सोमवार, 21 नवंबर 2011

आगरा/ 1990-91 ( विशेष राजनीतिक)

इसी काल मे भाकपा के जिला मंत्री रमेश मिश्रा जी के रमेश कटारा (जो अब पार्टी से बाहर हैं) के नियंत्रण मे आने की बात सामने आई। उनके निकटतम और घनिश्ठ्तम साथी आ -आ कर मुझ से कहते थे कि पार्टी और मिश्रा जी के परिवार को बचाओ। मैंने एक बार सीधे-सीधे मिश्रा जी से बात की तो पाया कि कटारा सहाब का जादू उनके सिर चढ़ कर बोल रहा था और कुछ फायदा कटारा के खिलाफ बोलने का नहीं होने वाला था। कटारा के मुद्दे पर ही मिश्रा जी को बड़ा भाई मानने वाले आनंद स्वरूप  शर्मा जी पहले 'लँगड़े की चौकी के शाखा मंत्री का पद' फिर बाद मे पार्टी ही छोड़ गए। एक एक कर लोग निष्क्रिय होते गए या पार्टी छोडते गए परंतु मिश्रा जी का कटारा प्रेम बढ़ता गया। अंदर ही अंदर एक काफी बड़ा वर्ग मिश्रा जी का विरोधी होता चला जा रहा था लेकिन मिश्रा जी इन सभी को पार्टी विरोधी घोषित करते जा रहे थे।

नानक चंद भारतीय भाकपा और नौ जवान सभा छोड़ कर बसपा मे चले गए। पार्षद शिव नारायण सिंह कुशवाहा भी भाकपा तथा नौ जवान सभा छोड़ कर समाजवादी पार्टी मे शामिल हो गए। पार्टी की शक्ति निरंतर कमजोर होती जा रही थी और रमेश मिश्रा जी कटारा के प्रेम मे मस्त थे। मेरी सहानुभूति कटारा विरोधियों के साथ थी परंतु कार्य मिश्रा जी के अनुसार करने की मजबूरी भी थी। कोशाध्यक्ष पद पार्टी का था मिश्रा जी की निजी फेकटरी का नहीं। कटारा साहब मुझे दबाने या धमकाने के फेर मे नहीं पड़े जबकि दूसरे लोगों के साथ ऐसी ज़ोर-आजमाईश करते रहते थे। डॉ  राम गोपाल सिंह चौहान और हफीज साहब भी कटारा से खुश नहीं थे यदि वे दबाव बनाते तो शायद मिश्रा जी उनकी बात मान सकते थे या शायद नहीं मानते तो इसी भय से उन लोगों ने कुछ कहा नहीं।

कटारा के प्रभाव मे मिश्रा जी के आने के बाद और अपनी बीमारी से पहले डॉ चौहान को प्रेक्टिल अनुभव हो चुका था कि कटारा को शिकस्त केवल मै ही दे सकता था। डॉ जवाहर सिंह धाकरे की पत्नी जो बहौत दिनों से महिला शाखा की मंत्री थीं अपने स्थान पर अपनी भतीजी श्रीमती मंजू सिंह को बनाने पर राजी थीं। कटारा की यह चाल थी कि अपनी भतीजी के पक्ष मे श्रीमती कमला धाकरे को हट जाने दो फिर वरिष्ठ शिक्षक नेता की हैसियत से कनिष्ठ शिक्षिका मंजू सिंह को अपने अनुकूल चलवाते रहेंगे। मिश्रा जी तो ब्लाईंड सपोर्ट कटारा की कर रहे थे उन्होने डॉ चौहान को महिला शाखा मे पर्यवेक्षक के रूप मे भेज कर श्रीमती मंजू सिंह को शाखा मंत्री चुनवाने का दायित्व सौंपा था। मिश्रा जी के भक्त किन्तु कटारा के प्रबल विरोधी कामरेड्स ने मुझसे अपेक्षा की कि कटारा की योजना को ध्वस्त कर दूँ। विकट स्थिति थी न तो मै मिश्रा जी को नाराज करना चाहता था न ही डॉ चौहान को  और न ही कटारा की योजना को सफल होने देना चाहता था और न ही डॉ धाकरे को यह एहसास होने देना चाहता था कि उनकी पत्नी की भतीजी को मैंने शाखा मंत्री नहीं बनने दिया।

हालांकि शालिनी भाकपा की महिला शाखा की सदस्य थीं किन्तु मैंने उन्हें सलाह दी थी कि वह बैठकों मे तटस्थ रुख ही रखें। सबसे पहले उस शाखा की सहायक मंत्री श्रीमती मंजू श्रीवास्तव (जो किशन बाबू श्रीवास्तव साहब की पत्नी थीं )को राजी किया कि वह सरला जी के स्थान पर उनकी भतीजी श्रीमती मंजू सिंह के विरुद्ध अपना नाम प्रस्तावित होने पर पीछे न हटें और मुक़ाबले मे डटी रहें। उसके बाद मिश्रा जी की सबसे विश्वस्त कामरेड को सारी परिस्थिति समझा कर उनसे महिला शाखा का मंत्री बनने का निवेदन किया और उनके इंकार करने पर   मंजू श्रीवास्तव जी का नाम प्रस्तावित करने का अनुरोध किया जिसे उन्होने न केवल स्वीकार कर लिया बल्कि रिक्शा से बाकी महिलाओं के घर-घर जाकर उन्हें कमला जी द्वारा प्रस्तावित मंजू सिंह के विरुद्ध मंजू श्रीवास्तव का समर्थन करने पर राज़ी किया।

बैठक मे कामरेड कमला  धाकरे ने खुद हटने और अपने स्थान पर अपनी भतीजी कामरेड मंजू सिंह का नाम प्रस्तावित किया जिसका किसी ने भी समर्थन नहीं किया और मिश्रा जी की विश्वस्त  कामरेड ने कामरेड मंजू श्रीवास्तव का नाम प्रस्तावित कर दिया जिसका (कमला  जी और मंजू सिंह के अतिरिक्त ) सभी ने ताली बजा कर स्वागत किया । बाद मे कमला  जी ने भी अपनी स्वीकृति दे दी और इस प्रकार अपने पहले ही शक्ति परीक्षण मे कटारा साहब मुंह की खा गए। डॉ चौहान की उपस्थिती मे हुये इस चुनाव की औपचारिक पर्यवेक्षक रिपोर्ट के अतिरिक्त मौखिक रूप से सारा विवरण उन्होने मिश्रा जी को दिया तो मिश्रा जी हैरान रह गए कि डॉ चौहान की मौजूदगी के बावजूद एक ठाकुर कामरेड को रिजेक्ट कर दिया गया। मिश्रा जी ने डॉ चौहान से पूछा कि आपने हस्तक्षेप क्यों नहीं किया तो वह बोले वहाँ मतभेद होता तभी तो हस्तक्षेप की नौबत आती ,कमला  जी ने भी तो खुद ही मंजू सिंह के स्थान पर मंजू श्रीवास्तव को स्वीकार कर लिया था तो बतौर पर्यवेक्षक वह क्या कर सकते थे?मिश्रा जी ने कहा डॉ साहब यह आपकी पहली हार है,पड़ताल कीजिये कि क्यों आप मिशन मे कामयाब नहीं हुये?उन्होने कहा जांच तो करेंगे ही और उन्होने अपने तरीके से जांच मे सच्चाई का पता भी निकाल लिया ,किन्तु मिश्रा जी को कहते रहे कुछ पता नहीं चल पा रहा है,उन्होने तभी मन मे तय कर लिया था कि मिश्रा जी को कटारा के चंगुल से यह (विजय माथुर)ही निकाल पाएगा और इसी लिए अपनी बीमारी के दौरान ही उन्होने अपना चार्ज मुझे दिलवाकर अपने स्थान पर कोशाध्यक्ष बनवा दिया था और निश्चिंत हो गए थे। जैसा कि मिश्रा जी ने बताया था कि उन्हें अपना नाम तक लिखना नहीं आता था यह डॉ चौहान ही थे जिनहोने उन्हें पार्टी मे भी बढ़ाया और पढ़ाया उनको खुद का नाम लिखना भी सिखाया। शायद इसी गुरु धर्म के निर्वाह मे वह मिश्रा जी का खुल कर विरोध या आलोचना नहीं करना चाहते होंगे और असंतुष्ट होने के कारण उन्हें खुशी ही हुई होगी कि मैंने डिप्लोमेटिक तरीके से कटारा का तिलस्म तोड़ दिया और मिश्रा जी पर आंच भी न आने दी ।हकीकत पता चलने पर डॉ धाकरे और उनकी पत्नी कमला  जी भी खुश थीं कि मैंने उनकी भतीजी श्रीमती मंजू सिंह को एक गलत आदमी के चंगुल मे फँसने से बचाने हेतु उनका विरोध करवाया था। धाकरे दंपति का मुझे आशीर्वाद भी इस घटना के बाद हासिल हो गया और आगे उन दोनों ने मुझे ब्लाईंड सपोर्ट भी किया जिसका वर्णन अपने उपयुक्त समय पर होगा ।  

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2 टिप्‍पणियां:

  1. आपके व्यक्तित्व के इस पहलु से परिचित हुआ।
    आगे की बात जानने की इच्छा है।

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  2. गुरूजी प्रणाम - समयाभाव में रेगुलर ब्लॉग पर नहीं आ प् रहा हूँ ! आप के करामत और उचित व्यक्ति की चुनाव भी बहुत सार्थक निति को परिलक्षित करती है ! इसे ही कहते है - फूल जहा भी रहेगा , सुगंध ही देगा !

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