मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

आगरा /1988-89 (भाग-1)

हींग की मंडी के जूता वाले सेठ जी जो और व्यापारियों की तरह और कर्मचारियों का वेतन छुट्टी का काट लेते थे परंतु मेरे चंडीगढ़ से लौटने पर 20 दिन की छुट्टी सवेतन रखी। इससे पूर्व भी और बाद भी कभी मेरे वेतन की  कटौती नहीं हुयी चाहे वह छुट्टी लखनऊ कम्यूनिस्ट पार्टी की रैली मे जाने के लिए ही क्यों न की हो। दिसंबर 1987 मे जूनियर डाक्टरों को  एस पी -सिटी  अरविंद जैन ने  (जो अब ए डी जी ,आर पी एफ हैं)मेडीकल कालेज की हड़ताल के सिलसिले मे जेल मे बंद करा दिया था। चूंकी डाक्टरों की यूनियन के प्रेसीडेंट का विनय आहूजा थे जिनके पिता जी का हरीश आहूजा एडवोकेट पार्टी के आड़ीटर थे। आगरा कम्यूनिस्ट पार्टी ने जूनियर डाक्टरों का खुल कर समर्थन किया और एक मशाल जुलूस निकाला। एस पी -सिटी ने ए डी एम सिटी से पहले से ब्लैंक वारंट साइन करा रखे थे उनका स्तेमाल करते हुये जुलूस मे शामिल सभी कम्यूनिस्ट नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया था । का डा महेश चंद्र शर्मा जी और मै उस जुलूस मे होते हुये भी गिरफ्तार नहीं हो पाये थे। हम लोग रोजाना पार्टी दफ्तर जाकर कार्य करते रहे। 02 जनवरी 1988 को जेल मे अपने कम्यूनिस्ट साथियों से मै भी मिलने गया था और सेठ जी से दो घंटे की छुट्टी लेकर गया था।

जिला मंत्री का रमेश मिश्रा जी भी मेरे कार्य से संतुष्ट थे और अक्सर दूर जाने पर मुझे अपनी मोपेड़ पर पीछे बैठाल ले जाते थे। टूंडला से शरद मोहन को अप-डाउन करना पड़ता था उनकी मौसेरी बहन मिक्की तथा उनकी माता ने मुझ से कहा कि आगरा मे उन्हें किराये पर मकान दिला दूँ। मैंने इस निजी कार्य हेतु मिश्रा जी का सहयोग मांगा। जितना किराया वे लोग देना चाहते थे उतने मे किराये पर मकान मिलना संभव न था। मिश्रा जी ने कहा इतने कम मे कोई अपना मकान किराये पर नहीं देगा मुझे ही ऊपर से नीचे शिफ्ट होकर देना पड़ेगा। वह कोई किरायेदार नहीं रखते थे परंतु मेरी  रिश्तेदारी के कारण नीचे का हिस्सा मरम्मत करा कर खुद उसमे आ गए और ऊपर जिसमे खुद रह रहे थे शरद मोहन को कुल रु 400/-मे बिजली खर्च सहित दे दिया।

इन लोगों ने जिस दिन आने को तय किया था उससे एक दिन पहले जिसकी सूचना मुझे भी नहीं दी थी उनके घर ट्रक से सामान लेकर पहुँच गए। ऐसा रेलवे मे कार्यरत योगेन्द्र चंद्र  (सीमा के पति)की सलाह पर किया गया,मुझे शाम को पार्टी आफिस मे मिश्रा जी ने बताया कि आपके रिश्तेदार आज ही आ गए हैं। मुझे ताज्जुब भी हुआ कि मेरे मार्फत मेरे पार्टी लीडर के मकान मे आए और मुझे ही पूर्व सूचना देना मुनासिब न समझा। फिर भी शरद मोहन की छोटी बेटी के होने से पूर्व और उसके जन्म के बाद भी शालिनी अपनी माँ को मदद करने को जाती  रहीं। यशवन्त का वहाँ मन नहीं लगता था ,शरद की बड़ी बेटी उसे परेशान करती थी। कभी-कभी सुबह मै उसे ले आता था और रात को खाना खा कर वह शालिनी के पास चला जाता था। उसे नानी की अपेक्षा अपने बाबा-दादी के पास ही मन लगता था। जब यशवन्त दिन मे घर आता था तब मै शाम को पार्टी आफिस न जाकर सीधे घर आ जाता था और उसे शालिनी के पास पहुंचा देता था,एक दिन वह साइकिल के कैरियर पर ही सो गया। उसकी बोलते हुये चलने की आदत थी और कुछ देर से न बोला तो मैंने टोका तब भी जवाब नहीं दिया ,सड़क पार करते ही मैंने साइकिल रोक कर देखा और उसे सोते पाया तो खुद आगे पैदल ही साइकिल लेकर गया। इस दिन के बाद से मैंने उसे कैरियर पर बैठाना छोड़ दिया और डंडे पर बैठाने लगा जिससे सामने निगाह मे रहे।

शरद मोहन की यह बेटी भी सीजेरियन से ही हुयी थी। उस दिन नर्सिंग होम मे सब को एकट्ठा कर लिया ,चूंकि उनके रिश्तेदार डा का था इस लिए भीड़ पर एतराज नहीं हुआ। मुझे दुकान मे भी बेलेन्स शीट का आवश्यक कार्य था और शाम को मजदूर दिवस की रैली मे भी शामिल होना था। मेरी कतई इच्छा नहीं थे कि मै भी नर्सिंग होम पहुंचूँ परंतु शालिनी का आग्रह था कि जब गाजियाबाद से उनके जीजा अनिल भी आ गए और छोटे बहनोयी योगेन्द्र झांसी से आ गए तो शहर मे होते हुये भी मेरा शामिल न  होना अच्छा नहीं रहेगा,अतः शामिल होना ही चाहिए। हालांकि मेरे द्वारा मेरे परिचित के मकान मे आते समय भी मुझे जो दिन बताया था उससे एक दिन पूर्व आते समय और आकर भी उन लोगों ने सूचित नहीं किया तो वह कैसे अच्छा रहा?खैर बे मन से शामिल हुआ और शरद की पत्नी तथा नवागंतुक बेटी के कमरे पर पहुँचते ही मै वहाँ से रवाना हो गया।

चूंकि यशवन्त भी वहाँ पर था अतः मै अक्सर चला जाता था वरना उन लोगों को मदद करने के बाद उनके बेरूखे व्यवहार से वहाँ झाँकने को भी मन न करता था। एक बार तो नीचे मिश्रा जी के घर मीटिंग अटेण्ड कर के ही लौट भी आया और ऊपर चढ़ कर नहीं गया था। शरद के एक मौसेरे भाई जो काशीपुर से आकर वहाँ मेडिकल कालेज मे पढ़ रहे थे रोज आकर शरद की पत्नी की ड्रेसिंग कर जाते थे। एक दिन जब शरद की सलहज आई हुयी थीं तो रात मे फ्लश का नल खुला छोड़ दिया चाहे गलती से या जान-बूझ कर ,सारी रात पानी बहता रहा,पाईप मे गेंद भी फसी थी  और पड़ौस के मकान तक सीलन हो गई ,उन लोगों ने मिश्रा जी से कहा तब देख कर मिश्रा जी को क्रोध आया और मेरी निगाह मे वह वाजिब ही था। हो सकता है गुस्से मे मिश्रा जी ने उन लोगों को गालियां भी दी हों जैसा उन लोगों ने आरोप लगाया था। उन लोगों के बहौत कहने के बाद भी मैंने मिश्रा जी से कोई ऐतराज नहीं जताया क्योंकि वे लोग ही गलत थे ,मिश्रा जी का तो काफी नुकसान हुआ था। उनकी एक सार्वजनिक छवि थी जिसके चलते पड़ौसी के मकान की भी मरम्मत उन्होने ही करवाई। मिश्रा जी ने उन लोगों से मकान छोडने को कहा और मुझ से भी कहा कि उन्हें जल्दी छोडने को कहूँ । इत्तिफ़ाक से शरद को सिटी स्टेशन पर की पर्सोनेल वाले दो क्वार्टर मिलाकर एक रहने को एलाट हो गया और उसकी मेंटीनेंस मे जो समय लगा उस तक रुकने को मैंने मिश्रा जी से अनुमति दिला दी। .......... 

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