बुधवार, 9 नवंबर 2011

आगरा /1990-91 (भाग-6 )

इसी प्रकार एक बार शाम के समय दुकान से लौटते मे सिटी स्टेशन गए थे चूंकि काफी दिनों से वहाँ की कोई खबर नहीं थी। तब मोबाईल/फोन नहीं थे। शालिनी अक्सर सुबह ही कह देती थीं कि पार्टी आफिस जाने से पहले उनके भाई के घर का हाल-चाल पता करता जाऊ । ऐसे ही उस दिन भी कहा था और वहाँ पहुँचने पर पाया कि फिर संगीता दर्द से पीड़ित थीं। उन्होने अपनी सास और दोनों बेटियों की मौजूदगी मे ही कहा कि आप अपने मित्र डॉ (चिकित्सक) रामनाथ  को बुला लाइये उनका ही इलाज करते हैं। उन्होने प्रत्यक्ष रूप से कहा कि शरद तो डबल ड्यूटी कर सकते हैं ,घर नहीं देख सकते। (चूंकि ड्यूटी पर अतिरिक्त कमाई होती थी इस वजह से पार्सल बाबू स्टेशन छोडना ही न चाहते थे)। हालांकि उनकी सास को अच्छा  नहीं लगा था परंतु फिर भी फर्ज के नाते मैंने उनसे पूंछा कि यदि आप कहेंगी तभी हम उन डॉ साहब को लाएँगे अन्यथा नहीं। उन्होने डिप्लोमेटिक जवाब दिया कि जब संगीता उनको कह रही हैं तो उन्हें ही बुला दीजिये ,शरद को तो अभी समय नहीं है जो दिखाने ले जाये।

मेरे मित्र डॉ साहब चिकित्सक,पंडित,ज्योतिषी,शेयर ब्रोकर सभी थे उन्हें उनके क्लीनिक या घर पर पकड़ने का मतलब तमाम वक्त इंजार मे गुज़ारना होता था। अतः मै उस दिन अपनी पार्टी भाकपा के कार्यालय नहीं जा कर घर आया और शालिनी को सारा वृतांत बता दिया कि तुम्हारी माँ ने सीधा जवाब नहीं दिया  है जबकि तुम्हारी भाभी ने स्पष्ट कहा है। शालिनी ने तो डॉ को लेते जाने को कह ही दिया मेरे माता-पिता ने भी उनका समर्थन कर दिया। रात के साढ़े-नौ बजे डॉ साहब अपने क्लीनिक पर पधारे ऊपर ही उनका घर भी था। उनके क्लीनिक पर अपनी साइकिल छोड़ कर उनके स्कूटर पर बैठ कर उनके साथ सिटी स्टेशन के क्वार्टर पहुंचा ।
आव-भगत मे तेज शालिनी की माता जी तो फटा-फट चाय -नाश्ता डॉ साहब के लिए बनाने उठ गई। डॉ साहब ने नब्ज,स्टेथोस्केप से चेक करने के बाद संगीता का  पेट पेड़ू तक  चेक(नारा खुलवा कर) करके तात्कालिक रूप से खाने हेतु कुछ दवाएं लिख दी और सीने का एक्सरे कराकर दिखाने को कहा और उसी के बाद इलाज शुरू करने को कहा। डॉ साहब के सामने ही तय हुआ जिसमे शालिनी की माता जी ने भी हाँ मे हाँ मिलाई थी कि अगले दिन मै सुबह अपनी ड्यूटी जाने से पहले वहाँ आकर संगीता और उनकी सास को एक्सरे हेतु ले चलूँ।

मै जब अपने दिये समय पर पहुंचा  तो पता चला कि झांसी से सीमा के पति योगेन्द्र चंद्र आकर संगीता को रेलवे अस्पताल चेक कराने ले गए हैं। तब तक दुकानें खुलने का वक्त नहीं हुआ था लिहाजा वहीं कुछ देर और  रुकना पड़ा। शाम को लौट कर मैंने शालिनी से यह दास्तान बताई तो उन्होने कहा मिलने पर पता करके बताएँगे कि रात-रात मे प्रोग्राम कैसे बदला और झांसी से योगेन्द्र रातों-रात चल कर सुबह-सुबह कैसे पहुँच गए। यदि ऐसे करना था तो मुझे क्यो कहा गया था?

बहर-हाल रेलवे डॉ ने भी एक्सरे कराने को कहा था। शरद ने अपने राजा-की-मंडी स्टेशन के पास एक एक्सरे क्लीनिक पर अपनी माँ और पत्नी को भेज कर एक्सरे करवाया था जिसे रेलवे डॉ ने रिजेक्ट करके दूसरा एक्सरे करवाने को कहा था। शरद को तो वक्त ही न था लिहाजा पुनः एक्सरे टलता रहा। काफी दिन हो गए थे मै उधर जाना नहीं चाहता था। एक रोज शालिनी फिर बेहद अनुरोध के साथ बोलीं कि आज जाते मे जरा देर को खड़े-खड़े ही हाल पता कर लें। लिहाजा मै सिटी क्वार्टर के रास्ते से ही गया। वहाँ देखा कि संगीता और उनकी सास घर मे ताला लगा कर क्वार्टर के बाहर खड़ी हैं,लड़कियां स्कूल मे थीं। कारण यह बताया कि शरद ने सिटी स्टेशन के फोन के जरिये संदेश भेजा था तैयार रहना आकर एक्सरे क्लीनिक चलेंगे। घंटे भर से खड़े हैं इन्तजार कर रहे हैं कहीं कोई संदेश,कोई खबर नहीं है। संगीता बोलीं आप किसी दूसरे एक्सरे क्लीनिक को जानते हों तो वहाँ ले चले वहीं एक्सरे  करा लेते हैं,उनकी सास साहिबा बोलीं कि अरे पहले चाय तो पिला दो फिर चलना। मैंने कहा अगर चलना है तो ताला न खोलें और किसी तकल्लुफ मे न पड़ें तुरंत चलें क्योंकि मेरा भी ड्यूटी पहुँचने का समय हो रहा है।

खैर फिर वे लोग सीधे रिक्शे के जरिये चले मैंने एस एन मेडिकल कालेज के पीछे स्थित एक एक्सरे क्लीनिक पर पहुंचा दिया। शालिनी की माता जी बोलीं थोड़ी और देर कर लीजिये एक्सरे हो जाये तब आप ड्यूटी निकल जाएँ हम लोग घर चले जाएँगे। राजा-की-मंडी स्टेशन के पास उनसे रु 75/-चार्ज हुये थे जबकि यहाँ रु 60/- ही लगे। मंहगे क्लीनिक के एक्सरे मे पिन आने से तस्वीर साफ नहीं थी वहाँ के टेकनीशियन ने कुछ बताया नहीं था। इस सस्ते किन्तु मेडिकल कालेज के बगल वाले क्लीनिक का टेकनीशियन चतुर था। उसने ब्लाउज के हुक तो खुलवाए ही,पिन भी हटवाए तथा गले की चेन भी उतार देने को कहा। पिन तो संगीता ने रुमाल मे लपेट लिए थे चेन मुझे संभालने को पकड़ा दी क्योंकि उनकी सास तो उनके साथ ही थीं। एक्सरे हो जाने के बाद चेन सौंप कर मै ड्यूटी के लिए चला गया हालांकि देर हो चुकी थी और सेठ जी कुछ कहने की स्थिति मे नहीं थे। एक्सरे प्रिंट शाम को मिलना था उन लोगों ने कहा लौटते मे मै लाकर उनके घर दे दूँ ।

मैंने शाम को एक्सरे प्रिंट और रिपोर्ट सौंप दी। सुबह घर के बाहर से लौट गया था अतः चाय पिलाई । मै इस दिन फिर भाकपा कार्यालय नहीं पहुँच पाया। शालिनी से इस नाटक को बता कर पूंछा कि योगेन्द्र चंद्र को झांसी से बुला कर रेलवे अस्पताल मे दिखाना,एक्सरे कराना दोबारा कराने मे तुम्हारे भाई द्वारा टाल-मटोल करना फिर आखिर मे मेरी  ही मदद लेना कौन सी थ्योरी है?इसका जवाब न शालिनी दे सकती थीं न दिया।

क्रमशः....


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3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

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  2. बहुत बढ़िया लगा ! बेहतरीन प्रस्तुती!

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  3. बहुत सुंदर संस्मरण
    मिनट टू मिनट हर वाकये को बहुत ही बढिया तरीके से पेश किया गया है। शुभकामनाएं

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