शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

आगरा 1994-95/भाग-8

इस हादसे के बाद मेरी तबीयत भी खराब हो गई ,किसी भी प्रकार की डाक्टरी दवा बेअसर जा रही थी। तेज बुखार के साथ -साथ बेहद कमजोरी हो गई थी। चम्मच तक पकड़ना मुश्किल हो गया था। बाबूजी चम्मच से तरल पदार्थ -दाल,सूजी का पेय आदि पिला देते थे। किन्तु यह अच्छा नहीं लगता था। न पानी अच्छा लग रहा था न पिया जा रहा था। अतः मैंने बाबू जी से कहा कि डाक्टर की दी दवाएं बंद करके केवल सूखा ग्लूकोज पावडर मुझे दें । उन्होने यही किया जिससे प्यास भी लगने  लगी और पेशाब भी सही होने लगा। दो तीन दिन मे कमजोरी दूर हो गई। बुखार भी इसी से ठीक हो गया और थोड़ा-थोड़ा भोजन भी अच्छा लगने लगा। कुछ दिनो बाद ड्यूटी जा सका। सभी दूकानदारों ने पूरा सहयोग दिया। मेक्सवेल के शंकर लाल जी,रेकसन के मुरलीधर जी और ईस्टर्न ट्रेडर्स के मोहन लाल जी के ज्येष्ठ पुत्र अपने टाईपिस्ट के साथ तथा वाकमेक्स के सुंदर लाल जी के साले और ज्येष्ठ पुत्र तो घर पर शोक प्रकट करने भी आए थे।

जूलाई मे स्कूल खुलने पर यशवन्त को भी भेजा। बउआ ,बाबूजी की मदद से खाना बना रही थीं किन्तु वह खुद अस्वस्थ थीं । कई बार रोटी सेंकते-सेंकते पीछे फर्श पर गिर गईं और  गैस चूल्हा जलता रह गया। मैंने फिर बाबू जी से सख्ती के साथ उन्हें व बउआ को खाना बनाने को मना किया। मै खुद खाना बनाने लगा और ईस्टर्न के मोहन लाल जी से मिन्नत करके उनका पार्ट टाईम छोड़ दिया। वह मुझे छोडना नहीं चाह रहे थे समय घटाने को तैयार थे वही वेतन देते हुये भी। सुबह और शाम खाना बनाने के साथ मुश्किल होती अतः उनका जाब छोड़ ही दिया। फिर भी यशवन्त को भूख लगने का बहाना करके शाम को मेरे आने से पहले ही बउआ और बाबूजी खाना बना लेते थे। तब मैंने दोनों वक्त की सब्जी सुबह ही बना कर रखना शुरू कर दिया ताकि बउआ-बाबूजी पर ज्यादा भार न पड़े।

एक तरफ बुढ़ापे मे माँ-पिताजी को भी मानसिक आघात,शारीरिक कष्ट और यशवन्त की भी चिन्ता थी तो दूसरी तरफ 'चिता मे भी रोटी सेंकने ' वालों की भी कमी न थी। पर्दे के पीछे षड्यंत्र रचा गया और रिश्ते दारों तथा कालोनी के लोगों के बीच यह अफवाह फैलाई गई कि शालिनी को जहर दिया गया है। 'कोना शूज' वाले निरंजन आहूजा( जो श्रीमती आरती साहनी ,इन्कम टैक्स अपीलेट कमिश्नर द्वारा बुक्स आफ अकाउंट्स जब्त किए जाने से परेशान थे और जिंनका केस वकील की सलाह पर मेरे परिश्रम के बल पर सुलझा था) जिनकी बात अपमानजनक लगने पर मैंने उनका जाब छोड़ दिया था। इस मौके पर हींग-की-मंडी मे इस अफवाह के सृजक थे। उन्होने( जिनको मैंने वकील साहब द्वारा कानून पढ़वाकर जेल जाने से बचाया था) रेकसन वाले नारायण दास जी के समक्ष शंकर लाल जी से कहा था नया अकाउंटेंट ढूंढ लो तुम्हारा अकाउंटेंट जेल जाने वाला है। शंकर लाल जी हमारी ही कालोनी मे रहते थे और सब परिवार को   अच्छी तरह जानते थे और शू चेम्बर के प्रेसीडेंट थे अतः उन्होने निरंजन आहूजा को डांट कर चुप रहने को कहा कि झूठी अफवाहें न उड़ाएं । किन्तु लोगों को कानाफूसी करने और नाहक बदनाम करने का मसाला तो मिल ही गया था।

कमलनगर के ही एफ ब्लाक मे रहने वाले आर पी माथुर साहब से हमने जिक्र किया जो LLB भी थे। उन्होने कहा अफवाहों से चिंतित न हो जरूरी समझो तो जवाब देना वरना चुप रहना। उनकी श्रीमती जी ने बताया कि शालिनी की माँ भी अफवाहें फैलाने वालों मे हैं। भरतपुर पोस्टिंग के दौरान दैनिक यात्री रहे आर सी माथुर साहब शरद मोहन के मित्र बन गए थे वह भी आग मे घी डालने वालों मे थे ,अब उनकी पुत्री कमलेश बाबू के मौसेरे भाई की पत्नी भी हो गई है।*

इन सब परिस्थितियों मे राजनीति से विश्राम रहा। ..........


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*कमलेश बाबू की एक बहन के पति कुक्कू के रिश्तेदार हैं और उनकी शादी मे कुक्कू बाराती बन कर अलीगढ़ पहुंचे थे। आर सी माथुर की पुत्री कमलेश बाबू के मौसेरे भाई की पत्नी होने के साथ-साथ उनकी बड़ी बेटी की सुसराल मे भी रिश्तेदार है। उनकी छोटी बेटी के पति कुक्कू की भुआ के सुसराल के रिश्तेदार हैं। कमलेश बाबू ने अपनी  एक बहन और दोनों बेटियों की शादिया कुक्कू की रिश्तेदारी मे की हैं उनकी छोटी बेटी की देवरानी तो कुक्कू की बेटी की नन्द है। अतः कमलेश बाबू और डॉ शोभा उन लोगो से मिल कर हमारे साथ भीतरघात करते रहे जिसका खुलासा लखनऊ आते ही हो गया। इसीलिए डॉ शोभा ने मुझसे फोन पर  28 जनवरी 2010 को कहा था कि वे लोग मेरे लखनऊ आने के पक्ष मे नही थे। लखनऊ मे बिल्डर लुटेरिया के माध्यम से हम लोगो को हर तरह से परेशान करना उनका खास शगल बन गया है। यशवन्त को बिग बाजार की नौकरी छुड़वाकर लुटेरिया की नौकरी करवाने का उनका  प्रस्ताव मैंने आगरा  मे रहते ही ठुकरा दिया था।

कुछ ब्लागर्स को भी इन लोगो ने भड़का कर मुझे व यशवन्त को परेशान करने का उपक्रम कर रखा है जिनमे कुछ उनकी छोटी बेटी के शहर पूना मे हैं। एक प्रवासी ब्लागर ने 06 अक्तूबर 2010 को यशवन्त पर एक पोस्ट लिख कर उसका भविष्य चौपट करने का प्रयास इनही लोगो के इशारे पर किया था। के बी साहब की छोटी बेटी ने मुझसे फोन पर कहा था "मै.... को जानती हूँ,मैंने उनका प्रोफाईल देखा है। "सीधा अर्थ है कि वे लोग यशवन्त और मेरे ब्लाग्स पर प्राप्त टिप्पणियों के माध्यम से पहुँच बना कर ब्लागर्स को गुमराह करते रहते हैं। ताज्जुब तो पढे लिखे लोगों का इन लोगो के कुचक्र मे फँसने का है। कुक्कू उसकी पत्नी मधू ( के बी साहब की भतीजी ) बहने,बहनोई,भांजे-भांजी,भाई-भाई की पत्नी और भतीजिया तथा कुक्कू के पुत्र-पुत्री और उसके मित्र के बी साहब की पुत्रियाँ हमे सपरिवार नष्ट करने के अभियान मे संलग्न हैं। परंतु किसी के आगे झुक कर हकीकत लिखने से पीछे नहीं हट सकता। 

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