शनिवार, 26 नवंबर 2011

आगरा /1990-91 (भाग-8 )

इन दिनों विहिप आदि का रामजन्मभूमि आंदोलन भी ज़ोरों पर था। शिला पूजन आदि के नाम पर धन बटोरा जा रहा था विद्वेष भड़काया जा रहा था। 'मंटोला' क्षेत्र मे पी ए सी के माध्यम से तत्कालीन एस एस पी कर्मजीत सिंह घरों से निवासियों को खदेड़ने मे कामयाब रहे थे। वह कल्याण सिंह के चहेते थे बाद मे मायावती के चहेते बन कर डी जी पी बने। हमारी पार्टी भाकपा 'सांप्रदायिकता विरोधी' अभियान चलाती रहती थी ,अक्सर जिला मंत्री मिश्रा जी मुझ से भी विचार व्यक्त करने को कहते थे। मै संत कबीर के दोहों के माध्यम से अपनी बात सिद्ध करता था जो उन्हें तब पसंद आता था और वह भी कभी-कभी ऐसा ही करते थे।

इन्ही वर्षों के लगभग 'पनवारी' नामक गाँव मे एक दलित को घोड़ी पर चढ़ कर बारात निकालने से रोकने हेतु जातीय संघर्ष भी हुआ था। (सन ठीक से याद नहीं है)। कमलानगर मे भी कर्फ़्यू लागू था। बउआ -बाबूजी उस समय फरीदाबाद मे अजय के पास थे। एक दिन शरद की बड़ी बेटी मेरे साथ साइकिल पर बैठ कर आ गई थी। सुबह शालिनी ने ही सिटी पर मिलते आने को कहा था। दिन मे उन्हें बुखार चढ़ गया था ,शाम को खाना बनाने का विचार नहीं था परंतु भतीजी के अचानक आ जाने पर बनाना पड़ा हालांकि वह 4या 5 वर्ष की ही रही होगी। जब कर्फ़्यू लगा उस समय वह हमारे घर थी। दो दिन के बाद पहुंचाने का वादा कर्फ़्यू ने पूरा नहीं होने दिया। शरद के एक मौसेरे भाई आशुतोष मेडिकल कालेज मे शायद तब हाउस जाब कर रहे थे ,एक दोपहर आकर अपने स्कूटर से शरद की बेटी को ले गए । डॉ होने के नाते वह बिना पास के आ-जा सकते थे। अपने हास्टल से सिटी क्वार्टर पहुंचे उन लोगों का हाल-चाल लेने तो उनकी भाभी संगीता ने अपनी बेटी को ले आने को उनसे कहा था।

कर्फ़्यू समाप्त होने के काफी बाद एक दिन राज कुमार शर्मा जी (सप्तदिवा वाले विजय जी के बड़े भाई) एक और सज्जन के साथ यों ही मिलने चले आए थे। वह हमारी विचार -धारा से परिचित थे फिर भी बोले कि परंपरा तोड़ कर दलितों को बारात नहीं निकालनी चाहिए थी। पढे-लिखे सहायक अभियंता जी साईन्स साईड के थे फिर भी अवैज्ञानिक बातों के जरिये पोंगावाद का समर्थन कर रहे थे। वस्तुतः अमीर लोग गरीबों को ऊपर उठते नहीं देख सकते बल्कि उन्हें कुचले रखना चाहते हैं इसीलिए जातिवाद का समर्थन करते हैं।

लगभग यही धारणा शरद और उनकी माँ की भी थी। घर मे भी उनके यहाँ दकियानूस वाद  ही हावी था। संगीता को फिर रेलवे अस्पताल मे इलाज नहीं कराया जबकि फ्री होता। मेडीकल कालेज मे फेफड़ों की टी बी बताया गया और फेफड़ों से इंजेक्शन के जरिये पानी निकाला जाता था। एक दिन शालिनी सुबह मेरे साथ ड्यूटी जाने के समय यशवन्त को लेकर चलीं और सिटी क्वार्टर पर रुक गई। शाम को उन्हे लेने गया तो पता चला कि शरद टाईम न होने के नाम पर अपनी पत्नी को मेडीकल कालेज ड्यू टाईम पर नही ले गए थे। अतः उन लोगों ने शालिनी से कहा था कि अगले दिन ड्यूटी जाने से पहले मै संगीता को उनकी सास के साथ मेडीकल कालेज ले चलूँ और फेफड़ों से पानी निकाले  जाने के बाद अपनी ड्यूटी चला जाऊ और वे लोग अपने घर लौट आएंगे। मन  मे बुरा तो यह लगा कि जब संगीता के कहने पर डॉ रामनाथ को बुला लाया था तो झांसी से योगेन्द्र को बुला कर रेलवे अस्पताल भेज दिया था और मेरा समय बेवजह खराब करा दिया था तो अब मै साथ चलने से इंकार कर दूँ ।फेफड़ों मे भरा पानी पीठ की किसी नस से सीरिञ्ज द्वारा खींच कर निकाला जाता था।

 परंतु सब को मदद करने की आदत के कारण हामी भर दी और वादा भी निभाया।अतीत मे अजय की शादी और यशवन्त के जन्मदिन कार्यक्रम मे छोले -भटूरे बनाने का  शालिनी से  वायदा करके भी संगीता ने पूरा नहीं किया था। तब भी शालिनी की तमन्ना रहती थी कि मै उनकी भाभी को मदद कर दूँ। कभी तो शालिनी संगीता के असंगत व्यवहार पर उनमे बचपना होने की बात कह देती थीं जबकि उस समय खुद संगीता दो बच्चियों की माँ थीं। कभी -कभी खुद शालिनी को ही संगीता का व्यवहार पीड़ा पहुंचाता था। यो ही एक बार दिन मे यशवन्त को लेकर वह सिटी के क्वार्टर पर रुक गई थीं। शाम को दुकान से लौटते मे मै बुलाने गया था।चाय देने के बाद संगीता ने पूछा कि आपने मजेदार खबर सुनी है?उन लोगों के यहाँ 'अमर उजाला' आता था जो क्रिमिनल खबरें ज्यादा छापता था। दुकान पर 'पंजाब केसरी' आता था वहीं पढ़ लेता था ,घर पर नहीं लेता था। बाकी अखबार पार्टी (भाकपा)आफिस पर पढ़ लेता था। उस दिन पार्टी आफिस न जाकर वहाँ मौजूद था लिहाजा मै उस समाचार से बेखबर था। फिर खुद ही संगीता ने अखबार से वह खबर पढ़ कर सुनाई -दिल्ली मे आमने -सामने रहने वाले दो दम्पतियों के रोमांस की खबर को चटक ढंग से छापा गया था। एक परिवार का पुरुष दूसरे परिवार की महिला को लेकर नैनीताल मे गुलछर्रे उड़ाने गया था ,वह महिला अपने पति को झूठ बोल कर पीहर जाने के नाम पर पडौसी के संग गई थी। उसके पति ने सोचा कि पड़ौसन अकेली है उसका पति भी नहीं है वह उसे लेकर नैनीताल पहुँच गया। दोनों अलग-अलग होटलों मे ठहर कर एक -दूसरे की बीबियों के साथ मौज-मस्ती करते रहे। एक शाम दोनों अपनी-अपनी पड़ौसनो के साथ  विपरीत दिशा से घूमते हुये आमने-सामने आ गए और एक-दूसरे का कालर पकड़ कर मार-धाड़ करने लगे। भीड़ मे लोगो  ने उन्हें छुड़ा कर अपनी-अपनी बीबियों के साथ चुप-चाप चले जाने को कहा और चेतावनी दी कि यदि लड़े तो पुलिस को सौंप दिया जाएगा। इस खबर को जिस खुशी और मस्ती से संगीता ने पढ़ा था शालिनी को बुरा लगा होगा ,वहाँ तो चुप रहीं घर आकर मुझसे बोलीं दिन मे उन्हें बताया तो ठीक था परंतु उस खबर को मुझे इस अंदाज मे क्यों सुना रहीं थीं क्या वह मेरी पत्नी थीं। मैंने उन्हें जवाब दिया तुम्ही  समझो अपनी भाभी की बड़ी तरफदारी करती हो वह क्या हैं?उनमे बचपना है?या आवारगी?

'पनवारी कांड 'के कर्फ़्यू के दौरान ही गुरुशरण भाई साहब की बेटी की शादी भी पड़ी। लड़के वालों के बारात लाने से इंकार करने के कारण उन्होने दिल्ली जाकर शादी की  थी। शामिल न हो सके थे। अतः जब उनकी बेटी पीहर आई तो उन्होने सूचित किया कि शैली आई है। हम लोगों ने उनके घर जाकर अपनी हैसियत के अनुसार शैली को रु 21/- भेंट कर दिये।

हमने कभी बदले की आकांक्षा नहीं रखी और अपनी तरफ से सदा संबंध मधुर बनाए रखने का प्रयास किया जिसे मेरी कमजोरी समझा गया।


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3 टिप्‍पणियां:

  1. चंडीगढ़ में थे तो अमर उजाला और पंजाब केसरी पढ़ा करता था। सही कहा है आपने अमर उजाला के बकवासी खबरों के बारे में।

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  2. आप इतनी पुरानी बाते व दिनांक कैसे याद रखते है?

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