आज ही की तारीख मे गत वर्ष अपने लखनऊ आने का विवरण दिया था। पहले इस वर्ष इस विषय पर कुछ लिखने का विचार नहीं था ,हालांकि ऐसा कुछ भी विशेष कारण इसका नहीं था। यों तो हम लोग जिस प्रकार अपने लोगों के जन्मदिन पर केवल हवन करते हैं उसी प्रकार आज भी केवल हवन ही किया था ,किन्तु 'वास्तु शास्त्र' के मुताबिक कुछ विशेष सामाग्री और लेकर विशेष मंत्रों से अतिरिक्त आहुतियाँ और दे दी।
ब्लाग जगत मे पिछले कई पोस्ट मे नव-वर्ष आदि के अवसर पर जिन ब्लागर्स की तारीफ मे दो शब्द भी लिखे थे उनके प्रोफाईल खंगाल कर हमारी छोटी भांजी साहिबा ने अपने पिताश्री के बी माथुर साहब के माध्यम से उन्हें मेरे विरुद्ध करने का प्रयास किया। फिर 'अन्ना' का कारपोरेट घरानों का हितैषी आंदोलन चलने पर तमाम ब्लागर्स ने उसका अंध समर्थन किया। इस कारण मुझे कई ब्लाग्स अनफालों भी करने पड़े और कई को फेसबुक मे ब्लाक भी किया। कुछ पर 'अन्ना' के विरोध मे टिप्पणिया खुल कर दी और अधिकांश पर मौन रखा। हम-संम विचार धारा के ब्लागर्स ने अन्ना-विरोधी लेख प्रकाशित किए उन पर खुल कर समर्थन किया और उनमे से कुछ को अपने 'कलम और कुदाल' पर साभार पुनर्प्रकाशित भी किया। जहां अन्ना/रामदेव की कीचड़ मे फंस कर अधिकांश ब्लागर्स अपना आपा खो बैठे थे और अन्ना विरोधियों को 'बकवास','वाहियात' जैसी उपाधियों से विभूषित कर रहे थे। उनके बीच मे उनके समर्थक होते हुये भी 'कीचड़ मे कमल' अथवा 'काँटों के बीच गुलाब' के रूप मे डॉ टी एस दराल साहब, मनोज कुमार जी एवं सलिल वर्मा जी का नाम आदर सहित लिया जा सकता है। इन तीनों का नाम पहले भी ससम्मान आया है इनके साथ और जो नाम प्रशंसा पाये थे वे सब अन्ना की अंध आंधी मे उड़ गए हैं।
पिछले वर्ष से अब तक (अप्रैल से नवंबर के मध्य) कुछ ब्लागर्स से व्यक्तिगत मुलाकातें भी सम्भव हुई जिनमे स्थानीय के अतिरिक्त दूसरे नगरों और विदेश से पधारे सज्जन भी थे। सभी मुलाकातें बेहद अच्छी रहीं हैं। तीन साहित्यिक गोष्ठियों मे भी बुलावा मिला और हम तीनों मे ही उपस्थित हुये तथा ज्ञानार्जन किया। AISF के प्लेटिनम जुबली समारोह मे एक कार्यकर्ता की हैसियत से भाग लिया। प्रगतिशील लेखक संघ के भी 75 वर्ष सम्पन्न होने के कार्यक्रम मे एक श्रोता की हैसियत से उपस्थित रहा और तमाम जानकारी हासिल कीं। भाकपा के आंदोलनों मे से कुछ मे एक कार्यकर्ता के नाते सक्रिय रूप से शामिल हुआ। और इस प्रकार राजनीति एवं साहित्यिक गतिविधियों मे पूरी तरह संतुष्टि प्राप्त हुई जबकि ब्लाग जगत का अनुभव अच्छा नहीं रहा। और अच्छा नहीं रहा व्यक्तिगत रिश्तेदारियों का कटु अनुभव। छोटी बहन डॉ शोभा और बहनोई माननीय कमलेश बिहारी माथुर साहब के पोल-पट्टों का खुलासा तथा उनकी के एम एवं शरद मोहन माथुर (पार्सल बाबू) के साथ घनिष्ठता का उजागर होना जहां धक्का लगने वाली बात थी वहीं इससे और आगे उनके द्वारा क्षति पहुंचाए जाने की कोशिश को ब्रेक भी लग सकता है जो हमारे लिए लाभदायक स्थिति ही होगी। हालांकि अभी तो छल-छ्द्म इनके चल ही रहे हैं। इनके रिशतेदारों तथा मित्रों को फेसबुक पर ब्लाक कर देने के कारण इन्हों ने kb mathur नाम से दूसरी आई डी बना कर हम लोगों का फेसबुक अकाउंट खँगालने का प्रबंध किया था जिसे भी ब्लाक कर देने के कारण अब यह और कोई तिकड़म भिढ़ाएंगे। इनके रवैये के कारण ही 1990-91 और आगे -पीछे की वे बातें जो पहले ब्लाग मे देने का विचार नहीं था,देनी पड रही हैं।बात बेहद साफ है जब बहन-बहनोई की कारगुजारियाँ प्रकाश मे लानी पड़ी तो उन लोगों को क्यों छोड़ा जाये जिनके इशारे पर इन लोगों ने हमे मिल कर मारने की चाले चलीं।
पिछले वर्ष के लेख के बाद बाबूजी के फुफेरे भाई के पुत्रों -पुत्री से संपर्क हुआ था। इनमे से कमल दादा ने डॉ शोभा को 'टेढ़ी' बताया था उनका निधन मार्च 2011 मे हो गया। उनके शांति हवन मे मिली शैल जीजी ने भी डॉ शोभा को 'चिढ़ोकारी' बताया था उनका भी निधन अगस्त 2011 मे हो गया । यहाँ आने के बाद हमने सभी रिशतेदारों से संपर्क रखना चाहा था लेकिन ज़्यादातर के अमीर होने के कारण निर्वाह नहीं हो सका ,अब हमने ऐसे संपर्क न करने का ही फैसला किया है। 'एकला चलो' वाला जो सिद्धान्त पहले से ही प्रिय था उसी पर आगे चलने का पक्का फैसला किया है। यही इस एक वर्ष की उपलब्धि है।
ब्लाग जगत मे पिछले कई पोस्ट मे नव-वर्ष आदि के अवसर पर जिन ब्लागर्स की तारीफ मे दो शब्द भी लिखे थे उनके प्रोफाईल खंगाल कर हमारी छोटी भांजी साहिबा ने अपने पिताश्री के बी माथुर साहब के माध्यम से उन्हें मेरे विरुद्ध करने का प्रयास किया। फिर 'अन्ना' का कारपोरेट घरानों का हितैषी आंदोलन चलने पर तमाम ब्लागर्स ने उसका अंध समर्थन किया। इस कारण मुझे कई ब्लाग्स अनफालों भी करने पड़े और कई को फेसबुक मे ब्लाक भी किया। कुछ पर 'अन्ना' के विरोध मे टिप्पणिया खुल कर दी और अधिकांश पर मौन रखा। हम-संम विचार धारा के ब्लागर्स ने अन्ना-विरोधी लेख प्रकाशित किए उन पर खुल कर समर्थन किया और उनमे से कुछ को अपने 'कलम और कुदाल' पर साभार पुनर्प्रकाशित भी किया। जहां अन्ना/रामदेव की कीचड़ मे फंस कर अधिकांश ब्लागर्स अपना आपा खो बैठे थे और अन्ना विरोधियों को 'बकवास','वाहियात' जैसी उपाधियों से विभूषित कर रहे थे। उनके बीच मे उनके समर्थक होते हुये भी 'कीचड़ मे कमल' अथवा 'काँटों के बीच गुलाब' के रूप मे डॉ टी एस दराल साहब, मनोज कुमार जी एवं सलिल वर्मा जी का नाम आदर सहित लिया जा सकता है। इन तीनों का नाम पहले भी ससम्मान आया है इनके साथ और जो नाम प्रशंसा पाये थे वे सब अन्ना की अंध आंधी मे उड़ गए हैं।
पिछले वर्ष से अब तक (अप्रैल से नवंबर के मध्य) कुछ ब्लागर्स से व्यक्तिगत मुलाकातें भी सम्भव हुई जिनमे स्थानीय के अतिरिक्त दूसरे नगरों और विदेश से पधारे सज्जन भी थे। सभी मुलाकातें बेहद अच्छी रहीं हैं। तीन साहित्यिक गोष्ठियों मे भी बुलावा मिला और हम तीनों मे ही उपस्थित हुये तथा ज्ञानार्जन किया। AISF के प्लेटिनम जुबली समारोह मे एक कार्यकर्ता की हैसियत से भाग लिया। प्रगतिशील लेखक संघ के भी 75 वर्ष सम्पन्न होने के कार्यक्रम मे एक श्रोता की हैसियत से उपस्थित रहा और तमाम जानकारी हासिल कीं। भाकपा के आंदोलनों मे से कुछ मे एक कार्यकर्ता के नाते सक्रिय रूप से शामिल हुआ। और इस प्रकार राजनीति एवं साहित्यिक गतिविधियों मे पूरी तरह संतुष्टि प्राप्त हुई जबकि ब्लाग जगत का अनुभव अच्छा नहीं रहा। और अच्छा नहीं रहा व्यक्तिगत रिश्तेदारियों का कटु अनुभव। छोटी बहन डॉ शोभा और बहनोई माननीय कमलेश बिहारी माथुर साहब के पोल-पट्टों का खुलासा तथा उनकी के एम एवं शरद मोहन माथुर (पार्सल बाबू) के साथ घनिष्ठता का उजागर होना जहां धक्का लगने वाली बात थी वहीं इससे और आगे उनके द्वारा क्षति पहुंचाए जाने की कोशिश को ब्रेक भी लग सकता है जो हमारे लिए लाभदायक स्थिति ही होगी। हालांकि अभी तो छल-छ्द्म इनके चल ही रहे हैं। इनके रिशतेदारों तथा मित्रों को फेसबुक पर ब्लाक कर देने के कारण इन्हों ने kb mathur नाम से दूसरी आई डी बना कर हम लोगों का फेसबुक अकाउंट खँगालने का प्रबंध किया था जिसे भी ब्लाक कर देने के कारण अब यह और कोई तिकड़म भिढ़ाएंगे। इनके रवैये के कारण ही 1990-91 और आगे -पीछे की वे बातें जो पहले ब्लाग मे देने का विचार नहीं था,देनी पड रही हैं।बात बेहद साफ है जब बहन-बहनोई की कारगुजारियाँ प्रकाश मे लानी पड़ी तो उन लोगों को क्यों छोड़ा जाये जिनके इशारे पर इन लोगों ने हमे मिल कर मारने की चाले चलीं।
पिछले वर्ष के लेख के बाद बाबूजी के फुफेरे भाई के पुत्रों -पुत्री से संपर्क हुआ था। इनमे से कमल दादा ने डॉ शोभा को 'टेढ़ी' बताया था उनका निधन मार्च 2011 मे हो गया। उनके शांति हवन मे मिली शैल जीजी ने भी डॉ शोभा को 'चिढ़ोकारी' बताया था उनका भी निधन अगस्त 2011 मे हो गया । यहाँ आने के बाद हमने सभी रिशतेदारों से संपर्क रखना चाहा था लेकिन ज़्यादातर के अमीर होने के कारण निर्वाह नहीं हो सका ,अब हमने ऐसे संपर्क न करने का ही फैसला किया है। 'एकला चलो' वाला जो सिद्धान्त पहले से ही प्रिय था उसी पर आगे चलने का पक्का फैसला किया है। यही इस एक वर्ष की उपलब्धि है।
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