शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

आगरा/1992 -93 (भाग-3 )/दरियाबाद यात्रा

......जारी

हालांकि एक वर्ष पूर्व ही सब तब मिले थे जब मै ताऊ जी के निधन के बाद दरियाबाद आया था परंतु ऋषिराज ने अब फिर नहीं पहचाना था। याद दिलाने पर समझे। हम 2-2 दिन मथुरा नगर और रायपुर रुकने के हिसाब से गए थे। लेकिन ऋषि और उमेश ने बताया कि रायपुर मे जो कोई भी महिला रात को रुकती है वह पागल हो जाती है ऐसा उन लोगों ने कुछ कर रखा है। उदाहरण उन्होने छोटी ताईजी और रेखा जीजी का दिया और यह भी बताया कि सुरेश भाई साहब की एक साली भी जो रात मे रुकी पागल हो गई। लिहाजा हमने वहाँ न रुकने का निर्णय लिया और मात्र एक दिन मिलने जाने का तय किया। सुरेश भाई साहब(08 दिसंबर की रात्रि मे दिल्ली मे जिंनका निधन हो गया हैऔर यह सूचना उनके परिवार के जरिये नाही अन्यत्र से मिली है ) सुबह  आए और स्टेशन पर एक मिठाई की दुकान मे बैठ कर संदेश उनके साथ चलने का भिजवा दिया। मथुरा नगर मे ऋषि और उमेश ही थे अतः खाना-नाश्ता शालिनी ने ही अपने रहने तक बनाया। नाश्ता करके हम लोग स्टेशन पहुंचे और सुरेश भाई साहब ने एक खड़खड़िया के माध्यम से हम लोगों को रायपुर चलने को कहा। शालिनी और यशवन्त के लिए ऐसी गाड़ी पर बैठने का यह पहला अवसर था।

पहुँचते-पहुँचते शायद एक बज गया था और भाभी जी ने सीधे खाना परोसा । रोटियाँ बेहद बड़ी और भारी थीं -यह भी उन दोनों के लिए ताज्जुब की बात थी । यशवन्त ने तो आधी रोटी ही खाई। शालिनी भी एक से ज्यादा न खा सकीं और मै दो से ज्यादा न ले सका। 1964 के बाद रायपुर मे खाने का यह मेरे लिए भी पहला अवसर था । तब तो बाबा जी भी वहाँ थे और ताईजी भी थीं। विपिन वहाँ मिले थे। वह गेरुए लिबास मे अलग कुटिया बना कर रहते थे। डॉ प्रताप नारायण माथुर और उनकी पत्नी ऊषा (जो रिश्ते मे हम लोगों की भतीजी थीं)बाराबंकी से लौटते मे वहाँ आए थे,वैसे एक दिन पूर्व जब रेल से वे जा रहे थे तो स्टेशन पर ऋषिराज ने उनसे मुलाक़ात करवा दी थी। भाभी जी से भी उनका कोई अलग रिश्ता था। शाम की चाय उनके साथ साथ ही हुई।

उन लोगों के जाते ही हम भी मथुरा नगर जाना चाहते थे। परंतु भाई साहब भाभी जी एक दिन रुकने पर ज़ोर दे रहे थे ,हम रुकना नहीं चाहते थे। शाम को अंधेरा होते ही यशवन्त जो तब साढ़े आठ वर्ष का ही था जिद्द पर अड़ गया कि यहाँ नहीं रहेंगे ऋषि चाचा के घर चलिये। जब उसने रोना शुरू कर दिया तो भाई साहब भाभी जी बोले बच्चे को रुला कर जबर्दस्ती नहीं रोकेंगे। इतनी देर बाद वहाँ से कोई वाहन भी नहीं मिल रहा था। एक ड्राइंग मास्टर साहब शायद रामसनेही घाट होकर लौट रहे थे ,सुरेश भाई साहब ने उनसे साइकिल मांग ली और बोले अब कल मिलेगी। डंडे पर यशवन्त को और कैरियर पर शालिनी को बैठा कर हम रायपुर से मथुरा नगर चले। स्टेशन पर हलवाइयों की दुकानों पर ऋषि डेरा जमाते थे तब वह वहाँ के ग्राम प्रधान थे। उन्होने हमे साइकिल पर बैठ कर जाते देखा तो आवाज दी होगी जो हमने नहीं सुनी। घर पर फिर ताला!लेकिन हाँफते-कांपते ऋषिराज तुरंत पैदल लपकते हुये पहुँच गए। उन्होने यशवन्त की खूब सराहना की कि,उसने रो कर वहाँ नहीं ठहरने दिया यह अच्छा किया।

रात मे एक भैंस और उसकी पड़िया मे भिड़ंत हो गई होगी तो उमेश उन दोनों को अलग कराने मे लगे होंगे। उमेश तब डेरी खोलने के चक्कर मे कई भैंसें पाले हुये थे उनमे और ऋषि मे संबंध मधुर न होने के कारण वह अकेले ही जूझ रहे थे। शालिनी ने मुझे जगा कर उमेश की मदद करने को कहा। मै गया तो लेकिन उमेश ने कहा जानवर आपको नहीं पहचानते हैं इसलिए आप उनके नजदीक न आयें। जब उन दोनों को अलग-अलग बांध कर उमेश लौटे तब ही हम फिर दोबारा सोये। मई के महीने मे वहाँ छत  पर ठंड पिछली  रात मे लग रही थी अतः इस दिन नीचे कमरे मे सोये थे ।

अगले दिन सुबह हम साइकिल रायपुर पहुंचा आए उसके बाद  ऋषि हम लोगों को लेकर लखनऊ माधुरी जीजी के घर राजाजी पुरम आए। चलते समय ऋषि ने पूछा और मेरे मना करने के बावजूद शालिनी ने चने ले चलना कबूल कर लिया तो एक झोले मे जितने आ सके उन्होने भर दिये और शालिनी ने सील कर पैक कर लिया।  जैसे पिछले वर्ष नरेश ने अपने साथ मेरा भी टिकट लिया था इस बार हम लोगों का ढाई टिकट भी ऋषि ने लिया। आगरा से हम दरियाबाद आए थे तो वहाँ से लखनऊ भी खुद ही आ सकते थे किन्तु वे लोग अपनी अमीरी प्रदर्शित करने हेतु हमारा टिकट भी ले देते थे।

माधुरी जीजी मुझसे दस वर्ष बड़ी हैं और बचपन मे भी अपनी माँ की फटकार खाकर भी अपनी बहन बीना (जो मुझसे मात्र छै माह छोटी हैं)को न लेकर मुझे लेकर खेलने निकल जाती थीं,ऐसा सुना है। जीजाजी के निधन हो जाने के कारण जीजी सचिवालय मे कार्य (एवजी की नौकरी मे)कर रही थीं और तब तक अधिकारी हो गई थीं। जब कभी कम्यूनिस्ट पार्टी की रैली मे लखनऊ आते थे तो रैली के बाद उनके घर मिल कर ही स्टेशन पहुँच कर  रात की अवध एक्स्प्रेस से साथियों के साथ लौटते थे। वह इन लोगों को लाने को कहती रहती थीं दो दिन उनके घर रुकने का कार्यक्रम था किन्तु दरियाबाद मे कम रुकने की वजह से उनके यहाँ अधिक रुक गए। लौटने का रिज़र्वेशन गंगा -जमुना एक्स्प्रेस से आगरा सिटी का कराया था अतः वहाँ रुकते हुये गए।

ताउजी और ताईजी दोनों का निधन हो जाने के कारण उनके द्वारा ऋषि की शादी तोड़ कर उनके महेंद्र जीजा जी(मीरा जीजी के पति) ने दूसरी जगह तय करा दी थी, माधुरी जीजी ने उसमे शामिल जरूर होने का आग्रह किया । हमने शामिल होने की हामी कर दी..........

Link to this post-



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ढोंग-पाखंड को बढ़ावा देने वाली और अवैज्ञानिक तथा बेनामी टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम कर दिया गया है.असुविधा के लिए खेद है.

+Get Now!