बुधवार, 30 नवंबर 2011

आगरा/1990-91(भाग-10)

काफी दिनों बाद एक बार फिर शालिनी वहाँ सुबह गई क्योंकि फिर स्कूल खुलने वाले थे। लौटते मे मुझे बुलाने जाना ही था,सुबह सीधे ड्यूटी चला गया था। चाय के बाद आँगन मे बैठना हुआ क्योंकि दिन बड़े थे उजाला था अतः लौटने मे थोड़ी देर होने पर भी दिक्कत न थी। शालिनी की माता थी परंतु वह बच्चों के साथ टी वी ही देखती थी। संगीता ने बताया कि उन्हे नेटरम मूर से तीन दिनों मे ही लाभ हो गया था परंतु मेरे बताने के मुताबिक 10 दिनो तक खा और लगा ली थी। वह बची हुई दवा मुझे देना चाहती थी। मैंने कहा कि सम्हाल कर रखे किसी को भी किसी कीड़े-मकोड़े के काटने पर देने के साथ-साथ यह लू -sunstrok की भी अचूक दवा है। खैर फिर नेटरम मुर्यार्टिकम अपने पास ही रखी,दवा की कीमत तो तुरंत भुगतान कर चुकी थी। चूंकि संगीता ने ही फिर पुरानी बात उठाई थी तो शालिनी ने भी बिना चूके कह दिया कि इन्हें दवा आपसे  लगवाने मे आनंद आया और आपने फिर दोबारा आकर लगाई ही नहीं। संगीता क्यों चूकती फटाफट कह दिया आप भेजती तभी तो आते। काफी पुरानी बात जो ध्यान से भी हट चुकी थी संगीता ने याद दिलाते हुये कहा कि जब कविता ने ऊपर से ही इंनका हाथ मेरे सीने पर फिरवा दिया था तो आपने कविता से एतराज किया था अब खुद आपने ही फिरवा दिया फिर रोक दिया होगा। शालिनी ने कहा न रोका न भेजा ,आप चाहती थी तो भेजने को कहा होता।

कविता ,संगीता की बड़ी बहन थी और अपने पति राकेश के साथ सिटी के क्वार्टर पर आई थी तब हम लोग वहाँ पहले से मौजूद थे। राकेश को कोई काम होगा वह अपना हाथ मुझे दिखा कर चाय पीने के बाद चले गए थे। बाद मे कविता ने भी अपना हाथ दिखाया था और संगीता को भी हाथ दिखवाने को कहा था। आम तौर पर मै किसी का भी हाथ दूर से ही देखता हूँ। परंतु कविता ने अपने हाथ की कुछ लकीरों के बारे मे पूछते हुये मेरा हाथ जबर्दस्ती अपने हाथ पर रख कर बताया था और इस क्रम मे खुद ही मेरे हाथ को इस प्रकार घुमाया कि उनके सीने को छू गया तब संगीता ठठा कर हंस दी थी । इस हंसी के बदले मे ही कविता ने मेरा हाथ तुरंत संगीता के सीने पर फिरा दिया था ,उसी का जिक्र अब संगीता ने किया था।

कविता के दो पुत्रियाँ थी और वह बेटा चाहती थी ,मेरे यह कहने पर कि योग है तो बोली थी कि फिर प्रयास करेंगे और इसी बात की खुशी मे मेरा हाथ अपने सीने तक ले गई थी और संगीता के हंसने पर उसके सीने पर फिरा दिया था। शालिनी ने तब संगीता पर हाथ फिराने का कविता से विरोध किया था। बाद मे कविता के पुत्र भी उत्पन्न हुआ। कविता के एक जेठ विश्वपति माथुर आगरा मे ही ट्रांस यमुना कालोनी मे रहते थे। उनसे भी परिचय इनही लोगों के माध्यम से हुआ था। वह हाईडिल मे जूनियर इंजीनियर थे और उनका स्वभाव बेहद अच्छा था। वह हर एक की मदद करने को हमेशा तत्पर रहते थे। उनसे हमारा मेल हो गया था और हम उनके घर भी चले जाते थे। एक बार कविता उनके घर आई हुई थी ,राकेश नहीं आए थे। संगीता ने मुझे उनके घर जाकर कविता को संगीता के सिटी के क्वार्टर पर लाने को शालिनी से कहा था। वी पी माथुर साहब के घर जाने मे एतराज था ही नहीं। किसी कारण से कविता उस दिन नहीं आई लेकिन उनके सामने ही विश्वपति जी ने उनकी शादी का एक किस्सा सुनाया। उन्होने बताया था कि,राकेश की शादी मे उन्होने अपने एक-दो साथियों के साथ मिल कर मजाक करने की योजना बनाई थी और एन फेरों से पहले राकेश से कहला दिया था कि कलर्ड टी वी मिलने पर ही फेरे हो सकेंगे। वे लोग एकदम परेशान हो गए ,और हैरान भी क्योंकि माथुर कायस्थों मे दहेज का रिवाज-चलन है ही नहीं। कविता के घर के लोग समझा कर हार गए तो कविता के भाई बोले बारात लौटा दो। तब संगीता मैदान मे आई और विश्वपति जी तथा अपने होने वाले जीजा राकेश से सीधे बात करने पहुँच गई कि उनकी मांग संभव नहीं भाई साहब नाराज हैं और बारात लौटाने को कह रहे हैं। विश्वपति जी ने संगीता से कहा कि तुम आ गई हो तो बिना टी वी के शादी करवा देंगे वरना बारात लौटा ही ले जाते। उन्होने संगीता से डांस करने की शर्त रखी । संगीता ने फेरे पड़ने के बाद डांस दिखाना कबूल किया और सच मे वादा पूरा भी किया। विश्वपतिजी ने कहा कि संगीता ने कविता की शादी करा दी। कविता ने हंस कर उनकी बात का समर्थन कर दिया।

शालिनी को यह बात घर आकर बताई थी जो उन्हे याद भी थी। अपनी आदत पुरानी बातो  को याद कर समय पर दोहराने की न होने पर भी पता नहीं कैसे शालिनी ने कहा कि विश्वपति भाई साहब ने कविता की शादी की जो कहानी सुनाई थी वह भी जरा इन्हे सुना दीजिये। मैंने कहा खुद ही बता दो तो बोली आपने सीधे उनसे सुना है ज्यादा ठीक से बता सकते हैं इसलिए इसे आप ही बताएं। संगीता भी मुस्कराते हुये बोली हाँ क्या कहानी थी आप ही बता दीजिये। मैंने पूरा विवरण सुना दिया तो हँसते-हँसते ,लॉट-पोट होते हुये संगीता ने कहा क्या बुरा काम किया ,मजाक ही सही मम्मी और भाई साहब तो उस वक्त बहौत परेशान थे ,चुटकियों मे हल तो निकाल लिया। शालिनी ने पहले कभी टूंडला मे होली की रंग-पाशी पर संगीता द्वारा श्वसुर और जेठ के समक्ष किए गए 'मै तो नाचूँगी,मै तो नाचूँगी' गाना गाते हुये डांस का जिक्र भी सुना दिया और कहा आपको डांस वगैरह पसंद नहीं है ,नहीं तो कभी देखते। संगीता बोली पसंद न हो तो भी मै डांस दिखा दूँगी,जब कभी मम्मी जी अगली बार कहीं जाएँ तो आप (शालिनी से) इशारा कर दीजिएगा।

मुझे उस समय यह सब बड़ा अजीब लगा और बेहद खोज-बीन के बाद भी इस सबका रहस्य न समझ सका। तब से अब तक के तमाम घटनाक्रमों  को मई 2011 मे कमलेश बाबू द्वारा कुक्कू के श्वसुर को अपना कज़िन बताने के बाद तुलना करने पर सारा का सारा रहस्य एक पल मे उजागर हो गया और उनके  तथा उनकी  छोटी बेटी के द्वारा  फेसबुक मे फेक आई डी बना कर टटोल-खकोल करने से उसकी पुष्टि भी हो गई।  लेकिन  उसका जिक्र अपने समय पर ही।

1991 की गर्मियों मे ही बड़े ताउजी के निधन का 'टेलीग्राम' अचानक आया ,वह पूर्ण स्वस्थ थे। एकाएक बाबू जी का जाना संभव नहीं था। बिना रिज़र्वेशन के मै 'गंगा-जमुना' एक्स्प्रेस से गया , टिकट तो मैंने लिया ही था परंतु शरद मोहन ने जेनरल कोच मे  आसानी से  बैठवा दिया था । इत्तिफ़ाक से उस दिन फैजाबाद होकर जाने का टर्न था तो सीधे 'दरियाबाद' स्टेशन पर ही उतरा था। ताईजी समेत सभी ने परिचय देने पर पहचाना परंतु गाँव के एक सज्जन ने देखते ही उन लोगों से पूछा कि क्या यह 'दुलारे भैया' का बेटा है? मैंने पूछा बिना देखे आपने कैसे पहचाना तो उनका उत्तर था तुम्हारी शक्ल उनसे मिलती है न पहचानने का क्या सवाल?

ताउजी रात मे बिना लालटेन लिए उठ गए थे और अंदाज मे गलती होने से बाथरूम की तरफ जाने की बजाए कुएं मे गिर पड़े थे ,ब्रेन हेमरेज से तत्काल उनकी मौत हो गई थी। रात मे ही उन्हें कुएं से निकाल लिया गया था। मै तो औपचारिक रूप से शोक प्रगट करने गया था,दकियानूस वाद  मानता न था अतः तेरहवी  तक रुकने का प्रश्न ही नहीं था। दो दिन के लिए दुकानों से गैर-हाजिर था। रायपुर से सुरेश भाई साहब रोजाना वहाँ नहाने आते थे इन लोगों ने मुझे भी उन्हीं के साथ बाहर के कुएं पर नहाने भेजा और नहाते ही भुने चने खाने को दिये। अगले दिन भी यही प्रक्रिया रही।



मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ कि इस शोक के माहौल मे भी ताईजी ने 1988 मे बाबूजी के नाम भेजे इस पत्र का जिक्र किया (मुझे यह पत्र बाबूजी के कागजात से उनके निधन के बाद मिला है) जिसमे उन्होने बाबूजी से वहाँ आकर 'चकबंदी' के माध्यम से अपना खेती का हिस्सा लेने की बात कही थी। मैंने तो यह कह कर पल्ला झाड लिया कि ये सब आप बड़े लोगों के बीच की बातें हैं। मैं आप का संदेश बाबूजी को दे दूंगा।

अगले दिन ताईजी ने लखनऊ मे माधुरी जीजी से मिलते जाने को कहा हालांकि उनके एक बेटा और एक बेटी दरियाबाद मेरे पहुँचने के बाद ही आ गए थे। नरेश मेरे साथ लखनऊ आए ,वैसे तब वह लखनऊ ही रहते थे। रात को अवध एक्स्प्रेस से मै आगरा रवाना हो गया।

जिस प्रकार चंद्र शेखर जी ने भाजपा और कांग्रेस से मिल कर वी पी सिंह की सरकार गिरवा दी थी उसी प्रकार उनकी सरकार को राजीव गांधी के वक्तव्य-"हरियाणा पुलिस के दो कांस्टेबल मेरी जासूसी करते हैं" ने गिरवा दिया था और मध्यावधि चुनाव चल रहे थे कि इस प्रचार के दौरान ही राजीव गांधी की निर्मम हत्या भी लिट्टे विद्रोहियों ने कर दी जिन्हें खुद राजीव गांधी और उनकी माँ इंदिरा गांधी ने प्रश्रय दिया था। 

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