1990-91 का काल कई अलग-अलग क्षेत्रों मे अलग-अलग किस्म की हलचलो का काल रहा। जहां नौकरी मे सेठ जी का विवादस्पद केस ससम्मान सुलझ गया। राजनीति मे अचानक नई ज़िम्मेदारी ओढनी पड़ी।'सप्तदिवा-साप्ताहिक' मे मै सहायक संपादक था और उसकी सहकारी समिति मे शेयर होल्डर भी परंतु प्रधान संपादक जो वस्तुतः उसके मालिक ही थे ने अपने फासिस्ट फाइनेंसर के दबाव मे मेरे लेखों मे संशोधन कराने चाहे जो न करके मैंने लेख वापिस मांग लिए उन्हें अब 'क्रांतिस्वर' पर क्रमशः प्रकाशित कर रहा हूँ। भाकपा ,आगरा के कोशाध्यक्ष डॉ राम गोपाल सिंह चौहान जो बीमारी मे घर से कार्य-निष्पादन कर रहे थे उनकी तकलीफ बढ़ गई और उन्होने जिला मंत्री रमेश मिश्रा जी के समक्ष प्रस्ताव रखा की उनका चार्ज मुझे दिला दे। हालांकि मै जिला काउंसिल का सदस्य तो था परंतु कार्यकारिणी मे नहीं था। पहले से मौजूद पुराने और तपे-तपाये नेताओं की बजाए मेरे जैसे चार-पाँच वर्ष पुराने एक छोटे कार्यकर्ता को अचानक एक इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी देने को मिश्रा जी सहर्ष तैयार हो गए और सीधे मेरे घर आकर मुझसे चल कर चौहान साहब को रिलीव करने को कहा। जब मैंने इंकार कर दिया तो उन्होने बाबूजी की ओर मुखातिब होकर कहा आप कह दीजिये। बाबूजी ने मिश्रा जी के जवाब मे मुझ से कहा कि जब सेक्रेटरी साहब का आदेश है और वह खुद चल कर आए हैं तो' तुम अवहेलना' कैसे कर सकते हो?मेरे सामने कोई दूसरा विकल्प नहीं था। उसी वक्त मिश्रा जी की मोपेड़ पर उनके साथ डॉ चौहान के घर पहुंचे। मै वैसे उनका हाल-चाल पूछने जाता ही रहता था। परंतु मिश्रा जी और मेरे द्वारा उनका सुझाव सिरोधार्य करने पर वह बेहद खुश हो गए। उन्होने अपनी पुत्री डॉ रेखा पतसरिया से पार्टी अकाउंट्स और कैश मुझे दिलवा दिया। उन्होने यह भी आश्वासन दिया कि कभी भी उनका परामर्श मुझे चाहिए तो वह जरूर देंगे,बाकी अकाउंट्स का आदमी होने के कारण कार्य करना मेरे लिए आसान रहेगा, यह भी उन्होने जोड़ दिया। मिश्रा जी ही मुझे मेरे घर पर छोड़ गए। मैंने मिश्रा जी से शर्त कर ली थी कि कोई भी पेमेंट मै उनके(जिला मंत्री)के हस्ताक्षर के बगैर नहीं करूंगा। पहले तो मिश्रा जी ने कहा था कि उन्होने कभी किसी पेमेंट पर दस्तखत नहीं किए है सब डॉ चौहान खुद करते रहे हैं। परंतु बाद मे उन्होने मेरा अनुरोध स्वीकार कर लिया था।
डॉ रामगोपाल सिंह चौहान जब शाहजहाँपुर मे पढ़ते थे तो का .महादेव नारायण टंडन (जो आगरा मे भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के संस्थापक माने जाते थे और उन्हीं के नाम पर अब नया पार्टी कार्यालय-का .महादेव नारायण टंडन भवन कहलाता है) उन्हें अपने साथ आगरा ले आए थे और छात्र राजनीति मे सक्रिय कर दिया था उसके बाद आगरा कालेज मे प्रो .रहते हुये वह पार्टी के जिला मंत्री फिर उस समय लंबे वक्त से कोशाध्यक्ष थे। आगरा कालेज की स्पोर्ट्स क्लब मे भी वह सक्रिय थे। आगरा कालेज का स्टाफ बंगला-6,हंटले हाउस सिर्फ डॉ चौहान का निवास ही नहीं था वरन पार्टी की बड़ी,महत्वपूर्ण बैठकें वहीं होती थी। रिटायरमेंट के बाद अपने हिन्दी विभाग मे ही कार्यरत प्रो.डॉ रेखा के नाम उस बंगले को करवा लिया था। डॉ रेखा ईपटा और चौहान साहब की दूसरी नाट्ट्य-संस्था मे भी सक्रिय थीं जिसमे उनके पति विनय पतसरिया, एडवोकेट भी सक्रिय थे।
मैंने डॉ चौहान से प्राप्त अकाउंट्स चेक किया तो पाया कि उनका अपना लगभग रु 2500/-पार्टी पर खर्च हो चुका था क्योंकि वह अपने सेविंग्स अकाउंट के माध्यम से आपरेट कर रहे थे उनके ध्यान मे नहीं आया था। मैंने मिश्रा जी को रिपोर्ट की तो उन्होने पार्टी के आडीटर हरीश आहूजा ,एडवोकेट साहब से आडिट करवाकर चौहान साहब को कैश लौटा देने का आदेश कर दिया। जब डॉ चौहान को रु 2500/-लौटाने मै उनके घर गया तो उन्होने कैश अपनी बेटी डॉ रेखा को सौंपते हुये कहा कि इसी ईमानदारी की वजह से मैंने इसे अपना उत्तराधिकारी चुना था वरना दूसरा कामरेड भी लौटाता यह जरूरी नहीं था,पार्टी फंड की हिफाजत यही कामरेड कर सकता था । उन्हें इलाज पर उस समय खर्च को देखते हुये डूबा धन मिलने से राहत हुई।
क्रमशः........
डॉ रामगोपाल सिंह चौहान जब शाहजहाँपुर मे पढ़ते थे तो का .महादेव नारायण टंडन (जो आगरा मे भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के संस्थापक माने जाते थे और उन्हीं के नाम पर अब नया पार्टी कार्यालय-का .महादेव नारायण टंडन भवन कहलाता है) उन्हें अपने साथ आगरा ले आए थे और छात्र राजनीति मे सक्रिय कर दिया था उसके बाद आगरा कालेज मे प्रो .रहते हुये वह पार्टी के जिला मंत्री फिर उस समय लंबे वक्त से कोशाध्यक्ष थे। आगरा कालेज की स्पोर्ट्स क्लब मे भी वह सक्रिय थे। आगरा कालेज का स्टाफ बंगला-6,हंटले हाउस सिर्फ डॉ चौहान का निवास ही नहीं था वरन पार्टी की बड़ी,महत्वपूर्ण बैठकें वहीं होती थी। रिटायरमेंट के बाद अपने हिन्दी विभाग मे ही कार्यरत प्रो.डॉ रेखा के नाम उस बंगले को करवा लिया था। डॉ रेखा ईपटा और चौहान साहब की दूसरी नाट्ट्य-संस्था मे भी सक्रिय थीं जिसमे उनके पति विनय पतसरिया, एडवोकेट भी सक्रिय थे।
मैंने डॉ चौहान से प्राप्त अकाउंट्स चेक किया तो पाया कि उनका अपना लगभग रु 2500/-पार्टी पर खर्च हो चुका था क्योंकि वह अपने सेविंग्स अकाउंट के माध्यम से आपरेट कर रहे थे उनके ध्यान मे नहीं आया था। मैंने मिश्रा जी को रिपोर्ट की तो उन्होने पार्टी के आडीटर हरीश आहूजा ,एडवोकेट साहब से आडिट करवाकर चौहान साहब को कैश लौटा देने का आदेश कर दिया। जब डॉ चौहान को रु 2500/-लौटाने मै उनके घर गया तो उन्होने कैश अपनी बेटी डॉ रेखा को सौंपते हुये कहा कि इसी ईमानदारी की वजह से मैंने इसे अपना उत्तराधिकारी चुना था वरना दूसरा कामरेड भी लौटाता यह जरूरी नहीं था,पार्टी फंड की हिफाजत यही कामरेड कर सकता था । उन्हें इलाज पर उस समय खर्च को देखते हुये डूबा धन मिलने से राहत हुई।
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बहुत सुन्दर संस्मरण| धन्यवाद|
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