बुधवार, 18 अप्रैल 2012

आगरा/1994 -95 /भाग-12 (बउआ के निधन के बाद )

.... पिछले अंक से जारी......

बाबूजी के निधन के 12 दिन बाद ही बउआ का भी निधन हो गया था। 23 तारीख को अजय फरीदाबाद मेरे रुके रहने को कहने के बावजूद चले गए थे। वहाँ अटेची खोली भी नहीं थी ,अपने काम पर भी नही गए थे कि पुनः लौटना पड़ा। थकान या सदमा जो भी हो उनकी तबीयत गड़बड़ा गई,बुखार भी हो गया,बेहद कमजोरी हो गई। डॉ की दवा लेनी पड़ी। उठना बैठना भी मुश्किल हो गया था। अजय के छोटे वाले साले नरेंद्र मोहन (जो वैसे उनकी पत्नी से बड़े ही हैं और जिनकी पत्नी कमलेश बाबू की ममेरी बहन हैं )मिलने और शोक व्यक्त करने आए । उन्होने अपनी कार से फरीदाबाद अजय को छोड़ आने का प्रस्ताव रखा क्योंकि रेल का सफर करने की अजय की हिम्मत नहीं थी। किन्तु स्वाभिमान के चलते अजय ने उनकी पेशकश को नामंज़ूर कर दिया। डॉ शोभा और कमलेश बाबू की गैर हाजिरी मे तो अजय की श्रीमती जी का व्यवहार ठीक ही था,वही खाना -नाश्ता देखती थीं और स्कूल खुल जाने पर यशवन्त के समय से भी तैयार कर देती थी।

चूंकि मैंने  बाबूजी और बउआ के न रहने पर दोनों बार पोस्ट कार्ड पर सब को सूचना दी थी अतः लगातार दो मौतों के बाद कुछ लोगों ने पोस्ट कार्ड पर संवेदना भेजी थी जिनमे बाराबंकी से  सपा नेता कामरेड रामचन्द्र  बक्श सिंह का भी पोस्ट कार्ड था और आगरा से शरद मोहन माथुर का भी। ग्वालियर से अजय के साले साहब आए थे और उनके एक दो दिन बाद देहरादून से हमारी माईंजी भी शाम के वक्त 12 घंटे का बस का सफर करके पहुँचीं थीं। अगले दिन माईंजी ने कहा कि वह पीपल मंडी स्थित अपनी एक रिश्ते की बहन के यहाँ भी शोक व्यक्त करने जाएंगी जिनके पति बैकुंठ नाथ माथुर का कुछ समय पूर्व जबर्दस्त हार्ट अटेक से देहांत हो गया था। इन माथुर साहब से मेरा पूर्व परिचय था और मै उनके घर जा चुका था। माईंजी ने मुझसे साथ चलने को कहा तब यशवन्त स्कूल मे था।

चलते समय मैंने अपने साथ कुछ अतिरिक्त रुपए रख लिए लेकिन माईंजी ने कहा कि उनके साथ जाने पर मुझे रुपए खर्च करने नहीं हैं अतः न रखू।परंतु मै एहतियातन वे रुपए ले ही गया। बैकुंठ नाथ जी  के घर काफी देर माईंजी की अपनी बहन से बात हुई। चलते समय वह अपना पर्स उठाना भूल गईं। पीपल मंडी तिराहे पर आकर माईंजी ने कहा कि रानी जी के यहाँ भी मिल लेते हैं उनका घर भी माईंजी का देखा हुआ नहीं था और रास्ते से उन्हें अकेला छोडना उचित भी न था अतः मुझे मजबूरन जाना ही पड़ा। माईंजी ने अपनी फुफेरी नन्द के घर के लिए आम आदि फल ले लिए और जब रुपए देने के लिए पर्स चाहा तो था ही नहीं। तब बोलीं कि विजय हमारा पर्स तो वहीं छूट गया लगता है अब तुम्ही पैसे दे दो घर चल कर तुम्हारा सब हिसाब कर देंगे। मैंने कहा माईंजी वह तो कोई बात नहीं यदि मैंने सुबह आप की बात मानी होती तब इस समय मै भी खाली हाथ होता। उनको कहना पड़ा हाँ तुमने रुपए रख कर ठीक ही किया। फिर रिक्शा आदि सब जगह मै ही रुपए देता रहा।

चूंकि मै गोविंद बिहारी मौसा जी (अलीगढ़ रिश्ते के कमलेश बाबू के चाचा ) के घर जाना बंद कर चुका था अतः बगल के घर मे नवीन के बारामदे मे बैठ गया। जब रानी मौसी चाय लाई तब माईंजी से उन्होने मुझे भी बुलवा लिया। माईंजी के लिहाज पर मुझे रानी मौसी के घर चाय पीनी पड़ गई। माईंजी के काफी बुलाने पर भी गोविंद बिहारी मौसा जी बाहर माईंजी से नमस्ते तक करने न आए। माईंजी ने रानी मौसी से पूछा कि गोविंद बिहारी अगर पर्दा न करते हो तो वही उनसे अंदर नमस्ते कर आयें। झेंप कर रानी मौसी को फिर माईंजी को घर के अंदर ले ही जाना पड़ा। झेंप दूर करने के लिए ही तब मौसा जी ने माईंजी को खाना खा कर जाने को कहा। जब अंदर खाना टेबुल पर लग गया और उन लोगों ने मुझे बाहर के कमरे से नहीं बुलवाया तो माईंजी खुद उठ कर आईं और मुझसे चल कर खाने को कहा मेरे इंकार करने पर माईंजी ने आदेशात्मक स्वर मे मुझे एक ही रोटी खा लेने को कहा। अपनी शादी से पहले ही माईंजी मुझे जब मै कोई सवा या डेढ़ साल का था अपनी बहनो व भाइयो से अपने पास बुला कर सारा-सारा दिन रखती थीं उनकी बात गिरा कर तौहीन करना मेरे लिए मुमकिन न था अतः अपमान का कड़ुवा घूंट पीकर उनके साथ गया तो गोविंद बिहारी मौसा जी को भी नमस्ते किया जिसका उन्होने कोई रिस्पांस नहीं दिया और माईंजी ने खुद देख भी लिया। हालांकि रानी मौसी ने नमस्ते का उत्तर दे दिया था।

माईंजी ने एक नंबर देकर कई बार विष्णू को देहरादून फोन करवाया और वहाँ कोई और मिलता रहा पैसे बर्बाद जाते रहे। रानी मौसी के घर से चलने पर माईंजी ने पहले उनके एक भाई के घर हंटले हाउस रुकने को कहा। उन दो भाइयों मे से एक माईंजी की पीपल मंडी वाली बहन के घर गए हुये थे जो उनकी सगी बहन थीं । अतः माईंजी ने फोन पर बात करके उनसे अपना पर्स लेते आने को कहा। माईंजी को तब तक रुकना था। मैंने कहा यदि आप बुरा न माने तो मै चला जाऊ ,यशवन्त आ चुका होगा और वह परेशान होगा। माईंजी ने मुझे इजाजत दे दी और जब मै घर पहुंचा तो पाया कि अजय और उनकी श्रीमतीजी की खुशामदें करने के बावजूद यशवन्त ने खाना नहीं खाया था -भूखा था। उसने अपने चाचा-चाची से एक ही जिद लगा रखी थी कि जब तक पापा नही लौट आएंगे खाना नहीं खाऊँगा। उसने छोटी बहन से उनके द्वारा कहलवाए जाने पर भी खाना नहीं खाया था।

अजय की श्रीमती जी ने कहा कि अब शाम हो गई है यशवन्त को सुबह का खाना नहीं देंगे ,उन्होने जल्दी-जल्दी उसके लिए ताज़ी सब्जी बना कर पराँठे सेंक दिये तब उसने खाना खाया। सुनने पर माईंजी को खेद भी हुआ । उन्हें उनके भाई पी सी माथुर साहब घर के पास चौराहे पर छोड़ कर चले गए थे। रात को माईंजी ने दिन भर का सारा खर्च जोड़ कर रुपए 350/- मुझे लौटा दिये। ..... 

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