोड़ने पर वह यूं.ऍफ़.सी. हो गये उनसे भी मेरे सम्बन्ध सौहार्द पूर्ण रहे,वस्तुतः चालाक अफसर जान-बूझ कर मेरा समर्थन करते थे जिससे उनकी छवी भी ईमानदार की बनी रहे.
जेनरल मैनेजर पेंटल सा :जो होटल ओबेराय में युनियन दो-फांक करा चुके थे,होटल मुग़ल में एक युनियन बनवाना चाहते थे.कारण मेनेजमेंट द्वारा प्रस्तावित होटल के बाई लाज/स्टैंडिंग आर्डर्स  का डी.एल.सी.में पेंडिंग होना था.स्टाफ वेलफेयर कमेटी का गठन किया गया.अकाउंट्स विभाग से सुदीप्तो मित्रा ने मेरा नाम प्रपोज करके तीन हस्ताक्षर करा लिये थे लेकिन मैंने हस्तक्षेप करके मित्रा सा :को प्रपोज करके बाकी सभी से हस्ताक्षर करा दिए.मित्रा की दलील थी ये सारे वोट माथुर के कहने पर पड़े हैं बहुमत उसी का है अतः वही रिप्रेंज्टेतिव होना चाहिए ,मेरा तर्क था बहुमत ने मित्रा के पक्ष में वोट दिया है.शेखर सा :ने मुझसे कहा सारे लोग तुम्हारे साथ हैं तुम्ही रहो परन्तु मेरे मित्रा को रखने के आग्रह को मान लिया.वाया स्टाफ वेलफेयर कमेटी 'होटल मुग़ल कर्मचारी संघ'नामक युनियन का गठन किया गया जिसके महासचिव सुदीप्तो मित्रा थे और अध्ययक्ष थे श्री चन्द्र प्रकाश भल्ला जो टेलीफोन सुपरवाईजर थे और पेंटल सा :के साथ ओबेराय होटल में काम कर चुके थे.मैंने युनियन की सदस्यता नहीं ली थी.मेरठ के अपने कटु अनुभव के कारण इस सब से दूर रहना चाहता था.परन्तु जो हम नहीं चाहते वही अक्सर हो जाता है.मित्रा को बैंक आफ बरोदा में प्रोबेशनरी आफीसर की पोस्ट मिल गई और रिजायीन कर गये.उनसे पहले विनोद श्रीवास्तव भी कैनरा बैंक में क्लर्क बन कर जा चुके थे.समस्त स्टाफ के भारी दबाव में बिना साधारण सदस्य बने ही मुझे सीधे युनियन का महासचिव पद स्वीकार करना पडा. औपचारिकताएं बाद में पूरी की गयीं.सम्पूर्ण वर्किंग कमेटी ने यह मान लिया था कि मैं अपने हिसाब से चलूँगा और किसी भी दबाव को स्वीकार नहीं करूंगा. 
शेखर सा :के अजीज भी थे पर्सोनल मैनेजर श्री हरी मोहन झा जो  बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री जगन्नाथ मिश्र के भतीज दामाद थे.वह टाटा कं. में रहते हुए दबंग युनियन सेक्रेटरी को धक्का देकर खदेड़ने और सारा सामन जमशेदपुर में छोड़ कर दूसरी जगह प्रोमोशन पाने से प्रफुल्लित थे. उनका कहना था वह रिंग मास्टर हैं और युनियन वही गवर्न करेंगें.उन्होंने अपने राजनीतिक दबदबे से समस्त मैनेजरों को लामबंद कर रखा था और जी.एम्.पेंटल सा :को परेशान कर रखा था.लेखा विभाग में काम पर पकड़ की वजह से शेखर सा :मेरे पक्षधर भी थे और अपने मेनेजमेंट की गुटबाजी में झा सा : के पैरोकार भी थे.लिहाजा झा सा :के चंगुल में मेरे न आने पर भी झा सा :ने मुझसे कोई टकराव मोल नहीं लिया.युनियन की गतिविधियाँ तथा जनता सरकार के बन जाने पर झा सा :के मनोबल में गिरावट आने एवं मकान लेने की प्रक्रिया के सम्बन्ध में अगली बार.......

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बुधवार, 13 अप्रैल 2011

आगरा में /१९७६ -७७ (भाग-२ )

आम चुनाव और विनीत सक्सेना सा :तक पहुँचने के दौरान होटल मुग़ल प्रोजेक्ट में क्या गतिविधियें चलीं उनका वर्णन अभी बाकी रह गया था परन्तु उल्लेख करना आवश्यक है,अतः कुछ की चर्चा प्रस्तुत है.जनवरी १९७६ में लेखा विभाग में कुछ और लोगों की भर्ती हुयी .छोटे भाई अजय के सहपाठी का फुफेरा भाई प्रशांतो कुमार करमाकर उसके साथ रहता था ,उसने अजय से निवेदन किया कि उन्हें मैं होटल मुग़ल में जाब दिला  दूँ.मैंने डी.एस.दत्त सा :से रिकोमेंड किया और उन्होंने उसके बंगाली होने के नाते फटाफट रख लिया -इस रिमार्क के साथ प्रोजेक्ट मैनेजर पी.एल.माहुर सा :को फॉरवर्ड किया था-कैंडिडेट रिकोमेंडेड बाई विजय माथुर ;अतः उन्होंने भी अप्रूव कर लिया.करमाकर ने ०९ जनवरी को ज्वाईन किया था-मित्रा के अन्डर और १० जनवरी को ज्वाईन करने वाले हरीश छाबरा थे पर्चेस सेक्शन में.कं. में बंगाली ग्रुप और पंजाबी ग्रुप बाजी थी. दत्त सा :कं.के वाईस चेयरमेन श्री शांतानु रे (पूर्व मुख्य मंत्री श्री सिद्धार्थ शंकर रे के भाई ) एवं डायरेक्टर इंचार्ज होटल डिवीजन श्री एस.घोष के भतीज दामाद थे .

प्रोजेक्ट  मैनेजर श्री पुरोशोत्तम लाल माथुर और वाईस प्रेसिडेंट प्रोजेक्ट वाई.एस.रामास्वामी जी प्रेसीडेंट होटल डिवीजन कपूर सा :के साथ थे.डिवीजनल फायीनान्शियल कंट्रोलर मेहरा सा :भी इनके साथ थे.लेकिन दत्त सा :किसी की परवाह नहीं करते थे.एक बार उन्होंने मेन कंट्राक्टर का पेमेंट रोक दिया और उसने काम .ऊपर तक दत्त सा :की शिकायत हुयी लेकिन डायरेक्टरों के वरद हस्त से उनका बाल भी बांका न हुआ. दत्त सा :ने स्टोर कीपर जगत भूषन सहाय सा :को रिजायीन करने पर मजबूर कर दिया और उन्हें रांची लौटना पड़ा जबकि उस समय उनको कुत्ते के काटने पर इलाज भी चल रहा था. श्री दवे जो सी.बी.आई.छोड़ कर वाईस प्रेसिडेंट आपरेशंस बने थे इन्क्वायरी करने आये थे और सहाय सा :के सम्बन्ध में मुझ से भी जानकारी ली थी.वह उनका इस्तीफा मांगे जाने से असंतुष्ट थे परन्तु दत्त सा :को डायरेक्टरों का समर्थन होने से कुछ न हो सका.

सोर्स और फ़ोर्स में मजबूत चार्टर्ड अकोंटेंट  दत्त सा :वर्क में परफेक्ट नहीं थे.अतः श्री राजा राम खन्ना सा :को उनकी मदद के लिए भेजा गया जिन्होंने इस बार अपनी सहायता के लिए श्री प्रकाश चन्द्र जैन को बुलवा लिया और जैन सा :ने अपनी मदद के लिए श्री ब्रिज राज किशोर श्रीवास्तव सा :को बुलवा लिया.ये सभी सहारनपुर सिगरेट फैक्टरी से रिटायर्ड  और मात्र अनुभवी थे.इन बुजुर्ग लोगों  में से पहले दो मेरे अलावा किसी और स्टाफ का समर्थन नहीं प्राप्त कर पाते थे तथा दत्त सा :की मार्फ़त ही काम करा पाते थे. जब मैंने मुझ पर अधिक कार्य-भार डालने की बाबत उनसे कहा तो दोनों का जवाब था -तुम खुशी से कर देते हो इसलिए तुम्हीं से कहते है ,हम रिटायर्ड लोग बदले में तुम्हें कुछ दिला तो नहीं सकते सिर्फ तुम्हारी बेहतरी के लिए आशीर्वाद ही दे सकते हैं.सच में खन्ना सा :और जैन सा :की मेहरबानी से प्रोजेक्ट अकाउंट्स में मैं परफेक्ट भी हो गया था,जिसका लाभ दूसरी जगहों पर सफल कार्य निष्पादन करने में हुआ.श्रीवास्तव सा :युवा पीढी के चहेते थे -मसखरे थे उनमें घुट जाते थे और मैं बुजुर्गों में ही अपने को फिट पाता था.

एक बार प्रोजेक्ट तेजी से चल रहा था और उदघाटन का समय नजदीक आ रहा था.रामास्वामी जी इंस्पेक्शन के लिए आ रहे थे ;समस्त इंजीनियर और गैर इंजीनियर -दत्त सा :समेत अधिकाँश लेखा कर्मचारी भी व्यस्त थे एरोड्रम पर रिसीव करने मुझे भेज दिया गया -शायद अभीष्ट यह दिखाना था की सभी अफसर घोर व्यस्त हैं इसलिए स्टाफ में सीनियर मोस्ट को भेजा गया है.लौटते में कार में रामास्वामी जी ने मुझ से व्यक्तिगत और आफिशियल दोनों प्रकार की जानकारियाँ मांगीं .उनका व्यवहार उच्च पदाधिकारी होने के बावजूद मधुर था ,वह एम्.ई.एस.से रिटायर्ड थे और मेरे बाबूजी एम्.ई.एस में कार्य रत.शायद उन्हीं के किसी प्रयास से दत्त सा :ने बाद में मुझे सीनियर ग्रेड भी दे दिया था.आगे फिर......







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शनिवार, 2 अप्रैल 2011

आगरा में/१९७६ -७७

होटल मोगुल ओबेराय का नाम बदल कर होटल मुग़ल शेरेटन कर दिया गया .आयी.टी.सी. ने ओबेराय से कान्ट्रेक्ट तोड़ दिया और लम्बे समय तक दोनों में कानूनी विवाद चला.अमेरिका की शेरटन कं.से तालमेल किया गया.कुल तीन  करोड़ का शुरू हुआ प्रोजेक्ट छै करोड़ में पूरा हुआ.आठ प्रतिशत की दर से कमीशन चलता था.बीच मैं रोड़ा था,अतः नए आये प्रोजेक्ट कामर्शियल मैनेजर श्री देव सदय दत्त ने कैश पर प्रशांतो कुमार करमाकर को लगा दिया और मुझे मेन फायीनांस सेक्शन दिया.काम बढने के साथ मेरे अधीन नए रिक्रूटी आते गए और मुझे सीनियर क्लर्क बना दिया गया.

इन्टरवियू के समय के सक्सेना सा :तो सिलेक्शन न होने के बाद कभी नहीं मिले ,परन्तु श्री विनोद कुमार श्रीवास्तव हम लोगों से मिलने आते रहे. मुझ से मेन कंट्राक्टर  ने कोई लड़का अपने लेखा विभाग हेतु बताने को कहा और मैंने विनोद जी को उनके यहाँ जाब दिलवा दिया.इस प्रकार उनसे सतत संपर्क बना रहा.उनके एक सुपरवाईजर श्री अमर सिंह राठौर -बार्डर सिक्यूरिटी फ़ोर्स के रिटायर्ड सब इन्स्पेक्टर थे.वह हस्त-रेखा मे पारंगत थे. एक दिन विनोद मुझे जबरदस्ती उनके पास मेरा हाथ दिखाने ले गये;तब तक ज्योतिष पर मेरी रूचि नहीं थी.विनोद जी की खुशी के लिए ही मैंने अपना हाथ दिखाया था.राठौर जी ने जो कुछ बताया समयानुसार सही गया (केवल एक बात का समय निकल चुका है ).उन्होंने २६ वर्ष की उम्र में अपने मकान में चले जाने और ४३ वर्ष की उम्र मेंअपना होने की बात कही थी.इसमें मुझे उस वक्त विरोधाभास भी लगा और रु.२७५ प्रतिमाह वेतन में कैसे होगा यह भी समझ नहीं आया. परन्तु हुआ यही-रु.२९० प्रतिमाह की किश्त १५ वर्ष चुका कर रिश्वत न देने के कारण विलम्ब से रजिस्ट्रेशन हुआ .मकान एलाट होने तक सुपरवाईजर अकाउंट्स बन चुका था और वेतन काफी बढ़ चुका था जिससे किश्तों का भुगतान हो सका.उन सब का जिक्र अपने क्रम पर ही ठीक रहेगा.
आपात काल में भी में इंदिरा विरोधी रुख छिपाता नहीं था और खुल कर चर्चा करता था.साथ के कर्मचारी मेरे साथ बाहर  निकलने में घबराते थे कहीं गिरफ्तार न कर लिए जाएँ.न तो मुझे डर था और न मैं गलत था,उस पर इंटेलीजेंस वालों से व्यक्तिगत परिचय जबकि वे लोग अनभिग्य थे कि आगंतुक लोग इंटेलीजेंस के हैं और उनसे मेरे मधुर सम्बन्ध हैं.थोडा-थोडा जो ज्योतिष का ज्ञान था उसके आधार पर मैनें चुनावों की घोषणा होते ही ऐलान कर दिया था -इंदिरा गांधी और संजय गांधी तक बुरी तरह से हारेंगें ,चौ.सा :ने इंटेलीजेंस  इन्स्पेक्टर आर.एस.यादव से मेरी बात बतायी तो उन्होंने साफ़ कहा ऐसा ही होगा वे लोग भी सरकार से असंतुष्ट थे अतः जान-बूझ कर इंदिरा जी को गलत रिपोर्ट दी गयी थी कि माहौल उनके पक्ष में है जबकि हकीकत उलट थी.इसी कारण एक वर्ष कार्यकाल संविधान संशोधन द्वारा बढवाने के बावजूद ५ वर्ष में ही इमरजेंसी रहते हुए चुनाव करवा डाले.जब ०३ फरवरी १९७७  को बी.बी.सी.द्वारा बाबू जगजीवन राम द्वारा सत्ता कांग्रेस छोड़ने की घोषणा हुयी तो हमारे फायीनान्शियल मैनेजर विनीत सक्सेना सा :जो अब तक मेरी भविष्यवाणी को गलत बता रहे थे पलट कर मेरी बात की तस्दीक करने लगे.लेकिन उनकी नजर में नए प्रधानमंत्री जगजीवन बाबू ही होने वाले थे जबकि मैंने मोरारजी देसाई के पी.एम्.बनने की बात दृढ़तापूर्वक कही थी.

यूं.ऍफ़.सी.विनीत सक्सेना सा :की पत्नी रश्मि सक्सेना जी 'THE HINDUSTAN TIMES ' की पत्रकार थीं उनके साथ वह भी सेठ अचल सिंह के इन्टरवियू में इसलिए गए थे क्योंकि मैंने सेठ जी के चुनाव हारने की भविष्यवाणी कर रखी थी जबकि आगरा की ग्रामीण जनता में उनकी एक धाक थी और उनके न हारने की चर्चाएँ थीं.सेठ जी लोक सभा में सोते रहते थे और मतदान के समय जब उन्हें झकझोरा जाता था तो हाथ खड़ा कर देते थे एक बार तो दोनों हाथ खड़े कर दिए थे. फिर भी जनता उन्हें काम करने के कारण चुनती रहती थी. उनके विरुद्ध जनता पार्टी से श्री शम्भूनाथ चतुर्वेदी मैदान में थे ,वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जो डी.एस.पी. की नौकरी छोड़ कर आन्दोलन में कूदे थे. सक्सेना जी ने कहा आदमी तो अच्छा है सेठ जी से लेकिन उन्हें हरा नहीं पायेगा.और बहुत सी बातें इस दौरान आफिस की तथा व्यक्तिगत एवं राजनीतिक अगली बार......






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