रविवार, 6 नवंबर 2011

आगरा/1990-91(भाग-5 )

यह जानते हुये भी कि मै शालिनी के पीहर वालों के व्यवहार और रवैये से खुश नहीं था उनका अक्सर आग्रह होता था कि मै जाते या आते मे थोड़ी देर रुक कर सिटी स्टेशन पर उनकी माँ,भतीजियों ,भाई-भाभी का हाल-चाल पता करता आऊ क्योंकि यदि कोई खास बात हो तो वह भी वहाँ जा कर देख सकें। उनके यहाँ जब एलोपैथी दवा से लाभ नहीं होता था तो मुझ से पूंछ कर होम्योपैथी दवा लेकर इलाज करते थे। एक रोज शाम को हींग की मंडी से लौटते मे जब वहाँ पहुंचे तो नजारा अजीब था। शालिनी की भाभी संगीता ने सेवई बनाने की मशीन आलमारी साफ करते मे अपने पैर पर गिरा ली होगी जिस वजह से पैर से खून बह रहा था और उनकी सास साहिबा एक एलोपैथी दवा का लोशन दूर से उनके पैरों पर फेंकते हुये शीशी आधी खाली कर चुकी थीं और खून बहता जा रहा था। सास कैसे बहू के पैर पर पट्टी बांधे?यह समस्या थी। मैंने कहा बेनडेज,मुझे दे मै पट्टी बांध देता हूँ तो शालिनी की माता जी का तर्क था आप दामाद होकर कैसे सलहज के पैर पर पट्टी बांधेंगे जबकि दामाद के पैर छूए जाते हैं। मैंने जवाब दिया कि मैंने आयुर्वेद रत्न किया है और वैद्य के रूप मे रेजिस्टर्ड हूँ अतः एक चिकित्सक के नाते पैर पर पट्टी बांध देता हूँ और इलाज करना चरण-स्पर्श नहीं है। बड़ी मुश्किल से उन्होने दवा और पट्टी मुझे दी। एक फाहा बना कर वह लोशन लगा कर कस कर पैर मे पट्टी बांधने से खून बहना तुरंत रुक गया। फर्स्ट एड मे भी उन लोगों का व्यवहार रिश्तों की रस्मों मे उलझा था जबकि कुल मिला कर मेरे साथ व्यवहार कभी अच्छा नहीं था। मैंने घर पर आकर बउआ-बाबूजी से बताया तो उन्हे भी ताज्जुब हुआ कि ऐसे मामलों मे सास-बहू या दामाद नहीं देखा जाता कैसे हैं वे लोग ?मेरे द्वारा शालिनी की भाभी के पैर मे पट्टी बांध देने पर मेरे माता-पिता ने कोई एतराज नहीं किया। लेकिन मैंने शालिनी से कह दिया था कि उनकी माँ-भाभी इसके बावजूद एहसान फरामोशी की आदत से बाज नहीं आने वाले।

एक बार फिर अचानक शाम के समय दुकान से लौटते मे सिटी स्टेशन के क्वार्टर गए थे ,सुबह ही शालिनी ने विशेष आग्रह किया था बहौत दिनों से वहाँ का हाल नहीं मिला है ,पता करते आयें। उनके भाई और माँ मुजफ्फरनगर  गए हुये थे कूकू के पास( जिसकी खबर हम लोगों को नहीं थी) और घर पर दोनों छोटी-छोटी लड़कियां थी। घर मे अंधेरा था और संगीता दर्द से कराह रही थी। मेरे कहने पर शरद की बड़ी बेटी ने बल्ब जलाया ,हाल पूंछ कर मै रावत पाड़ा गया और डाबर की सरबाईना एक स्ट्रिप लाकर दे दी। एक गोली अपने सामने ही खिलवा दी। 15 मिनट मे दर्द कम हो गया और उठ कर संगीता ने तुरंत दवा की कीमत का भुगतान मुझे कर दिया। अगले दिन यशवन्त की स्कूल से छुट्टी करवाकर शालिनी मेरे दुकान जाते समय अपनी भाभी के पास गई और शाम को लौटते मे मै दोनों को अपने साथ वापिस ले आया। हालांकि शालिनी के दिन मे जाने पर बउआ को शाम का खाना बनाना पड़ जाता था  तब भी मदद करने जाने से कभी नहीं रोका।

क्रमशः ..... 

Link to this post-



2 टिप्‍पणियां:

  1. इस अंक में मेरे मुज़फ़्फ़रपुर का भी ज़िक्र आया।
    आप तो मर्ज़ की दवा भी कर देते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपके पोस्ट पर आना सार्थक लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । सादर।

    जवाब देंहटाएं

ढोंग-पाखंड को बढ़ावा देने वाली और अवैज्ञानिक तथा बेनामी टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम कर दिया गया है.असुविधा के लिए खेद है.

+Get Now!