बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

आगरा/1988-89 (भाग-5)-मध्यावधि चुनाव

राजीव गांधी की बोफोर्स कांड पर गिरती हुई साख और वित्त मंत्री के रूप मे उद्योगपतियों पर आय कर के डलवाए छापों से राजीव गांधी की असंतुष्टि के कारण वी पी सिंह ने कांग्रेस छोड़ कर 'जन-मोर्चा'गठित कर लिया था। उनके सहयोगी थे उनके भतीज दामाद संजय सिंह (जिनहोने बाद मे वी पी की भतीजी गरिमा सिंह को तलाक दे कर टेनिस खिलाड़ी मोदी की विधवा अमिता मोदी से विवाह कर लिया),आरिफ़ मोहम्मद खान और अरुण नेहरू (जो राजीव गांधी के ममेरे भाई थे)। इन तीनों ने नारा दिया था-'तख्त बदल दो,ताज बदल दो-बेईमानों का राज बदल दो  ' इन लोगों ने वी पी के बारे मे प्रचार किया था-'यह राजा नहीं फकीर है,भारत की तकदीर है'। हमारे मेरठ कालेज के पूर्व अध्यक्ष सतपाल मलिक(जो अब भाजपा मे हैं,तब समाजवादी थे -मधुलिम्ये और राजनारायन के हिमायती रहे थे )भी वी पी के जन-मोर्चा मे महत्वपूर्ण पदाधिकारी थे। हमारी कम्यूनिस्ट पार्टी भी वी पी का समर्थन कर रही थी। इस लिए जब राजीव गांधी ने संसद भंग करके मध्यावधि चुनावों की घोषणा की तो आगरा मे सभी स्थानों पर कम्यूनिस्ट पार्टी ने वी पी के जनता दल को समर्थन दिया किन्तु दयालबाग विधान सभा क्षेत्र से अपने उम्मीदवार मलपुरा के ग्राम प्रधान ओम प्रकाश राजपूत को खड़ा किया । हालांकि उन्हें पार्टी का चुनाव चिन्ह नहीं एलाट हुआ परंतु समस्त प्रचार कम्यूनिस्ट पार्टी के झंडे के साथ चला। इसमे भाग लेने हेतु भी मै सेठ जी को बता कर चला जाता था ।

अक्सर मिश्रा जी मुझे अपने साथ मलपुरा ले जाते थे। एक बार किशन बाबू श्रीवास्तव साहब भी अपने साथ ले गए थे जो राटौटी शाखा के ब्रांच सेक्रेटरी थे।वह रहते हमारी कालोनी के निकट ही गांधीनगर मे थे। उनकी पत्नी मंजू श्रीवास्तव पार्टी की महिला शाखा मे सक्रिय थीं और उन्होने शालिनी को भी पार्टी मे शामिल कर लिया था। उनके बच्चों के साथ यशवन्त काफी घुल-मिल गया था।

मतगणना के दिन और वोटिंग के दिन भी मेरी भी ड्यूटी मिश्रा जी ने रखी थी। ओम प्रकाश जी की बिरादरी कल्याण सिंह के कारण भाजपा की समर्थक थी किन्तु मलपुरा मे उन्होने बेहद काम कराया था अतः उनकी भी समर्थक थी। लोकसभा के लिए उनके वोट भाजपा प्रत्याशी भगवान शंकर रावत,एडवोकेट को पड़े तो विधान सभा दयालबाग  क्षेत्र मे ओम प्रकाश जी को।

वी पी के जनता दल के प्रत्याशी दयालबाग मे विजय सिंह राणा थे। उन्होने मिश्रा जी से बहौत अनुरोध किया कि ओम प्रकाश जी को हटा ले। उसी क्षेत्र मे कांग्रेस प्रत्याशी अतर सिंह यादव (जो बाद मे सपा मे शामिल हुये )
थे। आर बी एस कालेज के प्राचार्य और भाकपा नेता का जवाहर सिंह धाकरे ने पार्टी प्रत्याशी को न समर्थन देकर अपने कालेज के प्रवक्ता और कांग्रेस प्रत्याशी अतर सिंह यादव का प्रचार किया। सी पी एम वाले विजय सिंह राणा का प्रचार कर रहे थे। अतः ओम प्रकाश जी जीत तो न पाये किन्तु भाजपा प्रत्याशी को भी नहीं जीतने दिया और जनता दल प्रत्याशी विजय सिंह राणा जीत गए। जीतने के बाद राणा साहब ने मिश्रा जी का आभार व्यक्त किया कि यदि कम्यूनिस्ट प्रत्याशी को मिले वोट उनके न खड़े होने पर जाति के आधार पर  भाजपा को पड़ते तो वह जीतता अतः कम्यूनिस्ट उम्मीदवार ने खड़े रह कर भाजपा को हराने मे मदद ही की।

केंद्र मे वी पी सिंह प्रधान मंत्री और यू पी मे मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने। हमारी पार्टी के दोनों से संबंध मधुर थे। पार्टी की अंदरूनी बैठकों मे का लल्लू सिंह चौहान आगाह करते थे कि मुलायम सिंह जातिवादी हैं उनसे सावधान रहने की जरूरत है। उनका आंकलन शायद ठीक था ,बाद मे मुलायम सिंह ने यहाँ भाकपा को तोड़ा और काफी बाद मे प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की मदद से यू पी के मुख्यमंत्री भी फिर बने। अब भी वह कभी रामदेव तो कभी अन्ना हज़ारे का खुला समर्थन करते हैं।


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