मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

आगरा/1994 -95 / (भाग-7)

गतांक से आगे ......

अजय को फरीदाबाद लौटना था वह भी प्राईवेट जाब तब छोड़ कर किसी के साझे मे अपना काम कर रहे थे,कितना नुकसान उठाते अतः आर्यसमाँजी पद्धति से हवन कराने का निर्णय बाबूजी ने लिया। कमला नगर आर्यसमाज मे उस समय कोई पुरोहित न था अतः वहाँ से पता करके उनके सेक्रेटरी के घर अजय गए जहां सेक्रेटरी साहब तो नहीं मिले किन्तु उनकी पत्नी ने सामग्री लिखवा दी और दिये समय पर पुरोहित भिजवाने का आश्वासन दे दिया। निर्धारित दिन और समय पर हवन कुंड और समिधा लेकर हींग -की -मंडी आर्यसमाज के पुरोहित अशोक शास्त्री जी पहुँच गए। विधानपूर्वक उन्होने शांति हवन करा दिया। जो दक्षिणा  बाबूजी  ने उन्हें दी बिना किसी हुज्जत के उन्होने स्वीकार कर ली। बल्कि जो साड़ी और बर्तन बाबूजी ने अजय से उन्हें देने के लिए मँगवाए थे वे भी लेने से उन्होने यह कह कर मना कर दिया कि न उसका कोई औचित्य है न ही आर्यसमाज मे चलता है। उनका कहना था आपको देना है तो किसी और पंडित को दे दें। बड़ी मुश्किल से बाबूजी और अजय ने उन्हें वे चीजें ले जाने को यह कह कर राजी किया कि आप ही जिसे चाहे दे दें।

अजय की बेटी अनुमिता तब पौने पाँच वर्ष की थी हवन के बाद बोली ताऊजी क्या आप हमे मोपेड़ पर नहीं घुमा सकते हैं?लिहाजा उसे बैठा कर थोड़ा आगे ही बढ़े थे कि उसने कह दिया बस घूमना हो गया अब वापिस चलिए। मुझे जानकारी नहीं थी किन्तु यशवन्त ने बताया कि मम्मी की इच्छा अनुमिता को एक फ़्राक देने की थी अब वह नहीं हैं इसलिए आप दिला दीजिये। तुरंत कुछ खरीदने-देने की मेरी इच्छा तो नहीं थी परंतु यशवन्त की इच्छा को देखते हुये उसी की पसंद की एक फ़्राक जिसे उस बच्ची ने भी पसंद किया ले दी जिसे यशवन्त ने ही अपनी चाची को सौंपा। फ़्राक को तो यशवन्त ने बताया था कि मम्मी देना चाहती थीं उनकी इच्छा को पूरा करने के लिए दी है उसे तो उन लोगों ने स्वीकार कर लिया। किन्तु यशवन्त अपनी तरफ से रु 4/- का हारलिक्स बिस्कुट का एक पैकेट और डेढ़ रुपया अपनी बहन को दे रहा था जिसे उस बच्ची ने ले भी लिया था। अजय ने पैसे उससे छीन कर उछाल दिये और बिस्कुट का पैकेट लौटा देने को कहा ,मन मसोस कर बच्ची ने रख दिया। यशवन्त को बहुत बुरा लगा और वह फूट-फूट कर रोने लगा। उसे रोता छोड़ कर वे लोग रवाना हो गए। मुझे बेहद ताज्जुब हुआ और धक्का भी लगा परंतु कर क्या सकता था?यशवन्त को ही बेमन से डांट दिया। बउआ -बाबूजी अजय से कुछ नहीं बोले यह बात भी समझ से परे थी।

डॉ रामनाथ, विजय शर्मा (सप्तदीवा साप्ताहिक के सम्पादक) और आस-पास के लोग 13 वी न करके आर्यसमाज से हवन कराने पर बिदक गए। गोविंद बिहारी मौसा जी (रानी मौसी के पति एवं अलीगढ़ के रिश्ते से  कमलेश बाबू के चाचा ) ने अपने घर पर मुझसे कहा कि -"तेरवी न करके जीजाजी ने अपना मुंह काला करवाया है,वह कबसे आर्यसमाजी हो गए?"

मुझे तो उनकी बात तीखी चुभी ही थी और मैंने इस दिन के बाद  उनके घर जाना छोड़ दिया और मन मे सोचा कि आपके जीजाजी (साढू) भले ही आर्यसमजी न हुये पर मै होके दिखाऊँगा। बउआ को भी छोटे फुफेरे बहनोई द्वारा अपने पति की तौहीन बेहद बुरी लगी। उन्होने बताया कि उनके फूफा जी ने उनकी भुआ (अर्थात गोविंद बिहारी जी के श्वसुर साहब ने उनकी सास )  के न रहने पर 5 दिन भी नहीं केवल 3 दिन बाद ही आर्यसमाज से हवन कराया था।मैंने एक पत्र भेज कर उनसे पूछा कि हमारे बाबूजी के बारे मे तो आपने तपाक से कह दिया कि अपना मुंह काला करवाया जो तेरवी न की तो आप अपने श्वसुर साहब के लिए क्या कहना चाहेंगे? रानी मौसी भी इस विषय पर अपने पिता को गलत नहीं ठहरा सकती थीं जबकि उनके सामने ही उनके पति ने मेरे पिता को गलत ठहरा दिया था।

इससे पूर्व गोविंद बिहारी मौसा जी के ही कहने पर मै कई बार यशवन्त को लेकर राजा-की-मंडी क्वार्टर पर गया था। किन्तु वे लोग उपेक्षित व्यवहार उसके साथ भी कर रहे थे। गोविंद बिहारी मौसा जी ने कहा था कि उनके कहने से एक बार और ले जाऊँ उस दिन शरद मोहन का आफ था वह घर पर थे किन्तु तुरंत ड्रेस पहन कर स्टेशन रवाना हो गए उनकी माता जी सोने चली गई और उनकी पत्नी ने अपनी पुत्रियों को रंग - ड्राइंग कापियाँ दे कर अलग कमरे मे बैठा दिया। लिहाजा मै यशवन्त को लेकर फ़ौरन सीधे अर्जुन नगर रानी मौसी के घर यह तथ्य बताने गया। तभी उन्होने तेरवी न करके आर्यसमाजी हवन कराने पर आपत्ति जताई थी। उसी दिन के बाद से गोविंद बिहारी मौसा जी के साथ-साथ शरद मोहन के घर भी जाना बंद कर दिया। 

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