दुकानों की नौकरी मे और तो कोई परेशानी नहीं थी परंतु वेतन अपर्याप्त था। अतः यदा-कदा बेहतर नौकरी के लिए प्रयास करते रहते थे। चूंकि होटल अकाउंट्स का साढ़े नौ वर्ष का अनुभव था सहारनपुर के एक नए होटल के लिए आवेदन कर दिया था। भूल भी चुके थे ,वहाँ से इनटरवीयू काल आ गया। निश्चित तिथि से एक दिन पहले मुजफ्फरनगर कुक्कू के यहाँ चले गए क्योंकि वह बेहद बुलाते रहते थे और रास्ते मे उनका शहर पड़ रहा था। हालांकि कूकू की माता जी नहीं चाहती थीं कि मै उनके घर जाऊ। यह भी एक कारण रहा उनके घर जरूर जाने का । लगभग ढाई-तीन बजे कूकू साहब के घर गांधी कालोनी पहुंचा था। उनका आफिस पास ही था अतः उनकी श्रीमती जी ने नेहा और शिवम को उनके दफ्तर भेजा ,वह वहाँ नहीं थे किसी साईट पर गए हुये थे, अतः दोबारा उन दोनों को भेज कर आफिस से उन्हें फोन कराने को कहा और उन्हें गर्म समौसे लाने को भी कह दिया।
औपचारिक हाल चाल पूछ कर कूकू साहब की श्रीमती जी (हमारे बहनोई कमलेश बाबू की भतीजी जैसा अब 2011 मे उनसे पता चल पाया) ने अपनी सास साहिबा की करामात का बखान कर डाला क्योंकि वह जानती थी कि मै पहले ही उनसे नाखुश हूँ अतः उन्हें कोई भय नहीं था। उन्होने आप बीती जो घटना बताई वह हृदय विदारक है। उन्होने बताया कि उनकी सास जी ने उनके रेलवे वाले देवर शरद मोहन माथुर की मार्फत षड्यंत्र करके उन्हें दोनों बच्चों समेत मारने की हिमाकत की थी। उनके अनुसार टूंडला वाली बुढिया से उनके विरुद्ध टोटका करवाकर उनका दिमाग अस्त-व्यस्त कर दिया गया था जिससे वह बच्चों को लेकर विपरीत दिशा की ट्रेन मे बैठ कर चली गई। कूकू जब टिकट लेकर आए तो उन लोगों को नहीं पाया और चूंकि कूकू तथा उनकी पत्नी मधु दोनों के पिता रेलवे के थे वह तमाम नियमों आदि से परिचित थे। काफी दौड़-धूप के बाद उन्होने मधु को बच्चों समेत बरामद कर लिया। परंतु सारा सामान गायब हो गया जिसमे वह गहना भी था जिसे वह संगीता (मधु की देवरानी) की कस्टडी से ले कर आ रही थीं। उनका शक था शरद मोहन ने ही अपने रेलवे साथियों की मदद से सब सामान पार कर दिया है। (1982 मे कूकू ने अपनी माँ के साथ मुझ पर उसी टूँड़ला वाली बुढ़िया से कुछ करवाया था जो मै आगरा मे बस से उतरते समय गिर कर घायल हुआ था और डा राजेन्द्र कुमार टंडन ने इलाज के साथ पुलिस को फोन करना चाहा था किन्तु बाबूजी ने रोक दिया था ,इस का जिक्र पहले हो चुका है)। बड़ी जल्दी कूकू की पत्नी पर उन्ही के छोटे भाई द्वारा वही षड्यंत्र किया गया जैसा उन्होने अपनी माँ के इशारे पर मेरे साथ किया था। प्रकृति मे देर है पर अंधेर नहीं मैंने मन मे सोचा किन्तु मधु को दिये आश्वासन के अनुसार किसी से इस घटना का जिक्र नहीं किया।
अगले दिन कूकू साहब मेरे साथ बस से सहारनपुर भी गए उन्होने सहारनपुर साईट का टूर लगा लिया था। आने-जाने का बस का टिकट मेरा भी उन्ही ने लिया मुझे नहीं लेने दिया। होटल मे मेरा एपोइनमेंट रु 1300/- वेतन पर किया गया मैंने रु 1500/- मांगे थे अतः मैंने ज्वाइनिंग से इंकार कर दिया। लच होटल की तरफ से सभी उम्मीदवारों को कराया गया था। कूकू साहब मुझसे कह कर गए थे उन्ही के साथ लौटूँ अतः उनके इंतजार मे आस-पास ऐसे ही घूम लिया।
मै अपने साथ जो साबुन नहाने व कपड़ा धोने के तथा सिर मे डालने हेतु जो तेल ले गया था उन्हें मधु ने अपने पास रख कर अपने घर से नया साबुन इत्यादि दिया। लौटते मे मेरा सामान मेरे सुपुर्द कर दिया। अतिथि सत्कार मे वह अपनी सास के मुक़ाबले काफी चौकस रहीं जबकि उनकी सास उन्हें पगली कहती थीं। बातचीत मे यह बात मालूम होकर कि शरद की छोटी बेटी का पहला जन्मदिन पहली मई को अर्थात पंद्रह दिन बाद पड़ रहा है। कूकू साहब ने रात के भोजन के बाद सबको घूमने ले चल कर क्राकरी वाले ,भोजन वाले इत्यादि को एडवांस दे दिया और अपने घर अपनी भतीजी का पहला जन्मदिन मनाने का निर्णय किया। मेरे सामने तो उनकी पत्नी मधु ने खुशी -खुशी उनका समर्थन और साथ दिया था बावजूद इसके कि उनके मन मे शरद और संगीता के प्रति घृणा भाव था। कूकू साहब ने मुझसे कहा था वह पत्र अपनी माता को डाक से भेज रहे हैं परंतु मै उनका निर्णय व्यक्तिगत रूप से दे दूँ। मुझे जाना तो उनके घर था ही क्योंकि यशवन्त और शालिनी उनके सिटी वाले क्वार्टर पर थे कारण कि हमारे बाबूजी व बउआ अजय के पास फरीदाबाद गए हुये थे और घर मे अकेले रहना शालिनी ने कबूल नहीं किया था।
मैंने जब लौट कर कूकू साहब की सूचना उनकी माता जी को दी तो उन्हें धक्का लगा। वह मधु से चिढ़ती थीं लेकिन कूकू से बेहद लगाव था। वह कहती थीं कि उन्हें केवल अपने पाँच बच्चों से ही लगाव है। अर्थात उन्हें अपने बच्चों के बच्चों से कोई लगाव नही था, इसी कारण यशवन्त को भी उपेक्षा से देखती थीं और शायद इसीलिए अपने पोता - पोती को भी उनकी माँ मधु के कारण गायब कराना चाहती रही होंगी। उन्होने शालिनी को हिदायत दी कि वह कूकू के घर न जाएँ जबकि मै कूकू और उनकी पत्नी को वचन दे आया था कि उनकी बहन/नन्द को और भांजे को जरूर लेकर आऊँगा। काफी द्वंद और दबाव के बाद मै शालिनी को अपने बड़े भाई के यहाँ जाने को बाध्य कर सका ,उन्होने अपनी माँ के आदेश का पालन करना जरूरी समझा था बजाए अपने पति की बात और इज्जत रखने के। शालिनी की छोटी बहन सीमा ने अपनी माँ के आदेश का अक्षरशः पालन किया और वे लोग मुजफ्फरनगर नहीं पहुंचे जबकि रेलवे का होने के कारण योगेन्द्र को कुछ खास खर्चा नहीं पड़ता। शालिनी की बड़ी बहन रागिनी ने अपनी माँ के आदेश का आधा पालन किया ,वह खुद न आई न बच्चों को भेजा केवल उनके पति अनिल साहब अकेले पहुँच गए। मेरे कारण सिर्फ शालिनी द्वारा ही अपनी माता के उल्लंघन की घटना घटित हुई।
कूकू साहब का बंदोबस्त काफी अच्छा था उन्होने दिल खोल कर खर्च किया था। तमाम उनके आफिस के इंजीनियर और दूसरे स्टाफ की शिरकत रही। आस-पास के पड़ौसी और उनके कुछ रिश्तेदार भी शामिल हुये। लौट कर मैंने शालिनी से कारण जानना चाहा कि क्यों उनकी माता वहाँ जाने से रोकना चाह रही थीं और वह क्यों उनकी बात मानना चाह रही थी। शालिनी ने जो जवाब दिया वह हैरतअंगेज था- उनका कहना था भाभी जी (मधु)दोहरे स्वभाव की हैं ,सामने कुछ कहती हैं पीछे कुछ और ,और सबको कोसती हैं । तब मैंने मेरे पहले मुजफ्फरनगर जाने के दौरान मधु द्वारा बताया घटना -क्रम बता कर उसकी सच्चाई जानना चाहा और यह भी कि उन्होने मुझे इस बाबत क्यों नहीं बताया?शालिनी का जवाब न बताने के बारे मे उनकी माँ की कड़ी हिदायत थी। घटना छिपाना उनकी माँ और और दूसरे रेलवे वाले भाई की इज्जत बचाने हेतु था।
यही बात जब मैंने अपने माता-पिता के फरीदाबाद से लौटने पर उन्हें बताई तो उनका कहना था वे इन बातों को जानते हैं । मेरे यह पूछने पर कि वे कैसे जानते हैं तो उन्होने बताया कि शोभा- कमलेश बिहारी ने उन्हें बताया था और मुझे बताने को मना किया था इसलिए वे छिपाए रहे। वाह क्या कमाल रहा मेरे पत्नी के रूप मे शालिनी ने इसलिए छिपाया कि उन्हें उनकी माँ ने ऐसा आदेश दिया था। और मेरे माता-पिता ने इसलिए छिपाया कि उनके बेटी-दामाद ऐसा चाहते थे। हमारे बहन-बहनोई शालिनी की माता के मंसूबे क्यों पूरे कर रहे थे ?क्या रहस्य था?हालांकि अब सब उजागर हो गया है उसका वर्णन अभी नहीं फिर कभी।
हो सकता है शालिनी ने अपनी भाभी संगीता और माता को बताया हो कि उनकी मधु भाभी ने मुझसे भेद बता दिया है। एक बार अकेले मौका पड़ने पर संगीता उसी घटना को लक्ष्य करके सफाई दे रही थी कि भाभी जी (उनकी जेठानी मधु) का दिमाग सही काम नहीं करता है और वह उल्टी-सीधी बातें करती हैं। वह अपना गहना पार करने का शक उनके (संगीता)ऊपर रखती हैं। क्या उन्होने मुझसे कुछ कहा था?मैंने उन्हें स्पष्ट इंन्कार कर दिया क्योंकि मै अब तक सारा घटनाक्रम समझ चुका था और जतलाना नहीं चाहता था कि सब की सारी पोलें मुझे मालूम हैं। ऊपर-ऊपर से शरद और संगीता कुछ जतलाना नहीं चाहते थे परंतु उनकी माता के दृष्टिकोण से साफ था वह मेरे और विरुद्ध हो गई थीं ,उन्हें भय था कि कहीं मै कूकू की पत्नी मधु को सहयोग न कर दूँ । यदि ऐसा होता तो उन्हें बहौत भारी पड़ता कि उनकी बड़ी पुत्रवधू और बीच का दामाद भी उनके खिलाफ क्यों हैं?मेरा दृष्टिकोण साफ था/है कि मै किसी के घरेलू मामलों मे हस्तक्षेप नहीं करता हूँ चाहे मुझे खुद कितना भारी नुकसान होता रहे। मै किसी की घरेलू फूट से अपना फायदा नहीं चाहता वरना चुटकियों मे शालिनी की माता से अपने अपमान और नुकसान का बदला उन्ही की बड़ी पुत्रवधू को सहयोग देकर ले सकता था।वैसे मैंने मधु को भी सहानुभूति का पात्र नहीं समझा था क्योंकि उनके पति कुक्कू अपनी माता के कुचक्रों मे साझीदार रहे हैं। तब यदि वह अपने पति को गलत चाल चलने से रोक पाती तो दूसरी बात थी। फिर खुद उन्होने भी अपनी नन्द को यह कह कर गुमराह किया था कि तुम बड़ी हो अपनी चलाना। सास -श्वसुर को अपनी बात मनवाने के लिए बुद्धि की जरूरत होती है यों ही नहीं घुमाया जा सकता। लिहाजा तटस्थ रहना ही उचित था।
लौटते मे हम लोग फरीदाबाद अजय के घर बाबूजी -बउआ से मिलते हुये आए थे ,उसका वर्णन अगली बार........
औपचारिक हाल चाल पूछ कर कूकू साहब की श्रीमती जी (हमारे बहनोई कमलेश बाबू की भतीजी जैसा अब 2011 मे उनसे पता चल पाया) ने अपनी सास साहिबा की करामात का बखान कर डाला क्योंकि वह जानती थी कि मै पहले ही उनसे नाखुश हूँ अतः उन्हें कोई भय नहीं था। उन्होने आप बीती जो घटना बताई वह हृदय विदारक है। उन्होने बताया कि उनकी सास जी ने उनके रेलवे वाले देवर शरद मोहन माथुर की मार्फत षड्यंत्र करके उन्हें दोनों बच्चों समेत मारने की हिमाकत की थी। उनके अनुसार टूंडला वाली बुढिया से उनके विरुद्ध टोटका करवाकर उनका दिमाग अस्त-व्यस्त कर दिया गया था जिससे वह बच्चों को लेकर विपरीत दिशा की ट्रेन मे बैठ कर चली गई। कूकू जब टिकट लेकर आए तो उन लोगों को नहीं पाया और चूंकि कूकू तथा उनकी पत्नी मधु दोनों के पिता रेलवे के थे वह तमाम नियमों आदि से परिचित थे। काफी दौड़-धूप के बाद उन्होने मधु को बच्चों समेत बरामद कर लिया। परंतु सारा सामान गायब हो गया जिसमे वह गहना भी था जिसे वह संगीता (मधु की देवरानी) की कस्टडी से ले कर आ रही थीं। उनका शक था शरद मोहन ने ही अपने रेलवे साथियों की मदद से सब सामान पार कर दिया है। (1982 मे कूकू ने अपनी माँ के साथ मुझ पर उसी टूँड़ला वाली बुढ़िया से कुछ करवाया था जो मै आगरा मे बस से उतरते समय गिर कर घायल हुआ था और डा राजेन्द्र कुमार टंडन ने इलाज के साथ पुलिस को फोन करना चाहा था किन्तु बाबूजी ने रोक दिया था ,इस का जिक्र पहले हो चुका है)। बड़ी जल्दी कूकू की पत्नी पर उन्ही के छोटे भाई द्वारा वही षड्यंत्र किया गया जैसा उन्होने अपनी माँ के इशारे पर मेरे साथ किया था। प्रकृति मे देर है पर अंधेर नहीं मैंने मन मे सोचा किन्तु मधु को दिये आश्वासन के अनुसार किसी से इस घटना का जिक्र नहीं किया।
अगले दिन कूकू साहब मेरे साथ बस से सहारनपुर भी गए उन्होने सहारनपुर साईट का टूर लगा लिया था। आने-जाने का बस का टिकट मेरा भी उन्ही ने लिया मुझे नहीं लेने दिया। होटल मे मेरा एपोइनमेंट रु 1300/- वेतन पर किया गया मैंने रु 1500/- मांगे थे अतः मैंने ज्वाइनिंग से इंकार कर दिया। लच होटल की तरफ से सभी उम्मीदवारों को कराया गया था। कूकू साहब मुझसे कह कर गए थे उन्ही के साथ लौटूँ अतः उनके इंतजार मे आस-पास ऐसे ही घूम लिया।
मै अपने साथ जो साबुन नहाने व कपड़ा धोने के तथा सिर मे डालने हेतु जो तेल ले गया था उन्हें मधु ने अपने पास रख कर अपने घर से नया साबुन इत्यादि दिया। लौटते मे मेरा सामान मेरे सुपुर्द कर दिया। अतिथि सत्कार मे वह अपनी सास के मुक़ाबले काफी चौकस रहीं जबकि उनकी सास उन्हें पगली कहती थीं। बातचीत मे यह बात मालूम होकर कि शरद की छोटी बेटी का पहला जन्मदिन पहली मई को अर्थात पंद्रह दिन बाद पड़ रहा है। कूकू साहब ने रात के भोजन के बाद सबको घूमने ले चल कर क्राकरी वाले ,भोजन वाले इत्यादि को एडवांस दे दिया और अपने घर अपनी भतीजी का पहला जन्मदिन मनाने का निर्णय किया। मेरे सामने तो उनकी पत्नी मधु ने खुशी -खुशी उनका समर्थन और साथ दिया था बावजूद इसके कि उनके मन मे शरद और संगीता के प्रति घृणा भाव था। कूकू साहब ने मुझसे कहा था वह पत्र अपनी माता को डाक से भेज रहे हैं परंतु मै उनका निर्णय व्यक्तिगत रूप से दे दूँ। मुझे जाना तो उनके घर था ही क्योंकि यशवन्त और शालिनी उनके सिटी वाले क्वार्टर पर थे कारण कि हमारे बाबूजी व बउआ अजय के पास फरीदाबाद गए हुये थे और घर मे अकेले रहना शालिनी ने कबूल नहीं किया था।
मैंने जब लौट कर कूकू साहब की सूचना उनकी माता जी को दी तो उन्हें धक्का लगा। वह मधु से चिढ़ती थीं लेकिन कूकू से बेहद लगाव था। वह कहती थीं कि उन्हें केवल अपने पाँच बच्चों से ही लगाव है। अर्थात उन्हें अपने बच्चों के बच्चों से कोई लगाव नही था, इसी कारण यशवन्त को भी उपेक्षा से देखती थीं और शायद इसीलिए अपने पोता - पोती को भी उनकी माँ मधु के कारण गायब कराना चाहती रही होंगी। उन्होने शालिनी को हिदायत दी कि वह कूकू के घर न जाएँ जबकि मै कूकू और उनकी पत्नी को वचन दे आया था कि उनकी बहन/नन्द को और भांजे को जरूर लेकर आऊँगा। काफी द्वंद और दबाव के बाद मै शालिनी को अपने बड़े भाई के यहाँ जाने को बाध्य कर सका ,उन्होने अपनी माँ के आदेश का पालन करना जरूरी समझा था बजाए अपने पति की बात और इज्जत रखने के। शालिनी की छोटी बहन सीमा ने अपनी माँ के आदेश का अक्षरशः पालन किया और वे लोग मुजफ्फरनगर नहीं पहुंचे जबकि रेलवे का होने के कारण योगेन्द्र को कुछ खास खर्चा नहीं पड़ता। शालिनी की बड़ी बहन रागिनी ने अपनी माँ के आदेश का आधा पालन किया ,वह खुद न आई न बच्चों को भेजा केवल उनके पति अनिल साहब अकेले पहुँच गए। मेरे कारण सिर्फ शालिनी द्वारा ही अपनी माता के उल्लंघन की घटना घटित हुई।
कूकू साहब का बंदोबस्त काफी अच्छा था उन्होने दिल खोल कर खर्च किया था। तमाम उनके आफिस के इंजीनियर और दूसरे स्टाफ की शिरकत रही। आस-पास के पड़ौसी और उनके कुछ रिश्तेदार भी शामिल हुये। लौट कर मैंने शालिनी से कारण जानना चाहा कि क्यों उनकी माता वहाँ जाने से रोकना चाह रही थीं और वह क्यों उनकी बात मानना चाह रही थी। शालिनी ने जो जवाब दिया वह हैरतअंगेज था- उनका कहना था भाभी जी (मधु)दोहरे स्वभाव की हैं ,सामने कुछ कहती हैं पीछे कुछ और ,और सबको कोसती हैं । तब मैंने मेरे पहले मुजफ्फरनगर जाने के दौरान मधु द्वारा बताया घटना -क्रम बता कर उसकी सच्चाई जानना चाहा और यह भी कि उन्होने मुझे इस बाबत क्यों नहीं बताया?शालिनी का जवाब न बताने के बारे मे उनकी माँ की कड़ी हिदायत थी। घटना छिपाना उनकी माँ और और दूसरे रेलवे वाले भाई की इज्जत बचाने हेतु था।
यही बात जब मैंने अपने माता-पिता के फरीदाबाद से लौटने पर उन्हें बताई तो उनका कहना था वे इन बातों को जानते हैं । मेरे यह पूछने पर कि वे कैसे जानते हैं तो उन्होने बताया कि शोभा- कमलेश बिहारी ने उन्हें बताया था और मुझे बताने को मना किया था इसलिए वे छिपाए रहे। वाह क्या कमाल रहा मेरे पत्नी के रूप मे शालिनी ने इसलिए छिपाया कि उन्हें उनकी माँ ने ऐसा आदेश दिया था। और मेरे माता-पिता ने इसलिए छिपाया कि उनके बेटी-दामाद ऐसा चाहते थे। हमारे बहन-बहनोई शालिनी की माता के मंसूबे क्यों पूरे कर रहे थे ?क्या रहस्य था?हालांकि अब सब उजागर हो गया है उसका वर्णन अभी नहीं फिर कभी।
हो सकता है शालिनी ने अपनी भाभी संगीता और माता को बताया हो कि उनकी मधु भाभी ने मुझसे भेद बता दिया है। एक बार अकेले मौका पड़ने पर संगीता उसी घटना को लक्ष्य करके सफाई दे रही थी कि भाभी जी (उनकी जेठानी मधु) का दिमाग सही काम नहीं करता है और वह उल्टी-सीधी बातें करती हैं। वह अपना गहना पार करने का शक उनके (संगीता)ऊपर रखती हैं। क्या उन्होने मुझसे कुछ कहा था?मैंने उन्हें स्पष्ट इंन्कार कर दिया क्योंकि मै अब तक सारा घटनाक्रम समझ चुका था और जतलाना नहीं चाहता था कि सब की सारी पोलें मुझे मालूम हैं। ऊपर-ऊपर से शरद और संगीता कुछ जतलाना नहीं चाहते थे परंतु उनकी माता के दृष्टिकोण से साफ था वह मेरे और विरुद्ध हो गई थीं ,उन्हें भय था कि कहीं मै कूकू की पत्नी मधु को सहयोग न कर दूँ । यदि ऐसा होता तो उन्हें बहौत भारी पड़ता कि उनकी बड़ी पुत्रवधू और बीच का दामाद भी उनके खिलाफ क्यों हैं?मेरा दृष्टिकोण साफ था/है कि मै किसी के घरेलू मामलों मे हस्तक्षेप नहीं करता हूँ चाहे मुझे खुद कितना भारी नुकसान होता रहे। मै किसी की घरेलू फूट से अपना फायदा नहीं चाहता वरना चुटकियों मे शालिनी की माता से अपने अपमान और नुकसान का बदला उन्ही की बड़ी पुत्रवधू को सहयोग देकर ले सकता था।वैसे मैंने मधु को भी सहानुभूति का पात्र नहीं समझा था क्योंकि उनके पति कुक्कू अपनी माता के कुचक्रों मे साझीदार रहे हैं। तब यदि वह अपने पति को गलत चाल चलने से रोक पाती तो दूसरी बात थी। फिर खुद उन्होने भी अपनी नन्द को यह कह कर गुमराह किया था कि तुम बड़ी हो अपनी चलाना। सास -श्वसुर को अपनी बात मनवाने के लिए बुद्धि की जरूरत होती है यों ही नहीं घुमाया जा सकता। लिहाजा तटस्थ रहना ही उचित था।
लौटते मे हम लोग फरीदाबाद अजय के घर बाबूजी -बउआ से मिलते हुये आए थे ,उसका वर्णन अगली बार........
Link to this post-
कितनी सारी कुटिल चालें चली जाती थीं?!
जवाब देंहटाएंक्या बात है. बढ़िया लेखनशैली.
जवाब देंहटाएंrochak sansmaran
जवाब देंहटाएंदुनिया में हर तरह के लोग होते हैं.आप जादू टोने पर यकीन करते हैं?इनसे किसी का अहित किया जा सकता है?तो फिर ...क्यों बन्दूको बमों का सहारा लेते हैं लोग?जादू से ही मार दे.मैं इन सब बातों पर यकीन नही करती.इश्वर से बड़ा कोई नही न कोई जादू न कोई जादूगरनी.फिर भी......आपकी भावनाओं का सम्मान करती हूँ.आप अच्छा लिख लेते हैं.ब्लोगिंग के जरिये इस तरह किसी के बारे में लिखने के बारे में मैं असहमति दूंगी. संस्मरण में आप व्यक्तिगत नाराजगी,आक्रोश को जगह मत दीजिए. मुझे सब पढकर दुःख हुआ है.
जवाब देंहटाएंइंन्दू पूरी जी
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा असहमति व्यक्त करने हेतु धन्यवाद।
आपने लिखा कि मै जादू-टोना पर विश्वास करता हूँ ताज्जुब हुआ कि आपने यह निष्कर्ष कैसे निकाला? जबकि इस तथा दूसरे ब्लाग-'क्रांतिस्वर'मे मै लगातार ढोंग-पाखंड पर प्रहार करता आ रहा हूँ। मुझे क्या लिखना चाहिए या क्या नहीं लिखना चाहिए यह निर्देश कोई दूसरा कैसे मुझे दे सकता है यह भी नहीं समझ आ सका। इस प्रकार के निर्देश तो यह संकेत करते हैं कि निर्देश देने वाले कहीं न कहीं उत्पीड़न और कुचक्र करने वालों के साथ संलिप्त हैं।