(बाबू जी ) |
एफ ब्लाक वाले आर पी माथुर साहब ने मुझसे उनके पास जाकर मिलते रहने को कहा था। अक्सर यशवन्त को लेकर मै उनके घर चला जाता था। उनकी श्रीमती जी का दृष्टिकोण था कि उन लोगो की अफवाहों का मुक़ाबला करने हेतु मुझे फिर से विवाह कर लेना चाहिए। मेरा ख्याल था कि जब हमारे बाबूजी चार साल के थे तब हमारी दादी जी नहीं रहीं थीं और बाबाजी ने फिर शादी न की थी तो यशवन्त तो 11 वर्ष का होने जा रहा था लिहाजा मुझे भी शादी फिर न करना चाहिए। उन लोगो ने तीन लड़कियो का ब्यौरा भी बताया जिनमे दो की शर्त यशवन्त और मेरे माता-पिता को न रखने की थी। कोई प्रश्न ही नहीं था कि ऐसी बातें सुनी भी जाएँ। एक की ऐसी शर्त न थी लेकिन उसकी उम्र बेहद कम थी। आर सी माथुर साहब तो घर पर भी आए और उस लड़की की बात उठाई जिसकी कभी छोटे भाई से उठाई थी। वह शालिनी के भाई को भी भड़का रहे थे उनकी बात तो गौर करने लायक थी ही नहीं।
ऊपर से तो माता-पिता ने मेरे ही विचारों का समर्थन किया किन्तु दिन भर यशवन्त से उनकी क्या चर्चा होती रही मै बेखबर था। पहली अप्रैल 1995 का 'सरिता' का अंक 'पर्यटन विशेषांक'था जो यशवन्त ने लिया था उसमे कोई विज्ञापन देख कर उसके और मेरे माता-पिता के बीच कुछ सहमति बनी होगी। मुझसे बउआ - बाबूजी ने कहा कि हम लोग जब तक हैं तब तक तो दिक्कत नहीं है आगे के लिए यशवन्त की बात सोच कर शादी कर लो। मेरे मना करने लेकिन यशवन्त के ज़ोर देने पर बाबूजी ने उसकी संतुष्टि हेतु एक पोस्ट कार्ड बाक्स नंबर के पते पर भेज दिया कि कौन पोस्ट कार्ड पर गौर करेगा?और यशवन्त को खुश कर दिया। लेकिन लगभग डेढ़ माह बाद पटना से बी पी सहाय साहब ने बायोडाटा और फोटो के साथ उस पोस्ट कार्ड का जवाब भेजा था। दिन मे बाबा-दादी के साथ यशवन्त की बात हो चुकी थी शाम को मेरे घर आने पर उन लोगो ने कहा बच्चा इन्हें माँ मानने को तैयार है उसकी खुशी के लिए तुम हाँ कह दो तो जवाब भेज दें । मैंने टालना चाहा था किन्तु माँ- पिताजी का कहना था कि शादी तो तुम्हें करनी ही पड़ेगी अतः हम लोगो के रहते ही कर लो। मैंने फिर निर्णय उन लोगो पर छोड़ दिया था।
जून के प्रथम सप्ताह मे बउआ को बुखार आकर तबीयत ज्यादा बिगड़ गई उधर हैंड पंप भी खराब हो गया । रिबोरिंग कराना पड़ा। दुकानों मे अकाउंट्स का काम भी ज्यादा होने के कारण छुट्टी न ले सका। बाबूजी को नल का काम देखना पड़ा। शायद उन्हें लू लग गई। उन्हें भी बुखार हो गया। डॉ को बता कर दवा ला रहा था फायदा न था अतः मैंने बाबूजी से डॉ के पास चलने को कहा कि मोपेड़ धीरे-धीरे चला कर ले चलूँगा। उन्होने अगले दिन चलने का वायदा किया। किन्तु मंगलवार 13 जून की रात लगभग डेढ़ बजे उनका प्राणान्त हो गया।
14 तारीख की सुबह अर्जुन नगर बउआ की दूसरी फुफेरी बहन के पुत्रों को खबर करने गए लेकिन पिछले वर्ष की ही भांति यशवन्त फिर मेरे साथ गया मै उसे छोड़ जाना चाहता था बउआ अकेली थीं। लेकिन बउआ ने कहा ले जाओ वह रह लेंगी।वहाँ से लौट कर हींग-की-मंडी के शंकर लाल जी को सूचित किया। फिर बेलनगंज जाकर अजय और शोभा को फरीदाबाद व झांसी टेलीग्राम किए। बउआ अकेले ही बाबूजी के पार्थिव शरीर के पास रहीं।
शाम को पाँच बजे तक अशोक और नवीन (सीता मौसी के पुत्र )आए उनके साथ असित ( रानी मौसी का पुत्र )भी आ गया था। रानी मौसी को गोविंद बिहारी मौसा जी ने यह कह कर न आने दिया था कि वहाँ जाओगी तो तुम्हारी टांगें तोड़ देंगे। उन लोगों के आने के बाद बउआ ने मुझसे सिर मुड़ाने जाने को कहा। यशवन्त फिर मेरे साथ चला गया और अशोक,नवीन भी बाद मे कहीं टहलने निकल गए। बाद मे शोभा-कमलेश बाबू झांसी से पहुँच गए,किन्तु अजय का इंतज़ार था। अजय फरीदाबाद मे शोभा के आने के इन्तजार मे रुके रह गए थे क्योंकि वे लोग वहाँ घूमने उसी दिन पहुँचने वाले थे। काफी इन्त्ज़ार देखने के बाद भी जब शोभा न पहुँचीं तब वह आगरा के लिए चले ,शायद साढ़े सात बजे तक पहुंचे होंगे तब तक बाबूजी को घाट ले जाने हेतु छोटा ट्रक और सामान आदि नवीन की मार्फत मँगवा लिया था। घाट पर ही रात के नौ बज गए थे।
नहाने-धोने के बाद अजय बउआ को कुछ खिलाना चाह रहे थे और वह लेने को तैयार न थीं। हालांकि मै और यशवन्त भी कुछ खाये बगैर ही भरी गर्मी मे रहे थे। किन्तु झेल गए बउआ या तो झेल न पायीं या पडौस की महिलाओ के कहने पर चलते समय बाबूजी के चरण-स्पर्श कराने के फेर मे उन्हें जबर्दस्त मानसिक आघात लगा। बाद मे डॉ ने ऐसा ही बताया था कि उनके ब्रेन का रिसीविंग पार्ट डेमेज हो गया था। किन्तु उस समय अजय बउआ पर झल्ला पड़े,शोभा से भी बात नहीं कर रही थीं इसलिए वह भी चिड़चिड़ा रही थीं । ये लोग मुझे उनके पास लेकर गए (जबकि परंपरानुसार मुझे बाहर अलग-थलग रहना होता था )मेरे आवाज देने पर बउआ के मुंह से इतना ही निकला -"क्या कहें?किस्से कहें?"इसके बाद उनके होठ तो चलते दिखे लेकिन कोई आवाज मुंह से सुनाई न दी। क्रमशः .....
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